Advertisement

कौन मजबूत, कौन मजबूर?

नीतीश कुमार और लालू यादव के राजनैतिक भविष्य को लेकर लग रहीं अटकलें
हार नहीं मानेंगेः लालू-तेजस्वी की जोड़ी

लालू प्रसाद अगर पटना में होते हैं तो रोज सुबह बैठकी जरूर लगाते हैं। उनकी ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी बैठकी में लगभग नियमित शामिल होने वाले व्यक्ति हैं। उनसे नीतीश और लालू की राजनीति पर बात चलती है। जब उनसे पूछा जाए, क्या हो रहा है आपकी पार्टी में? अंतर्विरोध के साथ सवाल उठ रहे हैं कि लालू का भविष्य अंधकार में जा रहा है।आपकी पार्टी के वरिष्ठ नेता भी जब-तब खुलेआम लंगड़ी मार राजनीति करने लगे हैं। शिवानंद तिवारी जवाब में कहते हैं, ‘‘नीतीश जब से भाजपा के साथ गए हैं, हर दिन दुर्गति हो रही है। कैबिनेट विस्तार के लिए उनकी पार्टी के आर सीपी सिंह को भाजपा ने भाव नहीं दिया। इसके पहले एक बार नीतीश कुमार ने गुजरात से बावर्ची बुला कर गुजराती व्यंजन बनवाकर रखा था। लेकिन मोदी नहीं आए। सीधे पूर्णिया चले गए। पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने का आग्रह मोदी सिरे से खारिज कर गए।’’ शिवानंद ऐसी कई बातें याद दिला कर कहते हैं, ‘‘नीतीश कुमार का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। भाजपा उनका वह हाल करेगी, जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा।’’ राजद में रघुवंश प्रसाद सिंह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे तक सभी लगभग इसी पैटर्न पर बात करते हैं। लालू प्रसाद, उनके बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव नीतीश से कट्टी के बाद उनके लिए अनैतिक कुमार, विश्वास का खूनी, जनमत का लूटेरा, पलटूराम, छवि कुमार, अंतर्मन कुमार, कुशासन बाबू जैसे आधा दर्जन विशेषण गढ़ चुके हैं।

नीतीश कुमार का भविष्य क्या होगा, यह तय करना आसान नहीं। संभव है भाजपा उनका और उनकी पार्टी का हश्र गोवा की तरह कर दे, जहां उसने गोमांतक पार्टी के सहारे पांव रखने की कोशिश की और फिर गोमांतक पार्टी को ही खात्मे की राह पहुंचा दिया। संभव है नीतीश कुमार ऐसी मुश्किल न आने दें, क्योंकि कई बार उन्होंने अपनी चाल को बदला है। वह एक ध्रुव से दूसरे की ओर गए हैं और हर बार और मजबूत हुए हैं और अपनी छवि के साथ वजूद बचाने में भी सफल रहे हैं। बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले पत्रकार अमित कुमार कहते हैं, ‘‘नीतीश कुमार का भविष्य गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव के बाद तय होगा। अगर भाजपा यहां जीतती है तो नीतीश कुमार बिहार में हाशिए पर चले जाएंगे। बिहार में भाजपा को बढ़त के लिए नीतीश कुमार का होना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी लालू प्रसाद का सक्रियता के साथ विरोधी के रूप में सामने रहना है।’’ बिहार के राजनैतिक विशेषज्ञों के बीच भी इन दिनों नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर बात होती है। चारा घोटाले के मामले में सजायफ्ता, एक और मामले में सुनवाई के बाद फैसले का इंतजार कर रहे, प्रवर्तन निदेशालय, आय से अधिक संपत्ति, रेलवे संपत्ति मामले में सीबीआइ के नए मामले को झेल रहे, खुद के साथ परिवार के सदस्यों के भी लपेटे में आ जाने से लालू प्रसाद के राजनैतिक भविष्य के आकलन पर कम बात होती है। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं, ‘‘लोग लालू के भ्रष्टाचार में लालू या उनके परिवार के लोगों के फंसने के बाद भी अगर कह रहे हैं कि जातीय समीकरण और सामाजिक न्याय आदि का जुमला, नीतीश का अलगाव या मौकापरस्ती उन्हें फिर से मजबूत करेगा तो यह सिर्फ भ्रम है। लालू प्रसाद जब से चारा घोटाले में फंसे, वह राजनैतिक तौर पर कमजोर होते गए। वह फिर कभी अकेले दम पर बिहार में बहुमत हासिल नहीं कर सके। यह तभी हुआ न, जब लालू प्रसाद के वोटरों ने उनका साथ छोड़ना शुरू किया होगा।’’

राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, ‘‘यह अलग पक्ष है कि फिर से भाजपा के साथ जाने से आगे नीतीश का क्या होगा। घोटाला-भ्रष्टाचार आदि भी दूसरी बात है, क्योंकि ऐसा अब दुनिया भर की राजनीति में है। लालू प्रसाद के भविष्य की राजनीति की चिंता का पक्ष दूसरा है। लालू प्रसाद फिलहाल यादवों का अपना कोर वोट बैंक बचाने की कोशिश में हैं। उनके कोर वोट बैंक में लगातार गिरावट है। गैर यादव पिछड़ी जातियां तेजी से अलग हुई हैं और यह क्रम जारी है। पिछड़ी जातियां सिर्फ नीतीश कुमार या भाजपा के बीच नहीं बल्कि कई पॉकेट में तेजी से बंट रही हैं। अगर लालू प्रसाद यादव पिछड़ों के सर्वमान्य नेता नहीं रहेंगे तो फिर यादवों का नेता बने रहना भी मुश्किल होगा। बिहार में तो कई यादव नेता बड़े नाम वाले हुए लेकिन वे पिछड़ों के नेता नहीं बन सके। रही बात तेजस्वी यादव को भविष्य का नेता मानने की या लालू प्रसाद जैसे प्रभाव के साथ उनके उभार की तो अभी उनका परीक्षण बाकी है।

समय के साथ लालू प्रसाद ने कोर विषय पर काम नहीं किया। अब समय बदल चुका है। नई पीढ़ी सामने है। आरक्षण सबसे ज्वलंत मसला है और नीतीश कुमार ने निजी क्षेत्र से लेकर आउटसोर्सिंग तक में आरक्षण का पासा फेंका है। लालू प्रसाद पिछड़ों की राजनीति करते रहे, जिसमें यादव वर्चस्वकारी बना रहा जबकि अति पिछड़ों को कैटेगराइज करने पर उन्होंने काम नहीं किया। देश के नौ राज्यों में दूसरी सरकारों ने किया और अब केंद्र में भाजपा सरकार यह करने जा रही है। यह सब लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं का आधार खत्म करेगा।’’ तेजस्वी का नेतृत्व परीक्षण अभी उनकी पार्टी और परिवार में ही बाकी है। पार्टी में लालू प्रसाद या उनके करीबी नेताओं की ओर से जब-जब तेजस्वी को भविष्य में राजद का नेता या मुख्यमंत्री बनाने की बात आगे लाई जाती है, राजद के ही रघुवंश प्रसाद जैसे वरिष्ठ नेता खुलकर तो अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे नेता दबे-छुपे विरोध में उतर आते हैं। बहुत पुरानी बातों को छोड़ भी दें तो भी लालू प्रसाद हालिया दिनों में अपने एजेंडे को आगे नहीं बढ़ा सके। उन्होंने कहा था, नीतीश के सत्ता संभालते ही वह देशभर में घूमकर नरेंद्र मोदी का विरोध करेंगे। जनगणना रिपोर्ट आने पर लालू ने जाति आधारित जनगणना की मांग की थी। मांग पूरी न होने पर उन्होंने और तेजस्वी ने अनवरत आंदोलन की बात कही थी। लेकिन एक बार सड़क पर निकलने के बाद यह आंदोलन भी बंद हो गया। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं, ‘‘लालू प्रसाद फिलहाल ईडी, आइटी, सीबीआइ और न्यायालयों का सामना करें। उसके बाद जनता का सामना करने लायक रहें तो जरूर करें।’’ शरद यादव के दावे वाले जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और बहुजन चौपाल के संयोजक संतोष यादव कहते हैं, ‘‘भ्रम है कि लालू प्रसाद कमजोर हो रहे हैं। नीतीश कुमार खुद रोज लालू प्रसाद को मजबूत कर रहे हैं। जिस दिन विपक्षी एकता हो गई, उस दिन न सिर्फ बिहार, बल्कि देश की राजनीति बदलेगी।’’ जदयू के राज्यसभा सांसद हरिवंश कहते हैं, ‘‘इतिहास के पन्नों को देखना होगा, जिसने भी भ्रष्टाचार किया या उसका साथ दिया, वह राजनीति में अप्रासंगिक हो गया। लालू प्रसाद को अपनी भूल सुधारने का अवसर मिला था लेकिन उन्होंने फिर से भ्रष्टाचार को समर्थन देने वाले रुख रखते हुए इसे खो दिया। जबकि नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ साफ स्टैंड रखा।’’

जिस तरह लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी के नेताओं के बीच व्यक्तिगत स्तर पर चारित्रिक आरोपों की राजनीति शुरू हुई है, उससे भाजपा खेमे में खुशी की लहर है। भाजपा जनता के बीच संदेश फैला रही है कि पिछले तीन दशक से काबिज दो पिछड़े नेताओं का हाल देखिए, वे सत्ता के लिए क्या-क्या कर रहे हैं। हालात कितने भी प्रतिकूल हों, लालू प्रसाद मजबूत धुरी की तरह बिहार की राजनीति में बने रहेंगे। वह अचानक बाजी पलटने में उस्ताद हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को पकड़कर बिहार में ऐसा कर दिखाया था। बिहार की आगे की राजनीति में लालू प्रसाद या नीतीश कुमार की राजनीति का भविष्य सिर्फ अपनी गतिविधियों या भाजपा पर ही निर्भर नहीं करेगी बल्कि जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, रामविलास पासवान जैसे नेताओं के रुख पर भी निर्भर करेगी। ये लोग फिलहाल तो एनडीए के संग हैं लेकिन नीतीश कुमार के फिर से भाजपा के साथ आने के बाद इनके सामने संकट बढ़ गया है। भाजपा इनका हक काटकर ही नीतीश कुमार को तवज्जो देगी। 

Advertisement
Advertisement
Advertisement