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बिहार में शराबबंदी पर फिर गरमाई सियासत

कानून का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा के प्रावधान से विपक्ष और समाज के एक तबके की तनी भृकुटि
शराबबंदी से संबंधित नए आदेश के विरोध में सड़क पर उतरा विपक्ष

बिहार में शराबबंदी को लेकर पिछले कई महीनों से राजनीतिक और सामाजिक उठापटक जारी है। कोई इसे सामाजिक उत्थान के हक में मान रहा है तो कोई खाने-पीने के मौलिक अधिकार पर पहरेदारी। बहरहाल, बिहार विधानसभा में शराबबंदी विधेयक पारित होने से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित वे सभी लोग प्रसन्न हैं जो सैद्धांतिक रूप से शराबबंदी के पक्षधर थे। नीतीश कुमार ने विपक्ष से कहीं ज्यादा महागठबंधन के प्रतिरोध के बावजूद इस विधेयक को पारित करवा दिया। हालांकि इसके लिए दो बार वोटिंग हुई। पहली बार विपक्ष को 46 और सत्तापक्ष को 150 मत मिले, दूसरी बार विपक्ष को 45 और सता पक्ष को 153 मत। इस विधेयक में कड़े प्रावधान लागू किए गए हैं जिसका कुछ सामाजिक वर्गों और विपक्ष द्वारा विरोध किया जा रहा है। यह सही है कि शराब किसी भी रूप में समाज के हित में नहीं हो सकती लेकिन बिहार में जिस तालिबानी कानून के तहत लोगों को शराब न पीने का फरमान जारी किया गया है, वह विचारणीय अवश्य है। इसके तहत सजा का जो फरमान जारी किया गया है, वह सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने को कमजोर अवश्य करेगा। इसमें आजीवन कारावास का प्रावधान है जो कहीं से तर्क संगत नहीं है। ताउम्र की सजा हत्या या जघन्य जुर्म के लिए दी जाती है, वह भी जज के फैसले के अनुसार होती है। इसमें दो राय नहीं कि शराबबंदी एक सामाजिक सरोकार का मुद्दा है और इस जनसरोकार को सामाजिक परिप्रेक्ष्य से जोड़कर ही नीतिगत निर्णय लेना चाहिए, एक पक्षीय नहीं। इस बाबत विपक्ष ने कहा कि हम इस विधेयक के कुछ प्रावधानों के खिलाफ हैं, जिसका विरोध सड़क से सदन तक जारी रहेगा। प्रतिपक्ष के नेता नंद किशोर यादव कहते हैं, ‘यह जनता पर थोपा गया कानून लगता है जिस वजह से एक सदस्य के शराब पीने पर परिवार के सभी सदस्य सजा के भागीदार हो जाएंगे। यह कहां तक तर्कसंगत है?’

वयस्कों की अपनी जिंदगी होती है। एक सीमा तक ही बुजुर्ग अपने बच्चों पर टोका-टोकी कर सकते हैं। इस कानून के तहत तो उन बुजुर्गों पर इस अनचाही सजा की तलवार हमेशा लटकती रहेगी। साथ ही, अगर किसी को दुश्मनी साधनी हो तो असलहे की जगह एक बोतल शराब फेंक कर ही वह अपनी मंशा पूरी कर सकता है। फिर पीड़ित अपने को बेकसूर साबित करने के लिए थाने से लेकर कचहरी के चक्कर लगाते रहेंगे। शक के आधार पर कोई निर्दोष भी पुलिसिया जुल्म का शिकार हो सकता है। कुछ दिन पहले ही ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं। पहले तो सरकार ने गली-गली राजस्व के लिए शराब की दुकानें खुलवाईं फिर एक तालिबानी कानून के तहत इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फरमान जारी कर दिया। 10 वर्षों तक यह लत लगाई गई और अब एक झटके में खत्म करने की कवायद हो गई। इस विधेयक में कई ऐसे प्रावधान हैं जो बेहद कड़े हैं और आम लोगों को परेशान करने वाले हैं। वैसे गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाने की सरकार मंशा कर रही है, जहां अब तक शराब का निर्माण बंद नहीं हुआ है। फिलहाल शराबबंदी के नाम पर अब तक 9 हजार 28 लोगों को जेल भेजा जा चुका है। 63 हजार छापेमारियां और तीन महीने में 76 हजार लीटर देशी व 78 हजार लीटर विदेशी शराब भी बरामद हुई है।

