केंद्र सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इसके लिए कई तरह की नीतियां और कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं जिनका जोर उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ किसानों को उपज के बेहतर दाम दिलाने पर है। इस लक्ष्य को हासिल करने में नई तकनीक और इनोवेशन भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। किसानों की आय में इजाफे और खेती को फायदे का सौदा बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को लेकर आउटलुक के एसोसिएट एडिटर अजीत सिंह ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह से विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं इसके मुख्य अंश :
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए क्या रणनीति अपनाई जा रही है?
किसानों की आय बढ़ाने के लिए हमने खेती की लागत से लेकर उपज की बिक्री तक हरेक चरण में कई जरूरी सुधार किए हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सात सूत्रीय रणनीति पर जोर दिया है। इसके तहत प्रत्येक खेत के मृदा स्वास्थ्य के आधार पर गुणवत्ता वाले बीजों और पोषक तत्वों का प्रावधान, प्रति बूंद अधिक फसल पाने के लिए सिंचाई पर विशेष ध्यान, फसल कटाई के बाद नुकसान से बचने के लिए भंडारण और कोल्ड स्टोरेज में निवेश, खाद्य प्रसंस्करण से मूल्यवर्धन, राष्ट्रीय कृषि बाजार का सृजन और नई फसल बीमा योजना की शुरुआत की गई है। कृषि के साथ-साथ डेयरी-पशुपालन, मधुमक्खी पालन, बागवानी, मछली पालन, मुर्गीपालन और मेढ़ पर पेड़ों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
खेती की बढ़ती लागत भी किसानों के मुनाफे को कम करती है। इस मोर्चे पर सरकार किसानों की कैसे मदद कर रही है?
लागत प्रबंधन के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसका फायदा किसानों को पहुंच रहा है। मनरेगा के तहत किसान के खेतों में तालाब बनवाए जा रहे हैं। सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप किसानों को सब्सिडी पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। नीम लेपित यूरिया की किसानों के लिए उपलब्धता बढ़ी है तथा दुरुपयोग पर अंकुश लगा है। उर्वरक के प्रयोग और जमीन की उपजाऊ क्षमता की सही जानकारी देने में सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम बेहद कारगर साबित हो रही है। भारत सरकार किसानों को फसल ऋण पर 5 फीसदी ब्याज सहायता देती है, जिससे किसानों को सिर्फ 4 फीसदी ब्याज देना पड़ता है। कई राज्य अपनी तरफ से 4 फीसदी सहायता दे रहे हैं जिससे किसानों को ब्याज रहित ऋण मिलता है। ब्याज सहायता पर केंद्र सरकार 2013-14 में 6 हजार करोड़ रुपये खर्च करती थी। इसे 2017-18 में बढ़ाकर 20 हजार करोड़ रुपये कर दिया है।
दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने के लिए देश भर में 150 सीड हब स्थापित किए गए। दालों के 22 मिलियन टन रिकॉर्ड उत्पादन के पीछे ऐसे प्रयासों की बड़ी भूमिका है।
किसानों को फसल का बेहतर दाम दिलाने के लिए फसल पश्चात प्रबंधन और बाजार तक पहुंच जरूरी है। इस दिशा में क्या प्रयास हुए हैं?
केंद्र सरकार कृषि बाजार में सुधार पर बहुत जोर दे रही है। इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना की शुरुआत की गई है, जिसमें 466 मंडियों को जोड़ा जा चुका है। 327 मंडियों में कृषि जिंसों की ऑनलाइन ट्रेडिंग भी शुरू हो चुकी है। एक मॉडल एपीएमसी एक्ट राज्यों को जारी किया गया है। इसके अलावा ठेके पर खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार एक मॉडल एक्ट 2017 भी बना रही है। सरकार खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से भी कृषि उत्पादों के मूल्यवर्धन पर जोर दे रही है। एग्रो-प्रोसेसिंग क्लस्टरों के लिए 6 हजार करोड़ रुपये के आवंटन से प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना की शुरुआत की गई है। इसका फायदा 20 लाख किसानों को मिलेगा और करीब 5.5 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। उपज को बाजार सुलभ कराने में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की भी अहम भूमिका है। पिछले तीन साल में पंजीकृत हुए एफपीओ की संख्या 92.83 फीसदी बढ़ी है।
फसल जोखिम कम करने के लिए खरीफ सीजन, 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई थी। पहले किसानों को 50 फीसदी या उससे अधिक फसल का नुकसान होने पर ही मुआवजा मिलता था। इस सीमा को घटाकर 33 फीसदी कर दिया गया है। बड़े और मंझोले किसानों को राहत पहुंचाने के लिए राहत की सीमा को एक हेक्टेअर से बढ़ाकर 2 हेक्टेअर किया। गैर-ऋणी किसानों को भी बीमा सुरक्षा दिए जाने पर ध्यान दिया जा रहा है। किसानों को प्रीमियम की बहुत कम दरों पर बीमा सुरक्षा दी जा रही है।
कई जगह किसानों को उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। इस चुनौती से सरकार कैसे निपटेगी?
