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सरलता के मिथक में पेंच बेहिसाब

तथाकथित दूसरी आजादी कहे जाने वाले जीएसटी का यूटोपिया सौ दिन में ही ध्वस्त होने लगा, त्योहारी सीजन में बाजार सूने और अर्थव्यवस्थाू ने लगाया गोता
दिवाली में ‌दिवालाः सूना बाजार ग्राहकों के इंतजार में दुकानदार

संसद के सेंट्रल हाल में 30 जून, 2017 की मध्य रात्रि को ‘एक देश, एक कर’ व्यवस्था लागू करने के लिए गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) का ऐलान किया गया तो कुछ लोगों ने इसे देश की ‘दूसरी आजादी’ करार दिया था। बेशक, आजादी के बाद यह देश के सबसे बड़े आर्थिक बदलावों में से एक था। लेकिन यह यूटोपिया इतनी जल्द ध्वस्त होने लगेगा, इसका अंदाजा नहीं था। 10 साल लंबे विचार-विमर्श और राजनैतिक सहमति के बाद एक जुलाई, 2017 से लागू हुई जीएसटी की व्यवस्था शुरुआती 100 दिनों में ही प्रक्रियागत और तकनीकी झंझटों में उलझ चुकी है। एक ओर जहां नोटबंदी और जीएसटी की वजह से अर्थव्यवस्था में सुस्ती के आरोप केंद्र सरकार की नीति-निर्माताओं को घेर रहे हैं, वहीं त्योहारों के दौरान सूने पड़े बाजार गंभीर आर्थिक चुनौतियों की आहट हैं। रोजगार के मोर्चे पर सरकार के पास पहले ही बताने लायक कुछ नहीं है और नोटबंदी की कामयाबी की कलई खुद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की रिपोर्ट ने खोल दी है। एक के बाद एक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जीएसटी से पैदा दिक्कतें पॉलिटिकल इकोनॉमी के लिहाज से भी मायने रखती हैं। छोटे काम-धंधों पर जो मार पड़ रही है, उसकी आवाज दूर तक जा सकती है। 

ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार को जीएसटी से पैदा हुई मुश्किलों का अंदाजा नहीं है। जीएसटी काउंसिल के सामने समस्याओं का अंबार लग चुका है। इनसे निपटने के लिए सरकार को अपने निर्णय बदलने और यू-टर्न लेने से भी गुरेज नहीं है। इसलिए जीएसटी लागू होने के बाद अब तक हुई जीएसटी काउंसिल की तीनों बैठकों में टैक्स दरों में कटौती और नियमों में बदलाव करने पड़े। इसलिए माना जा रहा है कि नियमों में फेरबदल का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। यहां तक कहा जाने लगा है कि जीएसटी में रोलबैक का नया मानक भी स्थापित होगा। हालांकि, वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों का कहना है कि नई व्यवस्था में जो दिक्कतें सामने आएंगी, उनका पता लगने के बाद ही हल निकाला जा सकता है।

जीएसटी लागू होने के बाद कई मिथक भी टूटने लगे हैं जबकि कई आशंकाएं सही साबित हो रही हैं। मसलन, एक दशक से जारी जीएसटी की बहस में कहा जा रहा था कि इससे देश की जीडीपी में एक से दो फीसदी तक का इजाफा होगा। लेकिन फिलहाल देश की जीडीपी में करीब दो फीसदी गिरावट का रुख है। दो फीसदी इजाफे का दावा फिलहाल दूर की कौड़ी है। जीडीपी ग्रोथ में गिरावट का रुझान थम जाए, यही बड़ी कामयाबी होगी।

जीएसटी को लागू हुए 100 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं। किसी भी नई व्यवस्था का आकलन करने के लिए इतना समय काफी है। चालू वित्त वर्ष (2017-18) की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले दो फीसदी गिर चुकी है। जीएसटी लागू होने के बाद यह पहली दिवाली है। आमतौर पर साल का 25 से 30 फीसदी कारोबार त्योहारी सीजन में होने की उम्मीद रहती है। लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है। कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं कि त्योहारी सीजन नवरात्रों से शुरू होकर 14 दिसंबर तक चलता है। लेकिन पैसे की तंगी और जीएसटी की ऊंची दरों के चलते इस बार बाजार से रौनक गायब है। हमें आशंका है कि इस सीजन में कारोबार 30 फीसदी तक कम रहेगा। कंज्यूमर ड्यूरेबल से लेकर ज्वैलरी, ड्राई फ्रूट, होम डेकोर, बिजली के सामान, रेडीमेड गारमेंट से लेकर तमाम उपभोक्ता उत्पादों की बिक्री में ऐसे ही हालात हैं। खंडेलवाल का कहना है कि अधिकांश उत्पादों को 28 फीसदी की दर में रखा गया है, जिसके चलते उपभोक्ता खरीदारी टाल रहे हैं। बाजार से गायब खरीदार इसका सबूत हैं।

