अगले महीने 24 नवंबर से सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 35ए पर सुनवाई शुरू करेगा। उससे पहले जम्मू-कश्मीर में बातचीत बहाली के केंद्र सरकार के प्रयास पटरी से उतरते दिख रहे हैं। बीते महीने भाजपा महासचिव और जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने कहा था कि केंद्र हर किसी के साथ बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार है। इसके अगले दिन 22 सितंबर को पीडीपी उपाध्यक्ष सरताज मदनी ने बयान जारी कर इस प्रस्ताव का स्वागत किया। उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर मसले पर बिनाशर्त बातचीत के भारत सरकार के प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूं। उम्मीद करता हूं कि गतिरोध खत्म करने के इच्छुक सभी पक्ष सकारात्मक रवैया अपनाएंगे।’’ मदनी मीडिया से विरले ही बात करते हैं। उनके शब्द सरकार के विचार माने जाते हैं। सत्ताधारी पीडीपी के वे मुख्य सूत्रधारों में एक माने जाते हैं। यही कारण है कि जब भी वे राजनैतिक मसलों पर बोलते हैं, उनके साथी नेता, नौकरशाही, सियासी दल और जनता इसे गंभीरता से लेते हैं।
माधव के बयान से उत्साहित 63 वर्षीय सरताज ने कहा कि असंतोष, अनिश्चितता और अस्थिरता से सबसे ज्यादा पीड़ित जम्मू-कश्मीर के लोग हैं। ऐसा कहकर उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस पर माधव का प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि यह वक्त नई दिल्ली से बातचीत के प्रस्ताव पर कोई संदेह करने का नहीं है। विवाद के समाधान और शांति बहाली के लिए सभी पक्षों को इसमें मदद करनी चाहिए।
इसके बाद अलगाववादी नेताओं की तत्काल प्रतिक्रिया सामने आई। सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक, यासीन मलिक ने कहा कि तीन पक्षों भारत, पाकिस्तान और कश्मीर के प्रतिनिधियों के बीच ईमानदार, अर्थपूर्ण और नतीजापरक बातचीत के लिए वे तैयार हैं। इससे पहले 11 सितंबर को प्रदेश का दौरा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं के खिलाफ नहीं जाएगी। यह बात उन्होंने प्रांत के विशेष संवैधानिक दर्जे को सुनिश्चित करने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को लेकर कही थी।
जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच यह भावना जोरों पर है कि केंद्र इन अनुच्छेदों को समाप्त करना चाहता है। राजनाथ ने अपने चार दिवसीय दौरे के दौरान भ्रम को दूर करने की कोशिश करते हुए इस तरह की चिंताओं को गैर-वाजिब बताया था। इससे घाटी के हालात में बड़े बदलाव का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद थी। आतंकवाद का गढ़ माने जाने वाले दक्षिण कश्मीर में तैनात विक्टर फोर्स के मेजर जनरल बीएस राजू ने 27 सितंबर को कहा, घाटी में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है। हालात उस मुकाम पर पहुंच गए हैं जहां राजनैतिक पहल शुरू की जा सकती है। लोगों को भरोसा दिलाना होगा कि संविधान के तहत सब कुछ संभव है।
पर इसके तीन दिन बाद 30 सितंबर को बातचीत के समर्थक भाजपाइयों को आरएसएस ने जोरदार झटका दिया। दशहरा रैली के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह भारत में मिलाने के लिए संविधान संशोधन की पैरवी की। उनके इस बयान से घाटी में फिर से सन्नाटा पसरा है। भागवत बातचीत का समर्थन करने वाले अलगाववादी नेताओं के निशाने पर हैं। गिलानी ने कहा कि इस तरह के बयान दिखाते हैं कि राजनैतिक तौर पर भारत कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं करना चाहता है।
भागवत के बयान के एक दिन बाद जम्मू-कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल कुमार सिंह ने यह कहकर राजनैतिक तूफान खड़ा कर दिया कि अनुच्छेद 370 से प्रांत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि इस मामले में पार्टी अपने मूल स्टैंड से पीछे नहीं हटी है। विधानसभा में हमें बहुमत मिला होता तो चीजें अलग होतीं। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा इस समय पीडीपी के साथ गठबंधन में है और हमने गठबंधन के एजेंडे के तहत संवैधानिक मुद्दों पर यथास्थिति बरकरार रखने का फैसला किया है।