मूल्य समर्थन योजना के तहत सभी तिलहन, दलहन व कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करने का प्रावधान है। राज्यों के प्रस्ताव आने पर दलहन, तिलहन की खरीद मूल्य स्थिरीकरण के फंड से की जाती है। बाजार में कृषि उत्पादों के दाम यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे आते हैं तो राज्य सरकार के प्रस्ताव पर कुल उत्पादन के 25 फीसदी की खरीद की जाती है। जिन कृषि उत्पादों का समर्थन मूल्य नहीं है, यदि किसी राज्य में ऐसे उत्पाद 10 फीसदी से ज्यादा हों और बाजार भाव में 10 फीसदी की गिरावट आ जाए तो राज्य सरकार के प्रस्ताव पर बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत 10 फीसदी की खरीद का प्रावधान था। हाल ही में, इस सीमा को बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया गया है।
पिछले 3 वर्षों में किसानों की आय बढ़ाने के लिए कौन-से बड़े कदम उठाए हैं?
किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई स्तरों पर, कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 5 वर्षों में 50 हजार करोड़ रुपये का निवेश कर हर खेत को पानी उपलब्ध कराया जाएगा। लंबित पड़ी 99 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा कराया जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में भी बड़ा सुधार किया गया है। अब इसमें फसल पूर्व और फसल पश्चात आधारभूत सुविधाओं के विकास को भी शामिल किया गया है।
हमारी सरकार समेकित कृषि प्रणाली को बढ़ावा दे रही है। इससे किसानों की आय में 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। हम इस बात पर बहुत जोर दे रहे हैं क्योंकि खेती की तुलना में सहायक गतिविधियों जैसे पशु पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन आदि से किसानों की आय में अधिक बढ़ोतरी होती है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में किसानों को जोखिम से बचाने में भी ये मददगार साबित होते हैं। इस दिशा में हमने श्वेत क्रांति, नीली क्रांति और मधु क्रांति को बढ़ावा दिया है। देसी गाय की उत्पादकता को दोगुना करने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 1,077 करोड़ रुपये की परियोजनाएं 27 राज्यों में स्वीकृत की गई हैं। इससे देसी गाय की 41 और भैंस की 13 नस्लों का संवर्धन किया जा रहा है। 12 राज्यों में 18 गोकुल ग्राम के लिए 173 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। देश में पहली बार दो नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं। 825 करोड़ रुपये के नेशनल बोवाईन प्रोडक्टिविटी मिशन के तहत 8.8 करोड़ दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाएगा। देसी नस्लों के प्रजनकों और किसानों को जोड़ने के लिए ई-पशुधन हाट पोर्टल शुरू किया गया था। पिछले तीन वर्षों में डेयरी क्षेत्र ने काफी प्रगति की है। इसका सीधा फायदा किसानों को पहुंच रहा है। वर्ष 2011-14 के सापेक्ष 2014-17 के दौरान डेयरी किसानों की आय में 23 फीसदी की वृद्धि हुई। वर्ष 2013-14 के सापेक्ष वर्ष 2016-17 में दूध उत्पादन में लगभग 19 फीसदी की वृद्धि हुई है।
इसी तरह मत्स्य विकास हेतु नीली क्रांति के तहत 2015 में 3 हजार करोड़ रुपये की योजना घोषित की गई है, जिससे 2019-20 तक मछली उत्पादन में 50 फीसदी वृद्धि की जाएगी। वर्ष 2011-14 की तुलना में 2014-17 में मछली उत्पादन 20.1 फीसदी बढ़ा है जो अभूतपूर्व है। मधु क्रांति की ओर भी हम तेजी से बढ़ रहे हैं। नेशनल बी बोर्ड को पिछले तीन साल में 205 फीसदी ज्यादा वित्तीय सहायता दी गई। मधुमक्खी कॉलोनियों की संख्या 20 लाख से बढ़कर 30 लाख हो गई। शहद उत्पादन में 20.54 फीसदी की वृद्धि है। राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन व शहद मिशन की केंद्र पोषित योजना भी तैयार की जा रही है।
किसानों की आय बढ़ाने में आप उन्नत तकनीक और इनोवेशन की भूमिका को किस तरह देखते हैं?
लागत प्रबंधन से लेकर उत्पादन प्रबंधन तक हरेक चरण में उन्नत तकनीक किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है। कृषि क्षेत्र के लिए स्पेस टेक्नोलॉजी राष्ट्रीय कार्यक्रम के जरिये उत्पादकता एवं कृषि क्षेत्र का अनुमान, सूखे का पूर्वानुमान आदि के अलावा किसान सुविधा एप, किसान कॉल सेंटर जैसे दूरसंचार माध्यमों से किसानों को उपयोगी सूचनाएं पहुंचाई जा रही हैं। एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी (आत्मा) योजना को देश के 29 राज्यों और 3 संघ शासित प्रदेशों के 652 ग्रामीण जिलों तक पहुंचाया गया है। योजना में सुधार कर किसानों की भागीदारी बढ़ाई गई है।
कृषि उत्पादन बढ़ाने में अनुसंधान और प्रसार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पिछले तीन साल में अधिक उपज देने वाली और प्रतिकूल मौसम सहिष्णु की 571 नई किस्मों, 11 नई पशु नस्लों और खेती के उन्नत तरीकों का विकास किया है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प को साकार करने के लिए आईसीएआर ने राज्यवार समन्वय समितियां बनाई हैं। किसानों की आय दोगुनी करने में राज्य सरकारों की बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका है। इस लक्ष्य को तभी हासिल किया जा सकता है जब सरकार के साथ-साथ बाकी हितधारक जैसे गैर-सरकारी संगठन, कॉरपोरेट, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, सहकारी संस्थाएं भी मिल-जुलकर निरंतर प्रयास करें।