मौजूदा आर्थिक सुस्ती और कारोबारियों की नाराजगी को देखते हुए छह अक्टूबर को जीएसटी काउंसिल ने टैक्स दरों में कटौती समेत कई नियमों में ढील देने का फैसला किया है। इसके बूते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय से पहले ही व्यापारियों की दिवाली आने का दावा किया था। इसी तरह यू-टर्न लेते हुए केंद्र सरकार ने दो लाख रुपये तक की ज्वैलरी खरीद के लिए पैन नंबर रखने की अनिवार्यता खत्म कर दी है। पहले 50 हजार रुपये से ज्यादा की खरीदी पर पैन नंबर बताना अनिवार्य था। इस फैसले को गुजरात में होने जा रही विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। बार-बार नियमों में फेरबदल नीतिगत स्थायित्व के लिहाज से ठीक नहीं है। नीतिगत जड़ता के आरोपों से घिरी रही यूपीए सरकार के मुकाबले यह नीतिगत अस्थिरता की एकदम उलट स्थिति है। जीएसटी के मामले में टैक्स विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में कई बदलाव करने होंगे क्योंकि जीएसटी की कई दरें और नियम अव्यावहारिक हैं। इनकी सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र और छोटे उद्योग-धंधों पर पड़ रही है।

क्रियान्वयन की दिक्कतें

देश की इकोनॉमी का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। असंगठित क्षेत्र के ये छोटे काम-धंधे देश में करीब 90 फीसदी रोजगार मुहैया कराते हैं। इस असंगठित क्षेत्र को मौजूदा केंद्र सरकार ने पहला झटका नोटबंदी से दिया क्योंकि उसका पूरा अस्तित्व कैश पर टिका है। इस पर दूसरी मार जीएसटी से पड़ रही है। इन दोनों मुद्दों पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अनुषंगी संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के अध्यक्ष साजी नारायण कहते हैं कि ये दोनों कदम हैं तो ठीक लेकिन इनका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हुआ। इसी का नुकसान उद्योग और रोजगार के मोर्चे पर उठाना पड़ा।

जीएसटी के मूल में दो ही बड़े मकसद रहे हैं। पहला, पूरे देश में एक समान कर व्यवस्था, पूरे देश में एक वस्तु की एक समान टैक्स दरें। और दूसरे,  कर प्रणाली का सरलीकरण जिससे कारोबार करना और इंडस्ट्री चलाना आसान हो। उम्मीद थी कि असंगठित क्षेत्र का बड़ा हिस्सा टैक्स के दायरे में आने और कारोबार की राह आसान होने का फायदा देश की अर्थव्यवस्था को मिलेगा। लेकिन दोनों ही मोर्चों पर स्थिति डांवाडोल है।

पेट्रोलियम उत्पाद, आबकारी और स्टांप ड्यूटी तथा रियल एस्टेट के रूप में इकोनॉमी का बड़ा हिस्सा जीएसटी से बाहर है। राज्यों को इन क्षेत्रों से सबसे अधिक राजस्व आता है। इसके अलावा जीएसटी की दरों में इतनी अधिक अस्पष्टता है कि वह अपने आप में समस्या बन गई है। इस बारे में राजस्व सचिव हसमुख अढिया कहते हैं कि एक तरह की वस्तुओं की श्रेणी बनाकर उनके लिए एक समान टैक्स दर तय करने पर विचार चल रहा है।

