भारतीय मूल की ब्रितानी मंत्री प्रीति पटेल के पास क्या कुछ नहीं था! वे ब्रितानी राजनीति की उभरती सितारा थीं, भारत से अपने गहरे जुड़ाव की वजह से आला हलकों में उनका अच्छा दोस्ताना था, वे हरफनमौला हैं, गजब की वक्ता और भीड़ पर जादू बिखेरने में उनका सानी नहीं है। 45 वर्षीय पटेल के सितारे पूरी तरह बुलंद दिख रहे थे, आखिर उम्र के हिसाब से उनके पास काफी वक्त था, प्रधानमंत्री थेरेसा मे को उन पर भरोसा था और बेशक, कभी ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने की उनमें संभावना भी नजर आ रही थी। लेकिन राजनीति गहरे रणनीतिक दिमाग का खेल है। सो, ब्रिटेन के ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ में एक गलत चाल उन पर भारी पड़ गई और उनका पद चला गया। उन्होंने कथित रूप से प्रधानमंत्री थेरेसा मे की इजाजत के बिना इजरायली नेताओं और उद्योगपतियों से मुलाकात की।
बदतर तो यह रहा कि उन्होंने हालात से निपटने के लिए सच्चाई जाहिर करने में किफायत बरती, जिससे उनका आचरण और संदिग्ध हो गया। इस रणनीतिक चूक से 2010 से ही एसेक्स में विटहाम क्षेत्र से कंजरवेटिव पार्टी की सांसद को कॅरिअर की बुलंदी के दौर में अपना पद ही गंवाना नहीं पड़ा, बल्कि उनकी साख पर भी बट्टा लग गया, जो किसी नेता की सबसे बड़ी पूंजी होती है।
लंदन के सत्ता गलियारों में यह सब जाना-पहचाना है कि पहले जनसंपर्क (पीआर) के धंधे में रह चुकीं पटेल बेहद तेजतर्रार नेता हैं और वे एक ब्रिटिश तंबाकू कंपनी तथा एक बहुराष्ट्रीय शराब कंपनी के लिए यूरोपीय संसद के सदस्यों के बीच लॉबिइंग कर चुकी हैं। उनकी ख्याति ऊंची उड़ान और प्रधानमंत्री मे से नजदीकी के नाते रही है। सत्ता की सीढ़ी बेहद तेजी से चढ़ने के दौरान उन्होंने कई लोगों को नाराज कर लिया, जिनमें कुछ उनके कैबिनेट सहयोगी भी हैं जो उनकी बढ़ती हैसियत को अपने लिए खतरा मानने लगे थे। राजनीति में आप हमेशा लोगों की नजर में रहते हैं और इसी वजह से आपका आचरण हमेशा संदेह के दायरे से बाहर होना चाहिए। लेकिन इस बेहद अहम इबारत को शायद पटेल भुला बैठीं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
यूगांडा के भारतीय आप्रवासी परिवार में लंदन में जन्मी प्रीति की पढ़ाई वाटफोर्ड के स्कूल में हुई। फिर एसेक्स यूनिवर्सिटी से एमए करने के पहले कीले यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की भी पढ़ाई की। 2014 में प्रीति ट्रेजरी में एक्सचेकर सेक्रेटरी नियुक्त हुईं। फिर, 2015 के आम चुनावों के बाद उन्हें वर्क ऐंड पेंशन डिपार्टमेंट में रोजगार मंत्री बनाया गया। प्रधानमंत्री पद से डेविड कैमरन के इस्तीफे के बाद प्रीति नई प्रधानमंत्री थेरेसा मे के साथ जुड़ गईं। मे ने उन्हें 2016 की गर्मियों में अंतरराष्ट्रीय विभाग का सेक्रेटरी बना दिया।
ढलान का किस्सा
मुद्दा तो प्रीति की इजरायल में 13 और 15 अगस्त को कुछ कथित मुलाकातों से उठा। वे वहां अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने गई थीं। अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग ने खुलासा किया कि प्रीति की इजरायल में 12 दिनों में 12 मुलाकातें हुईं। इनमें प्रधानमंत्री नेतन्याहू, सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री गिलाड एर्डन और इजरायल की मध्यमार्गी येस येतिद पार्टी के नेता येर लेपिड से मुलाकातें प्रमुख थीं। प्रीति ने अपने विदेश विभाग को इसकी पूर्व सूचना नहीं दी थी।
