तकरीबन दशक भर पहले 3 अप्रैल 2007 की दोपहर ठीक 12.45 बजे बीसीसीआइ के तत्कालीन अध्यक्ष शरद पवार के फैक्स पर जी टीवी के मालिक सुभाष चंद्रा का एक खत आया। इसके कुछ घंटों बाद दिल्ली में चंद्रा ने महत्वाकांक्षी इंडियन क्रिकेट लीग (आइसीएल) का ऐलान किया। इस ‘अनधिकृत’ लीग के खतरे को सिर पर देखकर बीसीसीआइ की गहरी निद्रा टूटी और वह कदम उठाने को मजबूर हुआ। तीन पन्नों के खत में चंद्रा ने पवार को याद दिलाया कि उन्होंने 18 मार्च 2007 को फोन पर उन्हें क्रिकेट को लेकर ‘एस्सेल गुप की योजनाओं’ के प्रति ‘आगाह’ किया था। चंद्रा ने लिखा, “इसे (आइसीएल) मैं देश में खेल के मौजूदा हालात और उसमें बदलाव तथा सुधार के लिए अपरिहार्य मानता हूं। नई प्रतिभाओं की खोज और खेल के नवीन स्वरूप के लिए यह मॉडल जरूरी है। मौजूदा व्यवस्था के विपरीत खेल, उसके प्रोत्साहन और नए ढांचे को खड़ा करने के लिए मैं आइसीएल को एक पारदर्शी और नए प्रयोग के तौर पर देखता हूं।”
भारत में क्रिकेट से जुड़े फैसले लेने वाली शीर्ष संस्था को चुनौती देने वाला आइसीएल पहला टूर्नामेंट था, जिसकी उससे मंजूरी नहीं ली गई थी। हालांकि महज दो सत्र के बाद ही यह बंद हो गया और कई खिलाड़ियों और अधिकारियों का भुगतान अभी भी बकाया है। इसने बीसीसीआइ और खासकर उसके तत्कालीन उपाध्यक्ष ललित मोदी को 50 ओवर के इंटर सिटी लीग के लटके पड़े प्रस्ताव को नए सिरे से आगे बढ़ाने को प्रेरित किया।
आइसीएल के बाद मोदी ने अपनी योजना को 20 ओवर के खेल के प्रारूप में ढाला और 2008 में पवार को आइपीएल शुरू करने के लिए 200 करोड़ रुपये का कर्ज देने को मना लिया। उसके बाद जो कुछ हुआ, वह इतिहास है। आइपीएल की बेहिसाब कामयाबी ने इसे पैसा कमाने का आजमाया फॉर्मूला बना दिया। जल्द ही पूरे देश में कई टी-20 लीग शुरू हो गए। आइपीएल से प्राप्त बेशुमार प्रायोजन राशि से जब बोर्ड का बैंक बैलेंस कई गुना बढ़ा तो बीसीसीआइ के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई। यह ‘अनधिकृत’ टी20 टूर्नामेंटों की ओर से आई, जो अक्सर संदिग्ध संस्थाओं की ओर से आयोजित किए जाते हैं।
इस तरह के टूर्नामेंट का बड़ा हिस्सा उत्तर भारत में आयोजित होता है। इनके नाम भी आइपीएल की नकल होते हैं और भ्रम पैदा करते हैं। बीसीसीआइ से जुड़े कुछ मौजूदा क्रिकेटरों ने इस तरह के टूर्नामेंट को बढ़ावा देना भी शुरू किया है। लिहाजा, हाल में बीसीसीआइ को एक कड़ा बयान जारी कर संबंधित राज्य इकाइयों और उनसे जुड़े खिलाड़ियों को इन टूर्नामेंटों से दूरी बनाकर रखने का निर्देश देने को मजबूर किया।
बोर्ड ने राज्य संघों, खिलाड़ियों के लिए यह जानकारी सार्वजनिक की कि गौतम गंभीर, पारस डोगरा, रिषि धवन जैसे खिलाड़ियों ने लिखकर दिया है कि वे ‘अनधिकृत’ इंडियन जूनियर प्रीमियर लीग (आइजेपीएल) से संबंध तोड़ते हैं। यह अलग बात है कि बीसीसीआइ के इस खुलासे के तीन हफ्ते बाद भी आइजेपीएल की वेबसाइट गंभीर को ‘टैलेंट हंट ब्रांड एंबेसेडर’ और फिलहाल हिमाचल प्रदेश से खेलने वाले डोगरा और धवन को ‘मेंटर’ बता रहा था।
अपनी वेबसाइट पर जेपीएल स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने कहा है कि उसने “सुविधाओं से वंचित बच्चों के कल्याण के लिए” गौतम गंभीर क्रिकेट फाउंडेशन से करार कर रखा है। आइजेपीएल कुछ बड़बोलेपन से यह दावा भी करता है कि वह 19 साल से कम उम्र के वंचित युवाओं को प्लेटफॉर्म मुहैया कराता रहेगा। इसका पहला आयोजन सितंबर में दुबई में हुआ था, जिसमें दिलीप वेंगसरकर ने पुरस्कार बांटे। बीसीसीआइ की चेतावनी के बाद भी इसके दूसरे संस्करण की तैयारियां चल रही हैं।
