लाखों मेहनतकश लोगों को कई दिनों तक बेघर रखने के बाद नदियों ने खुद को समेटना शुरू कर दिया है। गांवों से पानी निकल चुका है। बेघर हुए लोग अपने सामान के साथ अपने घर की ओर लौट गए हैं। घर अब वैसा नहीं है,जैसा वे छोड़ गए थे। मिट्टी की दीवारें ढह चुकी हैं। छप्पर जमीन छू रहे हैं। चूल्हों की जगह अब गीली मिट्टी का ढेर बचा है।
लोगों के लिए बाढ़ एक चुनौती थी, जिससे उन्होंने निपट लिया है, लेकिन असली मुसीबत अब भी बरकरार है। अब उनके सामने खुद को फिर से खड़ा करने की चुनौती है। मुजफ्फरपुर के मीनापुर ब्लॉक के मेथनापुर गांव के किसान रामसेवक साह बताते हैं, “10 अगस्त को हमलोग अपना घर छोड़कर चले गए थे। 15 दिन बाद लौटे, तो घर क्षतिग्रस्त हो गया था और अनाज भी सड़ चुका था। एक बीघा खेत में मूली बोई थी और बाकी जमीन में अन्य फसलें थीं। सब बर्बाद हो गई हैं।’’
विगत 19 और 20 अगस्त को हिमालयी क्षेत्र और उत्तरी बिहार में तेज बारिश के बाद गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी, कमला और महानंदा का जलस्तर अचानक बढ़ गया था 19 जिलों के 187 ब्लॉक के गांवों में पानी घुस गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ग्रस्त इलाकों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद कहा था कि इस बार जैसी विनाशकारी बाढ़ उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। लंबे समय से बाढ़ व नदियों को लेकर काम करनेवाले डॉ. दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं, “बाढ़ में यह सहूलियत होती है कि लोग नाव की मदद से एक जगह से दूसरी जगह आ-जा सकते हैं, मगर बाढ़ का पानी कम होने के बाद आवागमन में कई तरह की कठिनाइयां होती हैं क्योंकि कहीं पानी होता है कहीं नहीं। नाव रास्ते में ही फंस जाती है।” डॉ. मिश्र ‘बाढ़ मुक्ति अभियान’ के संयोजक हैं और बिहार की नदियों व बाढ़ पर आधा दर्जन से अधिक किताबें लिख चुके हैं।
इधर, बिहार सरकार ने बाढ़ पीड़ितों को तत्काल राहत देने के लिए छह-छह हजार रुपये मुहैया कराने का ऐलान किया है। कई जिलों में रुपये देने की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है, लेकिन इतने रुपये से कितनी राहत मिल सकेगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अगर किसी परिवार में दो से अधिक सदस्य होंगे, तो छह हजार रुपये में वे एक महीना भी ठीक से खा नहीं सकेंगे। रामसेवक साह कहते हैं, “सरकार छह हजार रुपये देगी, उससे क्या होने वाला है? बिना कर्ज लिए कोई उपाय नहीं है। गांव का एक साहूकार पांच रुपये प्रति सैकड़ा (100 रुपये पर पांच रुपये मासिक ब्याज) की दर से कर्ज दे रहा है। उसी से कर्ज लेकर चलाएंगे। 26 अगस्त को हमलोग अपने घर लौटे, लेकिन तब से अब तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है।”
वैशाली एरिया स्मॉल फार्मर्स एसोसिएशन के सचिव यू. के. शर्मा के अनुसार, “बाढ़ से जिन किसानों की फसल बर्बाद हुई है, उन्हें लागत का एक तिहाई हिस्सा ही सरकार देगी। बाकी नुकसान किसानों को झेलना होगा।” शर्मा कहते हैं, “बाढ़ से फसल बर्बाद होने से किसानों की वर्किंग कैपिटल खत्म हो चुकी है। घर भी जमींदोज हो चुके हैं। चूंकि उनकी फसल बर्बाद हो गई है, तो उनके पास रबी की फसल बोने के लिए वर्किंग कैपिटल भी नहीं होगी। ऊपर से जल-जनित बीमारियों का प्रकोप होगा, सो अलग। कुल मिलाकर बाढ़ के बाद की स्थिति बहुत भयावह होगी।”
नियमानुसार अगर बर्बाद हुई फसल मौसमी (धान, मक्का व सब्जियां) और सिंचित खेतों में लगी हुई हो, तो प्रति हेक्टेयर 13,500 रुपये मुआवजा मिलता है। अगर खेत गैर सिंचित हो तो प्रति हेक्टेयर 6,800 रुपये दिया जाता है। वहीं, अगर वार्षिक फसल मसलन गन्ना, केला आदि बर्बाद हुआ हो, तो 18,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा मिलता है। ‘साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स एंड पीपल्स’ के हिमांशु ठक्कर ने कहा कि 15 अगस्त को कई नदियों का जलस्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगा था। इससे साफ हो गया था कि बाढ़ आ रही है। इसका मतलब है कि नीतीश सरकार को अंदेशा था कि बाढ़ कहर बरपाने आ रही है, लेकिन लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। डॉ. दिनेश कुमार मिश्र ने कहा, “मैं करीब तीन दशक से बाढ़ और इसे लेकर सरकारों का रवैया देख रहा हूं। असल में सरकारों का इसमें निहित स्वार्थ है, इसलिए उन्हें लोगों की फिक्र नहीं।”