देश में सैकड़ों योजनाओं का शिलान्यास होता है। इसमें से कुछ योजनाएं ठंडे बस्ते में चली जाती हैं या कई वर्षों तक लटकी रहती हैं। झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। राज्य में नई राजधानी के निर्माण का शिलान्यास पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 2002 में किया। योजना ठंडे बस्ते में चली गई। लोग शिलान्यास को भूल गए और पत्थर तक गायब हो गए। 2016 आते-आते निर्माण स्थल भी बदल गया। वर्षों बाद नई जगह फिर से शिलान्यास के साथ अब जाकर नई राजधानी (ग्रेटर रांची) बसाने का काम शुरू हुआ। राज्य में इस तरह के दर्जनों मामले हैं। इस क्रम में सवाल उठता है कि क्या साहिबगंज (झारखंड) और मनिहारी (बिहार) के बीच गंगा पर पुल के निर्माण के साथ भी ऐसा ही कुछ होने वाला है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 6 अप्रैल 2017 को इस पुल के निर्माण का शिलान्यास किया। शिलान्यास के छह महीने बाद तक पुल के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखी गई है। यहां तक कि अभी तक टेंडर भी फाइनल नहीं हो पाया है। इसलिए राजनैतिक गलियारे से लेकर अधिकारी वर्ग तक में कहा जा रहा है कि यह सब एक पॉलिटिकल माइलेज के लिए किया गया था।
तब था लिट्टीपाड़ा उपचुनाव
संथाल परगना के लिट्टीपाड़ा में 9 अप्रैल 2017 को मतदान होना था। राज्य में भाजपा की सरकार है। सरकार विकास का काम करने का लगातार दावा कर रही है। इस सीट को जीतने से भाजपा की साख बढ़ती और साथ ही संथाल में झामुमो के गढ़ में सेंध लग जाती। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की परंपरागत सीट रही है। इसके लिए भाजपा ने हर दांव को अपनाया। मतदान से ठीक तीन दिन पहले साहिबगंज में प्रधानमंत्री के हाथों गंगा पुल का शिलान्यास तक करा लिया गया। इस शिलान्यास की घोषणा के बाद झामुमो का विरोध शुरू हुआ। भाजपा लिट्टीपाड़ा चुनाव हार गई और कुछ दिनों बाद इस शिलान्यास का मामला भी शांत हो गया।
सुरक्षा कारणों से फंसा टेंडर
गंगा पुल के टेंडर की प्रक्रिया शिलान्यास से पहले शुरू कर दी गई थी। सूत्रों की मानें तो एनएचएआइ ने टेंडर फाइनल होने से पहले शिलान्यास नहीं कराने की सलाह दी थी। पुल निर्माण का काम सोमा इंजीनियरिंग और चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी (सोमा-चेक) के ज्वाइंट वेंचर को मिला है। सोमा इंजीनियरिंग दक्षिण भारत की कंपनी है, जबकि चेक चाइनीज कंपनी है। इस कंपनी को वर्क ऑडर देने के लिए गृह मंत्रालय समेत अन्य जगहों से अनुमति जरूरी है। गृह मंत्रालय में मामला लंबे समय तक फंसा रहा। अब इसे प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया गया है। मामला फिलहाल वहीं अटका है।
दोबारा टेंडर के संकेत
हाल में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी रांची आए हुए थे। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि साहिबगंज-मनिहारी के बीच गंगा पर बनने वाले पुल का टेंडर सुरक्षा कारणों से प्रधानमंत्री कार्यालय में अटका है। उन्होंने संकेत भी दिया है कि अगर चीन की कंपनी को अनुमति नहीं मिली तो फिर से टेंडर निकाला जाएगा। सूत्रों की मानें तो चीन के साथ मौजूदा संबंध को देखते हुए टेंडर रद्द करने और फिर से नया टेंडर निकाले जाने की उम्मीद ज्यादा दिख रही है।
गंगा पुल निर्माण से लाभ
पुल निर्माण शुरू होने के साथ ही लोगों को रोजगार मिलेगा। आंकड़े बताते हैं कि एक किलोमीटर राजमार्ग के निर्माण में 4076 मानव दिवस रोजगार का सृजन होता है। इस आधार पर इस परियोजना से लगभग 8900 मानव दिवस के लिए रोजगार का सृजन होगा। संथाल क्षेत्र से उत्तर बिहार की दूरी अभी बहुत अधिक है। इस क्षेत्र के लोगों को सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया, फारबिसगंज, विराटनगर (नेपाल) जाने में परेशानी उठानी पड़ती है। लोगों के पास या तो नदी में चलने वाले स्टीमर से जाना पड़ता है या फिर भागलपुर या फरक्का पुल का रास्ता लेना पड़ता है। साहिबगंज से भागलपुर पुल की दूरी 81 किमी और फरक्का पुल की दूरी 79 किमी है। इस पुल के बन जाने से लगभग 100 किमी की दूरी कम होगी।
प्रस्तावित गंगा पुल एक नजर में
-झारखंड में गंगा नदी केवल साहिबगंज और राजमहल में है। इसकी लंबाई 83 किमी है। राज्य में गंगा पर यह पहला पुल होगा।
-झारखंड के साहिबगंज और बिहार के मनिहारी के बीच गंगा नदी पर पुल बनेगा।
-पुल की लंबाई 6 किमी होगी। पहुंच पथ मिला कर इसकी लंबाई 21.9 किमी की होगी।
-मनिहारी (बिहार) की तरफ पहुंच मार्ग 8.86 किमी और साहिबगंज (झारखंड) की तरफ 7.2 किमी होगी।
-21 किमी के इस मार्ग में गंगा पर एक पुल के अलावा, 15 पुलिया, एक अंडरपास, दो रेल ओवर ब्रिज और चार बस पड़ाव होंगे।
-यह पूरा मार्ग चार लेन का होगा और इस पर 2226 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
-इसके निर्माण कार्य को 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।