“राजा बेटा अगर मुझे कुछ हो जाए तो सबके सामने रोना मत। देखो, अगर आंसू आएं तो ऐसे रोकते हैं।” यह किसी और की नहीं, स्वयं दादी इंदिरा गांधी की नसीहत थी पोते राहुल गांधी के लिए। इत्तेफाक से राहुल गांधी ने इस बात का जिक्र मुझसे सन 2004 में अमेठी में किया था। जहां उस साल पहली बार राहुल गांधी लोकसभा चुनाव लड़े और जीते थे।
इस बात को एक दशक से ऊपर बीत चुका है। अब राहुल गांधी तैयार हैं गांधी परिवार की विरासत संभालने को। अगले महीने वह भारत की ऐतिहासिक कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष होंगे। राहुल गांधी, परिवार के छठे व्यक्ति होंगे, जो कांग्रेस पार्टी की कमान संभालेंगे। इनसे पहले मोतीलाल नेहरू से लेकर सोनिया गांधी तक नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्य-जवाहरलाल, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। अब पार्टी और देश की निगाहें इस प्रश्न पर टिकी हैं कि राहुल गांधी अपने पूर्वजों की तरह कब प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करते हैं।
यह एक गंभीर सवाल है। इसका कोई सीधा और सरल उत्तर भी नहीं है। मेरी निजी राय में राहुल गांधी परिवार के सबसे बदनसीब नेता हैं। जिस समय वह कांग्रेस पार्टी की कमान अपने हाथों में संभालने जा रहे हैं वह कांग्रेस का सबसे खराब दौर है। पार्टी 132 वर्ष की होकर बूढ़ी और थकी-थकी-सी लगने लगी है। कांग्रेस का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अब केवल इतिहास होकर रह गया है। 21वीं शताब्दी का नौजवान पीछे की तरफ देखने में नहीं बल्कि आगे की सोचने में विश्वास रखता है। उसके अपने सपने हैं जिनको साकार करने की उसे जल्दी है। उसकी निगाह अतीत पर नहीं बल्कि भविष्य पर है। उसके लिए कांग्रेस का अतीत अब व्यर्थ है।
इस परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस की अध्यक्षता अब राहुल गांधी के लिए कांटों का ताज है क्योंकि कांग्रेस की साख इस समय धूमिल है जिसको फिर चमकाना अब राहुल गांधी की जिम्मेदारी है।
लेकिन यह कोई सरल उद्देश्य नहीं है। यह 21वीं शताब्दी औपचारिक रूप से कांग्रेस की विचारधारा से बिल्कुल अलग सदी है। इस समय सारे संसार में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद का उन्माद छाया हुआ है। कहीं ट्रंप तो कहीं एर्दोगन, तो कहीं मोदी जैसे नेता कट्टर राष्ट्रवाद और धर्म की राजनीति कर जनता का मन मोह रहे हैं। भारत में हिंदुत्व विचारधारा का डंका बज रहा है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद जैसी विचारधारा और मध्यमार्ग की राजनीति के रास्ते बहुत कम नजर आते हैं।
फिर ‘मार्केट इकोनॉमी’ और चौथी औद्योगिक क्रांति ने सारे संसार में उथल-पुथल मचा रखा है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धि) और रोबोट्स का दौर है। आए दिन रोजगार घटते जा रहे हैं और परेशान बेरोजगार युवा के सामने अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे में चतुर नेता एक फर्जी दुश्मन का हौवा पैदा करके आज की पीढ़ी में नफरत की भावना उत्पन्न कर सत्ता पर कब्जा कर रहा है।
राहुल गांधी, गांधी परिवार के वंशज हैं। उनकी एक विरासत है। वह एक वैचारिक परंपरा में पैदा हुए नेता हैं। वह मोदी के समान सपने बेचकर सत्ता तक नहीं पहुंच सकते हैं। संघ परिवार और मोदी की सोशल मीडिया टीम ने राहुल की छवि बिगाड़ने में एक बड़ा ही सुनियोजित प्रयास शुरू कर रखा है। राहुल गांधी को इस चक्रव्यूह को भी तोड़ना है।
लेकिन पिछले दो महीने में एक नये राहुल ने जन्म लिया है। हाल में अमेरिका दौरे के बाद बेहद शांत और परिपक्व राहुल गांधी उभर कर सामने आए हैं। देश के लिए उनकी अपनी सोच है। वह देश की मध्यमार्गी धारा को चरम सीमा तक ले जाना चाहते हैं। फिर चीन से मुकाबले के लिए राहुल भारत के उत्पादन क्षेत्र में अपार वृद्धि के पक्ष में हैं। ऐसी नई सोच के साथ राहुल ने देश को अपनी ओर आकर्षित किया है।
गुजरात चुनावी दंगल इसका उदाहरण है। दो दशकों के पश्चात राहुल गांधी ने मुर्दा पड़ी गुजरात कांग्रेस में जान डाल दी है। अब भाजपा भी यह मानती है कि मोदी का राहुल से कड़ा मुकाबला है। यह तो सब ही मान रहे हैं कि गुजरात में कांग्रेस की सीटें बढ़ रही हैं।गुजरात कांग्रेस की सफलता राहुल गांधी की सफलता होगी। इसलिए यह राहुल गांधी की ताजपोशी का उचित समय है।
लेकिन इस उचित अ वसर को चुनावी सफलता तक ले जाना और धूमिल पड़ी कांग्रेस पार्टी को एक नई चमक-दमक के साथ आज के युवा से जोड़ना कठिन चुनौती है। राहुल गांधी अब उस पनघट पर खड़े हैं जहां देश की निगाहें उन पर हैं।
देखें राहुल गांधी जो कांटों का ताज पहन रहे हैं उसको वह फूलों की माला कब और कैसे बनाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)