मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब है, पीथमपुर। मालवा की शान कहा जाना वाला पीथमपुर इंडस्ट्रियल एरिया एक्सपोर्टर्स का भी सबसे बड़ा केंद्र है। जब देश की इकोनॉमिक ग्रोथ बुरे दौर से गुजर रही थी उस समय भी पीथमपुर ने 25 फीसद की ग्रोथ हासिल की थी। पर जीएसटी के कारण इस बार दिवाली की रोशनी फीकी पड़ गई है। पीथमपुर के कारोबारियों का हाल बुरा है। यह कहना है पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी का। डॉ. कोठारी के मुताबिक कभी अपने ग्रोथ से अर्थशास्त्रियों को आश्चर्यचकित करने वाले पीथमपुर के एक्सपोर्टर्स के पास चंदा देने के भी पैसे नहीं हैं। उन्होंने जीएसटी काउंसिल से इसे सुगम बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि यही हालात रहे तो धीरे-धीरे औद्योगिक क्षेत्र में सन्नाटा पसर जाएगा।
जीएसटी लागू होने के बाद पीथमपुर इंडस्ट्रियल एरिया में आए बदलाव का जिक्र करते हुए कोठारी बताते हैं कि पिछले तीन महीने में लघु और मझोले उद्योग बुरी तरह हिल गए हैं। बाजार के बड़े खिलाड़ी 3-4 महीने की वर्किंग कैपिटल के साथ धंधा करते हैं। ठीक इसी तरह मझोले और लघु उद्यमी एक या दो महीने की वर्किंग कैपिटल से धंधा करते हैं। छोटे और मझोले कारोबारी जैसे खुदरा दुकानदार, शो रूम मालिक वगैरह, एक महीने के बाद ग्राहकों से बकाया रकम वापस पाने की कवायद में जुट जाते हैं। बड़े कारोबारी तीन से चार महीने बाद रिकवरी की कोशिश करते हैं। छोटे और मझोले कारोबारियों को खुद इस काम में लगना पड़ता है, जबकि बड़े कारोबारियों के साथ इसके लिए एक पेशेवर टीम होती है। अब जीएसटी के कारण उन्हें समय-समय पर रिटर्न फाइल करना है। फार्मा, टेक्सटाइल, केमिकल के छोटे कारोबारी बताते हैं कि अब मुश्किल यह है कि दिनभर बैठकर रिटर्न फाइल करें या धंधा करने के लिए अपने गल्ले पर बैठें अथवा ग्राहकों के पास जाकर उधार वसूलें।
जीएसटी से सबसे ज्यादा चोट फार्मा, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल पर निर्भर गैर पंजीकृत सप्लायर, मैन्यूफैक्चरर्स को पहुंची है। कुछ तो बर्बाद हो चुके और कुछ इसी रास्ते पर हैं। छोटे कारोबारी किसी तरह अपना धंधा चला रहे हैं। यही कारण है कि सरकार को लग रहा है कि जीएसटी के कारण सब कुछ ठीक चल रहा है और धंधे बंद नहीं हो रहे। पर सच्चाई यह है कि नई व्यवस्था में पीथमपुर की इकोनॉमी धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
कारोबारियों का कहना है कि पिछले टैक्स सिस्टम में मिलने वाले फायदों के जीएसटी के तहत जारी रहने को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। उन्हें इनपुट क्रेडिट असेसमेंट से जुड़े सवालों को समझने में काफी परेशानी हो रही है। डॉ. कोठारी कहते हैं, ‘‘मैं अपने 40 साल के अनुभव के आधार पर बेटे को बोल चुका हूं कि कारोबार समेटने का वक्त आ गया है, क्योंकि गड्ढे से निकल पाना मुश्किल है। इसकी दो वजहें हैं। पहला, दो साल के भीतर चुनाव होने हैं और किसी के पास आम लोगों के बारे में सोचने का वक्त नहीं है। दूसरा, भले ही किसी और के अच्छे दिन न आए हों पर सरकार के अच्छे दिन तो आ चुके हैं।’’
कर सलाहकार, चार्टर्ड अकाउंटेंट और मध्यप्रदेश टैक्स लॉ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. कृष्णन कहते हैं, ‘‘रिवर्स चार्ज का मतलब है कि टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी सामान और सेवा लेने वालों पर होगी। साफ है कि जीएसटी के तहत माल या सेवाओं के प्राप्तकर्ता को सरकार को कर का भुगतान करना पड़ेगा। यह फॉरवर्ड चार्ज के ठीक उल्टा है, जहां सप्लायर टैक्स का भुगतान करने के उत्तरदायी होते हैं। गैर पंजीकृत डीलरों से की गई खरीद पर वैट के तहत, माल के प्राप्तकर्ता (पंजीकृत डीलर) को खरीद कर का भुगतान करना पड़ता है। पर मैं अब तक यह नहीं समझ पाया हूं कि सभी व्यावसायिक क्षेत्रों के वे डीलर और सप्लायर जिनका टर्न ओवर डेढ़ करोड़ से कम है वो इस दायरे में आते हैं या नहीं? या फिर कुछ खास व्यवसाय करने वाले लोग ही इसके दायरे में आते हैं?’’ उन्होंने बताया कि बहुत से छोटे व्यापारी जो अब तक केवल बही-खातों पर काम कर रहे थे। नई व्यवस्था में उन्हें न केवल कंप्यूटर लगाना पड़ रहा है, बल्कि ऑनलाइन रिटर्न भी दाखिल करना पड़ रहा है। कई कारोबारियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि रिटर्न दाखिल करने वाला पोर्टल भी ठीक से काम नहीं करता।