नरम धड़े के माने जाने वाले अलगाववादी नेता मीरवाइज ने आउटलुक को बताया, "कश्मीर राज्य और केंद्र का मसला नहीं है। यह कानून-व्यवस्था का मसला नहीं है। न ही यह प्रशासनिक या सुरक्षा का मुद्दा है। यह राजनैतिक मसला है और यह समझना जरूरी है।" उन्होंने कहा कि भागवत का बयान और निर्मल सिंह द्वारा उसका समर्थन कश्मीर को लेकर आरएसएस और भाजपा की महत्वाकांक्षा को दिखाता है। वे अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त करना चाहते हैं। यह अस्वीकार्य है। इस तरह के प्रयासों का हर तरह से विरोध किया जाएगा। मीरवाइज ने कहा कि भाजपा के लिए आम लोगों से पहले आरएसएस और अपने लोगों के सामने कश्मीर को लेकर रुख साफ करना जरूरी है। कश्मीर पर पार्टी में ही तमाम अंतर्विरोध हैं।
भाजपा की प्रदेश इकाई मतभेद की बातों को सिरे से नकार देती है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता वीरेंद्र गुप्ता ने बताया कि मेहबूबा मुफ्ती की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने के लिए दाखिल की गई याचिकाओं का मजबूती से विरोध किया है। पर राष्ट्रीय दल होने के नाते कश्मीर पर भाजपा के कुछ निश्चित विचार हैं। हम अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त करने के पक्ष में हैं। पार्टी लंबे समय से यह मांग करती रही है। ऐसे में निर्मल सिंह का बयान पार्टी की सोच से मेल खाता है। इसे उप मुख्यमंत्री के विचार के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पीडीपी के साथ सरकार में होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर विचार रखने का भाजपा को अधिकार है।
कश्मीर में भाजपा की चेहरा मानी जाने वाली डॉ. हिना भट्ट भी विशेष दर्जे को लेकर इसी तरह के विचार रखती हैं। लेकिन, उनका मानना है कि इसे अलग तरीके से पेश करना चाहिए। उन्होंने आउटलुक से कहा, अनुच्छेद 370 में क्या है? पिछली सरकारों ने इसे दंतहीन और खोखला कर दिया। अब यह रहे या जाए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्षेत्रीय दल इसे भावनात्मक मुद्दे के तौर पर पेश करते हैं। मेरा मानना है कि इसके होने या नहीं होने का लोगों के लिए कोई फर्क पैदा नहीं करता। अनुच्छेद 35ए का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण उन्होंने इस पर टिप्पणी से इनकार कर दिया।
भाजपा नेताओं के इस तरह के बयान से साफ है कि पार्टी नेता भागवत के संबोधन के बाद अब अपने मूल एजेंडे पर चुप नहीं बैठने वाले हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि विशेष दर्जे का मामला आने वाले दिनों में तब तक गरम होता रहेगा जब तक भाजपा का कोई शीर्ष नेता या केंद्रीय मंत्री आगे आकर इसे रोकने की कोशिश नहीं करता। कांग्रेस कश्मीर पर भाजपा के रुख में एकरूपता नहीं पाती। पार्टी के वरिष्ठ नेता तारिक कारा ने बताया, कांग्रेस पॉलिसी ग्रुप के घाटी दौरे के बाद भाजपा ने दबाव में पहले बातचीत का प्रस्ताव दिया जब हुर्रियत ने इसको लेकर उत्साह नहीं दिखाया तो उसने अपना स्टैंड बदल लिया।
प्रदेश के महाधिवक्ता जहांगीर इकबाल गनी ने बताया कि 24 नवंबर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होनी है। ऐसे में आने वाले समय में यह मुद्दा गरमा सकता है। नवंबर में सुनवाई के पीछे सरकार का हाथ होने की मंशा से वे इनकार करते हैं। हालांकि कारा जैसे आलोचकों का मानना है कि प्रदेश सरकार चाहती है कि सुनवाई जाड़े के समय हो। अदालत का फैसला विपरीत रहा तो कश्मीरियों के विरोध से सरकार आसानी से निपट पाएगी। उनके मुताबिक वास्तव में इस मामले में भाजपा-पीडीपी मिलकर नौटंकी कर रही हैं। हालांकि भागवत के बयान पर सरताज ने अब तक चुप्पी साध रखी है। इसके कारण कई लोगों का मानना है कि पीडीपी या तो बदले रुख से चिंतित है या भागवत के विचार से उसकी भी सहमति है। विपक्षी नेशनल कॉन्फ्रेंस भी यह आरोप पार्टी पर लगाती है। ऐसे में अब पीडीपी दिग्गज ही बता सकते हैं कि उनकी पार्टी किस तरफ है।
क्या है अनुच्छेद 370 और 35ए
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। इसके कारण देश के वे कानून प्रदेश में लागू नहीं होते, जो देश के अन्य राज्यों में लागू हैं। अनुच्छेद 35ए से जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थाई निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है। इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में न तो संपत्ति खरीद सकता है और न ही वहां का स्थाई नागरिक बनकर रह सकता है।