फीफा अंडर 17 विश्व कप फुटबॉल में भारत का सफर तीन लगातार हार के साथ पहले ही दौर में समाप्त हो गया। टीम से किसी चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। लेकिन, इस आयोजन और भारतीय टीम के प्रदर्शन ने देश में फुटबॉल के दिन फिरने की नई उम्मीदों का संचार करने का काम जरूर किया है। उम्मीदों को पंख देने में नौ अक्टूबर को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में भारत और कोलंबिया के बीच हुए मैच का बड़ा हाथ है। इस मैच को लोग जल्दी नहीं भूल पाएंगे। भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन इतना जबर्दस्त था कि एक वक्त भारत फीफा विश्व कप में अपनी पहली जीत दर्ज करता नजर आ रहा था। कांटे की इस टक्कर में भारत को 2-1 से हार झेलनी पड़ी थी।
यह प्रदर्शन इसलिए भी चौंकाता है, क्योंकि भारतीय टीम के कोच लुइस नोर्टन डि मातोस का भी मानना है कि भारत और अन्य टीमों के बीच फासला बहुत लंबा है। भारत की आइएसएल टीम स्पेन के चौथे डिवीजन में हिस्सा लेने वाली टीम से भी 4-0 से हार जाती है। मातोस के अनुसार अब जरूरत अंडर 17 खिलाड़ियों पर समय और ध्यान देने की है। इस टीम के सदस्यों को आइ लीग में हिस्सा लेने के लिए भेजना चाहिए।
सफल आयोजन और टीम की उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन के बाद से देश के फुटबॉल सिस्टम में बदलाव की बात जोर-शोर से की जा रही है, क्योंकि पुराने और पिटे हुए सिस्टम से देश में इस खेल का भला नहीं हो सकता। अंडर 17 विश्व कप की 21 सदस्यीय भारतीय टीम में उत्तर-पूर्व के खिलाड़ियों का दबदबा था। टीम के आधे खिलाड़ी उत्तर-पूर्व के छोटे-छोटे राज्यों से थे। आठ खिलाड़ी तो केवल मणिपुर से थे। सिक्किम और मिजोरम का एक-एक खिलाड़ी था। भारतीय मूल के दो विदेशी खिलाड़ी भी इस टीम में थे। यह बताता है कि फुटबॉल को लेकर जैसी दीवानगी और ढांचा उत्तर-पूर्व में है, वैसा अन्य राज्यों में नहीं है।
इससे बड़े प्रदेशों में फुटबॉल के नाम पर चल रही गतिविधियों पर सवाल पैदा होता है। सिक्किम फुटबॉल संघ के पदाधिकारी मिनेला इथेन्पा कहते हैं, ‘‘जनजातीय क्षेत्रों में फुटबॉल की जबर्दस्त लोकप्रियता है। इस विश्व कप में मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम और महाराष्ट्र के जनजातीय क्षेत्रों के कई खिलाड़ी टीम में थे। यह एक अच्छी बात है कि भारतीय फुटबॉल का ध्यान अब टैलेंट के लिए जनजातीय क्षेत्रों की ओर जा रहा है।’’ उन्होंने बताया कि पहले छोटे-छोटे शहरों में बड़े फुटबॉल क्लब प्रतिभा खोज के लिए अपने लोग भेजते थे। राज्य फुटबॉल संघों को जिम्मेदारी मिलने के बाद से यह सिलसिला खत्म हो गया है।
देश में फुटबॉल संचालन में भारी कुप्रबंधन की ओर इशारा करते हुए इथेन्पा बताते हैं कि अखिल भारतीय फुटबॉल संघ के संविधान के अनुसार हर संबद्ध राज्य फुटबॉल संघ की गतिविधियां 70 फीसदी जिलों में होनी चाहिए। हर जिले में कम से कम छह क्लब होने चाहिए। लेकिन, एक आरटीआइ के जवाब में भारतीय फुटबॉल संघ ने बताया कि उसके पास राज्य इकाइयों की गतिविधियों की मॉनीटरिंग का कोई मैकेनिज्म नहीं है। राज्य फुटबॉल संघों का अंब्रेला ऑर्गेनाइजेशन होने के नाते उसे अपने ही कार्यों की जानकारी नहीं होना हैरान करने वाला है। राज्य संघ को उनके अधिकारी मनमर्जी से चला रहे हैं। इस संस्कृति को खत्म किए बिना खेल का भला नहीं हो सकता है। कुप्रबंधन से पार पाने के लिए चंडीगढ़ फुटबॉल एसोसिएशन से सीखा जा सकता है। एकेडमी के चार खिलाड़ी विश्व कप टीम में थे।
सरकारी होने के बावजूद चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी ने जो पेशेवर कार्यशैली दिखाई है वह चौंकाती है। चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी के कोच संदीप सिंह ने बताया कि शुरुआत में एकेडमी का संबंध जर्मनी की एकेडमी से था। पर अब इसे स्वतंत्र रूप से संचालित किया जा रहा है। कई अन्य राज्यों की सरकारें भी फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए छात्रावास और एकेडमी चलाती हैं। लेकिन, अपनी गैरपेशेवर शैली और कुप्रबंधन के कारण वे चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी की तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। अन्य प्रदेशों की सरकारी एकेडमी में अमूमन स्थानीय बच्चों को ही रखा जाता है। लेकिन, चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी ने अपने दरवाजे पूरे देश के बच्चों के लिए खोल रखे हैं। ट्रायल के माध्यम से बच्चों का चयन होता है। चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी जैसा प्रारूप ही अन्य प्रदेश भी अपना लें तो देश में फुटबॉल की तस्वीर काफी बदल जाएगी।
फीफा अंडर 17 विश्व कप ने भारत के कई मुख्य फुटबॉल सेंटर के जमीनी स्तर पर काम करने के दावों की पोल खोल दी है। अब खेल को आगे बढ़ाने के लिए कठोर फैसलों का वक्त है। ऐसे में यह देखना दीगर होगा कि अखिल भारतीय फुटबॉल संघ नाकारा राज्य संघों पर सख्ती करता है या फिर वोट के लिए आंखें मूंदे रहता है।
(लेखक पत्रकार और दून फुटबॉल डॉट कॉम के संस्थापक हैं)