अंबेडकर समेत संविधान सभा के सदस्यों द्वारा हमें बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और तमिल महाकवि सुब्रमनिया भारती ने अभिव्यक्ति के अधिकार के बारे में एक रूपक के जरिए समझाया है-भूख से मर रही एक औरत दलिया का कटोरा लेकर अपनी हालत का दावा नहीं करती, जिससे कि वह अपनी मौत को रोक सके।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, मौलिक अधिकार से कहीं ज्यादा है, जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मनुष्य का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह बोले, लिखे और संवाद करे। यह महज एक विचार हो सकता है चाहे वह राजनीतिक या साहित्यिक मुद्दों पर हो या फिर अभिव्यक्ति के अनुरूप में हो। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार विकल्पों की एक बुनियादी बहुलता को, जीने के लिए, खाने के लिए या पूजा के लिए, पहनने के लिए, शादी, किसी को शिक्षित करने, पढ़ने, लिखने, गाने और नृत्य, कई अन्य लोगों के बीच सही मंत्र है।
संविधान ने हमारे बोलने, सोचने और क्रिया की स्वतंत्रता को लेकर अधिकारों को वर्णित किया है जो आगे यह सुनिश्चित करता है कि राज्य के सभी नागरिकों को अधिकार की गारंटी चाहिए, मनमाने ढंग से प्रमुख समूहों को रोकने के लिए और जबरदस्ती दूसरों की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता। वर्ष 2002 में गुजरात जाने वाले पर्यटकों ने कई स्थानों पर देखा जहां- प्रमुखता से कहा गया था कि हिंदू राष्ट्र में आपका स्वागत है। यह पूरी तरह असंवैधानिक था लेकिन इस पर कोई कानूनी क्रिया नहीं दिखी। यह एक तरह राष्ट्र विरोध का चेहरा था। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में हिंदू राष्ट्र की विचारधारा को संघ परिवार द्वारा विभिन्न मोर्चों पर प्रचारित किया गया तथा धर्मनिरपेक्षता के विचार के खिलाफ आक्रामक रुख देखा गया, मौलिक अधिकारों की गारंटी के साथ समाजवादी गणराज्य और शासन ढांचे में राज्य के नीति निर्देश सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं।
तीन ऐसे विचार हैं जो ‘भारत’ को बनाते हैं, जो भाजपा के शासन में खतरे में हैं। पहला, एक अखंड हिंदू राष्ट्र के विचार के प्रतिकूल- बहुलता और प्राथमिक सहिष्णुता पर हमला है। दूसरा लाभदायक पूंजी की चाह में और कई विदेशी और भारतीय कंपनियों के साथ हमारी भागीदारी को ही आत्मसमर्पण कर दिया गया और तीसरा, असंतोष की आवाज को खामोश करने के लिए एक दृढ़ संकल्प दिखता है। यहीं तीनों सत्ता रूढ़ गठबंधनों के समर्थकों के बीच संघर्ष को दर्शाता है और जो लोग अपनी आर्थिक और संवैधानिक अधिकारों को कॉरपोरेट के लूट के सामने या हिंदू कट्टरपंथियों की धमकी के सामने आत्मसमर्पण नहीं करना चाहते और भारतीय समाज को लेकर उनके अपने विचार हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार असंतोष की अभिव्यक्ति की भी अनुमति देता है। बहुलतावाद और भारत की विविधता के लिए आक्रामक राष्ट्रवाद एक खतरा है जो कि अकसर हिंसा के माध्यम से व्यक्त होता है। हम आज भारत में क्या देखते हैं कि एक राज्य बुनियादी संवैधानिक अधिकारों के प्रति उदासीन हैं। यह बात उनकी विचारधारा के विपरीत या फिर सत्ता का मनमाने ढंग से उपयोग करने वाले के खिलाफ आतंक की अनुमति देती है। इसके कई उदाहरण हैं। घर वापसी, लव जिहाद, गौ रक्षा अभियान या गोडसे को महिमामंडित करने वाले राष्ट्र विरोधी तत्वों को शीघ्रता से जेल नहीं भेजा जा रहा। उन्हें समय-समय पर बस चेताया जाता है, कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती, वास्तव में इससे मिश्रित संदेश दिया जाता है। दलित वोट को अपने पाले में रखने के लिए एक प्रकार से ‘डैमेज कंट्रोल’ की नियत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में दलितों के मुद्दे को उठाया, लेकिन मुसलमानों का उन्होंने कोई जिक्र नहीं किया, जब कि वे भी इन हमलों में पीड़ित हुए हैं। राजस्थान में अजीब वाकया हुआ। वहां पेंशन रोस्टर वाले सात लाख बुजुर्गों को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया गया है। माउस की एक क्लिक के साथ हाशिये के लोगों के अधिकार को खत्म कर दिया गया। इस बात के अकाट्य सबूत हैं कि वे जिंदा हैं लेकिन वे भूखे हैं क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड ने उन्हें जिंदा दफन कर दिया है। इसकी जांच होनी चाहिए। जो लोग दस्तावेजों में मृत हो चुके हैं, वे तो देश के अब नागरिक नहीं हैं। उन्हें अब खाद्य या अन्य लाभों की आवश्यकता नहीं है। इस तरह के वाकयों के खिलाफ लगातार जन प्रदर्शन होते रहे हैं, लेकिन इन गरीबों की सुनता कौन है। भारत में कई लोगों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जीवन के अधिकार की गारंटी देता है।
दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी, रोहित बेमुला और अखलाक जैसे लोगों की मौत, एक असहिष्णु राजनीतिक व्यवस्था को संरक्षित और प्रोत्साहित किया जाता है। विदेशी निवेश से परिपूर्ण राज्य विकासात्मक अधिकारों पर विभिन्न रायों को नामंजूर करता है। लेखकों को उनके रचनात्मक आलोचनाओं को रोकने के लिए आतंकित किया जा रहा है। कश्मीर में वार्ता के बजाय बंदूक और पैलेट गन का उपयोग किया जा रहा है। आजादी का 69वां साल पूरे होने पर हमें याद रखना होगा कि इस तरह की घटनाएं भारत के विखंडन के बीज हैं और ये गृह युद्ध जैसे हालात पैदा कर देंगी।
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)