चमकदार ग्रेनाइट पत्थरों की भव्य इमारत देख सहसा यकीन नहीं होता कि हम सही ठिकाने पर पहुंचे हैं। अंदर विस्तृत साफ-सुथरे परिसर, सुंदर गलियारे को देख आप और चौंक जाते हैं। लेकिन ठहरिए, अभी चौंकने के कारण और हैं। क्लासरूम स्मार्ट हैं। उनमें ऑडियो-विजुअल पढ़ाई के सरंजाम मौजूद हैं। बच्चों के लिए बेंच और मेज-कुर्सी पब्लिक स्कूलों को मात दे रहे हैं। लाजपत नगर का शहीद हेमू कालाणी सर्वोदय बाल विद्यालय दिल्ली के उन 54 सरकारी स्कूलों में एक है, जिनका कायापलट देश की राजधानी में सरकारी शिक्षा की बदली कहानी बयान करता है। लिहाजा, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और स्कूलों के आधिकारिक आंकड़ों पर गौर करें तो हाल के वर्षों में बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे भी निजी पब्लिक स्कूलों से बेहतर हुए हैं और पब्लिक स्कूलों से छात्रों के बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूलों में आने का सिलसिला शुरू हो गया है लेकिन निजी पब्लिक स्कूलों से होड़ लेने के लिए अब भी बहुत कुछ करने की दरकार है।
हालांकि ‘आप’ सरकार अपने 33 महीने के कार्यकाल में व्यापक निवेश के जरिये शिक्षा क्षेत्र की सूरत बदलने का दावा करती है। दरअसल, देश के अनेक हिस्सों की तरह दिल्ली के सरकारी स्कूलों की पहचान खस्ताहाल इमारतों, बुनियादी सुविधाओं के घोर अभाव, शिक्षकों की कमी बन गई थी। यही कारण है कि मध्य वर्ग के लोग भी पेट काटकर बच्चों को मोटी फीस वाले निजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं। हाल में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह आरोप भी लगाया कि पिछली सरकारों ने सरकारी स्कूलों की उपेक्षा करके शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा दिया। ‘आप’ सरकार इसी प्रक्रिया को उलटने के लिए दावा करती है कि उसने अपने पिछले दो बजटों में शिक्षा पर खर्च बढ़ाया तो हालात बदलने लगे हैं।
राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में बदलाव के लिए प्रधानाचार्यों से सुझाव मांगे थे। 54 स्कूलों ने सुधार के लिए अपना विजन दिया। इसमें ढांचागत और अन्य सुधारों की जरूरत बताई गई। सरकार ने उनके विजन पर मुहर लगाई। लाजपत नगर का शहीद हेमू कालाणी सर्वोदय बाल विद्यालय इसका एक उदाहरण है। स्कूल की इमारत कभी खंडहर जैसी हुआ करती थी। उसमें सिर्फ सुविधाएं ही आधुनिक नहीं हुई हैं बल्कि नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं जिसे समावेशित शिक्षा कहा जा रहा है है। इसके तहत आम बच्चों के साथ ही विशेष शारीरिक क्षमताओं वाले बच्चों को मौका दिया जा रहा है। इसके लिए कुछ कक्षाएं साथ भी ली जाती हैं। करीब 60 नेत्रहीन बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ते हैं।
स्कूल के प्रिंसिपल बिजेश कुमार शर्मा कहते हैं, “यहां स्पेशल बच्चों के अलावा अफगानिस्तान के बच्चे भी पढ़ते हैं तथा स्पोर्ट्स वगैरह के लिए भी बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है।” उनके मुताबिक सरकार प्रिंसिपल और शिक्षकों को विदेशों में भेजकर ट्रेनिंग भी दिलवा रही है ताकि शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाया जा सके। शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए दो सौ मेंटर भी नियुक्त किए गए हैं। 90 स्कूलों के प्रिंसिपल को इस कार्यक्रम के तहत कैंब्रिज भी भेजा गया। इसी तरह दिल्ली के कई स्कूलों में स्पेशल फंड के जरिये सुविधाएं विकसित कर जा रही हैं। