चुनावी गर्मी के चलते हिमाचल प्रदेश की वादियों में इन दिनों की गुलाबी ठंडक भी गायब है। कहा जाता है सूर्य अस्त, हिमाचली मस्त। पर अब माहौल बदला दिख रहा है। देर शाम तक चुनावी रैलियां, ढोल-दमाऊं की गूंज और अल सुबह ही गरमागरम चाय की चुस्कियों के साथ चुनावी चर्चा आम है। देवभूमि की सत्ता के लिए एक बार फिर वही भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने हैं। दल वही हैं पर चेहरे कुछ बदले हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे लंबी पारी वाले 83 वर्षीय वीरभद्र सिंह इस बार भी कांग्रेस का सीएम चेहरा हैं जबकि भाजपा ने देर से ही सही पूर्व मुख्यमंत्री 73 वर्षीय प्रेम कुमार धूमल का नाम आगे कर दिया है। यानी अब लड़ाई दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच आ गई है। वैसे, हिमाचल में परिवर्तन परंपरा रही है। एक बार कांग्रेस तो अगली बार भाजपा।
लेकिन देर से धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार ऐलान करके भाजपा ने यह संकेत भी दिया कि वह कोई नई परंपरा स्थापित करने की नहीं सोच रही। कुछ लोग इसे भाजपा में विश्वास की कमी के तौर भी देख रहे हैं। हालांकि शिमला के लक्कड़ बाजार से लेकर संजौली तक लगे भाजपा के पोस्टरों में छह चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल से लेकर केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती छाए हुए हैं। सत्ता परिवर्तन में इस बार अपनी बारी से पूरी तरह आश्वस्त भाजपा को पुराने दिग्गज प्रेम कुमार धूमल को हाशिए पर रखना भारी पड़ सकता था। 68 में से बमुश्किल 12 सीटों पर टिकटें धूमल के समर्थकों को दी गई हैं। उन्हें सुजानपुर जैसी सीट से मैदान में उतारा है जहां से वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। टिकट बंटवारे में नड्डा की खूब चली है। इस लिहाज से नड्डा को गद्दी मिलती तो धूमल गुट की नाराजगी का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता था।
इधर कांग्रेस भले ही गुटों में बंटी हो पर वीरभद्र के मुकाबले का कोई कद्दावर नेता कांग्रेस में खड़ा नहीं हो पाया है। 68 में से सीधे 40 सीटों पर वीरभद्र ने अपने समर्थक उतारे हैं। आखिरी लिस्ट में बेटे विक्रमादित्य को भी टिकट दिलाने में कामयाब रहे वीरभद्र ने उन्हें अपनी परंपरागत सीट शिमला ग्रामीण से मैदान में उतार एक तरह से जीत सुरक्षित कर दी है।
2012 के चुनावों में जीत के बाद कांग्रेस आलाकमान की ओर से सीएम बदलने के संकेत आए मगर वीरभद्र के बगावती रुख को देखते हुए आलाकमान को झुकना पड़ा। इस बार के चुनावी प्रचार की शुरुआत के समय ही राहुल गांधी ने मंडी के पडडल ग्राउंड की रैली में वीरभद्र को सीएम कैंडिडेट घोषित किया। टिकट बंटवारे में आलाकमान को तीन बार वीरभद्र सिंह की जिद के आगे झुकना पड़ा। टिकट न मिलने से जो बागी हुए उनमें भी ज्यादातर समर्थक वीरभद्र के ही हैं इसलिए उन्हें मनाने की जिम्मेदारी भी आलाकमान ने वीरभद्र को सौंपी है।
सुरक्षित सीट अर्की से चुनाव लड़ रहे वीरभद्र की जिद के आगे पार्टी की ‘एक परिवार-एक टिकट’ की पॉलिसी भी नहीं टिक पाई। कांग्रेस के जिन पांच नेताओं की संतानें राजनैतिक पारी शुरू करने जा रही हैं उनमें वीरभ्रद सिंह के बेटे विक्रमादित्य, राजस्व मंत्री कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर, विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल, पूर्व मंत्री स्व. कर्ण सिंह के बेटे आदित्य और कांग्रेसी नेता रामनाथ शर्मा के बेटे विवेक शर्मा हैं। वीरभ्रद सिंह कहते हैं, "परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट देने की पार्टी की नीति को आलाकमान हालात के मुताबिक बदल सकता है। पार्टी ने जो भी उम्मीदवार मैदान में उतारने का फैसला लिया है वह एकदम सही है जिससे पार्टी फिर से सरकार बनाने की स्थिति में है।"
टिकट बंटवारे से चुनाव प्रचार तक हाशिए पर रहे भाजपा के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल इन चुनावों में अपनी छवि धूमिल होने से आहत थे। उनके न चाहते हुए भी उन्हें सुजानपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है। धूमल भले ही पार्टी के 40 स्टार प्रचारकों में से एक हैं पर उन्होंने प्रचार अपने गृह जिले हमीरपुर तक ही सीमित रखा था। विपक्ष के नेता के रूप में हमेशा फील्ड में सक्रिय रहे धूमल के समर्थक हर हलके में हैं जो उन्हें हमीरपुर की जगह सुजानपुर से टिकट मिलने से नाराजगी के कारण पार्टी प्रचार से पूरी तरह दूरी बनाए हुए थे। धूमल कहते हैं, "1998 के चुनाव में वोटिंग से दो दिन पहले ही सीएम कैंडिडेट घोषित हुआ था। उचित समय पर हाईकमान फैसला लेगा।" सो, फैसला आ गया तो क्या दुविधा दूर हो जाएगी?
हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा इन दिनों हिमाचल के चप्पे-चप्पे की नब्ज टटोलने में लगे हैं। नड्डा की असली परीक्षा उनके गृह जिले बिलासपुर में होगी जहां वे अपने तीन चहेतों को टिकट दिलवाने में सफल रहे।
राज्य में कुल 68 सीटों पर 348 उम्मीदवार मैदान में हैं। 13 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बागी समीकरण बिगाड़ सकते हैं। कांग्रेस के सात बागियों को मनाने की वीरभद्र सिंह और प्रभारी सुशील कुमार शिंदे की कवायद फेल रही। भाजपा के छह बागियों को हटाने के जेपी नड्डा, संगठन मंत्री राम लाल, शांता कुमार व धूमल के प्रयास भी सिरे नहीं चढ़े। बागियों में मौजूदा विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री हैं। 2012 के चुनाव में भी बागियों ने कई सीटों के नतीजे पलटने में अहम भूमिका निभाई थी। पालमपुर सीट से भाजपा के बागी प्रवीण शर्मा ने 2012 में 14,312 वोट लिए थे। फतेहपुर सीट से भाजपा के बागी ने भी 11,445 वोट लिए थे। दंग्र सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है जहां कौल सिंह ने 2000 के अंतर से चुनाव जीता था। शिमला शहरी सीट पर महज 628 वोटों से हारे हरीश जनारथा आजाद उम्मीवार के तौर पर मैदान में उतरे हैं। कांग्रेस के लिए राहत है कि मनाली से धर्मवीर धामी ने नामांकन वापस ले लिया है, उन्हें पिछली बार 14,326 वोट मिले थे।
ये बागी बिगाड़ सकते हैं समीकरण
भाजपाः प्रवीण शर्मा (पालमपुर), वीके चौहान (चंबा), हृदयराम (रेणुका), रविंद्र पाल (हरोली), ललित ठाकुर (भरमौर) और बलदेव ठाकुर (फतेहपुर)। कांग्रेसः हरदीप बावा (नालागढ़), हरीश जनारथा (शिमला शहरी), पूर्ण चंद (द्रंग), रेणुका डोगरा (कुल्लू), राजीव गौतम (ऊना सदर), राजेंद्र करपा (लाहौल स्पीति) और सिंधी राम (रामपुर)
आमने-सामने पांच राजघराने
इस बार चुनाव में पांच राजघरानों कुल्लू, बुशैहर, कोटी, क्योंथल और डलहौजी के वारिस मैदान में हैं। बुशैहर रियासत के वारिस सीएम वीरभद्र सिंह अर्की से चुनाव मैदान में हैं। उनके बेटे विक्रमादित्य शिमला ग्रामीण से चुनाव लड़ रहे हैं। वीरभद्र सिंह की रिश्तेदारी हिमाचल के कुल्लू, क्योंथल, कोटी और डलहौजी राजघरानों के अलावा पटियाला रियासत के राजा रहे पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह के साथ भी हैं। लेकिन इस बार वीरभद्र की ससुराल क्योंथल रियासत के सभी वारिस भाजपा का दामन थामे हुए हैं। वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह की भाभी विजय ज्योति सेन भाजपा में शामिल हो गई हैं। कुल्लू रियासत से महेश्वर सिंह भाजपा में हैं तो उनके भतीजे आदित्य विक्रम सिंह कांग्रेस में हैं। आदित्य अपने स्व. पिता कर्ण सिंह की सियासी जमीन पर पहली बार उतरे हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव आशा कुमारी डलहौजी से कई बार चुनाव जीत चुकी हैं।
विकास और रोजगार बड़े मुद्दे
विकास और रोजगार हिमाचल चुनाव के दो सबसे बड़े मुद्दे हैं। विकास को रफ्तार देने के लिए भाजपा केंद्र की तरह ही राज्य में जनता से सत्ता मांग रही है। कांग्रेस अपने शासनकाल में कुछेक हजार युवाओं को नौकरी देने का हवाला देकर वोट मांग रही है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में उद्योगों में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया है। जीएसटी को लेकर शहरों और औद्योगिक इलाकों में चर्चा है। पर इन इलाकों में बड़ी आबादी पड़ोसी राज्यों के लोगों की है जिनका नाम यहां मतदाता सूची में नहीं है। हिमाचल के मतदाता अपने प्रतिनिधि से नजदीकी को ज्यादा अहमियत देते हैं। लेकिन अब दो दिग्गजों के मैदान में होने से लड़ाई दिलचस्प हो गई है।