भारत में अक्टूबर के पहले सप्ताह में आयोजित होने जा रहे अंडर-17 विश्वकप फुटबॉल को लेकर देश में जबर्दस्त उत्साह है। हो भी क्यों ना, भारत पहली मर्तबा फीफा के इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में भाग लेने के साथ ही इसका आयोजन करेगा। यह उत्साह अखिल भारतीय फुटबॉल संघ के लिए खतरे की घंटी भी है। अगर भारत अंडर-17 विश्वकप में आशाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाया तो फुटबॉल संघ को अपनी खामियों के लिए लोगों का गुस्सा भी झेलना होगा। इसके उलट, अगर भारत इस टूर्नामेंट में कोई चमत्कारी प्रदर्शन करने में सफल रहता है तो फिर अखिल भारतीय फुटबॉल संघ की बल्ले-बल्ले है।
अंडर-17 विश्वकप को लेकर अगर कोई भी अपना ज्ञान बढ़ाना चाहता है तो उन्हें फीफा की वेबसाइट में जाना चाहिए। जिसमें भारत के संदर्भ में यह लिखा है ‘भारत फीफा रैंकिंग में नीचे के पायदान पर है, भारत उपमहाद्वीप स्तर पर भी संघर्ष कर रहा है।’ विश्व के दूसरे सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश ने चार दशकों में अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल पर कुछ खास उपलब्धियां हासिल नहीं की हैं। भारत फीफा के किसी भी टूर्नामेंट में एशिया की किसी टीम के रूप में भी भाग नहीं ले पाया है।
पांच अक्टूबर से शुरू हो रहे वर्ल्डकप में विश्व भर की दो दर्जन टीमें भाग लेंगी। भारत को जहां यह सौभाग्य आयोजक होने के कारण मिला है। वहीं, बाकी की 23 टीमों को छह महाद्वीपों में हुए क्वालीफायर में अपनी श्रेष्ठता साबित करके प्रवेश मिला है।
अखिल भारतीय फुटबॉल संघ के टेक्निकल डायरेक्टर श्याम थापा के मुताबिक, ‘‘अंडर-17 विश्वकप फीफा का भारत को एक तोहफा है, भारत को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और खेल को आगे बढ़ाने की योजना बनानी चाहिए।’’ बात विश्वकप में भागीदारी की नहीं, वह मौका तो भारत को मिल गया है, पर बड़ा सवाल है कि एशिया महाद्वीप की चार टीमों ईरान, इराक, जापान और उत्तर कोरिया ने इस विश्वकप के लिए क्वालिफाई किया है। क्या भारत इन एशियाई टीमों को मजबूत टक्कर दे सकता है।
भारत इस विश्वकप में मुश्किल ग्रुप में है। जहां उसका मुकाबला अमेरिका, घाना और कोलंबिया से होगा। खेल प्रेमियों की निगाहें इन मैचों पर रहेंगी।
भारत के दिग्गज फुटबॉल खिलाड़ी पी.के. बनर्जी कहते हैं, “भारत को विश्वकप का फायदा लेकर अपने फुटबॉल के भविष्य को सुरक्षित करना चाहिए। मैं खिलाड़ियों से अनुरोध करूंगा कि वे अपने शानदार प्रदर्शन के बूते भारत को अगले चरण में ले जाएं।” ग्रुप मुकाबले आसान नहीं हैं, जबकि सभी भारतीय टीम से चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। ऐसे ही कई चमत्कारों की कल्पना में हमें कई बार ओलंपिक से निराश लौटना पड़ा है। भारतीय खेल प्रेमियों को अपनी भावनाओं को काबू में रखने की जरूरत है।
इस अंडर-17 विश्वकप में भारतीय खेल प्रेमियों को अंतरराष्ट्रीय यूथ फुटबॉल के स्टैंडर्ड का एक नजारा मिलेगा। साथ ही भारतीय फुटबॉल के स्तर को अन्य देशों के स्तर से तुलना करने का मौका मिलेगा। आज भारत में कोई भी आयोजन को लेकर तो बातें करने का इच्छुक है, पर भारतीय प्रदर्शन को लेकर कुछ भी कहने से कतरा रहा है। दबी जबान से कोई भी खिलाड़ी और फुटबॉल संघ का पदाधिकारी ईमानदारी से कह देगा ‘भारत में समस्या प्रतिभा की नहीं बल्कि पारदर्शी व्यवस्था की है, आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि भारत की अंडर-17 विश्वकप के संभावित 26-27 खिलाड़ियों में पांच चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी से हैं, यह एकेडमी चंडीगढ़ सरकार द्वारा संचालित है तथा यहां के संदीप सैलियन (कर्नाटक), जैक्सन, अमरदीप सिंह (मणिपुर), सुमित राठी (यूपी) सुखन गिल (पंजाब) संभावित खिलाड़ियों की सूची में हैं। इनमें से चार खिलाड़ियों को अपने प्रदेश से बेहतर फुटबॉल ट्रेनिंग पाने के लिए पलायन करना पड़ा था। चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी में आकर इन युवाओं की जिंदगी बदल गई। इन खिलाड़ियों की सफलता का श्रेय किसी भी तरह से वहां के राज्य फुटबॉल संघ को नहीं जाता है। भारत में बाकी राज्यों में चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी वाले मॉड्यूल को क्यों नहीं अपनाया जाता। क्यों भारतीय फुटबॉल संघ चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी जैसी अकादमियों को प्रोत्साहन, संरक्षण और तकनीकी मदद नहीं देता। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी, आई लीग एकेडमी में भाग नहीं लेती है। उत्तराखंड के दो खिलाड़ी भी विश्वकप के संभावित फुटबॉलरों की सूची में हैं पर इन दोनों की सफलता में न तो उत्तराखंड सरकार का और न ही उत्तराखंड फुटबॉल संघ का कोई योगदान है। बागेश्वर के रोहित दानू की किस्मत भारतीय खेल प्राधिकरण, दिल्ली की अकादमी में जाकर बदली। नैनीताल के जितेंद्र सिंह का परिवार कोलकाता में है, तकनीकी रूप से देखा जाए तो अपने प्रदेश में बेहतर ट्रेनिंग सुविधाओं के अभाव में रोहित ने दिल्ली का रुख किया। पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मनीष मैठाणी का कहना है, “मैंने अपने फुटबॉल कॅरिअर की शुरुआत उत्तराखंड सरकार द्वारा संचालित महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज से की, मुझे आज भी विभिन्न सरकारों द्वारा संचालित फुटबॉल अकादमियों में भरपूर प्रतिभा नजर आती है। जरूरत है कि चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी सरीखी अकादमियां पेशेवर रुख अपनाएं और आई लीग में भागीदारी करें।”
आज भारत में फुटबॉल में जो भी प्रगति नजर आ रही है, उसका प्रमुख केंद्र देश का उत्तर-पूर्व का इलाका है। वहां खेल संघों में ज्यादा पारदर्शिता और खेलों के प्रति जुनून नजर आता है। उत्तर-पूर्व के छोटे-छोटे प्रदेश यूपी सरीखे बड़े प्रदेशों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। जब तक भारतीय फुटबॉल अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश नहीं करेगा तब तक हम खिलाड़ियों के प्रदर्शन से ज्यादा आयोजन संबंधी बातों से ही मन बहलाते रहेंगे। राज्य फुटबॉल संघों को सुधारे और कठोर कदम उठाए बिना कुछ भी हासिल नहीं होगा। न ही उत्तराखंड के रोहित को दिल्ली और जितेंद्र को कोलकाता का रुख करना पड़ेगा। बात सिर्फ उत्तराखंड की नहीं है। ये हाल सभी प्रदेशों का है। भारत को जरूरत प्लेयर फ्रेंडली सिस्टम की है न कि एडमिनिस्ट्रेशन फ्रेंडली सिस्टम की।
विश्वकप में भारत शानदार खेले यही हमारी कामना है पर अगर भारतीय टीम का प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा तो कृपया खिलाड़ियों के खिलाफ नहीं बल्कि खेल के ठेकेदारों के खिलाफ एकजुट होइएगा। भारतीय फुटबॉल को एक स्वच्छता अभियान की जरूरत है। और हमें लगता है अंडर-17 फीफा विश्वकप हमें ये मौका देगा।
(लेखक पत्रकार और देहरादून फुटबॉल डॉट कॉम के सह संस्थापक हैं)