इस बात को लेकर बड़ा बवाल मचा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पर्यटन को लेकर कोई ब्रोशर छपवाया है जिसमें ताजमहल का जिक्र नहीं है। कुछ विरोधी कह रहे हैं कि यह हिंदुत्ववादियों का षड्यंत्र है। सरकार कह रही है कि ऐसा नहीं है, यह ब्रोशर पर्यटन के प्रचार के लिए नहीं है, यह सिर्फ उन योजनाओं की जानकारी देने के लिए है जो पर्यटन के विकास के लिए सरकार ने शुरू की है इसलिए उसमें ताजमहल का जिक्र नहीं है। जाहिर है ताजमहल चार सौ साल पहले शाहजहां ने बनवा दिया था, उसमें मौजूदा सरकार की कोई भूमिका नहीं थी, सो उसका जिक्र नहीं है। यह बेचारी सरकार जिसने श्मशान-कब्रिस्तान को चुनावी मुद्दा बनाया था, वह ताजमहल कैसे बना सकती है?
लोग पूछ सकते हैं कि यह परंपरा कब से शुरू हुई कि कोई सरकार दूसरे के किए काम का श्रेय नहीं ले सकती। अगर ऐसा होता तो सरकारों के पास गिनाने को अक्सर कुछ न कुछ होता। कई नेता हैं जो करवा चौथ के चांद निकलने का श्रेय भी ले डालें अगर इससे उन्हें महिलाओं के वोट मिलने की उम्मीद हो। लेकिन ताजमहल बनवाने का श्रेय यह सरकार नहीं ले सकती। ताजमहल भारतीय संस्कृति का प्रतीक नहीं है और यह सरकार ऐसा कुछ करने का श्रेय लेना नहीं चाहती जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ हो।
पिछले दिनों भारत के राज्यों में जो सरकारें आई हैं वे भारतीय संस्कृति के खिलाफ चीजों को खत्म कर रही हैं। जैसे, राजस्थान विश्वविद्यालय ने यह तय किया कि हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर नहीं, महाराणा प्रताप जीते थे। जैसे, आजकल ओलंपिक में किसी खिलाड़ी के ड्रग टेस्ट में पकड़े जाने पर हारे हुए खिलाड़ी को मेडल दे दिया जाता है वैसे ही महाराणा प्रताप को चार सौ साल बाद बैक डेट में जीत का सर्टिफिकेट दे दिया गया। सुझाव यह भी दिया गया था कि क्यों न सीधे राणा-सांगा को ही बाबर के खिलाफ विजयी घोषित कर दिया जाए। इससे तो फसाद की जड़ ही खत्म हो जाए, क्योंकि तब भारत में मुगल साम्राज्य की ही छुट्टी हो जाएगी। इस सुझाव से उम्मीद थी कि बड़े लोग खुश होंगे, लेकिन वे नाराज हो गए, बोले, ‘क्या बकते हो, अगर बाबर ही हार गया तो बाबरी मस्जिद का क्या होगा। हमारा पूरा राममंदिर मामला ही ढह जाएगा।’ तब पता चला कि उद्देश्य फसाद कम करना नहीं, बढ़ाना है, चाहे यह देश ही राणा-सांगा क्यों न हो जाए।
राणा प्रताप हमारे देश में राजपूतों की भावनाओं से जुड़े हैं। जैसे, भगवान परशुराम ब्राह्मणों और भगवान कृष्ण यादवों से जुड़े हैं। ताजमहल किसी जाति की भावनाओं से नहीं जुड़ा है। सांप्रदायिक मामला बनने की गुंजाइश भी उसमें कम ही है क्योंकि वह धार्मिक इमारत नहीं है। इसलिए जैसे एक जादूगर ने एक बार ताजमहल को गायब करने का करतब किया था, वही करतब करने की कोशिश ये सरकार कर रही है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कहा था कि दुनिया दो तरह के लोगों में बंटी है, पहले वे जिन्होंने ताजमहल देखा है और दूसरे वे जिन्होंने नहीं देखा। उसी तरह हम कह सकते हैं कि दुनिया दो तरह के लोगों में बंटी है, एक जिनका ताजमहल के अस्तित्व में विश्वास है, दूसरे वे जिनका विश्वास है कि उन्होंने ताजमहल गायब कर दिया है। अगर राणा प्रताप हल्दी घाटी का युद्ध जीत सकते हैं, गोबर लीपने से परमाणु विकिरण रोका जा सकता है और मोर के आंसुओं से बच्चे पैदा हो सकते हैं तो ताजमहल गायब क्यों नहीं हो सकता!