जीएसटी का क्रियान्वयन भी तकनीकी पेचीदगियों में उलझकर रह गया है। उदाहरण के तौर पर, बीस लाख रुपये तक के कारोबारियों को जीएसटी रजिस्ट्रेशन से बाहर रखा गया है, लेकिन अंतरराज्यीय कारोबार के लिए यह अनिवार्य है। गत छह अक्टूबर को हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में कम्‍पोजीशन स्कीम के लिए कारोबार की सीमा 75 लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दी गई है। ये कारोबारी एक से पांच फीसदी तक कर देंगे लेकिन इन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) नहीं मिलेगा।

अब डेढ़ करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली छोटी कंपनियों को मासिक रिटर्न भरने की बजाय तिमाही रिटर्न भरने का प्रावधान किया गया है। लेकिन ऑनलाइन रिटर्न फाइल करना कारोबारियों के लिए बड़ी मुसीबत बना हुआ है। व्यापारी इसका ठीकरा जीएसटी नेटवर्क के सिस्टम पर फोड़ रहे हैं जबकि राजस्व सचिव का दावा है कि नई प्रक्रिया में दिक्कतें आनी स्वाभाविक हैं। जीएसटी सिस्टम सुचारु रूप से काम कर रहा है। इसमें पिछले एक महीने में कोई दिक्कत नहीं आई।

जीएसटी एक्सपर्ट विमल जैन कहते हैं कि जीएसटी कानून में स्पष्टता का अभाव है, यह क्रियान्वयन से लेकर कर दरों तक सभी जगह दिखता है। मसलन, धोती और साड़ी किस श्रेणी में रखें और इन पर समान दर लागू होगी या अलग, यह स्पष्ट नहीं है। इसी तरह मिठाई अगर दुकान से लेकर जा रहे हैं या दुकान में बैठ कर खा रहे हैं तो अलग कर दर लागू है। एक ही तरह के उत्पादों के मामले में क्लासीफिकेशन को लेकर बहुत भ्रम है। इसी तरह रजिस्ट्रेशन के बाद अगर कुछ संशोधन करना है तो यह एक बड़ी समस्या है। इसमें मदद करने वाली व्यवस्था ही नहीं है। इसी का परिणाम यह है कि जीएसटी में 80 लाख रजिस्ट्रेशन हुए। इसमें अगर करीब 20 लाख लोगों को कम्पोजीशन स्कीम में भी छोड़ दें तो करीब 60 लाख लोग बचते हैं लेकिन रिटर्न केवल 45 लाख भरी गई हैं। राज्य के बाहर व्यापार करने के मामले में कानूनी झंझट अब भी कायम हैं, जो एक देश, एक कर के दावे को कमजोर करते हैं। 

जीएसटी को लेकर जारी ऊहापोह के बीच सवाल यह भी उठता है कि जब सरकार कई साल से जीएसटी की तैयारी कर रही थी तो नियमों में इस तरह टुकड़ों-टुकड़ों में बदलाव क्यों किए जा रहे हैं? क्या इससे लॉबिंग और करप्शन को न्योता नहीं मिलेगा?

जीएसटी की वजह से कारोबार में पैदा उथल-पुथल की सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र पर पड़ रही है क्योंकि इन कारोबारियों और छोटी इकाइयों के पास जीएसटी लागू करने के लिए पर्याप्त क्षमता और दक्षता का अभाव है। इसे यूं समझिए, देश में कृषि के बाद टेक्सटाइल सबसे अधिक रोजगार देता है। इस क्षेत्र में काम का बड़ा हिस्सा जॉब वर्क के तौर पर यानी ठेके पर कराया जाता है। कुछ लोग 15-20 मजदूरों को साथ लेकर इस तरह का काम करते हैं। परिवार के सदस्य भी इसमें जुटे रहते हैं। अब कंपनियां उनको काम तभी देंगी जब उनका जीएसटी रजिस्ट्रेशन होगा, क्योंकि कंपनी को इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) लेना है। इन जॉब वर्क करने वालों को भी कंपनी को बिलिंग करते समय एक से पांच फीसदी जीएसटी लगाना है। उस जीएसटी को एक समय-सीमा के अंदर सरकार को देना है। लेकिन अधिकांश मामलों में बड़ी कंपनियां इनको पेमेंट देने में दो से तीन माह तक लगा देती हैं।

