काम करने की दुनिया बिलकुल बदल चुकी है लेकिन स्कूलों की दुनिया वैसी ही रह गई है। युवाओं के लिए अब नौकरियां ढूंढ़ पाना पहले के मुकाबले ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि स्कूलों में उन्हें जो कौशल सिखाया जाता है, उसका बाहरी दुनिया में कोई महत्व नहीं है। आज के कामकाजी दौर में देशों की राजधानियों के नाम याद करने और पहाड़े रटने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि आजकल ये सभी जानकारियां गूगल पर मिल सकती हैं। बच्चों को अगर जीवन में सफल बनाना है तो उन्हें जो कौशल सीखना चाहिए, वह है समस्याएं सुलझाने का कौशल; यह विश्वास कि वे समस्याओं के समाधान ढूंढ़ सकते हैं और अच्छी तरह कम्युनिकेट करने का कौशल भी उनके लिए बेहद जरूरी है। आमतौर पर इन्हें ‘21वीं सदी के कौशल’ कहा जाता है। अब ये कौशल कोई लग्जरी नहीं, बल्कि सभी के लिए बेहद जरूरी हो गए हैं।
इस बात के पर्याप्त सबूत मिल चुके हैं कि प्राथमिक स्तर की स्कूली शिक्षा में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो इससे बच्चों को जीवनभर की हानि होगी। प्राथमिक शिक्षा बेकार में रट्टे मारने, ब्लैकबोर्ड से नकल करने और टीचर के डर से मुक्त होनी चाहिए। हर बच्चे को बोलने, दिलचस्प एक्टिविटी और एक्सपेरीमेंट करने का मौका मिलना चाहिए। दुर्भाग्यवश, स्कूलों में ये कौशल बच्चों को नहीं सिखाए जाते। कॉरपोरेट जगत में करीब एक दशक तक काम करने के बाद मैंने यूरोप में अपनी नौकरी छोड़कर एजुकेशन में डिग्री हासिल करने के लिए हार्वर्ड में दाखिला लिया और भारतीय शिक्षा में सुधार लाने के उद्देश्य से भारत लौटा। कई तरह की कोशिशें करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि जब तक आप टीचर को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए इनपुट नहीं देंगे, आप क्लासरूम शिक्षा में कोई बदलाव नहीं ला सकते हैं। टीचर होना कितना मुश्किल काम है, इसका अंदाजा लगाना भी बहुत मुश्किल है। इस जिम्मेदारी को सही ढंग से समझने के लिए मैंने कक्षा चार के बच्चों को पार्टटाइम पढ़ाना शुरू किया। इसके लिए मुझे 40 से 50 बच्चों को 45 डिग्री के तापमान वाले कमरे में पढ़ाना होता था।
मुझे अलग-अलग वैयक्तिक, सामाजिक, बौद्धिक और शारीरिक क्षमता रखने वाले बच्चों को 40-50 मिनट में एक कॉन्सेप्ट समझाना होता था। इससे मुझे एहसास हुआ कि प्रत्येक पाठ को बड़ी सावधानी से योजना बनाकर पढ़ाना होगा और हर टीचर को इसी के अनुसार ट्रेनिंग देनी पड़ेगी। सारी किताबें और अन्य संसाधन भी ऐसे होने चाहिए जो अलग-अलग जरूरतों को पूरा कर सकें। सभी बच्चे सीख रहे हैं यह आश्वस्त करने के लिए सभी का नियमित तौर पर आकलन भी करना होगा। इस तरह आठ साल पहले एक्सीड मेथड और फाइव स्टेप्स ऑफ लर्निंग की शुरुआत हुई थी, ताकि 21वीं सदी की प्राथमिक शिक्षा को सभी बच्चों के लिए सुलभ बनाया जा सके।
