Advertisement

विकास पीछे, समाज आगे

गुजरात के रण में इस बार मुद्दे, मसले, जाति गणित सब बदले-बदले से, भाजपा के स्थानीय नेतृत्व को अब भी मोदी मैजिक का इंतजार
घर-घर संपर्क के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह

चुनावी बिसात के मामले में गुजरात करीब 22 साल पीछे चला गया है। राज्य के विधानसभा चुनावों में जो मुद्दे उभर कर आ रहे हैं, वे 1995 की गुजरात की राजनीति के करीब हैं। यही वजह है कि इस चुनाव में विकास के मुद्दे पर समाज यानी जाति-बिरादरी के मसले हावी हो रहे हैं। समाज की मांगों को तरजीह दिए बिना चुनाव की वैतरणी पार कर पाना मुश्किल है। यही वह सबसे अहम बात है जो भारतीय जनता पार्टी को परेशान कर रही है और इसी का हल निकालने में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत बड़े नेताओं को काफी समय लगाना पड़ रहा है। कुछ जानकारों का तो यह तक कहना है कि करीब 20 साल बाद पहली बार भाजपा और कांग्रेस पुराने दौर के प्रतिद्वंद्वियों के रूप में आमने-सामने दिख रहे हैं।

दिव्यभास्कर डॉट कॉम के संपादक और राज्य की राजनीति पर लंबे समय से पैनी नजर रखने वाले मनीष मेहता कहते हैं, "आरक्षण के मुद्दे पर पाटीदार समाज भाजपा से नाराज है। अल्पेश ठाकोर ने ओबीसी को भाजपा के खिलाफ खड़ा करने का माहौल बनाया है। वे कांग्रेस में चले गए हैं। एक ताजा मामले से राजपूत भी भाजपा से नाराज होते दिख रहे हैं। इनकी नाराजगी का कारण पद्मावती फिल्म है। यह दिक्कत कावड़िया राजपूतों ने पैदा की है। उनका गुस्सा भाजपा के राज्य अध्यक्ष जीतू वाघाणी के खिलाफ ज्यादा है। इनकी करणी सेना फिल्म का विरोध कर रही है। ऐसे में पार्टी को उनको मनाना पड़ेगा, नहीं तो चुनाव में नुकसान हो सकता है।" मनीष ने 1995 से लेकर अभी तक के सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों को कवर किया है। पिछले कई चुनाव काम और विकास के नाम पर भाजपा ने जीते हैं लेकिन इस बार परिस्थिति अलग है। मनीष कहते हैं कि इस बार मोदी और विकास के नाम पर समाज नहीं आएगा, समाज को लाने के लिए उसके मुद्दों का समाधान देना पड़ेगा।

कुछ इसी तरह की बात स्थानीय लोग भी कर रहे हैं। दिलीप रावल से जब यह पूछा गया कि इस बार गुजरात के चुनाव में क्या होने जा रहा है, तो जवाब था कि इस बार कुछ भी हो सकता है। कुछ भी का क्या मतलब है? वे कहते हैं कि भाजपा के लिए राह आसान नहीं है। करीब 27-28 साल के दिलीप बानसकांठा जिले के रहने वाले हैं और अहमदाबाद में नौकरी करते हैं। उनका कहना है कि युवाओं में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। लेकिन ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़े करीब 50 साल के जगदीश भाई से जब यही सवाल किया जाता है तो वे कहते हैं कि यहां तो भाजपा ही आएगी क्योंकि नरेंद्र मोदी का असर अब भी कायम है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि माल और सेवा कर (जीएसटी) के चलते काम में दिक्कत आई थी लेकिन ईमानदारी से टैक्स देने वालों के लिए यह कोई बड़ी दिक्कत नहीं है और धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। लेकिन जीएसटी की दरों में पहले और हाल के बदलावों से भी लगता है कि सरकार इस पर नाराजगी को लेकर चिंतित है।