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष 2017-18 के लिए शिक्षा का बजट भी 11,300 करोड़ रुपये कर दिया है। यह पिछले साल के मुकाबले 23.5 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल 10,690 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की शिक्षा मामलों की सलाहकार आतिशी मारलीना कहती हैं, “इस समय दिल्ली सरकार के कुल 1029 स्कूल हैं। ‘आप’ सरकार बनने के बाद 20 नये स्कूल बने हैं। इनमें करीब 16 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इन स्कूलों में ढांचागत सुविधाएं बढ़ाई हैं। जिन स्कूलों में कमरे कम थे वहां कमरों की संख्या बढ़ाई गई है। पिछले दो साल में 5,695 नये कमरे बने हैं। डेढ़ साल के भीतर स्कूलों में 12 हजार नये कमरे बनाने का लक्ष्य सरकार ने तय कर रखा है। सरकार की पहल से बोर्ड के नतीजों में सरकारी स्कूल निजी स्कूलों को पछाड़ रहे हैं। पिछले साल 12वीं के नतीजों में सरकारी स्कूलों का प्रतिशत 88 था जबकि पब्लिक स्कूलों का 82 ही था।”
रोहिणी के सेक्टर 21 में राजकीय सर्वोदय विद्यालय इसी साल अप्रैल से शुरू हुआ है। इसके प्रिंसिपल डॉ. सुखवीर यादव का दावा है कि स्कूल में कुल 1176 छात्रों में से 900 छात्र ऐसे हैं जिन्होंने निजी स्कूलों से नाम कटवाकर दाखिला लिया है। यह आंकड़ा आपको अचंभित कर सकता है पर इस स्कूल की इमारत किसी भी निजी स्कूल को टक्कर देती है। इसी तरह की नई इमारत रोहिणी सेक्टर 22 में भी बनी है। यह स्कूल भी इसी साल शुरू हुआ है। इस स्कूल में करीब 1100 बच्चे हैं। यहां भी अधिकांश बच्चे निजी स्कूलों को छोड़कर आए हैं।
सुखवीर यादव कहते हैं, “आधुनिक क्लास रूम और बेहतरीन सुविधाएं इन बच्चों को यह एहसास नहीं होने देती कि वे किसी निजी स्कूल में नहीं पढ़ रहे हैं।” बेशक, निजी स्कूलों की भारी भरकम फीस अभिभावकों के लिए सिरदर्द बनी थी और सरकारी स्कूलों में सुधार से फीस से भी राहत मिली है। यही नहीं, ज्यादातर सरकारी स्कूलों को ऑनलाइन जोड़ दिया गया है। इसके अलावा प्रिंसिपल को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए स्कूल के अन्य कामों के लिए एस्टेट मैनेजर नियुक्त कर दिए गए हैं। 11वीं कक्षा के छात्र जितेंद्र का कहना है, “पढ़ाई-लिखाई निजी स्कूलों के मुकाबले जरा भी कम नहीं है। खेलने कूदने के अवसर भी यहां ज्यादा मिलते हैं।”
हालांकि शिक्षा की पूरी तस्वीर बदलने की राह में शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी समस्या है। कमी की भरपाई के लिए 15,000 गेस्ट टीचर नियुक्त किए गए हैं। करीब 48 हजार नियमित टीचर हैं। मगर 11 हजार से ज्यादा टीचर की कमी बनी हुई है। इसी वजह से सरकार ने गेस्ट टीचर को नियमित करने के लिए एक विधेयक विधानसभा से पारित करवाया, लेकिन उसे उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पाई।
सरकारी स्कूल शिक्षक संघ के अध्यक्ष सी.पी. सिंह कहते हैं, “इसमें दो राय नहीं कि सरकारी स्कूलों में बड़े सुधार हुए हैं और निजी स्कूलों को नतीजों में पछाड़ा भी है। स्कूलों की संख्या भी बढ़ी है लेकिन शिक्षकों की कमी बड़ी समस्या है।” लेकिन एक ही राज्य में दो अलग-अलग सरकारी निकायों से क्या होता है, दिल्ली इसकी मिसाल है। जहां दिल्ली सरकार के अधीन स्कूलों में सुधार दिख रहा है, वहीं दिल्ली नगर निगम के प्राइमरी स्कूलों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। निगम के स्कूलों में 2016-17 में 53,100 बच्चों का दाखिला हुआ, लेकिन कभी भी 65 फीसदी से ज्यादा हाजिरी नहीं लग पाई।
गैर-सरकारी संगठन प्रजा फाउंडेशन ने पाया कि निगम के स्कूलों में बच्चों के दाखिले में 2014-15 में चार फीसदी की गिरावट आई, 2015-16 में दो फीसदी की कमी आई जबकि 2016-17 में दाखिले छह फीसदी तक गिर गए। हालांकि उत्तरी दिल्ली नगर निगम की मेयर प्रीति अग्रवाल कहती हैं, “कुछ स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ई-शिक्षा शुरू की है। कक्षाओं का स्तर सुधारा गया है। पिछले साल से इस साल बीस फीसदी बच्चों का इजाफा हुआ है।”
बहरहाल, दिल्ली सरकार की सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करने की कोशिश अगर निजी पब्लिक स्कूलों के प्रति आकर्षण कम कर पाती है तो यह देश में शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति की तरह होगी और समूचे देश के लिए वह मिसाल भी बनेगी।