एक्सीड के फाइव स्टेप मेथड का उद्देश्य पढ़ने से समझने और सीखने की ओर बढ़ना है। फाइव स्टेप मॉडल का पहला स्टेप उद्देश्य है। इसमें हम पाठ के जरिए सीखते हैं। दूसरा स्टेप है एक्टिविटी, जहां बच्चे एक असल काम करते हैं और खोज के जरिए सीखते हैं। तीसरा स्टेप है एनालिसिस यानी विश्लेषण, जहां बच्चे खुद से पूछते हैं कि ऐसा क्यों हुआ या चीजें वैसी क्यों हैं? वे ‘स्टेप 2’ अनुभव के बारे में सोचेंगे और विश्लेषण करेंगे कि उन्होंने उससे क्या सीखा। इसके बाद चौथा स्टेप है लेखन, जिसमें बच्चे लिखेंगे कि उन्होंने पहले तीन स्टेप्स में क्या सीखा। पांचवां स्टेप है असेसमेंट यानी मूल्यांकन जिसमें टीचर यह देखेगा कि क्या हर बच्चे ने वह उद्देश्य हासिल कर लिया है, जो ‘स्टेप 1’ में रखा गया था। अगर बच्चे नहीं सीख पाए हैं तो अगली बार फिर कोशिश करेंगे। पिछले आठ साल के दौरान, देश के 15 राज्यों के 200 शहरों में 3000 स्कूलों से 10 लाख बच्चे हमसे जुड़े हैं।
हमें इस दृष्टिकोण के चलते जो पॉजिटिव नतीजे मिले हैं, उन्हें देखकर हम बहुत उत्साहित हैं। इन कार्यक्रमों से लाभान्वित होने वाले बच्चों में छह से नौ महीने की अवधि में ही बदलाव साफ दिखाई देने लगे हैं। इसकी पहली वजह यह है कि हमारे क्लासरूम में बच्चों को बोलने के लिए काफी समय मिलता है जिससे उनकी इंग्लिश में काफी सुधार देखने को मिला। क्लास बेहद इंटरेक्टिव होती है और टीचर नहीं के बराबर ही बोलता है। दूसरा बड़ा बदलाव जो देखने को मिला, वह बच्चों में उत्सुकता और जिज्ञासा का बढ़ना है। मसलन, अब जब उनके घर कोई मेहमान आता है तो वे बातचीत करने में घबराते नहीं हैं। बच्चे बिना किसी की मदद के अपना होमवर्क करने लगे। वे अपने शब्दों का इस्तेमाल कर लिखने और बोलने लगे। अब वे सिर्फ बोर्ड से नकल कर नहीं लिखते थे। इन सभी से अधिक प्रोत्साहित करने वाली बात यह है कि विभिन्न क्षेत्र, वर्ग और आर्थिक पृष्ठभूमियों से इतर सभी के लिए परिणाम एक समान रहे।
हम भारत में अब उस हालत में हैं जहां शिक्षा तक पहुंच बड़ी समस्या नहीं रह गई है। अब चुनौती है शिक्षा की क्वालिटी को सुधारना और यह तय करना कि हर बच्चे को समान अवसर मिले। सही मायने में बदलाव लाने के इरादे से हमारा उद्देश्य आने वाले वर्षों में देश के सुदूरतम क्षेत्रों तक पहुंचना है और इस तरह हम छोटे-बड़े शहरों में स्कूलों के साथ अपने मौजूदा जुड़ाव से आगे जाएंगे। सर्व शिक्षा अभियान योजना तथा सरकार के साथ इस प्रकार के साझेदारी वाले मॉडल के चलते हमें बेहतर परिणाम मिलेंगे।
एक्सीड की मूल भावना ही बच्चों में उत्सुकता, आत्मविश्वास को बढ़ावा देना, विश्लेषणात्मक कौशल को प्रोत्साहित करना और उन्हें 21वीं सदी के कौशल से सशक्त बनाना है।
(लेखक एक्सीड एजुकेशन के संस्थापक और चेयरमैन हैं)