एक रोड शो में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी

मुद्दे और मसले

असल में चुनाव में कई नए मुद्दे उभर कर सामने आ रहे हैं। मसलन, दिव्यभास्कर डॉटकॉम ने 85 हजार लोगों के सर्वे के आधार पर एक पब्लिक मेनिफेस्टो बनाया है। इसमें सबसे ज्यादा लोगों ने फिक्स पे की व्यवस्था को समाप्त करने के पक्ष में राय दी है। असल में राज्य सरकार ने प्राइमरी स्कूल के लिए अध्यापक को 2500 रुपये और सेकेंडरी स्कूल के लिए 4500 रुपये प्रति माह की फिक्स पे का नियम बनाया था। पांच साल तक शिक्षकों को इस वेतन पर ही नौकरी करने के बाद रेगुलर करने का प्रावधान था। इसके खिलाफ शिक्षक कोर्ट में गए तो यह वेतन 12500 रुपये प्रति माह किया गया जबकि रेगुलर शिक्षक का वेतन 18000 रुपये से अधिक है। इस तरह की व्यवस्था दूसरे विभागों में भी है। लोगों का कहना है कि यह व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए। असल में यह मुद्दा बेरोजगारी की स्थिति को ज्यादा साफ करता है।

इसी तरह गांवों में चिकित्सक नहीं रुकते हैं, जिसके चलते स्वास्थ्य सेवाओं की हालत काफी खराब है। 2009 से 2014 के बीच राज्य में करीब 4500 डाक्टरों ने एमबीबीएस किया। राज्य सरकार द्वारा तय शर्तों के मुताबिक उनको गांव में नौकरी करनी होगी या फिर बांड भरना होगा। दिलचस्प बात यह है कि इनमें केवल 500 डॉक्टर ही गांवों में गए। बाकी ने बांड भर दिया और उससे राज्य सरकार को करीब 16 करोड़ रुपये मिले। यह उदाहरण ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए काफी है। रियल एस्टेट में अफोर्डेबल घरों की कीमतें अभी भी 2012 के स्तर पर बनी हुई हैं। यह भी एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि घर आम आदमी की पहुंच से बाहर है। निजी स्कूलों में फीस का नियमन करने का कानून बनाने का फैसला अच्छा माना गया है लेकिन इसका क्रियान्वयन इतना खराब है उसके चलते लोगों में नाराजगी ज्यादा है। यह कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो आम आदमी की ओर से सामने आ रहे हैं।

 

जाति समीकरणों से बदला माहौल

इनके अलावा जातियों की राजनीति ने इस बार का गुजरात चुनाव को 2012 के चुनाव से बिलकुल अलग कर दिया है। पिछले चुनाव में भाजपा के सामने कोई मुकाबला दिख ही नहीं रहा था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। पिछले कई विधानसभा चुनावों के बाद लोग कड़े मुकाबले की बात कर रहे हैं। दूसरे, 2012 में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा था। लेकिन उनके दिल्ली पहुंचने के बाद पहली बार गुजरात विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और स्थानीय नेतृत्व को अभी भी नरेंद्र मोदी के करिश्मे का ही इंतजार है। दूसरी ओर कांग्रेस ने काफी मशक्कत की है और यही वजह है कि वह एक गंभीर प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरी है जबकि पिछले दिनों ही पार्टी ने कई विधायकों के पार्टी छोड़ने से लेकर शंकर सिंह वाघेला जैसे बड़े नेता के पार्टी छोड़ने का झटका भी झेला है।

असल में इस बार का गुजरात चुनाव विकास के अलावा कई स्थानीय मुद्दों और जाति समीकरणों पर केंद्रित होता दिख रहा है। भले ही भाजपा दावा करे कि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी का भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने का कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन असलियत इससे काफी अलग है। यही वजह है कि कोली पटेल समाज के प्रभावी नेता हीरा सोलंकी के कांग्रेस में जाने के बाद जोड़तोड़ कर उन्हें वापस लाने की कवायद की गई। भावनगर, राजकोट ग्रामीण और अमरेली की ग्रामीण विधानसभा सीटों पर कोली पटेल समाज का काफी असर है। उसी तरह राजपूतों की नाराजगी को दूर करने के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को खुद पहल करनी पड़ी।

नोटबंदी-जीएसटी असर

इसके अलावा जिस तरह से कांग्रेस ने नोटबंदी और जीएसटी को लोगों के खिलाफ और कारोबार पर प्रतिकूल असर डालने वाले फैसले बताते हुए दक्षिणी गुजरात में राहुल गांधी को दौरे कराए, वह कारोबारियों के बीच भाजपा की स्थिति को नुकसान पहुंचाने वाले साबित हो सकते हैं। गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि हम तो लोगों के मुद्दे उठा रहे हैं, समाज भाजपा के खिलाफ खड़ा हुआ है और हम उसके साथ खड़े हैं। यही वजह है कि राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ काफी अच्छी रही है। वैसे भी राहुल गांधी ने ‘विकास पागल हो गया है’, ‘जीएसटी यानी गब्बर सिंह टैक्स’ जैसे जुमले उछाले, उससे भाजपा थोड़ी असहज दिखी।

