अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर मौजूदा सरकार का जो रवैया है वह धीरे-धीरे सामने आ रहा है। सरकार की पूरी कोशिश है कि जो लोग विरोध में बोल रहे हैं उनको किसी तरह प्रताड़ित किया जाए। उसके लिए भी अलग-अलग तरीके अपनाए जा रहे हैं। अगर कुछ घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो समझ में आने लगता है कि आप कुछ भी बोलकर नहीं रह सकते। मैंने कश्मीर के बारे में बोला तो मेरे ऊपर हमला करवा दिया गया। तीस्ता शीतलवाड़ ने कुछ कहा तो उनके संगठन के खिलाफ आवाज उठने लगी। इंदिरा जयसिंह ने कुछ कहा तो उनको भी रोकने की कोशिश होने लगी। ग्रीन पीस के फंड को रोक दिया गया। इसी तरह कन्हैया कुमार से लेकर रोहित वेमुला के मामले को देखा जाए उन्हें भी बोलने से रोकने के लिए अलग तरीका अपनाया गया। जिसका परिणाम रहा कि रोहित वेमुला को आत्महत्या करनी पड़ी। एक तरीका मीडिया संस्थानों को लेकर भी है। कहीं अखबार का विज्ञापन बंद कर दिया जाता है तो कहीं रिपोर्टर को नौकरी से निकालने का फरमान जारी हो जाता है। अगर आपने सरकार के खिलाफ कुछ बोला तो सोशल मीडिया पर आपके खिलाफ लिखने वालों की बाढ़-सी आ जाती है। आपको मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगता है। जितने तरीके हो सकते हैं अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने के आज वे सभी अपनाए जा रहे हैं। इतना फासीवादी सरकारी रवैया तो इमरजेंसी के समय में भी नहीं था।
आज यह कहने में कोई संकोच नहीं हो रहा है कि सरकार के खिलाफ एक लफ्ज बोलना भी गुनाह हो गया है। छत्तीसगढ़ में शालिनी गेरा के साथ क्या हुआ, सोरी सोनी के साथ क्यों हुआ। आखिर यह सब है क्या? यह सब फासीवादी तरीका है जो कि अभिव्यक्ति की आजादी में रोड़ा पैदा करने के लिए किया जा रहा है। देश में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा मंडरा रहा है। कहीं सामाजिक कार्यकर्ता ने सवाल उठाया तो उसकी हत्या कर दी जाती है, कहीं किसी ने सूचना के अधिकार का उपयोग किया तो उसकी हत्या हो जाती है। अभिव्यक्ति को रोकने के लिए जो भी उपाय हो सकता है मौजूदा दौर में उसका भरपूर उपयोग किया जा रहा है। आज हिंदू सेना, सनातन संस्था, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद जैसी संस्थाएं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी हुई हैं और इनकी क्या कारस्तानी है यह सभी लोग जानते हैं। आज खुलेआम गौरक्षा के नाम पर लोगों को पीटा जा रहा है, उसका वीडियो बनाया जा रहा है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। इसके पीछे प्रमुख वजह यही है कि जिनकी सरकार है उनके लोग यह काम कर रहे हैं तो उनको रोकेगा कौन? आज माहौल ऐसा बन गया है कि न तो किसी को कानून का भय रह गया है और न ही न्यायिक प्रक्रिया का।
अभिव्यक्ति की आजादी की राह में रोड़ा लगाने वाले लोग जानते हैं उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसलिए वे खुलेआम अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। आज हमारे देश में ठीक वैसा ही माहौल दिखाई पड़ रहा है जैसा कि जर्मनी में फासीवाद का दौर चला था। आज वही दौर भारत में देखा जा रहा है। सोशल मीडिया का पूरी तरह दुरुपयोग हो रहा है।
आज सोशल मीडिया के जरिये लोगों को यह बताया जा रहा है कि अगर कुछ बोलोगे तो तुम्हारा भी यही हश्र होगा। अपनी बात कहने वाले लोगों को सोशल मीडिया के जरिये अपमानित किया जा रहा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि सिविल सोसायटी, मीडिया, बुद्धिजीवी, लेखक इस खतरे को लेकर खड़े दिखाई दे रहे हैं। देश में इस खतरे को भांपने वाले लोग आवाज उठा रहे हैं। इससे यह माना जा रहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी को जो खतरा है उससे निपटने के लिए लोग आगे आ रहे हैं।
(लेखक प्रसिद्ध अधिवक्ता हैं)