दिल्ली से लगे नोएडा में जॉब वर्क की यूनिट चलाने वाले जितेंद्र मलिक कहते हैं कि हम जैसे लोगों को कर्ज लेकर कर का भुगतान करना पड़ा है। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों ने काम ही छोड़ दिया। गांवों और छोटे कस्बों से आने वाले कारीगरों का तो काम ही बंद हो जाएगा, क्योंकि वह कंप्यूटर पर रिटर्न कैसे भरेंगे और रजिस्ट्रेशन के बाद सारी प्रक्रिया का पालन कैसे करेंगे। दूसरा बड़ा मसला है इनवॉइस मैचिंग का। अगर आपने किसी कारोबारी से सामान खरीदा है तो इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने के लिए उस बिक्रेता द्वारा जीएसटी नेटवर्क पर लोड की गई इनवॉइस और आपकी इनवॉइस में दी गई जानकारी मैच करनी चाहिए। अगर वह व्यक्ति जानकारी नेटवर्क पर नहीं डालता है तो आपको क्रेडिट नहीं मिलेगा।

इन प्रक्रियागत जटिलताओं के बारे में राजस्व सचिव कहते हैं कि कर चोरी को रोकने के लिए हमें कर व्यवस्था का अनुपालन (कंप्लायंस) सख्त करना पड़ा है। लेकिन कारोबारियों का कहना है कि कर चोरी रोकने के लिए प्रक्रिया को इतना जटिल कर दिया गया है कि रिटर्न फाइल करना और पूरी व्यवस्था का पालन करना ही अपने आप में एक नई मुसबीत बन गया है। यह सिस्टम बहुत ही जटिल है जबकि बात व्यवस्था को सरल करने की थी। नतीजा कारोबार पर प्रतिकूल असर के रूप में सामने है।

इस पूरे मसले में असंगठित और संगठित क्षेत्र के बीच एक विभाजन रेखा खिंच गई है। बड़े कारपोरेट और कंपनियां कह रही हैं कि छोटी-मोटी दिक्कतों को छोड़कर कोई दिक्कत नहीं है और नई व्यवस्था का फायदा होगा। वहीं, दूसरी ओर छोटे कारोबारी, लघु उद्योग इसके चलते खुद को दिक्कत में देख रहा है। वित्त मंत्रालय के एक बड़े अधिकारी कहते हैं कि देर-सवेर पूरी इकोनॉमी को फार्मल होना है और उसका फायदा इकोनॉमी को होगा, क्योंकि सही आंकड़े सामने आएंगे और नीतिगत फैसले भी सही तरीके से लिये जा सकेंगे ताकि परिणाम बेहतर आएं।

घरेलू कारोबार के अलावा निर्यात भी इसके चलते प्रभावित हुआ है। अगस्त में जेम एंड जूलरी का निर्यात 25 फीसदी से ज्यादा गिर गया। जबकि रेडीमेड गारमेंट निर्यात जुलाई की 11 फीसदी गिरावट से उबरा तो है लेकिन अगस्त में इसकी वृद्धि दर आधा फीसदी के करीब ही रही। हैंडीक्राफ्ट्स का निर्यात भी अगस्त में निगेटिव जोन में रहा है और लेदर उत्पादों का निर्यात केवल दो फीसदी बढ़ा।

यह क्षेत्र निर्यात के ऐसे उद्योग हैं जो सबसे अधिक रोजगार पैदा करते हैं। अकेले टेक्सटाइल की निर्यात में 15  फीसदी और मैन्यूफैक्चरिंग में 10 फीसदी की हिस्सेदारी है। जबकि जीडीपी में इसकी करीब दो फीसदी हिस्सेदारी है। इस क्षेत्र में करीब सात करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। हालांकि छह अक्टूबर को हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में निर्यातकों को कई रियायतें दी गई हैं। आगे भी कुछ रियायतों की उम्मीद की जा रही है। लेकिन इसका फायदा कितना होगा यह अभी आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।

विपक्ष को मिला नया हथियार

असल में नोटबंदी के बाद जीएसटी ने जिस तरह से इकोनॉमी को प्रभावित किया है उसे रिजर्व बैंक से लेकर आइएमएफ तक ने माना है। जीडीपी की विकास दर के अनुमान में कटौती भी की है। ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी चिंता नहीं है। यही वजह है कि पिछले एक पखवाड़े में इकोनॉमी की सुस्ती को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर नीति आयोग और प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद तक मंथन कर चुके हैं। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन तो हुआ ही प्रतिकूल आर्थिक आंकड़े आने के बाद। अब ऐसे में विपक्ष को भी सरकार पर हमला करने का मौका मिला है।