इसके पहले, गर्मियों की शुरुआत में बीसीसीआइ ने सभी संबद्ध राज्य संघों को कई चिट्ठी लिखकर अपने खिलाड़ियों को अनधिकृत टूर्नामेंटों में खेलने से रोकने को कहा था। बोर्ड ने यह कदम ऐसी न्यूज रिपोर्टों के बाद उठाया था कि कई जूनियर और रणजी ट्रॉफी में खेलने वाले खिलाड़ी हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित अन्य राज्यों के अलग-अलग लीगों में खेलने जा रहे हैं। बीसीसीआइ को इनमें से कुछ लीग में कथित तौर पर सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग की जानकारी भी मिली।
बीसीसीआइ के कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी ने जुलाई में राज्य संघों को लिखा, “मुझे यकीन है कि आप राजपूताना क्रिकेट लीग में बड़े पैमाने पर अनियमितता, सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग से जुड़े आरोपों से बाखबर होंगे। इस सिलसिले में कुछ खिलाड़ियों को राजस्थान पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था।” चौधरी ने उसमें अगस्त में होने वाले हरियाणा चैंपियंस ट्राफी टी-20 की तैयारी का भी जिक्र किया था। हरियाणा चैंपियंस ट्रॉफी टी-20, राजपूताना क्रिकेट लीग, सेंट्रल प्रीमियर लीग इन बिहार, इंडियन जूनियर प्लेयर्स लीग, लखनऊ प्रीमियर लीग, कोटा में राजवाड़ा क्रिकेट लीग, उत्तर प्रदेश में इंडियन ग्रामीण क्रिकेट लीग और हरियाणा प्रीमियर लीग ऐसे कुछ टूर्नामेंट हैं जिनके पास बोर्ड की मंजूरी नहीं है। इन सभी का दावा है कि वे वंचित और ग्रामीण युवाओं को मौका मुहैया करा रहे हैं। सबसे हाइप्रोफाइल इंवेट है-नॉर्थ इंडिया चैंपियंस लीग टी-20 (एनआइसीएल), जो जून-जुलाई में ग्रेटर नोएडा के विजय सिंह पथिक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में हुआ था। इसे आइसीसी ने दिसंबर में एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन स्थल घोषित किया था।
एनआइसीएल शुरू होने के दो दिन बाद 25 जून को बीसीसीआइ ने सभी राज्य संघों को पत्र लिखकर साफ-साफ कहा कि इस लीग को बोर्ड से मंजूरी नहीं है और अनुबंधित खिलाड़ियों को इसमें भाग लेने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र न दें। दिलचस्प यह है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने आयोजन स्थल का इंतजाम करवाया और उसे बढ़ावा दिया। इसका आयोजन गुड़गांव की एक कंपनी ने किया था। मंत्री ने 22 जून को लिखे पत्र में उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) के सचिव से गुड़गांव की कंपनी को स्टेडियम उपलब्ध कराने का आग्रह किया था। रंगारंग उद्घाटन समारोह में मेरठ रेंज के पुलिस आइजी सहित कई नेता मौजूद थे। चीयर लीडर्स और चमक बढ़ा रही थीं। हालांकि बीसीसीआइ की चेतावनी के बाद कई रणजी ट्रॉफी और जूनियर लेबल के खिलाड़ी इसमें शरीक नहीं हुए।
कथित तौर पर यूपीसीए के समर्थन से स्टेडियम में अनधिकृत टूर्नामेंट के आयोजन का असर यह हुआ कि बीसीसीआइ ने मौजूद सीजन में घरेलू मैच की मेजबानी इस स्टेडियम को नहीं दी। बीते सीजन में यहां दूधिया रोशनी में दिलीप ट्रॉफी का आयोजन हुआ था। आउटलुक को अमिताभ चौधरी ने बताया, “जो भी अनधिकृत होगा बीसीसीआइ उसका संज्ञान लेगा। किसी लीग में अगर बीसीसीआइ में या राज्य संघों में गैर-पंजीकृत कोई खिलाड़ी खेलता है तो उससे बोर्ड का कोई लेनादेना नहीं है। बीसीसीआइ अनधिकृत लीग की तलाश में गांव-गांव थोड़े ही भटकेगा। लेकिन, यह एक दम साफ है कि बीसीसीआइ में पंजीकृत कोई भी खिलाड़ी बिना मंजूरी वाले किसी लीग में नहीं खेलेगा।”