आंकड़े यह भी बताते हैं कि जब से शराबबंदी हुई है राज्य में भांग व गांजे की खपत 10 गुनी बढ़ गई है जिन गरीबों की दुहाई देकर मुख्यमंत्री शराबबंदी को समाज से की गई अपनी सबसे बड़ी प्रतिबद्धता बता कर इसे सख्ती से क्रियान्वित कराने में जुटे हैं आज उन्हीं गरीबों का एक बड़ा तबका भंगेड़ी व गंजेड़ी बनता जा रहा है। पूर्व कुलपति व अंतरराष्ट्रीय समाज दर्शन परिषद के मानद् अध्यक्ष प्रो. रामजी सिंह कहते हैं, ‘हमारे यहां परिवार की परंपरा रही है। और हम परिवारविहीन समाज की कल्पना नहीं कर सकते। पारिवारिक सामंजस्य बनाए रखने के लिए दबाव और बंधन भी जरूरी है। परिवार की परिभाषा ही है जो एक-दूसरे के लिए त्याग व समर्पण करे। लेकिन आज के भौतिकवादी और बाजारवादी माहौल में सख्ती या थोपी गई कोई भी विचारधारा सफल होगी इसमें संदेह है। कोई भी दबाव एक हद तक असरकारी हो सकता है, इस पर विचार करने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है लोगों को शिक्षित करना।’

गांधीवादी विचारक रजी अहमद साहब कहते हैं, ‘शराबबंदी शब्द ही सुकूनदायक है। इसके लिए समाज को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। सिर्फ सख्त कानून बनाने से ही इस पर लगाम नहीं लगाई जा सकती। देश में हत्या, रेप आदि जुर्म के खिलाफ कानून तो काफी सख्त हैं इसके बावजूद जुर्म कम नहीं हो रहे। बिहार में शराबबंदी के लिए जो कानून लाए गए हैं। उसमें संशोधन की जरूरत है। सामाजिक स्तर पर इसके खात्मे के लिए प्रयास करना होगा।’ जाहिर है सजा की सख्ती से अपराध खत्म नहीं होते ऐसा होता तो हत्या, लूट, बलात्कार जैसे जघन्य अपराध नहीं होते। राज्य पुलिस पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। सबसे पहले उन्हें अपने आचरण से नजीर स्थापित करनी होगी। पुलिस को शराब के अवैध कारोबार से जुड़े अपराधियों और शराब का सेवन करने वाले व्यक्तियों में फर्क समझना होगा। अपराधियों के साथ पुलिस पूरे रौब से पेश आए लेकिन आम आदमी के साथ उनकी भूमिका अभिभावक जैसी होनी चाहिए।

 

बिहार मद्य निषेध विधेयक 2016

के खास प्रावधान:-

शराब पीने या नशे में पाए जाने पर 7 वर्ष की सजा या 10 लाख का जुर्माना।

नशे में अपराध, उपद्रव या हिंसा पर कम से कम 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास व 1 से 10 लाख तक जुर्माना।

किसी परिसर व मकान में मादक द्रव्य मिलने पर 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी सदस्य जिम्मेवार, जब तक वे अपने को निर्दोष साबित न कर दें।

अवैध ढंग से शराब के भंडारण पर 10 वर्ष की सजा व 10 लाख जुर्माना।

अवैध शराब व्यापार में महिला व नाबालिग को लगाने पर दस वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक तथा 1 से 10 लाख जुर्माना।

व्यक्ति, वाहन या अन्य साधनों से इस कानून के उल्लंघन पर दिन रात कभी भी गिरफ्तारी

डीएम को गिरफ्तारी का सूचना देना जरूरी इस अधिनियम के अधीन सभी अपराध गैर जमानती होंगे।    

गांव-शहर या विशेष इलाके में समूह या समुदाय द्वारा बार-बार शराबबंदी कानून के उल्लंघन पर सामूहिक जुर्माना।

कुख्यात या आदतन अपराधी छह से लेकर दो साल के लिए तड़ीपार। कोई पुलिस व उत्पाद अधिकारी किसी को परेशान करने के लिए अपनी कानूनी शक्तियों से बाहर जाकर तलाशी या गिरफ्तारी करता है तो तीन साल तक की सजा व 1 लाख तक जुर्माना।

कर्तव्य से मुकरने वाले अधिकारी को तीन महीने तक की सजा व 10 हजार तक जुर्माना।

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