जनता दल (यू) के वरिष्ठ नेता शरद यादव का कहना है कि 2019 का लोकसभा चुनाव आर्थिक मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम अर्थव्यवस्था और रोजगार के कमजोर आंकड़ों के आधार पर सरकार पर लगातार हमले कर रहे हैं। सबसे अहम झटका वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के बयानों से लगा, जिसमें उन्होंने खराब होती आर्थिक स्थिति के लिए नोटबंदी और जीएसटी को जिम्मेदार बताते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली पर काफी कड़ी टिप्पणी की। आने वाले दिनों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इस मोर्चे पर सरकार की मुश्किलें बढ़ रही हैं।

छह अक्टूबर की बैठक में खाखरा पर कर की दर को 12 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी करने के फैसले पर टिप्पणी करते हुए एक टैक्स एक्सपर्ट कहते हैं कि इस बैठक में जिन वस्तुओं की दरें कम की गईं उनका गुजरात में ज्यादा कारोबार है। अब प्रधानमंत्री के गृह राज्य में साल के अंत तक चुनाव हैं और उनकी पार्टी भाजपा के लिए यह चुनाव नाक का सवाल है तो सरकार वहां के कारोबारियों की नाराजगी कम करने में कोई कसर छोड़ने का जोखिम नहीं ले सकती है। इसलिए जीएसटी पर यूटर्न का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

 

दुनिया में जीएसटी

-दुनिया के 160 देशों में जीएसटी या वैट व्यवस्था लागू है। इस पर सबसे पहले अमल करने वाला देश फ्रांस है। सबसे बड़ी अर्थव्यवस्‍था अमेरिका में यह व्यवस्‍था लागू नहीं है।

- यूरोपीय यूनियन के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और चीन जैसे देशों में भी यह लागू है।

 -कनाडा के मॉडल की बात की जाए तो वहां टैक्स की दरें केंद्र सरकार तय करती है, लेकिन राज्य की सरकारों को इसे लागू करने या न लागू करने की छूट है।

- ऑस्ट्रेलिया में केंद्र की सरकार ही जीएसटी तय करती है और खुद ही इसे वसूलती है। इसके बाद टैक्स में राज्यों की हिस्सेदारी के अनुसार उन्हें उनका हिस्सा दिया जाता है।

- 1994 में जब सिंगापुर ने जीएसटी लागू किया तो जीडीपी ग्रोथ 5.6 फीसदी थी। जीएसटी लागू होने के बाद उसी साल जीडीपी लुढ़क कर तीन फीसदी हो गई। महंगाई भी बढ़ गई।

- मलेशिया ने 2015 में जीएसटी लागू किया। लागू करने से पहले सरकार ने कारोबारियों के बीच डेढ़ साल लंबा प्रचार-प्रसार किया। जमीनी स्तर पर पूरी तैयारी के साथ जीएसटी लागू किया। इसके बावजूद कई महीनों तक छोटे और मझोले कारोबारियों का विरोध झेलना पड़ा।

- कनाडा ने 1991 में विपक्ष के विरोध में जीएसटी लागू किया। लागू करने के बाद वहां भी जीएसटी नियमों में लंबे समय तक बदलाव होता रहा। कुछ राज्य व्यवस्‍था के विरोध में अदालत भी गए।

- पूरी दुनिया में कहीं भी लागू होने के बाद जीएसटी की दर कम नहीं हुई है।

 

जीएसटीः कितनी बार बदले नियम

30 जून 2017: आधी रात को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में संसद के सेंट्रल हॉल में जीएसटी लागू करने का ऐलान हुआ।

01 जुलाई: देश का अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार जीएसटी अमल में आया। 5,12,18,28 फीसद टैक्स की दरें तय की गईं।

10 जुलाई: नियोक्‍ता द्वारा कर्मचारी को दिए गए 50 हजार रुपये तक के उपहार पर जीएसटी नहीं लगेगा। क्लब, हेल्‍थ और फिटनेस केंद्रों की मुफ्त सदस्यता भी जीएसटी के दायरे में नहीं ।

