ऐतिहासिक धरोहरों को संभाले रखने में बिहार का सानी नहीं रहा है। लेकिन नीतीश कुमार के शासनकाल में राज्य की इस पहचान पर भी पानी फेरने का काम तेजी से चल रहा है। राजधानी का पटना म्यूजियम इसकी ताजा मिसाल है। जब 1912 मेंबंगाल से अलग होकर बिहार अस्तित्व में आया था, तब यह मांग पुरजोर तरीके से उठी कि बिहार की विरासत को संजोने के लिए उसके पास अपना म्यूजियम हो। इस मांग को गंभीरता से लेते हुए 1917 में पटना म्यूजियम तैयार किया गया और देखते ही देखते यह प्राचीन कलाकृतियों से भर गया। तब से यह इतिहासकारों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। अब ठीक 100 साल बाद बिहार की विरासत को संभाल रहे इस म्यूजियम को टुकड़ों में बांटा जा रहा है।
बिहार सरकार पटना म्यूजियम से करीब 3,000 कलाकृतियों को नवनिर्मित बिहार म्यूजियम में रखने जा रही है। ये कलाकृतियां 1764 से पहले की हैं। बिहार म्यूजियम बेली रोड पर स्थित है। इन कलाकृतियों को बिहार म्यूजियम की इतिहास दीर्घा में रखा जाएगा, जो तीन भागों में बंटी हुई है। बताया जा रहा है कि जिन कलाकृतियों को पटना म्यूजियम से हटाया जाएगा, उनमें तीसरी शताब्दी की यक्षिणी की मूर्ति, 1958-62 की खुदाई में मिले बुद्ध से जुड़े अवशेष, पाल काल की कांस्य की बनी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी पांच फीट की मूर्ति और मौर्यकाल की मूर्तियां आदि शामिल हैं। इनमें वे कलाकृतियां भी शामिल हैं, जिन्हें विख्यात लेखक, दार्शनिक और शिक्षक राहुल सांकृत्यायन ने विदेश दौरे के दौरान इकट्ठा किया था।
यहां सबसे आश्चर्य की बात है कि सरकार यह सब गुपचुप तरीके से कर रही है। नौ सितंबर से पटना म्यूजियम को बंद कर दिया गया है। इस आशय को लेकर म्यूजियम के नोटिस बोर्ड पर एक नोटिस चस्पा किया गया है। इसमें म्यूजियम की दीर्घाओं में कई तरह के कार्य कराए जाने की वजहें बताई गई हैं। इसी में यह भी बताया गया है कि इन कार्यों के कारण म्यूजियम 25 सितंबर तक बंद रहेगा। लेकिन, सूत्रों का कहना है कि इसी दौरान कलाकृतियों को नवनिर्मित बिहार म्यूजियम में ले जाया जाएगा।
सरकार ने इसे लेकर इतिहासकारों, साहित्यकारों और पुरातत्ववेत्ताओं से भी सलाह-मशविरा नहीं किया। उन्हें ऐसी कोशिश की पहली जानकारी 2016 में मिली थी। तब उन्होंने इसका विरोध किया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा था, जिसका कोई फायदा नहीं हुआ। सरकार के इस रवैए के खिलाफ राज्य के वरिष्ठ लोगों ने फिर अभियान शुरू कर दिया है। पिछले दिनों पटना संग्रहालय बचाओ कमेटी के बैनर तले म्यूजियम के सामने प्रदर्शन भी किया गया।
इधर, राहुल सांकृत्यायन की पुत्री जया सांकृत्यायन ने भी पटना म्यूजियम से दुर्लभ कलाकृतियों के स्थानांतरित किए जाने पर हैरानी जताते हुए नीतीश कुमार को तल्ख लहजे में एक पत्र भेजा है। उन्होंने लिखा है, “बिहार सरकार का यह कदम न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि घोर निंदा व विरोध के लायक है।” वह लिखती हैं, “पटना म्यूजियम के साथ राहुल सांकृत्यायन परिवार का विशेष संबंध रहा है। 1928 में राहुल जी भारत से विलुप्त संस्कृत और बुद्ध दर्शन से संबंधित बहुमूल्य ग्रंथों व पांडुलिपियों की खोज में निकल पड़े थे। तिब्बत के दुर्गम पथों की चार साहसिक यात्राएं अपने आप में एक इतिहास हैं। उनको इस अभियान में सफलता मिली और वे वहां के मठों में शताब्दियों से बंद कमरों में रखी पांडुलिपियों और थंका चित्रों को फिर से भारत लाने में सफल हुए।” उन्होंने लिखा, “यदि राहुल जी चाहते तो उसी समय वे इन दस्तावेजों को किसी भी विदेशी संस्था या म्यूजियम को भारी आर्थिक लाभ के साथ सुपुर्द कर सकते थे। मगर राहुल जी ने ऐसा न कर अपने अनन्य मित्रों व विद्वान बैरिस्टर काली प्रसाद जायसवाल के साथ सलाह कर इन्हें पटना म्यूजियम में रखना तय किया।”
उनके इस पत्र पर बिहार सरकार की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जया सांकृत्यायन ने आउटलुक को फोन पर बताया कि पत्र का जवाब अब तक नहीं आया है। उन्होंने कहा, “मुझे लगा था कि दूसरी चीजें स्थानांतरित की जाएंगी, लेकिन वहां के विशिष्ट लोगों ने मुझे बताया कि राहुल सांकृत्यायन द्वारा दी गई चीजें भी स्थानांतरित हो रही हैं, तब मैंने पत्र लिखा।” वरिष्ठ साहित्यकार खगेंद्र ठाकुर ने आउटलुक से कहा, “सरकार का यह निर्णय बिलकुल गलत है। पटना म्यूजियम की अपनी प्रतिष्ठा है और उसे बरकरार रखने के लिए वहां जो कलाकृतियां हैं, उन्हें वहीं रहने देना चाहिए।”
यहां यह भी बता दें कि सामान्य ज्ञान की किताबों में यक्षिणी को लेकर एक सवाल आता है कि यक्षिणी की मूर्ति किस म्यूजियम में स्थित है और इसका जवाब है-पटना म्यूजियम। अगर म्यूजियम से इन धरोहरों को अन्यत्र रखा जाता है, तो इस सवाल का जवाब भी बदलना पड़ेगा। जवाब ही नहीं, इस विस्थापन से बहुत कुछ बदल जाएगा।