‘मारना है तो मुझे मारो लेकिन दलित भाइयों पर अत्याचार बंद करो,’ जब देश के प्रधानमंत्री को इस तरह की बात कहनी पड़े तो सवाल उठना लाजिमी है। प्रधानमंत्री के वक्तव्य के बाद से सियासत और गरम हो गई। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी प्रधानमंत्री का बचाव करना पड़ा। सवाल यह है कि आखिर ऐसे क्या कारण रहे कि प्रधानमंत्री को इस तरह का बयान देना पड़ा। जिस सूबे का प्रधानमंत्री ने करीब 12 साल तक नेतृत्व किया हो उस सूबे में दलितों के उत्पीड़न की घटी घटनाओं ने रोंगटे खड़े कर दिए। दलित खुलकर सड़कों पर आ गए। विरोध का ऐसा तरीका अपनाया कि प्रशासन से लेकर सत्ता के लोग हतप्रभ हो गए। दरअसल, यह सब अचानक नहीं हुआ। गोरक्षा के नाम पर जिस तरह दलितों पर अचानक अत्याचार की घटनाएं बढ़ीं उससे यह समुदाय आहत हो गया। उना में दलितों की पिटाई की गई इसी तरह वेरावल में भी दलितों को तब पीटा जब वे जानवर की खाल उतार रहे थे। इस दुखद घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और जिसके बाद कुछ बदमाशों को गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन इस घटना के बाद दलितों ने प्रदर्शन किया। पिटाई का प्रतिशोध सुरेंद्र नगर जिले में देखने को मिला जहां दलित समाज के लोग मरी हुई गायों को ट्रकों में भरकर कलेक्ट्रेट दफ्तर गए और वहां पटक कर बोले कि संभालो अपनी मांओं को। दलित युवकों की पिटाई के विरोध का यह आंदोलन केवल गुजरात ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में शुरू होने लगा। दलित समाज के लोग मरी हुई गाय को उठाने से कतराने लगे हैं। लोग इसे अब दलित समाज के विरोध प्रदर्शन का ‘गुजरात मॉडल’ नाम दे रहे हैं। इस मुद्दे को केवल दलित संगठन ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों ने भी हवा देनी शुरू कर दी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बसपा प्रमुख मायावती सहित कई नेता दलितों के समर्थन में खड़े दिखाई दिए। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बसपा ने तो दलितों के समर्थन में प्रदर्शन भी किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने जांच के भी आदेश दिए और चार पुलिस कर्मचारियों को निलंबित भी किया गया। लेकिन गौ रक्षा के नाम पर जिस तरह की घटनाएं घटित हो रही हैं वे जरूर चिंताजनक हैं।
साल 2014 के अगस्त माह में दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के छावला गांव में पुलिस जांच चौकी पर एक मिनी ट्रक को रोका गया। एक ओर जब ट्रक का ड्राइवर पुलिस को जाने देने के लिए मना रहा था, तभी कुछ ग्रामीण ट्रक के चारों ओर जमा हो गए और बेरहमी से ड्राइवर को पीट-पीट कर मार डाला। दूसरी घटना हिमाचल प्रदेश की 16 अक्टूबर, 2015 की है जब एक ट्रक ड्राइवर नोमान की भीड़ ने गौ तस्करी के आरोप में पुलिस की मौजूदगी में पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। 11 दिसंबर, 2015 को गौ रक्षा टीम ने हरियाणा के करनाल में 25 वर्षीय मजदूर की हत्या कर दी। इसी तरह झारखंड में 18 मार्च, 2016 को लातेहार के बालुमथ जंगलों में दो लोगों का शव पेड़ से लटका पाया गया। एक 35 वर्षीय तो दूसरा 12 वर्षीय बालूगोन और नवादा गांवों का निवासी था। ये अपनी 8 भैंसों के साथ पड़ोस के पशु मेले में जा रहे थे जिन्हें रास्ते में एक भीड़ द्वारा रोका गया और पीट कर पेड़ पर फांसी के रूप में लटका दिया गया।
यह तमाम घटनाएं ऐसी हैं जो यह बता रही है कि अब कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी आम लोगों ने अपने हाथ में ले ली है और सरकार इस पर कुछ नहीं कर रही है। ज्यादातर घटनाएं उन राज्यों में घटित हुई हैं और जहां भाजपा की सरकार है। कुछ उन राज्यों में भी इस तरह की घटनाएं बढ़ रही है जहां भाजपा विधानसभा चुनाव में लाभ लेना चाहती है। गोरक्षा के नाम पर जिस तरह अराजक तत्वों ने हाथ पसारना शुरू कर दिया है, वह चिंता का विषय है। गोरक्षा दल क्यों बना है किसके कहने पर बना है और इसका क्या काम है इस पर कोई सवाल नहीं उठता। इसलिए आज राजनीतिक दल से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता गोरक्षा दल के बारे में सवाल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते हैं कि गाय पर राजनीति करने के बजाय इसकी सेवा करनी चाहिए। कुछ इसी तरह का सवाल सामाजिक कार्यकर्ता भी उठाते हैं कि आज गोरक्षा दल अचानक सक्रिय हो गए। इससे पहले गाय की रक्षा करने वाले कहां थे? जबसे केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है तबसे गोरक्षा दलों ने पांव पसारना शुरू कर दिया है और इसके निशाने पर आए दलित और मुसलमान। नोएडा के दादरी में 28 सितंबर, 2015 को गोमांस रखने के शक में अखलाक नामक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने इस घटना को महज एक दुर्घटना करार दिया। इसलिए सामाजिक कार्यकर्ता सवाल उठाते हैं कि क्या आज यह माना जाए कि दलितों को पीटने की जो घटनाएं हो रही हैं वह महज दुर्घटनाएं हैं।
गुजरात में दलित उत्पीड़न की जो घटनाएं सामने आई हैं उनमें भी दिलचस्प तथ्य यह है कि दस वर्षों में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सजा की दर राष्ट्रीय औसत से छह गुना कम है। हाल के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में गुजरात में दलितों के खिलाफ हुए अपराधों में सिर्फ 3.4 प्रतिशत मामले में ही सजा मिली थी, जबकि इस तरह के मामलों में सजा की राष्ट्रीय दर 28.8 प्रतिशत थी।
आज जब प्रधानमंत्री गो-रक्षक और दलित उत्पीड़न को लेकर बयान दे रहे हैं तो सवाल उठना स्वाभाविक है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडगे कहते हैं कि प्रधानमंत्री लाचार और कमजोर हो चुके हैं इसलिए इस तरह का बयान दे रहे हैं कि दलितों से पहले उन्हें गोली मार दी जाए। बसपा प्रमुख मायावती भी कहती हैं कि अगर देश का प्रधानमंत्री भावुकता की बात करे तो गलत है। इसके लिए तो सख्त से सख्त कानून बनाया जाना चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री की बातों के विरोध के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य कहते हैं कि कुछ असामाजिक तत्व गोरक्षा के नाम पर कानून अपने हाथ में ले रहे हैं। संघ का बचाव और विपक्ष के आरोपों के बीच गाय को लेकर जो दलित राजनीति हो रही है उसका नफा-नुकसान क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।