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गुस्से में गजराज

हाथियों के हमले से इस साल जा चुकी हैं 44 लोगों की जान, फसलों को भी होता है भारी नुकसान
उत्पातः जंगल से बाहर आया हाथी

छत्तीसगढ़ में हाथियों और इनसानों में संघर्ष अब सिर चढ़कर बोलने लगा है। लोग हाथियों से जूझते हुए जान गंवा रहे हैं या फिर हाथियों के दुश्मन बन रहे हैं।  इस साल अब तक करीब 44 लोगों की जान हाथियों के हमले में जा चुकी है।  हाथियों ने डेढ़ हजार लोगों के घरों को उजाड़ दिया, वहीं 3500 से अधिक लोगों की फसल चौपट कर दी। कुछ हाथी भी बेमौत मारे गए। जब भी हाथियों को गुस्सा आता है, वे मानव बस्तियों में घुसकर उत्पात मचाते हैं और फसलों को जितना चट करते हैं, उससे अधिक नुकसान पहुंचा जाते हैं। झुंडों में चिंघाड़ते हुए राज्य की सीमाओं को चुनौती देते इन हाथियों को अब सरकार सीमाओं में बांधकर उनके लिए स्थायी रहवास बनाने और ओडिशा-झारखंड से उनकी आवाजाही रोकने की योजना पर काम कर रही है। 

छत्तीसगढ़ में इनसान और हाथियों के बीच द्वंद्व करीब तीन दशक से चल रहा है लेकिन अब यह राज्य के उत्तरी हिस्से से निकलकर अन्य इलाकों में फैल रहा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे इलाके आरंग और बलौदा बाजार में हाथियों के झुंड ने आम लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं। इन दोनों हिस्सों में वैसे जंगल भी नहीं है। फिर भी हाथियों का आना उनके बदलते रहवास को इंगित करता है। छत्तीसगढ़ के वन विभाग के मुताबिक यहां 1920 के पहले तक राज्य के उत्तरी भाग यानी सरगुजा, कोरिया, कोरबा, रायगढ़ और बिलासपुर जिले में हाथी पाए जाते थे। इसके बाद यहां से हाथी चले गए। इसके बाद 1986-87 के आस-पास फिर हाथी आ गए। हाथियों का यह दल झारखंड से यहां आया। माना जा रहा है कि हाथी सूखे की वजह से चारे की कमी और वहां जगलों की कटाई के कारण अपना ठिकाना बदलने लगे। ये हाथी सरगुजा होते पश्चिम बंगाल की ओर आने-जाने लगे। इसके बाद प्रतिवर्ष हाथियों के दल सरगुजा, कोरिया, कोरबा और रायगढ़ क्षेत्र में आने लगे।

प्रारंभिक वर्षों में हाथियों को वापस झारखंड (तब बिहार) की तरफ खदेड़ने की योजना पर काम किया गया, लेकिन हर साल वे वापस आ जाते थे। हाथियों को इलेक्ट्रिक फेंसिंग के अंदर रखने की कोशिश भी नाकाम रही। 1992 में कर्नाटक से विशेषज्ञ और प्रशिक्षित स्टाफ बुलाकर कुंकी हाथी (पालतू हाथी) की मदद से जंगली हाथियों को पकड़कर पालतू बनाने का फैसला किया गया। 1993 में 11 हाथियों को पकड़ कर पालतू बनाकर उनका इस्तेमाल राष्‍ट्रीय उद्यानों में एंटीपोचिंग पेट्रोलिंग में किया गया। इस अभियान के बाद 1999 तक छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी आने बंद हो गए, 2000 में झारखंड और ओडिशा से फिर हाथियों के झुंड आने प्रारंभ हो गए। इस बार छत्तीसगढ़ से हाथियों को भगाने की जगह उनके रहवास व कॉरिडोर बनाने और जंगल की सीमाओं में रखने के लिए इलेक्ट्रिक फेंसिंग और अन्य तकनीक अपनाई गई। अभियान में वन विभाग के कर्मचारियों के साथ स्थानीय लोगों को भी जोड़ा गया। इसका नतीजा यह हुआ कि आज छत्तीसगढ़ में 250 के करीब जंगली हाथी हो गए हैं। 2002 में यहां के जशपुर, रायगढ़, सरगुजा और कोरबा इलाके में 32 हाथी दिखे थे।

छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) डॉ. आर. के. सिंह का कहना है, ‘‘राज्य में इनसान और हाथियों में द्वंद्व गंभीर समस्या है। लोगों को लगातार जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए रोजाना हाथियों के लोकेशन की मॉनिटरिंग की जा रही है। हर दिन शाम को रेडियो प्रसारण के जरिये लोगों को जानकारी और हाथियों से दूर रहने की सलाह भी दी जा रही है।’’ लेकिन लोग फसल बचाने के लिए हाथियों को घेरने में लग जाते हैं या फिर लघुवनोपज (महुआ और दूसरी चीजें) के संग्रहण के लिए जंगल की तरफ जाते हैं। हाथी घरों में रखे महुआ और शराब से भी आकर्षित होता है। महुआ और शराब की गंध से हाथी मानव बस्ती में घुसता है।