चुनौतीः भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वाघाणी

शंकाएं बरकरार

इसके बावजूद कांग्रेस जीत को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं दिखती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य में मैनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्‍त्री कहते हैं कि अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। आने वाले दिनों में स्थिति साफ होगी। वैसे उन्होंने जोर देकर कहा, “चुनाव जीतने के लिए भाजपा कुछ भी कर सकती है।” यह कुछ क्या है उसे वे बहुत साफ नहीं करते हैं। पार्टी ने सैम पित्रोदा को भी विधानसभा चुनावों का मैनिफेस्टो बनाने में अहम जिम्मेदारी दे रखी है। लेकिन कुछ तो बदला हुआ है। इस लेखक की मौजूदगी में ही जिस तरह से टिकट की चाहत रखने वाले लोग भरत सिंह सोलंकी के घर में पहुंच रहे थे, वह इस बात का संकेत जरूर है कि पार्टी मुकाबले में है।

भरत सिंह सोलंकी के थलतेट स्थित घर से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर ही भाजपा ने अपना मीडिया सेंटर बना रखा है। वहां पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस बार कांग्रेस के राज्य प्रभारी अशोक गहलोत की वजह से उनकी पार्टी थोड़ी व्यवस्थित दिख रही है। वैसे भी राजस्थान और गुजरात में कई समानताएं हैं इसलिए वे यहां अच्छा काम कर ले रहे हैं। जहां तक चुनावी जीत की बात है तो भाजपा नेता साफ करते हैं, “अभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार शुरू भी नहीं किया है। जब वे प्रचार में उतरेंगे तो स्थिति एकदम बदली नजर आएगी। हम पिछले चुनाव से अधिक सीटें जीतकर आएंगे।” एंटी-इंकम्‍बेंसी के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि यह बात सही है कि स्थानीय स्तर पर कुछ नाराजगी है। लेकिन इसका हल बड़े पैमाने पर उन विधायकों के टिकट कटने में देखा जा रहा है, जो कई बार से विधायक हैं और वोटर उनसे नाराज हैं। लगभग 45 फीसदी विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं।

वे साफ करते हैं कि यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनके कामकाज के आधार पर ही जीता जाएगा। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की संगठन क्षमता हमारे साथ है ही। जहां तक स्थानीय नेतृत्व की बात है तो वे यह कहने में संकोच नहीं करते हैं कि भाजपा में एक नंबर से लेकर दस नंबर तक एक ही नाम है और बाकी लोग उसके बाद हैं।

वाघेला बेदम

इस चुनाव का एक पहलू यह भी है कि कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बना चुके शंकर सिंह वाघेला वैसा कुछ माहौल नहीं बना पा रहे हैं जो उनको एक गंभीर किरदार के रूप में स्थापित कर सके। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उनको तरजीह नहीं देना चाहते हैं। राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी तो दावा करते हैं कि वाघेला इस बार चुनाव ही नहीं लड़ेंगे। उनके इलाके में जिस तरह से राहुल गांधी की सभाएं कामयाब रही हैं, वह संकेत है कि वाघेला और उनके साथ जाने वाले विधायकों से कांग्रेस पर कोई प्रतिकूल असर पड़ने की बजाय पार्टी को उल्टे फायदा हो रहा है। इसके साथ ही एक और बात उभर कर आ रही है कि नतीजे चाहे जो भी हों यह चुनाव सांप्रदायिक मुद्दों से अभी तक तो बचा हुआ है और इस बात की संभावना है कि यह स्थिति कायम रहेगी।

ऐसे में आने वाले दिनों का राजनैतिक घटनाक्रम देखने वाला होगा क्योंकि नवंबर के तीसरे सप्ताह में भाजपा और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों के टिकट तय कर चुके होंगे और उनके चुनाव घोषणापत्र भी सामने आ चुके होंगे। इसके साथ ही नेताओं के पार्टी बदलने और जाति संगठनों के समर्थन के कई तरह के रूप सामने आएंगे। कुल मिलाकर यह कहना सही होगा कि यह चुनाव 2012 के चुनाव से ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य के मुख्यमंत्री रहते हुए लड़े गए पिछले तीन चुनावों से भी अलग तो होगा ही, चुनाव नतीजे भी दिलचस्प हो सकते हैं।

