भारत के इतिहास में 15 अगस्त का ऐतिहासिक, सौभाग्यशाली परंतु आत्मनिरीक्षण करने वाला दिन है। सदियों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए लाखों लोगों ने अपना बलिदान दिया। शहीदों के बलिदान पर हमें यह आजादी मिली है। यह सच है कि आजादी के बाद हम काफी आगे बढ़े हैं लेकिन आज की स्थिति देख कर मन में क्षोभ होता है। फांसी के फंदे को चूमने के लिए जिन नौजवानों ने अपनी जान समर्पित की क्या हम उसकी कीमत समझ पाए। आखिर इन लोगों ने कौन से भारत के लिए बलिदान दिया था। जो भारत हमारे सामने है उस भारत के लिए क्या उन्होंने बलिदान दिया था। आज यदि भगत सिंह आ जाएं, झांसी की रानी आ जाएं और आज का भारत देखें तो वे आंसू बहाएंगे। यही वजह है कि हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। अभी तक हम शहीदों के सपनों का भारत नहीं बना पाए हैं। आजादी के बाद जैसा देश बनना चाहिए वैसा नहीं बना है। इस बीच हम एक और आजादी के लिए बात करते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी। जहां तक अभिव्यक्ति की आजादी का प्रश्न है, अभिव्यक्ति हमारा मौलिक अधिकार है। मनुष्य एक विचारशील प्राणी है। हमारे मन में विचार आते हैं। जब विचार आते हैं तो उसे व्यक्त भी करते हैं। यदि हम विचार व्यक्त नहीं कर पाएंगे तो फिर हमारे विचार कुंठित हो जाएंगे, बंदी हो जाएंगे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जो भी विचार आएंगे उसे अभिव्यक्त करने की आजादी हमारे पास है।
अभिव्यक्ति के लिए लोग संविधान की दुहाई देते हैं। संविधान की बात छोडि़ए, अभिव्यक्ति तो मनुष्य का मूलभूत मौलिक अधिकार है। यह हमें प्रकृति ने दिया है, भगवान ने दिया है। परंतु यह सभी को समझना होगा कि समाज भीड़ नहीं है और न ही हम अब भी आदिमानव हैं। यह एक संगठन है। जब मनुष्य सामाजिक नहीं हुआ था तब वह जो चाहे कर लेता था। अब अंतर यह है कि समाज के कुछ नियम कुछ व्यवस्थाएं होती हैं। इनका पालन होना ही चाहिए। किसी की आजादी दूसरे की आजादी से टकरानी नहीं चाहिए। कुछ मूलभूत बातें हैं जिन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। राष्ट्र, धर्म, किसी की निजता पर हमला अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है और इसके लिए स्वीकार्यता नहीं है। किसी में भी यह अहंकार नहीं होना चाहिए कि मैं जो चाहे करूं इससे आपको क्या फर्क पड़ता है। समाज और देश के नियम पर समझौता नहीं हो सकता। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सब कुछ करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। इसकी अपनी सीमाएं हैं। बोलने की आजादी का मतलब यह नहीं है कि भारत में रह कर भारत के खिलाफ बोलना अभिव्यक्ति मान लिया जाना चाहिए। हम क्या बोल रहे हैं यह तो सोचना होगा। भारत में रह कर शत्रु देश के पक्ष में नारे लगा रहे हैं और इसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम दे रहे हैं। यह गलत है। इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। खान-पान को लेकर भी अलग तरह का रवैया है। इस बारे में मैं अपनी पार्टी में भी कहता हूं। मेरी पार्टी में लोगों को एक बार अच्छी तरह हिंदुत्व समझाने की जरूरत है। हिंदुत्व की गलत व्याख्या हो रही है। मैंने अपनी पार्टी के कुछ नेताओं को कहा है, गुलाम भारत का एक युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद दुनिया को हिंदुत्व समझा पाया। शिकागो धर्म सभा में विवेकानंद ने एक भाषण दिया और हिंदुत्व के बारे में सारी गलतफहमियां दूर हो गईं। भाषण के दूसरे दिन अखबारों ने स्वामी विवेकानंद को महान बताया। अंग्रेजों ने माना कि भारत ज्ञान से समृद्ध देश है। जब गुलाम देश का एक संन्यासी पूरी दुनिया को हिंदुत्व समझा पाया तो हम स्वतंत्र भारत में अपने ही देश में आज लोगों को हिंदुत्व क्यों नहीं समझा पा रहे हैं। हिंदुत्व समझाने वाले तथाकथित नेताओं को भी हिंदुत्व का पता नहीं है। हिंदुत्व कोई पूजा पद्धति नहीं है। हिंदुत्व एक महासमुद्र है जिसमें सभी समाहित हैं। कोई किसी भी तरह से भगवान की पूजा करे, वह हिंदू है। वह ईश्वर को न माने तो भी वह हिंदू है। हिंदुत्व का मतलब विचार स्वातंत्र्य है। यह सिर्फ किसी पूजा पद्धति या पुस्तक से जुड़ा मसला नहीं है। यह जीवन जीने की पद्धति है। जो लोग हिंदुत्व की बात करते हैं उन्हें एक बार स्वामी विवेकानंद को पढ़ना चाहिए। स्वामी विवेकानंद कहा करते थे, हिंदुत्व को रसोईघर का धर्म मत बनाओ। यहां सारी पृथ्वी कुटुंब है तो घर वापसी की बात क्या करना।
कोई व्यक्ति किसी भी दरवाजे से हिंदुत्व में प्रवेश ले सकता है। सबकी अपनी आजादी है। जिन बातों को लेकर आजकल बहस होती है उनमें कई बातों का अभिव्यक्ति की आजादी से कोई लेना-देना नहीं होता। वह तो दुराग्रह होता है। अभिव्यक्ति की परिभाषा है, सभी की सहमति-समझदारी से बात करना। यदि दुराग्रह किया जाए तो इसमें अभिव्यक्ति कहां आएगी। मेरा रास्ता ही ठीक है, मैं ही सही हूं, की रट ही संकट का कारण है। जबकि विचार यह होना चाहिए कि सबका अपना रास्ता है और सभी को अपने रास्ते जाने का अधिकार है। दुराग्रह छोड़ना ही होगा। भले ही वह राजनेता हों या धार्मिक नेता। अब विरोध के लिए विरोध हो रहा है। इसे ही अभिव्यक्ति माना जा रहा है। टकराव अच्छे या बुरे मुद्दों पर नहीं है, टकराव सामने वाला विरोधी है इसलिए है। कभी-कभी सही कहने के पीछे यह डर है कि कहीं वोट बैंक न खिसक जाए। इसलिए बोलना वही है जिससे फायदा हो।
(लेखक भाजपा के लोकसभा सांसद हैं।)