कहा जाता है कभी-कभी यहां के लोग आस्था और जिज्ञासावश भी हाथियों के समीप जाकर मौत को न्योता देते हैं। दक्षिण के राज्यों में बड़ी संख्या में हाथी हैं, लेकिन वहां इनसान व उनके बीच द्वंद्व नहीं होता। डॉ. सिंह का कहना है वहां के लोग हाथियों के साथ रहना सीख गए हैं। यहां समय लगेगा। यहां पर लोगों को हाथियों से छेड़छाड़ न करने की हिदायत दी जाती है लेकिन उसकी परवाह नहीं करते।

वन्यप्राणियों के जानकार प्राण चड्ढा का कहना है कि हाथियों को नियंत्रित करने का तरीका ही गलत है इस कारण से इनसान और हाथी आपस में भिड़ रहे हैं। मिर्ची के धुआं से हाथी जैसे प्राणी को रोका नहीं जा सकता। मिर्ची के धुएं से हाथी प्रताड़ित होते हैं।

उजाड़े गए खेत में खड़े किसान

नेचर क्लब बिलासपुर के संस्थापक सदस्य प्रथमेश का मानना है कि वन्य प्राणियों का लगातार होता शिकार और उनके निवास क्षेत्र में इनसानी अतिक्रमण उनके अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी है। हर वन्य प्राणी का अपना-अपना क्षेत्र होता है, चाहे वह शेर हो या हाथी या फिर भालू। वन्य प्राणियों के लिए कुछ क्षेत्र सुरक्षित करना होगा। छत्तीसगढ़ के कुछ ऐसे इलाके जहां आबादी की पहुंच नहीं थी, केवल घने जंगल थे, वहां भी कोल माइंस शुरू हो गए या शुरू होने जा रहे है, उससे वन्य प्राणी प्रभावित होंगे। कोरबा वन मंडल के लेमरू जैसे इलाके में कोल माइंस शुरू करने की जगह उसे हाथियों के लिए रिजर्व करना चाहिए।

वन विशेषज्ञों का कहना है हाथियों में मादा हाथी लीडर होती है, वह ग्रुप का नेतृत्व करती है और परिवार बढ़ने के लिए नर हाथियों को झुंड से बाहर कर रहवास बदलने के लिए मजबूर करती है। इस कारण भी हाथी नए ठिकाने की तलाश करता है। छत्तीसगढ़ के वाइल्ड लाइफ प्रमुख डॉ. आर. के सिंह का कहना है अब हाथी की समस्या से निपटने के लिए झारखंड और ओडिशा के साथ समझौता किया जाएगा, जिससे हाथी राज्यों की सीमाओं में ही रहे। पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और बिहार को भी इस समझौते में जोड़ा जाएगा। छत्तीसगढ़ में हाथियों का विस्तार क्षेत्र रोकने के लिए की रणनीति बनाई जा रही है। छत्तीसगढ़ ने हाथियों के रेस्क्यू के लिए वाइल्ड लाइफ एस.ओ.एस. संस्था से एमओयू किया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून से तकनीकी सहायता भी ली जा रही है। हाथियों को राज्य के गुरु घासीदास राष्‍ट्रीय उद्यान एवं एलीफेंट रिजर्व तमोर पिंगला, सेमरसोत और बादलखोल अभ्यारण्य में सीमित रखा जाएगा, जिससे आम आदमी जंगली हाथियों के निशाने पर न आएं। जंगली हाथियों को पकड़कर पालतू बनाने पर भी काम किया जा रहा है, इसके लिए वन विभाग के कुछ लोग ट्रेनिंग लेने कर्नाटक गए हैं।  झारखंड और ओडिशा की तुलना में छत्तीसगढ़ में जंगल अच्छे है, जिससे उनको यहां पर्याप्‍त भोजन मिल रहा है।

छत्तीसगढ़ में हाथी ही नहीं, अब भालू ने भी लोगों का जीना दूभर कर दिया है। पिछले 4-5 महीने में आधे दर्जन से अधिक लोग भालू के शिकार हो गए हैं। पहले छत्तीसगढ़ का मरवाही इलाका ही भालू प्रभावित था, अब जशपुर,  बलरामपुर और कांकेर भी प्रभावित होने लगा है। राज्य में भालुओं की संख्या कितनी है इसका रिकार्ड वन विभाग के पास नहीं है, क्योंकि इनकी गणना नहीं होती। भालू को भी महुआ का शौकीन कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों में महुआ बीनने जाने वाले भालुओं की चपेट में ज्यादा आते है। प्राण चड्ढा का कहना है भारत में प्रति किलोमीटर सबसे ज्यादा भालू छत्तीसगढ़ में हैं। यहां भालुओं का पसंदीदा फल-फूल और वनस्पति काफी मात्रा में है। चड्ढा का कहना है राज्य में सफेद भालुओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

सरकार हाथी और भालू के शिकार लोगों को मुआवजा दे रही है, लेकिन जंगल के रहवासियों से इनसानों की लड़ाई चिंता का विषय है। जंगल कट रहे है, इनसानों का जंगल में दखल बढ़ रहा है, जंगल में खाना-पानी नहीं मिल रहा है, जिससे हाथी-भालू जैसे जानवर मानव बस्तियों में आ रहे है। लोगों को जागरूक होना होगा और नैसर्गिक संतुलन को बरकरार रखना होगा। 

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