कांग्रेस के महासचिव और गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत संगठन के मामले में माहिर माने जाते हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव के रूप में उनके सामने एक बड़ी चुनौती है। इन चुनावों को लेकर बुला देवी ने गहलोत से सवाल-जवाब किए। पेश हैं मुख्य अंशः
राहुल गांधी की नवसर्जन यात्रा की गुजरात और दूसरी जगहों पर काफी चर्चा रही। क्या इससे कार्यकर्ताओं में नया जोश आया है?
पार्टी के कार्यकर्ता बहुत उत्साहित हैं। राहुल गांधी की नवसर्जन यात्रा से वे फिर से सक्रिय और प्रेरित हुए हैं। सभाओं और रैलियों में उनका उत्साह साफ झलकता है।
क्या यह उत्साह का माहौल जमीन पर भी असर दिखाएगा?
गुजरात चुनाव देश के लिए टर्निंग प्वाइंट होंगे। लोग डर में जी रहे हैं, उन्हें लगता है कि भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें झूठे वादे करके धोखा दिया है। किसान मर रहे हैं, युवा बेरोजगार हैं, दलित अपना कोई भविष्य नहीं देख रहे हैं, छोटे व्यापारी जीएसटी की मार झेल रहे हैं। हर किसी का सरकार से मोहभंग हुआ है। गुजरात चुनाव मोदी को झटका देंगे और यह देश के हित में होगा। गुजरात के वोटर उस बदलाव की शुरुआत करेंगे जिसकी आज देश को जरूरत है।
कांग्रेस लंबे समय से गुजरात में सत्ता से बाहर है। क्या वाकई पार्टी की वापसी की कोई गुंजाइश है?
हम जीत को लेकर आश्वस्त हैं। माहौल हमारे पक्ष में है। मतदाताओं ने अपना मन बना लिया है। भाजपा जरूर हारेगी। सड़क पर किसी से भी बात कीजिए, पता चलेगा कि लोग भाजपा से निराश हैं।
राज्य में कांग्रेस का वोट शेयर 40 फीसदी तक रहा लेकिन विधानसभा में अपनी सीटें बढ़ाने में पार्टी कामयाब नहीं रही। ऐसा क्यों?
गुजरात में कांग्रेस और भाजपा के वोट शेयर में सिर्फ 7-8 फीसदी का अंतर है। हमने ज्यादातर सीटें 10 हजार वोटों से भी कम अंतर से गंवाई हैं। यह छोटा अंतर है। सीएम के तौर पर मोदी का जोर सरकार चलाने से ज्यादा मार्केटिंग पर था। उन्होंने खूब सब्जबाग दिखाए और वह भ्रम अब टूट रहा है। इस बार उनकी कलई खुल जाएगी। इसके अलावा, उन्होंने समाज को हिंदू-मुस्लिम के बीच बांटा और मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाकर कांग्रेस विरोधी माहौल बनाया। जबकि, हमारी पार्टी सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करती है। इस बार हम उन्हें ध्रुवीकरण का कोई मौका नहीं दे रहे हैं।
अमित शाह हमेशा तीन मुद्दों पर बात करते थे- नर्मदा बांध, ओबीसी और गरीब कल्याण। वे इन तीनों ही मामलों में बुरी तरह नाकाम हुए हैं, इसलिए भाजपा अब इन मुद्दों को नहीं उठाती।
इस बार राहुल गांधी के लिए क्या चीज कारगर साबित हो रही है? क्या अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार, नौकरियां जाने का डर और मोदी सरकार से निराशा प्रमुख कारण हैं?
राहुल पूरी तरह से देश को समर्पित हैं। जब एक बार उनसे पूछा गया कि उनका धर्म क्या है तो उन्होंने कहा, तिरंगा मेरा धर्म है। वह हमेशा देश और पार्टी के भले की सोचते हैं। लेकिन भाजपा ने सोशल मीडिया के जरिए उनकी छवि खराब करने की कोशिश की ताकि मतदाताओं को बहकाया जा सके। भाजपा का यह दांव अब उल्टा पड़ने लगा है।
जिस तरह 2011 में कांग्रेस और मनमोहन सिंह से लोगों का मोहभंग होना शुरू हुआ था, क्या अब मोदी और भाजपा के लिए वह समय आ गया है?
हां, बिलकुल।
क्या राहुल गांधी नवंबर-दिसंबर में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष का पदभार संभालेंगे?
हां, मुझे ऐसा लगता है।
मोदी अच्छे वक्ता हैं जबकि लोगों से जुड़ पाना राहुल की कमजोरी रही है। इससे वह कैसे बाहर आएंगे?
यह मैं जवाहर लाल नेहरू के समय से देख रहा हूं कि भारत के लोगों में गजब का कॉमन सेंस है। वे समझ जाते हैं कि नेता क्या कहना चाहता है। इसलिए केवल वाकपटुता से काम नहीं चलता। हमेशा सच्चाई की जीत होती है। भाजपा 2014 में लोगों को भ्रमित कर चुनाव जीत गई। लेकिन लोगों को हर बार बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।
क्या आपको लगता है कि राहुल गांधी 2019 में देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं?
अगर राहुल गांधी चाहते तो यूपीए-2 के दौरान ही प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक बात साफ है कि मोदी सरकार जाएगी और कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी। कौन पीएम बनेगा, यह राहुल को तय करना है।