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बोनस के भरोसे चुनाव की फसल

रमन सिंह ने धान और तेंदूपत्ता बोनस से मैदानी और आदिवासी इलाके के मतदाताओं को साधने की बनाई रणनीति, अगले साल होने हैं विधानसभा चुनाव
सौगातः धान बोनस प्राप्त करने वाले किसानों के साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन ‌सिंह

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्‍य की सत्ता में लगातार चौथी बार भाजपा को लाने के लिए धान और तेंदूपत्ता बोनस का दांव चला है। धान बोनस से मैदानी और तेंदूपत्ता बोनस से आदिवासी इलाकों के वोटरों को रिझाने की रणनीति है। विधानसभा चुनाव में साल भर बचा है। इससे पहले रमन के पिटारे से कई और पत्ते निकल सकते हैं। पर धान और तेंदूपत्ता बोनस को एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर की काट के रूप में देखा जा रहा है। धान बोनस का भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में वादा किया था। इसे पूरा करने के ल‌िए आंदोलन हो रहे थे, जबकि तेंदूपत्ता बोनस की मांग भी थी। इसके बावजूद खजाना खोलने का मतलब साफ है कि भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में 65 सीटें जीतने के लक्ष्य को हर हाल में हासिल करना चाहती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जब 65 सीटों का टारगेट दिया तो पार्टी नेताओं को समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे मुमकिन होगा। अब पत्ते खुलने लगे हैं। इस साल धान बोनस देने की रमन सरकार की योजना नहीं थी। बजट में ग्रामीणों को स्मार्टफोन देने के लिए राशि की व्यवस्था की गई, पर बोनस के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया। केंद्र सरकार ने राज्यों को खाद्यानों की सरकारी खरीद पर बोनस नहीं देने को कहा था।

दरअसल, भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में धान का समर्थन मूल्य 2100 रुपये करने और प्रति क्विंटल 300 रुपये बोनस देने का वादा किया था। किसानों का एक-एक दाना खरीदने का वादा किया था। लेकिन, सरकार बनते ही प्रति एकड़ 15 क्विंटल का सीलिंग लगा दिया। साथ ही वोटर कार्ड या आधार कार्ड और पैन कार्ड को भी जरूरी कर दिया। इससे कई किसान धान बिक्री के लिए सहकारी समितियों में पंजीयन नहीं करा पाए। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एक साल का बोनस देने के बाद सरकार ने खस्ता वित्तीय हालत का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए।

इससे कांग्रेस के हाथ बड़ा चुनावी मुद्दा लग गया। किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस को आगे बढ़ते देख भाजपा को अपनी जमीन खिसकती दिखी। धान बोनस नहीं देने पर सख्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिघले और पिछले महीने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को हरी झंडी दे दी। मोदी की सहमति मिलते ही बिना देर किए रमन सिंह ने किसानों को दो साल का बोनस देने का ऐलान कर दिया। पिछले साल के धान का बोनस दीवाली से पहले और इस साल का अप्रैल 2018 में किसानों के खाते में सीधे ट्रांसफर हो जाएगा। एक साल का बोनस बांटने के लिए राज्य के बजट में से ही 2100 करोड़ की व्यवस्था कर ली गई। विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इसे पास किया गया। धान बोनस के साथ दिसंबर में तेंदूपत्ता बोनस के रूप में 250 करोड़ बांटने की घोषणा ने राजनीति और गरमा दी।

हर चुनाव में मुद्दा बना धान

छत्तीसगढ़ में धान हमेशा से चुनावी मुद्दा रहा है। मुख्यमंत्री रहते हुए अजीत जोगी ने धान खरीदी के लिए राशि की मांग करते हुए 2001 में अपने मंत्रियों समेत प्रधानमंत्री आवास तक मार्च निकाला और गिरफ्तारी दी। जोगी ने ही प्रदेश में धान की सरकारी खरीद शुरू की थी। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते रमन सिंह ने भी समर्थन मूल्य बढ़वाने के लिए सभी दलों से दिल्ली चलने का आग्रह किया था। राज्य में 37 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। कृषि संचालक एम.एस. केरकेट्टा का कहना है, मैदानी इलाकों में पैदावार प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल होती है। बस्तर और सरगुजा में प्रति एकड़ उपज 10 से 12 क्विंटल बताई जाती है। ऐसे में मैदानी इलाकों में धान का समर्थन मूल्य और बोनस बड़ा मायने रखता है। इन इलाकों में विधानसभा की करीब 71 सीटें हैं, जिन पर एससी और ओबीसी का दबदबा है।