 

 

देश की तस्वीर बदल देगा गुजरात चुनाव

गुजरात में कांग्रेस की संभावनाओं को बेहतर बनाने में प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी की मेहनत और सांगठनिक कौशल की चर्चा खास तौर पर की जाती है। जाहिर है, इससे पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत माधव सिंह सोलंकी के बेटे, बेदाग छवि वाले युवा सोलंकी के सामने चुनौतियां भी बेहिसाब हैं। बेहद व्यस्त कार्यक्रमों के बीच अहमदाबाद में उन्होंने संपादक हरवीर सिंह से चुनावी रणनीति पर विस्तार से बातचीत की। कुछ अंशः

गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी

इस बार राहुल गांधी के व्यापक दौरे हुए और भीड़ भी ठीकठाक आई। आप 2012 के विधानसभा चुनावों से इस बार माहौल में कैसा बुनियादी बदलाव देख पा रहे हैं?

भाजपा सरकार से हर समुदाय और समाज के सभी वर्ग परेशान हैं। पिछले पांच साल में किसी को कोई फायदा इस सरकार से नहीं मिला है। यही वजह है कि सभी आंदोलन कर रहे हैं। पाटीदार आंदोलन कर रहे हैं, दलित आंदोलन कर रहे हैं, दूसरे समाज के लोग भी आंदोलन कर रहे हैं। पाटीदार हों, या दलित, ओबीसी, ट्राइबल या फिर ब्राह्मण या मिडिल क्लास, सभी इस सेफिल्‍श, करप्ट, एरोगेंट (स्वार्थी, भ्रष्ट और अहंकारी) सरकार से नाराज हैं।

लेकिन भाजपा तो कहती है कि वह करप्‍शन के एकदम खिलाफ है।

आपने जय शाह का उदाहरण भी देख लिया है और बाकी लोगों का भी देख लिया है कि वो करप्‍शन के बारे में क्या कह रहे हैं। गुजरात में जो लैंड वगैरह की स्कीम....-तलाटी, एक्यूपमेंट कांड हुआ था। भर्ती कैंसिल करनी पड़ी क्योंकि किसी के घर से पैसा गिनने की मशीन मिली।

किसानों की क्या नाराजगी है?

किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला। न कपास, न मूंगफली, न दाल, न धान का समर्थन मूल्य मिला। किसानों को 14 घंटे बिजली देने की बात करते थे लेकिन आठ घंटे मिल रही है और वह भी रात में। सबसे महंगी बिजली गुजरात में है।

युवाओं के क्या मुद्दे हैं।

यहां 30 लाख बेरोजगार युवा हैं। हमने कहा है कि हम रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ ही बेरोजगारी भत्ता भी देंगे। यह भत्ता शैक्षिक आधार पर तीन हजार और चार हजार रुपये प्रति माह होगा।

पाटीदार आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल से आपकी बातचीत चल रही है। क्या  पाटीदारों की नाराजगी को वोटों में बदल पाएंगे?

हम जनता के साथ हैं। जनता के सवालों के साथ खड़े रहेंगे। समाज का कोई भी वर्ग हो। जैसे दलितों पर ऊना में अत्याचार हुआ तो उसके साथ भी हम खड़े हुए। जिग्नेश मेवाणी भी भाजपा के खिलाफ हैं। ओबीसी के लीडर अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया है और वे एजीटेशन कर रहे थे शिक्षा के लिए, क्योंकि पढ़ाई महंगी हो गई है। ‘स्टैंडर्ड ऑफ एजुकेशन, प्राइमरी एजुकेशन हैज गॉन डाउन।’ इन सब मुद्दों पर हम जनता के साथ हैं।

बाइस साल की एंटी-इंकम्बेंसी का आपको कितना फायदा होगा? निकाय चुनावों में कैसे नतीजे रहे?