उन्होंने सफाई दी कि उनकी यात्रा ‘अपने पैसे से पारिवारिक सैर-सपाटा’ के लिए ही थी, उसका ‘विदेश नीति से कोई लेनादेना’ नहीं था। लेकिन लौटकर उन्होंने ‘इजरायल और ब्रिटेन के बीच मानवीय और विकास साझेदारी पर विभागीय कार्य शुरू करने का आदेश’ दिया। इससे मामला संदिग्ध हो उठा। इसे उन्होंने बाद में जाकर स्वीकार किया।
वे इससे भी बेखबर थीं कि उन गुप्त मुलाकातों की सूचना ब्रिटेन के कूटनीतिक और सुरक्षा महकमों ने प्रधानमंत्री मे तक पहुंचा दी थीं। आखिर यह उभरकर आया कि इन मुलाकातों का इंतजाम लॉबिइंग गुट कंजरवेटिव फ्रेंड्स ऑफ इजरायल के मानद अध्यक्ष लॉर्ड पोलक ने किया था और उनमें कथित तौर पर ब्रिटिश सरकार की मध्य-पूर्व के सहयोगियों के साथ नीति पर चर्चा हुई। प्रीति ने यह कहकर मामला रफा-दफा करना चाहा कि वे यह ‘ठीक-ठीक शब्दों’ में नहीं कह पाईं कि विदेश मंत्री बोरिश जॉन्सन को इसके बारे में पहले से जानकारी थी। बाद में पता चला कि यह बात झूठ थी। प्रीति की समस्याएं उनके यह कबूलने से ज्यादा गहरा गईं कि उन्होंने सच्चाई बताने में कंजूसी बरती। उनकी जगह नौ नवंबर को कंजरवेटिव पार्टी के सांसद पेनी मोरडांट को मंत्री बनाया गया।
इस वाकये का खुलासा बीबीसी ने किया। प्रीति ने पहली बार जब खेद जाहिर किया तो प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने उन्हें मंत्री पद की गरिमा की याद दिलाई। एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की इजरायल यात्रा के बारे में सफाई का स्वागत किया और इस मामले में उनके माफीनामे को मंजूर कर लिया है।’’ लेकिन पता चला कि प्रीति की इजरायली नेताओं से बाद में दो और अनधिकृत बैठकें हुईं। फिर तो, पानी सिर के ऊपर से गुजर गया। उन्हें अफ्रीका के दौरे के बीच में ही वापस लंदन बुलाया गया। वे आठ नवंबर को दोपहर में पहुंचीं और शाम सात बजे महज छह मिनट की मुलाकात के बाद मे ने प्रीति को फौरन बर्खास्त कर दिया। बाद में कहा गया कि उन्होंने इस्तीफा दिया। वे हाल के हफ्तों में मे मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाली दूसरी मंत्री थीं। इसके पहले रक्षा मंत्री सर माइकल फैलों विदा हो चुके हैं। फैलों को यौन उत्पीड़न के मामले में जाना पड़ा था।
भारत में असर
भारत के लिए लंदन में प्रीति पटेल बिलाशक सबसे चहेती मंत्री थीं। उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई भारतीय नेताओं से घनिष्ठ संबंध बन गए थे। मोदी तो प्रीति पटेल को गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौर से ही जानते हैं। प्रीति भारत की मुखर पैरोकार रही हैं इसलिए उनका जाना निश्चित रूप से घाटा है। लेकिन भारतीय राजनयिकों का मानना है कि भारत और ब्रिटेन के रिश्ते बहुआयामी हैं इसलिए किसी एक के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
प्रीति प्रकरण में भारतीय नेताओं के लिए भी एक सबक है कि हर मिनट बारीक निगाह रखने वाली तकनीक के दौर में कभी झूठ न बोलो क्योंकि सार्वजनिक पद के मामले में सार्वजनिक और निजी वाकयों के बीच बड़ी पतली-सी रेखा है। सार्वजनिक जीवन में शुचिता और पारदर्शिता सबसे अहम है। एक भी भूल-चूक कुछ ही पलों में आपका राजनैतिक कॅरिअर बर्बाद कर सकती है।
(लेखक न्यूजमोबाइल डॉट इन के संस्थापक तथा एडिटर इन चीफ और विदेशी मामलों पर टिप्पणीकार हैं)