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कठिन है गुजरात गढ़ की चढ़ाई

जीएसटी, नोटबंदी और पाटीदार-ओबीसी-दलित हलचलों से भाजपा के लिए चुनौती बढ़ी और कांग्रेस में नए जोश का कारण बनी
हाथ-साथः जामनगर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समर्थकों के साथ

गुजरात बदल रहा है और बदलाव काफी तेज है लेकिन सरकार बदलेगी या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। यह कहना है अहमदाबाद के एक छोटे कारोबारी भूषण व्यास का। राज्य में राजनैतिक गतिविधियां उफान पर हैं। चुनाव आयोग ने देरी से ही सही लेकिन 14वीं गुजरात विधानसभा के चुनाव का कार्यक्रम घोषित कर दिया है। राज्य की 182 विधानसभा सीटों के लिए 9 दिसंबर और 14 दिसंबर को वोट पड़ेंगे जबकि नतीजे 18 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही आएंगे। गुजरात के लिए यह सामान्य चुनाव नहीं है। लगभग दो दशक से राज्य में काबिज भाजपा शायद पहली बार कुछ ज्यादा परेशानी में दिख रही है। 1995 से ही करीब 22 साल सत्ता से बाहर रही कांग्रेस आक्रामक है। उसे राज्य में अपनी राजनैतिक ताकत बढ़ने का भरोसा दिख रहा है। इससे पहले 2012 में भाजपा को 115, कांग्रेस को 61 और अन्य को छह सीटें मिली थीं। मगर इस बार कई वजहों से फिजा बदली हुई नजर आ रही है। हालांकि अभी वक्त है और चुनावी हवा पल-पल रंग बदलती देखी गई है।

फिर भी, राज्य में कई जानकारों का मानना है कि यह चुनाव भाजपा के लिए आसान तो नहीं ही है। राज्य की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार गुणवंत साधु कहते हैं कि पिछले तीन टर्म से जो था, अब वैसा नहीं है। भाजपा के लिए यह चुनाव टफ होता जा रहा है और कांग्रेस का पलड़ा भारी हुआ है। वे कहते हैं, "राज्य में ओबीसी का बड़ा हिस्सा कांग्रेस की तरफ खिसक गया है। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति को दबाने और उसके नेता हार्दिक पटेल को जेल व गुजरात से बाहर भेजने जैसे कदमों से पाटीदार समाज में भाजपा के खिलाफ माहौल बना है। एक समय तक भाजपा का मजबूत समर्थक रहा यह वर्ग अब खिलाफ हो गया है। खासतौर से पाटीदार युवकों में भारी नाराजगी है।" इस बार गुजरात चुनाव में जातिगत समीकरण हावी दिख रहे हैं। राज्य में 40 फीसदी ओबीसी, 15 फीसदी आदिवासी, 12 फीसदी पाटीदार, आठ फीसदी दलित, पांच फीसदी राजपूत, दो-दो फीसदी ब्राह्मण व बनिया और 16 फीसदी अन्य वर्ग के हैं। 

लेकिन भाजपा के नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति पर पूरा भरोसा है। भाजपा को अपने बूथ मैनेजमेंट और हर पंचायत-वार्ड में मौजूद अपने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं पर भी पूरा भरोसा है। हाल ही में अहमदाबाद में सात लाख कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में मोदी और शाह ने उत्साह भी भरा। गुजरात भाजपा के प्रवक्ता यमल व्यास कहते हैं, "कांग्रेस हर बार ऐसा माहौल बनाती है। 2007 और 2012 में पटेलों के टूटने की हवा बनाई गई थी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस बार भी उनका बहुसंख्य वोट हमें मिलेगा। ओबीसी वोट भी अल्पेश के कांग्रेस में जाने से हमारे पास ही रहेगा। दलित भी मोटे तौर पर हमारे साथ हैं।"

असल में पाटीदार आंदोलन के हार्दिक पटेल, ओबीसी एकता मंच के अल्पेश ठाकोर और दलित कार्यकर्ता जिग्नेश मेवाणी के भाजपा विरोधी रुख से ही गुजरात की फिजा बदली है। अल्पेश कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। हार्दिक की पांच में से चार मांगें कांग्रेस मान चुकी है। मुख्य मांग पटेलों के आरक्षण को लेकर दोनों के बीच बातचीत जारी है। केंद्र के आर्थिक फैसलों से तंगहाली का भी माहौल बदलने में बड़ा योगदान माना जा रहा है। छोटे-बड़े कारोबारियों में नोटबंदी और जीएसटी के चलते परेशानी से भारी नाराजगी है। यही नहीं, हाल में अहमदाबाद के एक अस्पताल में हुई बच्चों की मौत भी अब मुद्दा बन रही है। ये बातें राज्य सरकार के खिलाफ माहौल बना रही हैं। इसी तरह, युवाओं में रोजगार और नौकरी के मोर्चे पर निराशा भी नाराजगी पैदा कर रही है।