कुछ निजी आयोजकों ने तो ज्यादा ही बेशर्मी दिखाते हुए आइपीएल जैसे लगने वाले नाम के अलावा बीसीसीआइ के लोगो की भी कॉपी करने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, अनजान से क्रिकेट काउंसिल ऑफ इंडिया का लोगो। इसके संक्षिप्त रूप भी हूबहू बीसीसीआइ के सदस्य क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया जैसा ही है। अपने ट्रेडमार्क आइपीएल, चैंपियंस लीग टी-20 और बीसीसीआइ को लेकर बोर्ड ने कुछ साल पहले मुंबई की एक लॉ फर्म की सेवा ली थी। किसी टूर्नामेंट का नाम दूर-दूर तक आइपीएल जैसा प्रतीत होता है, चाहे वह दुनिया में कहीं भी पंजीकृत कराया गया हो, तो फर्म तुरंत उसकी पहचान कर लेगी। एक सूत्र ने बताया, “मान लीजिए एक लीग का नाम फुटबॉल इंटरनेशनल प्लेयर्स लीग (एफआइपीएल) है, हम उसे चुनौती दे सकते हैं, क्योंकि उसके संक्षिप्त नाम में आइपीएल आता है। लगातार चेतावनियों से बीसीसीआइ पंजीकृत खिलाड़ियों को आगाह कर रहा है। कुछ आयोजक फिर भी प्रमोशन के लिए क्रिकेट सितारों से समझौतों की कोशिश में रहते हैं।” एक सूत्र ने बताया कि इंडिया इलेवन और वर्ल्ड इलेवन के बीच बहरीन में मुकाबला करवाने की एक आयोजक योजना बना रहा है। इसको प्रमोट करने के लिए वे चर्चित क्रिकेटरों की तलाश में हैं।
कुछ अनधिकृत लीग पर गंभीर आरोप यह भी है कि वे ब्लैक मनी को सफेद करने का जरिया हैं। दिल्ली के एक शख्स से इस तरह की एक लीग के लिए संपर्क किया गया था। उन्होंने आउटलुक को बताया, “मैं ऑफ द फील्ड उस लीग का हिस्सा बनने को सहमत हो गया था, लेकिन जब एक मित्र ने मुझे बताया कि उस टूर्नामेंट की फंडिंग संदेहास्पद है, मैं तुरंत पीछे हट गया।”
हालांकि, केवल एक संगठन बीसीसीआइ के अलावा टी-20 टूर्नामेंट का आयोजन कर रहा है जिस पर बीसीसीआइ और आइसीसी ने कोई सवाल नहीं उठाया है। यह है इंडियन ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट फेडरेशन (आइटीसीएफ-इंडिया)। कई सरकारी निकायों में पंजीकरण इसकी ताकत है। आइटीसीएफ सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत है। उसका ट्रेडमार्क केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय और इंडस्ट्री पॉलिसी ट्रेडमार्क इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के तहत पंजीकृत है। यह नेहरू युवा केंद्र, युवा एवं खेल मंत्रालय, इंटरनेशनल ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट फेडरेशन (यूएस) और एशियन ट्वेंटी-ट्वेंटी से भी संबद्ध है। 28 प्रांतों में इसकी राज्य स्तरीय इकाई है।
आइटीसीएफ के संस्थापक और महासचिव पीयूष राणा कहते हैं, “मैंने आइपीएल की शुरुआत करने से सात साल पहले 2001 में आइटीसीएफ का पंजीयन कराया था। आज मेरे पास 43 ट्रेडमार्क पंजीकृत हैं। विशेष तौर पर हम गांवों के उन गरीब खिलाड़ियों को बढ़ाते हैं जिनके पास क्रिकेट का हुनर दिखाने का कोई मंच नहीं है।” राणा ने बताया, “हम साल में 12 टूर्नामेंट का आयोजन करते हैं। इनमें ग्रामीण और कॉरपोरेट प्रतिस्पर्धाएं शामिल हैं। हमने बीसीसीआइ और राज्य इकाइयों के सभी पंजीकृत खिलाड़ियों से कहा है कि अगर वे आइटीसीएफ आयोजनों में खेलना चाहते हैं तो उन्हें अनापत्ति प्रमाण-पत्र लाना होगा। शुरुआत में बीसीसीआइ ने आयोजन बंद करने के लिए हम पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन हम कानूनी तरीके से पंजीकृत हैं और संविधान के अनुसार हमारा अपना तंत्र है।”
दूसरी ओर, बीसीसीआइ अभी नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन का हिस्सा नहीं है। खुद को स्व-वित्त पोषित बताते हुए वह ऐसा दर्जा चाहता भी नहीं है। इसका मतलब यह है कि वह देश में क्रिकेट पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहता है। लेकिन, विभिन्न राज्यों में होने वाले कई छोटे लीग अब उसे चुनौती दे रहे हैं। बोर्ड से अनुबंध खत्म होने के बाद अगर मुख्यधारा के ज्यादा खिलाड़ी इन लीगों से जुड़े तो उन्हें विश्वसनीयता मिल जाएगी। ऐसी स्थिति में बोर्ड के एकाधिकार को चुनौती मिल सकती है।