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा कुटीर, लघु और मझोले उद्योग (एमएसएमई) जबलपुर में हैं। जीएसटी लागू होने के बाद से जबलपुर अंचल के एमएसएमई चिंतित हैं। मध्यप्रदेश स्मॉल स्केल इंडस्ट्री ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अरुण जैन ने जीएसटी में छोटी इकाइयों के लिए राहत की मांग की है। उनके मुताबिक टर्नओवर के आधार पर जीएसटी के तहत इकाइयों को रखा जाना चाहिए। कम टर्नओवर वाली इकाइयों पर राज्य सरकार का ही नियंत्रण रहे। कारोबारियों को सिंगल विंडो सिस्टम का लाभ तभी मिलेगा जब टर्नओवर के आधार पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच काम का बंटवारा हो। वे कहते हैं ऐसा नहीं होने के कारण कारोबारियों को दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। उन्होंने बताया कि जबलपुर और ग्वालियर में कुटीर उद्योग के क्लस्टर की भरमार है। धीरे-धीरे जीएसटी की आंच उन पर पड़ने वाली है। इसका असर दो से ढाई साल में दिखने लगेगा। जीएसटी लागू करने से पहले सरकार को छोटी इकाइयों से बातचीत करनी चाहिए थी। यदि ऐसा होता तो कई सारे अड़ंगे नहीं होते। बैठकों का दौर और विरोध के सुर नहीं सुनाई पड़ते। उनके अनुसार जीएसटी में सुधार नहीं होने पर छोटी इकाइयां बाजार से जाने को मजबूर होंगी। इन परिस्थितियों में बड़े कारोबारी भी भला कब तक खड़े रह पाएंगे।
रियल एस्टेट कारोबारी भी जीएसटी से खासे प्रभावित हुए हैं। वैट, सेवा कर वगैरह को समाप्त कर जीएसटी के तहत एक कर के दायरे में लाकर रियल एस्टेट कारोबारी को सरकार ने बड़ी राहत देने की कोशिश की है। इससे इस क्षेत्र में पारदर्शिता आने की उम्मीद है। पर स्टांप ड्यूटी को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। इससे कारोबारी भ्रम में हैं। जानकारों के अनुसार इसके कारण कर ढांचा जटिल हो गया है। जीएसटी के कारण कई राज्यों को राजस्व का नुकसान होने की भी आशंका है।
जानकारों के मुताबिक रियल एस्टेट के क्षेत्र में काफी गैर पंजीकृत डीलर काम करते हैं। इनकी सेवा लेने पर रिवर्स चार्ज के तहत कर का भुगतान करने की अतिरिक्त व्यवस्था भी कारोबारियों की परेशानी का कारण है। इन प्रावधानों के कारण संपत्ति की कीमतों में इजाफा होने की आशंका है। इससे पहले से ही खस्ताहाल इस सेक्टर की हालत पतली हो जाने का खतरा है।
मध्यप्रदेश चैंबर आफ कॉमर्स, ग्वालियर के पूर्व अध्यक्ष जीडी लाडा बताते हैं, ‘‘कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री, रियल एस्टेट से जुड़े कारोबारी जीएसटी रिफॉर्म के कारण पूरी तरह से हिल चुके हैं। सरकार को इस व्यवस्था का फिर से परीक्षण करना चाहिए। जीएसटी का सबसे ज्यादा प्रभाव हार्डवेयर और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री से जुड़े कारोबारियों पर पड़ा है।’’ उन्होंने बताया कि कोई भी नया कानून लागू करने में दिक्कतें तो आती हैं। समय बीतने के साथ परेशानियां कम होने लगती हैं। एक-दो तिमाही के बाद मुझे इस व्यवस्था के कारोबारियों के बीच स्थिर होने की उम्मीद है।
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मध्यप्रदेश के पूर्व रीजनल डायरेक्टर और समाजसेवी राजेंद्र कोठारी कहते हैं, ‘‘आधी रात को संसद के ऐतिहासिक समारोह में जीएसटी का आगाज हुआ था। मुझे लगा था कि देश अब नई कर व्यवस्था में समा जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ। शासक वर्ग जिस तरह खुद को आम जनता से अलग और विशिष्ट मानकर चल रहा है। मुझे एहसास है कि जीएसटी के कारण कारोबारियों और कारीगरों के कई घरों की रोशनी अंधेरे में तब्दील हो चुकी है।’’ कोठारी ने बताया कि वैश्विक बाजार का हाल पहले से ढीला होने के बीच इस नई परेशानी से सभी कारोबारियों पर असर साफ नजर आने लगा है। यही वजह है कि दिवाली के समय भी बाजार में रौनक नहीं दिखाई दे रही।
जानकारों का कहना है कि एक तिमाही बीत जाने के बाद भी एक्सपोर्टर्स माल का दाम तय नहीं कर पा रहे हैं। सब जानते हैं कि अमेरिका और यूरोप में क्रिसमस के दौरान बिक्री बढ़ जाती है। इसका फायदा उठाने के लिए निर्यातकों को यह पक्का करना होता है कि हर हाल में अक्टूबर में उनका सामान वहां पहुंच जाए। लेकिन, जीएसटी की उलझन में फंसे एक्सपोर्टर्स इस बार ऐसा नहीं कर पाए हैं।