यही वे कारक हैं जिनकी वजह से पिछले कुछ समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात दौरों की संख्या बढ़ा दी है। उन्होंने गुजरात में बड़े पैमाने पर परियोजनाओं की घोषणाएं की है। इनमें अहमदाबाद से मुंबई के लिए एक लाख करोड़ रुपये के निवेश से बनने वाली बुलेट ट्रेन परियोजना को छोड़ भी दें तो करीब 16 हजार करोड़ रुपये के निवेश के प्रोजेक्ट राज्य में करीब महीने भर में घोषित किये गये। इन घोषणाओं के समय को देखें तो कई हिमाचल प्रदेश चुनाव की घोषणा और गुजरात चुनावों के लिए कार्यक्रम घोषित करने के बीच की अवधि में की गईं। इसके लिए चुनाव आयोग पर भी आरोप लगे।

भाजपा गुजरात अस्मिता को भी कांग्रेस के खिलाफ हथियार बनाने की कोशिश में है। इसका संकेत पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए दे भी दिया है जिसमें उन्होंने गुजरात के बड़े नेताओं के साथ कांग्रेस के भेदभावपूर्ण रवैए की कड़ी आलोचना की थी। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह राज्य विधानसभा का पहला चुनाव है। उनके बाद मुख्यमंत्री बनीं आनंदीबेन पटेल को पाटीदार आंदोलन, दलित उत्पीड़न की घटनाओं के चलते कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रूपाणी कोई करिश्माई नेता नहीं हैं।

इसके साथ ही राज्य में जातिगत समीकरण तेजी से बदले हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की रैलियों में भीड़ दिखने लगी है। कांग्रेस के कामयाब सोशल मीडिया प्रचार से 'विकास पागल हो गया है' नारा उछल पड़ा है, उसके चलते केवल विकास को केंद्र में रखकर चुनाव जीतना आसान नहीं है। हालांकि भाजपा ने गुजरात गौरव यात्रा निकाली लेकिन बात इससे कहीं आगे निकल गई है।

 

खेल बदलने वाले

हार्दिक पटेल

पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेता। 2015 के पटेल आरक्षण आंदोलन से उभरे। चुनाव लड़ने की उम्र नहीं है। कड़वा पटेल हैं, जिनकी पाटीदार समुदाय में करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी है। समुदाय के युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय। भाजपा सरकार के खिलाफ संकल्प यात्रा निकाल चुके हैं।

अल्पेश ठाकोर

पटेल आरक्षण आंदोलन के खिलाफ खड़े होकर ओबीसी नेता बने। ओएसएस (ओबीसी, एससी, एसटी) एकता मंच बनाया। गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना बनाकर शराब की लत के खिलाफ काफी समय से अभियान चला रहे हैं। इस संगठन के करीब 6.5 लाख सदस्य हैं। हाल में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिश में हैं।

जिग्नेश मेवाणी

ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन से उभरे। राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के मुखिया हैं। पेशे से वकील हैं। आजादी कूच आंदोलन ‌चलाया, जिसे काफी समर्थन मिला। दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिश में।

 

कहां किसका जोर

-सौराष्ट्र-कच्छः कुल 54 सीटें। 22 पर पटेलों, तो 27 सीटों पर ओबीसी समाज का दबदबा।

-मध्य गुजरातः 68 सीटों वाले इस इलाके में 18 सीटें आदिवासी बहुल।  16 पर ठाकोर-कोली, 15 पर पाटीदार, छह पर मुसलमानों का वर्चस्व।

-उत्तर गुजरातः 32 सीटों में से 12 पर पाटीदार, 10 पर ठाकोर, चार पर आदिवासी वर्चस्व।

-दक्षिण गुजरातः 28 सीटें हैं। आदिवासी नौ सीटों पर निर्णायक। छह पर पाटीदार, पांच पर कोली और पटेलों की भूमिका महत्वपूर्ण।

 

12 से 25 अक्टूबर के बीच हुईं मोदी की घोषणाएं

-ड्रिप सिंचाई करने वाले किसानों को जीएसटी से राहत

-मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के वेतन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी

-शिक्षक और नगरपालिका कर्मचारियों के वेतन में वेतन पैनल की अनुशंसा के अनुसार पुनरीक्षण

-मुफ्त इलाज प्राप्त करने वाले लोगों के लिए आय की सीमा बढ़ाई गई

-किसानों के लिए तीन लाख रुपये तक ब्याज मुक्त कर्ज

-पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले आंदोलनकारियों और साणंद के किसानों पर लगाए गए मुकदमे वापस

-सफाईकर्मियों की मौत या स्थाई रूप से अपंग होने पर आश्रित को नौकरी

-सहायक इलेक्ट्रीशियनों के वेतन में वृद्धि

-फिक्स्ड पे स्टाफ को ओवरटाइम भत्ता और चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों को दीवाली बोनस

-निजी तिपहिया और चौपहिया वाहनों को टोल टैक्स से छूट

-दस साल नौकरी करने वाले शिक्षकों को नियमित किया गया

-अहमदाबाद मेट्रो का पहला चरण 2020 तक पूरा नहीं होगा पर दूसरे फेज के लिए फंड स्वीकृत

-इनके अलावा प्रधानमंत्री ने इस दौरान राज्य के तीन दौरे किए और 16,000 करोड़ रुपये की योजनाओं का उद्घाटन किया और आधारशिला रखी। इनमें घोघा-दाहेज के बीच चलने वाली फेरी सेवा भी है

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