आदिवासी सीटों पर नजर

आदिवासी इलाके बस्तर और सरगुजा में धान की पैदावार कम होती है। यही कारण है कि यहां के वोटरों को लुभाने के लिए प्रदेश सरकार ने तेंदूपत्ता बोनस का दांव चला है। अभी भाजपा आदिवासी इलाकों में मजबूत नहीं है। 29 में से 11 सीट ही उसके पास है। नक्सल मोर्चे पर सरकार कुछ मजबूत दिख रही है, लेकिन आदिवासियों की दशा यथावत दिखती है। ऐसे में तेंदूपत्ता बोनस कितना कारगर होगा, यह चुनाव नतीजे ही बताएंगे।

कांग्रेस पिछले दो साल से समर्थन मूल्य और बोनस के लिए सरकार को लगातार घेर रही थी। ऐसे में रमन सिंह ने बोनस का ऐलान कर कांग्रेस के मुद्दे को भले छीन लिया हो, लेकिन अब भी तमाम राजनीतिक दल और किसान संगठन पूछ रहे हैं कि बकाया बोनस की राशि कब मिलेगी? भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी इस सवाल से दो-चार होना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि चुनावी वर्ष में कांग्रेस के दबाव में सरकार ने बोनस का ऐलान किया है। राज्य में साढ़े 37 लाख किसान हैं, लेकिन 13 लाख किसानों को ही बोनस दिया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ किसान-मजदूर महासंघ के संयोजक संकेत ठाकुर बताते हैं कि भाजपा सरकार की प्राथमिकता में किसान नहीं हैं। उसे तो केवल वोट दिख रहा है। बढ़ती लागत के अनुपात में उपज का मूल्य नहीं मिलने से किसान हताश और नाराज हैं। छत्तीसगढ़ किसान-मजदूर महासंघ के नेता वीरेंद्र पांडेय का कहना है कि सरकार को  इससे कोई खास फायदा नहीं होगा। अधिकांश छोटी जोत वाले किसानों को बोनस मिल ही नहीं रहा। किसानों की मांगों को लेकर लगातार आंदोलन और धरना दे रहे छत्तीसगढ़ी संयुक्त किसान मोर्चा संचालन समिति के प्रमुख अनिल दुबे का कहना है कि भाजपा सरकार किसानों को धोखे में रखकर वोट बटोरने में लगी है। सरकार किसानों से वादे कर मुकर रही है। रमन सरकार ने मनमोहन सिंह के राज में धान का समर्थन मूल्य 2100 रुपये प्रति क्विंटल करने के लिए संघर्ष की बात कही थी। लेकिन, केंद्र में भाजपा की सरकार आते ही वे इसे भूल गए। फसल बीमा देने में भी किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है। बसना के किसान जगजीत सिंह अग्रवाल कहते हैं, "यदि सरकार किसानों की वास्तविक हितैषी है तो उसे पांच साल का बोनस देना चाहिए।"

राज्य में जहां धान बोनस को लेकर राजनीति चरम पर है, वहीं किसान लगातार दूसरे साल भी सूखा पड़ने से बेहाल हैं। रमन सिंह का दावा है कि किसानों की तीन तरह से मदद हो रही है। बोनस और फसल क्षतिपूर्ति के अलावा उन्हें फसल बीमा की राशि भी मिलेगी। 27 में से 22 जिलों की 90 तहसीलें सूखाग्रस्त हैं। इसके बाद भी यहां की सरकारी एजेंसियों ने 70 लाख टन धान मंडियों में आने का अनुमान लगा रखा है। लोन लेकर दस हजार करोड़ रुपये का धान ख्‍ारीदा जाएगा। इस साल मैदानी क्षेत्र में बारिश कम हुई है। कई लोग बुआई ही नहीं कर पाए। फिर भी इतनी मात्रा में धान की आवक का अनुमान तय करने से सरकार पर सवाल उठ रहे है। इसे पड़ाेसी राज्यों का धान खपा कर बोनस हड़प करने की योजना के रूप में देखा जा रहा है। 

बोनस और सूखे के बीच एक बात तो साफ है कि छत्तीसगढ़ चुनावी मोड में आ गया है। रमन सिंह बोनस, घोषणाओं और शिलान्यास से जनता को लुभाने में जुट गए हैं तो कांग्रेस आंदोलन के जरिए। जोगी कांग्रेस ने सालभर पहले ही 11 प्रत्याशियों की घोषणा कर दस्तक दे दी है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिरी बाजी कौन जीतता है ?

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