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भरोसेमंद चिकित्सा तंत्र की जरूरत

अनुभवों से सीख मिलती है कि मुख्यमंत्रियों की सेहत के लिए डॉक्टरों का लाव-लश्कर होना ही पर्याप्त नहीं
एम.जी. रामचंद्रन के विपरीत एम. करुणानिधि (दाएं) डॉक्टरी सलाह पर करते हैं अमल

जब एम.जी. रामचंद्रन सितंबर 1984 में तंजावुर के बिग टेंपल में एक कार्यक्रम के दौरान बेहोश हो गए तो उनकी सरकार में स्वास्‍थ्य मंत्री रहे एचवी हांदे ने सीएम के निजी चिकित्सकों से पहला सवाल यह पूछा कि आखिरी बार कब एमजीआर का ब्लड शुगर टेस्ट किया था। जवाब में एमजीआर के निजी डॉक्टर पीआर सुब्रमण्यम, जो फिल्मी दिनों से ही उनसे जुड़े थे, ने हाथ झटकते हुए कहा था कि जांच के लिए रक्त का नमूना देने से एमजीआर मना करते हैं। यह घटना याद करते हुए हांदे कहते हैं, “हम जानते थे कि वे डायबिटीज के मरीज हैं। लेकिन, एमजीआर का मानना था कि जब तक वे कसरत करेंगे और फिट रहेंगे, वे जो चाहे खा सकते हैं।”

तंजावुर की घटना के बाद एमजीआर के ब्लड की जांच की गई। पता चला कि डायबिटीज के कारण उनकी किडनी को बुरी तरह नुकसान पहुंच चुका है। क्रिएटिनिन और यूरिया खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। करीब एक महीने के बाद किडनी फेल होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में अमेरिका में उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ है कि अगर आप विशेषज्ञों की सलाह नहीं मानते हैं तो निजी चिकित्सक होना पर्याप्त नहीं है। अभिनेता से नेता बने अन्नाद्रमुक के संस्‍थापक का 70 साल की उम्र में 1987 में निधन हो गया।

एमजीआर के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे द्रमुक नेता एम. करुणानिधि 93 साल के हो चुके हैं। इतनी लंबी आयु उनके पारिवारिक डीएनए का ही चमत्कार नहीं है। वे अपने निजी चिकित्सक के. गोपाल के हर निर्देश का पालन करते हैं। यहां तक कि व्हीलचेयर पर आने के बाद भी करुणानिधि सुबह की सैर करते हैं। एक इंस्ट्रक्टर की देखरेख में योग करते हैं। करुणानिधि के भतीजे और पूर्व केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन के मुताबिक, “चुनाव प्रचार अभियान हो या आधिकारिक कार्यक्रम करुणानिधि इस बात का ध्यान रखते हैं कि डॉ. गोपाल उनके साथ रहें। उन्हें दरवाजे पर डॉक्टर की छाया भी दिख जाए तो वे बैठकें खत्म कर ब्लडप्रेशर जांच के लिए चले जाते हैं।”

एक वरिष्ठ डॉक्टर, जिन्होंने कुछ समय जयललिता का इलाज किया था, ने बताया कि डॉ. कृष्‍णास्वामी और डॉ. एन. रंगाभाष्यम जैसे निजी डॉक्टर जयललिता के पास भी थे। लेकिन, उनके मामलों में वीके शशिकला और उनके परिजनों का ज्यादा नियंत्रण था। इसके कारण निजी डॉक्टर भी खुद को असहाय पाते थे। कृष्‍णास्वामी जैसे दिग्गज डॉक्टर इस बात पर जोर देते रहे कि जयललिता को अन्य तरीकों की बजाय इंजेक्‍शन से इंसुलिन लेना चाहिए। आइसक्रीम या चॉकलेट खाने से भी शशिकला के परिजन विरले ही जयललिता को रोकते थे।

एक दोस्त की सलाह पर जयललिता ने 2015 में एक एक्यूपंचर विशेषज्ञ से सलाह ली थी। उसकी मदद से उनका शुगर लेवल नीचे आ गया था। अचानक ही यह उपचार रोक दिया गया। इसके बाद उनके स्वास्‍थ्य में तेजी से गिरावट आई। जयललिता कभी-कभार ही टहलती थीं। वो कमजोर होती जा रही थीं। तबीयत बिगड़ने के कारण अंतिम क्षणों में उन्हें कई सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द करने पड़े थे। 2016 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने एक दर्जन से भी कम सभाएं की थीं। इन सभाओं को भी वातानुकूलित मंच से उन्होंने बेहद संक्षेप में संबोधित किया।

इससे सवाल पैदा होता है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह भारत में भी संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों के लिए समय-समय पर चिकित्सकीय परीक्षण अनिवार्य कर देना चाहिए। भारत में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नियमित स्वास्‍थ्य परीक्षण से गुजरते हैं। तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष तमिलसाई सुंदरराजन का मानना है कि सभी मुख्यमंत्रियों के लिए भी साल में कम से कम एक बार विशेषज्ञों के पैनल से स्वास्‍थ्य जांच जरूरी कर देना चाहिए। उनका मानना है कि इससे पारिवारिक सदस्यों की सनक के कारण किसी मुख्यमंत्री के स्वास्‍थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो पाएगा, जैसा जयललिता के मामले में हुआ।

 

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