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चुप्पी तोड़ना बेहद जरूरी

करोड़ों बच्चे भोग रहे हैं यौन उत्पीड़न का संताप, करीबी ही बना रहे हैं बच्चियों को निशाना
जागरूकताः बाल यौन उत्पीड़न के खिलाफ यात्रा में शामिल छात्र

आज कोई ऐसा दिन नहीं जाता, जब मीडिया में छोटे और सामूम बच्चों के साथ हो रहे बलात्कार की खबरें न आती हों। पड़ोसी, रिश्तेदार, शिक्षक और डॉक्टर ही नहीं, पिता तक सात-आठ साल की बच्चियों से दुराचार करने का पाप कर रहे हैं। छेड़खानी और यौन उत्पीड़न का संताप तो करोड़ों बच्चे भोग रहे हैं। यह एक चिंताजनक आंकड़ा है कि देश में 53 फीसदी बच्चे किसी न किसी प्रकार के यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं। लेकिन पुलिस तक कुछ ही शिकायतें पहुंच पाती हैं और उसमें भी सजा तो चंद लोगों को ही मिल पाती है। इसका सबसे बड़ा कारण समाज में मान-मर्यादा, शर्म-हया की परदेदारी और अपराधियों का खौफ होता है। फिर भी हर घंटे में दो बच्चों के साथ बलात्कार और आठ बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज होती है।

चुप्पी और उदासीनता के चलते यह पाप महामारी की तरह फैल चुका है। इसके खिलाफ एक महायुद्ध छेड़ने की जरूरत है। ‘भारत यात्रा’ के रूप में हमने यही युद्ध लड़ा। 11 सितंबर, 2017 को कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद शिला स्मारक से शुरू हुई भारत यात्रा 22 राज्यों से 11 हजार किलोमीटर की दूरी तय करके 16 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली में समाप्त हुई। यात्रा जिस राज्य से होकर गुजरी वहां बड़ी संख्या में लोग उमड़ पड़े।

भारत यात्रा के जरिए हमारी कोशिश बाल हिंसा के प्रति लोगों को जागरूक करने और उनकी चुप्पी तोड़ने की है। ‘सुरक्षित बचपन-सुरक्षित भारत’ के निर्माण के लिए एक करोड़ लोगों तक सीधा संपर्क किया गया। मेरा स्पष्ट मानना है कि बचपन को सुरक्षित बनाए बिना न तो भारत सुरक्षित हो सकता है और न ही तेजी से आर्थिक तरक्की कर सकता है। यात्रा के दौरान मैंने देखा कि लोग बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार के खिलाफ सड़कों पर उतरे। यौन शोषण के शिकार बच्चों के मां-बाप लोक-लाज के डर से खुद खामोश रहते हैं और बच्चों को भी चुप रहने की सलाह देते हैं। ऐसे में अपराधियों का मनोबल और बढ़ जाता है।

यात्रा के जरिए लोगों को बाल हिंसा के खिलाफ चुप्पी तोड़ने के लिए प्रेरित किया गया। हमें इसमें सफलता भी मिली। अब 16 साल की चंदा को ही लीजिए। चेन्नै की एक जनसभा में हजारों की भीड़ को चीरती हुई वह मंच पर आई और यह कहकर सबको स्तब्ध कर दिया कि अब वह चुप नहीं रहेगी और सबको बताएगी कि पब्लिक ट्वायलेट में उसके साथ क्या हुआ था? उसने अपनी व्यथा सुनाई कि किस तरह गलत काम होने के बाद परिवार के ही लोगों ने उसे बदनामी के डर से चुप रहने की सलाह दी थी। उसने सबके सामने बड़ी ही निर्भीकता से कहा कि अब वह चुप नहीं रहेगी। उसने मंच से दूसरी लड़कियों से अपील की कि वे भी अब ऐसे मामलों में खामोश न रहें।

स्कूल-कॉलेज के किशोरों और युवाओं को भी प्रेरित किया गया कि वे अपने आसपास अगर किसी बच्चे के साथ यौन शोषण होता हुआ देखें तो इसके खिलाफ आवाज उठाएं। इस मामले में किसी से भी डरें नहीं। नौजवानों ने इस बारे में खूब उत्साह भी दिखाया।

यात्रा का सबसे बड़ा मकसद बाल हिंसा के खिलाफ एक राष्ट्रीय सहमति बनाना रहा। देश में ऐसा पहली बार हुआ कि बच्चों के सवाल पर सभी धर्मों, संप्रदायों, विचारधारा और राजनैतिक दलों के लोग एक मंच पर न केवल इकठ्ठा हुए बल्कि इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास भी किया। 11 सितंबर को भारत यात्रा के शुभारंभ के अवसर पर कन्याकुमारी में सभी धर्मों के धर्मगुरु इकट्ठा हुए। जिन राज्यों से यात्रा गुजरी वहां के मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री से लेकर विपक्षी दल के नेता तक विचारधारा और राजनीति से ऊपर उठ कर हमारे साथ खड़े हुए। कई जगह तो ऐसा भी हुआ कि राजनैतिक रूप से एक दूसरे के घनघोर विरोधी लोग भी बच्चों के सवाल पर हमारे मंच पर जुटे।

जजों और वकीलों का समर्थन हिंसा के शिकार बच्चों के लिए एक बड़ा संबल है। कानून के प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन न होने की वजह से अपराधियों को सजा मिलने की दर बहुत कम है। कर्नाटक और महाराष्ट्र हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों ने बच्चों के प्रति अदालतों को और अधिक संवेदनशील बनाने और यौन शोषण के मामलों में त्वरित न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का आश्वासन दिया है। ऐसा ही आश्वासन और जजों ने भी दिया। यात्रा के दौरान एक सुखद पल तब आया जब गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बाल दुर्व्यापार यानी ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों को मदद पहुंचाने के लिए ‘पेंसिल पोर्टल’ के उद‍्घाटन कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की कि उनकी सरकार ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए जल्द ही एक एंटी ट्रैफिकिंग बिल संसद में पेश करेगी। हम लोग तकरीबन दस साल से इस कानून की मांग कर रहे हैं। भारत यात्रा से यह सपना साकार होने जा रहा है।

(लेखक नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं)

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