करीब साढ़े तीन महीने पहले लागू हुआ जीएसटी छोटे कारोबारियों को न अच्छा लगा और न ही आसान। राहत के नाम पर हाल में जीएसटी काउंसिल के संशोधन भी गले नहीं उतर रहे हैं। जेल की सजा और मोटे जुर्माने के अलावा इसकी जटिलताओं से डरे बहुत से कारोबारियों ने फिलहाल धंधे का विस्तार थाम दिया है। जीएसटी सालाना 20 लाख रुपये तक का कारोबार करने वालों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का सच यह है कि यह रियायत केवल संबंधित राज्य के भीतर कारोबार करने पर लागू होगी जबकि दूसरे राज्यों में कारोबार तभी कर पाएंगे जब जीएसटी नेटवर्क में रजिस्टर्ड होंगे। एक तरह से 20 लाख रुपये तक के कारोबार को जीएसटी मुक्त रखने का दावा एक बड़ा छलावा है।
कारोबारियों का कहना है कि जीएसटी के हाल के संशोधन में जिस तरह से कंपोजीशन स्कीम में टर्नओवर 75 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ करने के साथ ही इस स्कीम में आने वालों को अंतरराज्यीय कारोबार की इजाजत दी गई है वैसे ही जीएसटी दायरे से बाहर रखे जाने वाले सालाना 20 लाख रुपये तक के टर्नओवर वालों को अंतरराज्यीय कारोबार की इजाजत मिलती तो बड़ी राहत होती।
जीएसटी के हाल ही के संशोधन में निर्यातकों को भले ही कच्चे माल पर इनपुट टैक्स क्रेडिट देने का प्रावधान किया है पर एक अक्टूबर से डयूटी ड्रॉ बैक स्कीम खत्म करके सरकार ने इसका फायदा खत्म कर दिया है। लुधियाना में पंजाब गारमेंट्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट हरीश दुआ के मुताबिक बगैर किसी पूर्व नोटिफिकेशन के सरकार के अचानक एक अक्टूबर से डयूटी ड्रॉ बैक स्कीम खत्म करने की वजह से उन निर्यातकों को प्रति नग 50 से 70 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है, जो पुरानी दर पर बुक किए एक्सपोर्ट ऑर्डर की आपूर्ति कर रहे हैं। घाटे से बचने के लिए लुधियाना के 20 फीसदी निर्यातकों ने डिलीवरी फिलहाल रोक दी है।
जीएसटी में हाल ही के संशोधन को गुजरात चुनाव से जोड़ते हुए पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज पंजाब के प्रेसीडेंट आरएस सचदेवा का कहना है कि महाराष्ट्र के बाद देश में दूसरे नंबर पर निर्यात गुजरात से होता है। 59.58 अरब डॉलर के मूल्य का निर्यात करने वाले गुजरातियों को राहत देने के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट में भारी रियायत दी गई है। ‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक फॉर इंडिया’ का नारा देने वाली मोदी सरकार ने देशी कारोबारियों को जीएसटी में राहत देने के लिए कोई उपाय नहीं किए हैं। पंजाब स्पिनिंग यॉर्न मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रेसीडेंट एमएम व्यास के मुताबिक, 151 देशों में जीएसटी सफलता के साथ लागू होने का हवाला देने वाली मोदी सरकार यह नहीं बता रही कि जीएसटी की पांच दरें केवल भारत में ही क्यों हैं, बाकी तमाम देशों में तो दो या तीन दरें ही हैं। पांच दरें लागू होने से ‘एक देश एक टैक्स’ कहां रह गया?
2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का दावा करने वाली मोदी सरकार कृषि उपकरणों को भी 12 से 18 फीसदी जीएसटी के दायरे में ले आई, जबकि जीएसटी से पहले कृषि उपकरण और ट्रैक्टर टैक्स मुक्त थे। आल इंडिया एग्रीकल्चर इंप्लीमेंट्स मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रेसीडेंट बलदेव अमर सिंह के मुताबिक, जीएसटी लागू होने से ट्रैक्टर की कीमतें 40,000 रुपये तक बढ़ गई हैं। तमाम कृषि उपकरण की कीमतें 18 फीसदी तक बढ़ गई हैं।
स्टेशनरी पर जीएसटी 28 से घटाकर 18 फीसदी किया गया है लेकिन इसे भी अधिक बताते हुए पंजाब स्टेशनरी मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन जालंधर के प्रेसीडेंट आरपी आहूजा कहते हैं कि जीएसटी से पहले स्टेशनरी पर वैट 12 फीसदी था। 28 से घटाकर 18 फीसदी किए जाने के बावजूद एजुकेशन और एडमिनिस्ट्रेटिव खर्च में राहत नहीं मिली है।
आल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स कांग्रेस के पूर्व प्रेसीडेंट चरणजीत सिंह लाहौरा का कहना है कि जब तक पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाकर देशभर में पेट्रोल और डीजल की दरें एक समान नहीं की जाएंगी तब तक जीएसटी का महंगाई कम करने में असर नहीं दिखेगा। उनके मुताबिक पंजाब में पड़ोसी राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ की तुलना में पेट्रोल छह रुपये लीटर महंगा है। पेट्रोलियम उत्पाद और शराब को जब तक जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जाएगा, तब तक ‘एक राष्ट्र एक टैक्स’ नहीं कहा जा सकता।