पुराने ढर्रे पर चल रही उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने का बीड़ा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने उठाया है। उन्होंने विभाग में कई काम शुरू किए हैं। आउटलुक के विशेष संवाददाता वीरेंद्र सिंह रावत ने उनसे कामकाज और चुनौतियों को लेकर विस्तार से बात की। कुछ अंश:
योगी आदित्यनाथ सरकार को छह महीने से अधिक हो चुके हैं। प्रदेश की चिकित्सा और स्वास्थ्य की हकीकत में क्या बदलाव आया है?
जब हम सत्ता में आए थे तब प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहद खराब स्थिति में थीं। राज्य में 3,600 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 800 के लगभग जन स्वास्थ्य केंद्र और 75 जिला अस्पताल हैं। इनमें करीब 7,500 डॉक्टरों और 18,500 पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। क्रय विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त रहा है और विभाग में ट्रांसफर पोस्टिंग की पाॅलिसी भी नहीं रही है। लेकिन, अब हम ट्रांसफर पोस्टिंग की पाॅलिसी लाए हैं। क्रय विभाग के स्थान पर हमने कॉरपोरेशन बनाने का निर्णय लिया है और कैबिनेट से इसकी मंजूरी भी ले ली है। इससे भी पारदर्शिता आएगी।
डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए हमने डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 वर्ष से बढ़ा कर 62 कर दी, जिसे अब 65 वर्ष करने की योजना है। दूसरा, डॉक्टरों के लिए 1,000 वाक इन इंटरव्यू भी शुरू कर दिए गए हैं। हमारे पास लोक सेवा आयोग से भी करीब 2065 डॉक्टर आए हैं। हमने यह भी निर्णय लिया है कि लगभग 2,000 आयुष डॉक्टर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात किए जाएंगे।
गोरखपुर में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौत योगी सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा बनी थी। अब इस विषय पर सरकार क्या सोचती है?
गोरखपुर की घटना के दो अलग-अलग पहलू हैं। एक, ऑक्सीजन की खरीद की प्रक्रिया में आपूर्तिकर्ता और अस्पताल अधिकारियों में साठगांठ थी, जिसे हमने पकड़ा और कार्रवाई की। दूसरे, यह साबित नहीं हुआ है कि इस साठगांठ और भ्रष्टाचार के कारण ही बच्चों की मौत हुई। जिस दौरान ऑक्सीजन सप्लाई अवरुद्ध थी, करीब सात बच्चों की मृत्यु हुई थी। ऑक्सीजन की कमी से मौत होती, तो अन्य बच्चों पर भी असर पड़ता। इसलिए मैं मानता हूं कि यह दुर्घटना बड़ी हो सकती थी, मगर मौत की वजह ऑक्सीजन नहीं थी।
मुख्यमंत्री खुद गोरखपुर से आते हैं, जहां इंसेफेलाइटिस का सबसे ज्यादा प्रकोप है। सरकार इस ओर क्या कर रही है?
योगी जी ने गोरखपुर क्षेत्र में इस बीमारी के विरुद्ध लंबी लड़ाई लड़ी है। सो, जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) पर सरकार का ध्यान है। हमने 93 लाख बच्चों का टीकाकरण कराया, जो किसी सरकार ने नहीं किया था। एईएस से बचाव के लिए जरूरी है कि बुखार आने के 12 घंटे के अंदर गांव में ही दवाइयां देनी शुरू हो जाएं।
इसके लिए 104 इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर्स (ईटीसी) पूर्वांचल के सात जिलों में स्थित हैं। इसके अलावा, हमारी 10 बाल सघन देखभाल इकाइयां (पीआइसीयू) हैं। इनमें से प्रत्येक में 10 बेड हैं, मतलब कुल 100 बेड हैं।
उप्र के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए क्या सरकार निजी क्षेत्र का भी सहारा लेगी?
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर एक नई पाॅलिसी लाने की तैयारी चल रही है। मुझे लगता है कि इसमें तीन महीना और लगेगा। इससे निजी और सरकारी क्षेत्रों में मौजूद स्वास्थ्य सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर को साझा किया जा सकेगा।
राज्य के स्वास्थ्य बजट में कितना इजाफा किया गया है या आगे किया जाएगा?
इस वर्ष हमारी सरकार का पहला साल है इसलिए अभी बजट उतना ही है जितना पहले से घोषित और आवंटित था। अगले साल हम इसे बढ़ाने का प्रयास करेंगे। योगी सरकार में स्वास्थ्य और शिक्षा पर जोर है और हम इस ओर काफी काम कर रहे हैं।
प्रदेश में स्वास्थ्य क्षेत्र की जर्जर हालत के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार कौन है?
देखिए, कमी हर क्षेत्र में है। आप ने इन्फ्रास्ट्रक्चर तो खड़ा कर दिया, पर वहां डॉक्टर नही हैं। इस विभाग के पूरे इन्फ्रास्ट्रक्चर और नियम लागू करने की जिम्मेदारी प्रदेश के स्वास्थ्य महानिदेशक कार्यालय की होती है। यह महकमा कमजोर रहा है। अब हमने इस महकमे को भी चुस्त-दुरुस्त कर दिया है। मुझे हर क्षेत्र को फिर से खड़ा करना पड़ रहा है। मैंने जब शपथ ली थी तब कहा था कि 8-10 महीने में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर ले आऊंगा। इन छह महीनों में मैंने इसे पटरी पर लाना शुरू कर दिया है।