11 जुलाई: धार्मिक संस्‍थानों की ओर से मुफ्त वितरित किए जाने वाले भोजन पर जीएसटी नहीं लगेगा।

05 अगस्त: जीएसटी काउंसिल की बैठक में कुछ सेवाओं के टैक्स स्लैब में बदलाव किया गया।

07 अगस्त: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि जीएसटी काउंसिल ने मोटर वाहनों पर सेस 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करने की सिफारिश की।

17 अगस्त: सरकार ने जुलाई का रिटर्न फाइल करने की तिथि पहली बार बढ़ाई। इसके बाद इसे कई बार बढ़ाया गया। आखिरी त‌िथि 10 अक्टूबर तय की गई।

31 अगस्त: अरुण जेटली ने आने वाले दिनों में जीएसटी स्लैब में बदलाव के संकेत दिए।

01 सितंबर: जुलाई का जीएसटी रिटर्न दाखिल करने में देरी पर लगने वाला शुल्क माफ कर दिया गया। जीएसटी अधिनियम के तहत टैक्स के देरी से भुगतान पर 18 प्रतिशत की दर से ब्याज लगाए जाने का प्रावधान है।

09 सितंबरः 30 वस्तुओं पर जीएसटी दरों में कटौती की गई। इनमें सूखी इमली, खली, धूपबत्ती, प्लास्टिक से बने रेनकोट, रबर बैंड, किचन गैस लाइटर जैसे दैनिक उपभोग वाले सामान शामिल थे। खादी स्टोर में मिलने वाले कपड़ों को जीएसटी से छूट दी गई। मध्यम आकार की कारों पर दो, बड़ी कारों पर पांच और एसयूवी पर सात फीसदी सेस बढ़ाया गया। रिटर्न दाखिल करने में आ रही गड़बड़ियों को देखने के लिए पांच-सदस्यीय समिति का गठन किया गया।

29 सितंबरः जीएसटी से पहले के सामान की बिक्री की समय सीमा बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी। ये सामान नई दर पर स्टिकर के साथ बेचे जाएंगे। पहले यह समय सीमा 30 सितंबर थी।

06 अक्टूबरः जीएसटी काउंसिल ने कई उत्पादों का टैक्स दर घटाने का फैसला किया। उत्पाद और सेवाओं पर टैक्स घटाने का यह तीन महीने में तीसरा मौका था।

 

छह अक्टूबर को जीएसटी काउंसिल की बैठक में किए गए बदलाव

-मनी लांड्रिग एक्ट यानी पीएमएलए के दायरे से ज्वैलरी कारोबार बाहर। अब दो लाख रुपये तक की ज्वैलरी की खरीदारी पर पैन देना जरूरी नहीं। पहले 50 हजार रुपये से ज्यादा की खरीदारी पर पैन देना अनिवार्य था।

- 1.5 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर महीने जीएसटी रिटर्न भरने से छूट। हर तीन महीने में रिटर्न भरनी होगी। करीब 90 फीसदी कारोबारी इस श्रेणी में आते हैं। इनका टैक्स कलेक्शन में हिस्सा महज पांच फीसदी बैठता है।

-कम्‍पोजीशन स्कीम की सीमा 75 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दी गई है। इसके तहत कारोबारी एक से पांच फीसदी तक के फ्लैट रेट से टैक्स चुकाकर रेग्युलर रिटर्न का झंझट कम कर सकते हैं।

- निर्यातकों को छह महीने के लिए राहत। छह महीने बाद हर एक निर्यातक को ई-वॉलेट मिलेगा। ई-वॉलेट सिस्टम एक अप्रैल 2018 से पूरी तरह लागू हो जाएगा।

- एक करोड़ तक की कमाई करने वाले रेस्टोरेंट जो 18 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में आते थे उन्हें अब पांच प्रतिशत टैक्स ही देना होगा। एक करोड़ रुपये से ज्यादा के टर्नओवर वाले रेस्तरां पर लगने वाले कर ढांचे में बदलाव पर विचार किया जाएगा।

- अब एक ही फॉर्म से जीएसटी फाइल की जा सकेगी। रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म को मार्च 2018 तक स्थगित कर दिया गया है।

- 20 लाख से कम टर्नओवर वाले सर्विसदाता को इंटर स्टेट सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर किया गया।

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