कांग्रेस को फायदा होगा, यह हम नहीं सोचते। ये लड़ाई भाजपा बनाम गुजरात की जनता की है। हम तो गुजरात की जनता के सपोर्ट में हैं। हम स्थानीय निकाय चुनावों में जीते हैं। 2015 में हमने 23 जिला पंचायत जीती हैं, जो दो-तिहाई से ज्यादा हैं। शहरी लोकल बॉडी में हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है। मोदी जो पिक्चर दिखाते हैं, वह बाहर की हवा है। यहां कुछ नहीं है। हम स्‍थानीय चुनावों में शहरी-ग्रामीण मिलाकर 105 सेगमेंट जीते। यह बढ़कर 125 हो जाएगा। भाजपा से हमारा सात फीसदी वोट का अंतर था। बारह फीसदी फ्लोटिंग वोट था। भाजपा से भी वोट टूटेंगे और ये बारह फीसदी भी मिल जाएंगे। मतलब इस बार काफी उलट-पुलट हो जाएगा।

जेपी आंदोलन को याद करें तो उसे गुजरात के युवकों ने शुरू किया था। तो, क्या अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक के आंदोलनों से उस तरीके की हवा उठेगी?

ये यूथ लीडर हैं। काफी पॉपुलर हैं। दे कैन चेंज द सिनेरियो।

आप बेरोजगारी भत्ता मेनिफेस्टो में एनाउंस करने जा रहे हैं। कब तक इसे जारी करेंगे?

काम चल रहा है। मधुसूदन मिस्‍त्री उसके चेयरमैन हैं।

नोटबंदी और जीएसटी से जिस तरह धंधे चौपट हुए। कांग्रेस की अच्छी रैली हुई सूरत में। तो, क्या व्यापारियों का पारंपरिक वोट भाजपा से खिसकेगा।

खिसकेगा नहीं, जमकर कांग्रेस को वोट देगा।

शंकर सिंह वाघेला के छोड़कर जाने से आपको फायदा हुआ या नुकसान?

फायदा हुआ। कोई पूछता तक नहीं उनको। हमें छोड़कर गए लेकिन चुनाव में खड़े होने की हिम्मत मुश्किल से जुटा पाएंगे। वे खड़े ही नहीं होंगे।

सीएम चेहरे का ऐलान करेंगे?

नहीं, हमारी पॉलिसी नहीं है।

पंजाब, हिमाचल में तो किया गया।

कभी कर सकते हैं। यह हाईकमान पर है।

टिकट बंटवारा कब तक पूरा हो जाएगा?

15-16 नवंबर तक सभी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जाएगी।

गुजरात के किस हिस्से में आपकी मजबूती ज्यादा लगती है?

राहुल जी की नवसर्जन संपर्क यात्रा को तो तीनों हिस्सों में बहुत सपोर्ट मिला। उत्तर गुजरात में हम पहले से स्ट्रांग हैं। हम सोचते थे कि दक्षिण गुजरात में थोड़ा हल्का रहेगा। लेकिन, वहां भी लोग जमकर आए। लोग उत्साहित थे और खूब नारे लगा रहे थे।

राहुल गांधी बदल गए हैं। उनके बोलचाल का तरीका बदला है, एग्रेसन आया है और पार्टी अध्यक्ष के लिए तैयार दिखते हैं। मंदिर में गए।

मंदिर में जाना अच्छी बात है। वी आर सेकुलर पीपुल, वी गो टू एवरीव्हेयर। पहले भी जाते थे। इंदिरा जी भी जाती थीं, नेहरू जी भी जाते थे, राजीव  जी भी जाते थे, सब जाते थे। राहुल जी भी जा रहे हैं, सोनिया जी भी जा रही हैं।

राहुल की बातों से आपलोगों को कितना फायदा मिला?

लोग देश में नया नेतृत्व चाहते हैं। राहुल जी जो मुद्दे उठा रहे हैं, वह लोगों के दिलों को छू रहा है। भाजपा नेतृत्व बुरी तरह नाकाम है। वह अपने वादे पर खरा नहीं उतरा। इकोनॉमी बुरे हाल में है।

मोदी और शाह की जोड़ी अभी भी यहां इफेक्टिव रहेगी या उनके केंद्र में जाने का कांग्रेस को कुछ लाभ मिलेगा?

मोदी पहले दो महीने में एक दो बार आते थे, अब एक महीने में पांच बार गुजरात आते हैं। अमित शाह दस दिन आते हैं। पूरी कैबिनेट को उतार दिया। सभी मुख्यमंत्रियों को बुलाया। उनकी पार्टी अगर पॉपुलर है तो क्यों इतने सारे लोगों को उतारना पड़ रहा है। सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण, अरुण जेटली पहले क्यों नहीं आते थे। डरे हुए हैं, बौखला गए हैं कि गुजरात गया तो दिल्ली भी गया। गुजरात भारतीय राजनीति को बदल देगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement