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कलह के भंवर में दोनों

बदलते समीकरण से दिलचस्प हुई भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई
धूमल और नड्डा के साथ मोदी

इस साल की शुरुआत में पांच राज्यों में चुनाव हुए थे। चार में सरकार बनाकर भाजपा ने चुनावी लड़ाई में एकतरफा जीत हासिल की थी। कैप्टन अमरिंदर स‌िंह के अविवादित नेतृत्व और जमीनी पकड़ की वजह से पंजाब कांग्रेस की झोली में गया था। साल की असली राजनैतिक लड़ाई अब हो रही है। दो बेहद ताकतवर लोगों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के गृह राज्य गुजरात के साथ छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। हिमाचल में जीतने पर भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के अपने सपने के एक कदम और करीब पहुंच जाएगी।

दो दशक से ज्यादा समय से हिमाचल में दोनों राष्ट्रीय पार्टी की राजनीति मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रो. प्रेम कुमार धूमल के इर्द-गिर्द सिमटी है। 84 वर्षीय सिंह छह बार और 72 वर्षीय धूमल दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं। दोनों जनाधार वाले नेता हैं, लेकिन धूमल लोगों के बीच ज्यादा सुलभ हैं।

वेतन के भारी बोझ के कारण लगातार बढ़ते कर्ज से खस्ताहाल इस प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी इन दिनों चरम पर है। भाजपा के स्‍थानीय नेताओं को एकतरफा जीत की उम्मीद है। कई का मानना है कि 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की सीटों की संख्या दो अंक में भी नहीं पहुंच पाएगी। लेकिन, दिलचस्प तरीके से चुनावी समीकरण हर दिन बदल रहे हैं।

बीते कुछ चुनावों पर नजर डालें तो पता चलता है कि भाजपा और कांग्रेस के बीच हर पांच साल पर सत्ता का हस्तांतरण होता रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव में 42.81 फीसदी मतों के साथ कांग्रेस ने 36 सीटें जीती थीं। भाजपा को 38.47 फीसदी मत और 26 सीटें मिली थीं। इससे पहले 2007 के चुनाव में भाजपा ने 43.78 फीसदी मत के साथ 41 सीटें हासिल की थीं। 38.90 फीसदी मत और 23 सीटें कांग्रेस के हाथ लगी थीं। 2012 में कांग्रेस को उस वक्त जीत मिली थी जब उसे हर मोर्चे पर निराशा हाथ लग रही थी। यही कारण है कि सात अक्टूबर को मंडी में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने नेतृत्व में बदलाव की अटकलों पर विराम लगाते हुए वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की घोषणा की। भले ही, वीरभद्र 84 साल के हैं और पार्टी का एक धड़ा उनका विरोधी है, पर सच्चाई यह भी है कि उनके बाद हिमाचल कांग्रेस में नेतृत्व के स्तर पर सन्नाटा दिखता है। इसका कारण यह है कि अपने 55 साल के लंबे राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह ने नेतृत्व की दूसरी पीढ़ी तैयार करने में कभी भरोसा नहीं किया।

अपनी सीट बेटे विक्रमादित्य के लिए छोड़ने और दूसरी सीट से लड़ने की घोषणा करके भी वीरभद्र सिंह ने सबको चौंका दिया है। पार्टी की एक अन्य दिग्गज नेता 89 साल की विद्या स्टोक्स ने उन्हें अपनी थियोग सीट से मैदान में उतरने का प्रस्ताव दिया है। आठ बार विधायक रहीं स्टोक्स ने हाल ही में चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा की थी। आठ से ज्यादा वरिष्ठ कांग्रेस नेता अपनों के लिए टिकट मांग रहे हैं।

दूसरी ओर, भाजपा भी हर हाल में प्रदेश की सत्ता में वापसी चाहती है। तीन अक्टूबर को केंद्रीय स्वास्‍थ्य मंत्री जेपी नड्डा के निर्वाचन क्षेत्र बिलासपुर में एम्स अस्पताल की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने प्रदेश को कई सौगातें दी। नड्डा सीएम पद के दावेदार भी माने जाते हैं। धूमल अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे। 1998 में जब वे मुख्यमंत्री बने थे, मोदी पार्टी के प्रदेश प्रभारी थे।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुखराम के बेटे और कैबिनेट मंत्री अनिल शर्मा को पार्टी में शामिल करवाकर भाजपा ने कांग्रेस को जोरदार झटका दिया है। इससे एक दर्जन सीट पर नए नाम सामने आ सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक कुछ अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी भी भाजपा के संपर्क में हैं। परिवहन मंत्री जी.एस. बाली के भाजपा के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की बात कही जा रही है। लेकिन, गुरदासपुर उपचुनाव के नतीजों के बाद कई लोग पार्टी छोड़ने पर दोबारा विचार कर रहे हैं। भाजपा को आशंका है कि जिन लोगों को टिकट नहीं मिलेगा उन्हें कांग्रेस मैदान में उतार सकती है। इसे देखते हुए वह उम्मीदवारों के ऐलान में देरी कर रही है। वीरभद्र सिंह भी कई भाजपा नेताओं के संपर्क में होने का दावा कर रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस आराम से बहुमत हासिल करेगी और शर्मा के पार्टी छोड़ने को लेकर पहले से ही सूचना थी। फिलहाल, मौजूदा हालात इशारा करते हैं कि यदि कांग्रेस ने जल्द अपनी स्थिति दुरुस्त नहीं की तो हिमाचल में भी यूपी जैसे नतीजे हो सकते हैं। 

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