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नोएडा से इस्लामाबाद

आइटी क्षेत्र में बुलंदी का अगला मुकाम बनने को पाकिस्तान कितना तैयार? भारत में तो नौकरियां खत्म होने का सिलसिला जारी
नौकरियां जा रही हैं भारत से पाकिस्तान

अगली सुबह की ओर बढ़ती एक नवंबर की रात को अमेरिका के सिएटल स्थित आइटी सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी जोन्स की नोएडा शाखा के करीब आधे कर्मचारियों को इत्तला किया गया कि उनकी सेवाओं की अब और दरकार नहीं रही। जोन्स के एक कर्मचारी ने बताया कि नोएडा शाखा में 31 अक्टूबर को तनख्वाह देना एक दिन टाल दिया गया। आधिकारिक सूचना तो यही थी कि सर्वर काम नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘किसी को अंदाजा नहीं था कि कितनों की छंटनी होनी है।’’ अगली रात ‘‘आधे घंटे में 125 लोगों को अलविदा कह दिया गया।’’ उन्हें अक्टूबर महीने की तनख्वाह के साथ दो और महीने के मेहनताने के चेक और बर्खास्तगी की चिट्ठी पकड़ा दी गई। छंटनी की अफवाहें तो चार-पांच महीने पहले ही शुरू हो गई थीं। चर्चा यह थी कि जोन्स अब अपनी इकाई पड़ोसी देश में खोलने जा रही है।

संयोग यह देखिए कि जिस दिन नोएडा में लोगों को निकाला गया, ऐन उसी दिन 676 किलोमीटर दूर पाकिस्तान के इस्लामाबाद में जोन्स के दफ्तर में निचले स्तर की आइटी नौकरियों के लिए उतने ही लोगों की भर्ती की गई। भारत के आइटी क्षेत्र की नौकरियों में छंटनी का रोग करीब दो साल पहले लगा और इस साल की शुरुआत से बहुत तेज हो गया। सो, ‘‘बेंगलूरू में कत्लोगारत’’ जैसी सुर्खियां भी चीखने लगीं। लेकिन ये नौकरियां पाकिस्तान को रवाना होने की रवायत हाल की है। तो, क्या सीमा पर गोलीबारी और सर्जिकल स्ट्राइक के हो-हल्लों से दूर, पाकिस्तान निचले स्तर की आइटी नौकरियां छीनकर वाकई भारत को चोट पहुंचा सकता है? यकीनन पड़ोसी देश में आइटी उद्योग शबाब पर है और बड़ी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। उसे उम्मीद है कि वह आइटी क्षेत्र में भारत की कामयाबी की नकल बदस्तूर कर लेगा क्योंकि वहां अभी डाटा ऑपरेटर और बीपीओ कॉलर बहुत सस्ते में उपलब्ध हैं।

अगस्त 2015 में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा : ‘‘पाकिस्तान, अगला सॉफ्टवेयर हब?’’ उसी साल एक फ्रीलांस वेबसाइट अपवर्क डॉटकॉम ने दावा किया था कि सॉफ्टवेयर फ्रीलांसरों के मामले में पाकिस्‍तान दुनिया में पांचवें नंबर पर है। इस साल 2.6 करोड़ यूजर या उपयोक्ता वाली अपनी तरह की सबसे बड़ी वेबसाइट फ्रीलांस डॉटकॉम की फेहरिस्त में पाकिस्तान सॉफ्टवेयर फ्रीलांसरों के मामले में तीसरे स्थान पर था। इसी साल मध्य मई में ई-कॉमर्स की विशाल कंपनी अलीबाबा ने पाकिस्तानी सरकार के साथ एक सहमति-पत्र (एमओयू) पर दस्तखत किया और कथित तौर पर वहां वह ई-कॉमर्स क्षेत्र में 40 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी। दूरसंचार की बड़ी कंपनी टेलीनॉर कथित तौर पर पाकिस्तान में पिछले बारह साल में 3.5 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है और अब तेजी से 3जी और 4जी सेवा शुरू करने जा रही है। दशक भर पहले चाइना मोबाइल ने पाकटेल का 28.4 करोड़ डॉलर में अधिग्रहण कर लिया था। तब पाकटेल पाकिस्तान के दूरसंचार क्षेत्र में प्रमुख कंपनी हुआ करती थी।

आइटी क्षेत्र को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने वाले दूरसंचार क्षेत्र में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इस साल मार्च में पाकिस्तान टेलीकम्युनिकेशंस कंपनी लिमिटेड (पीटीसीएल) और चाइना टेलीकॉम ग्लोबल (सीटीजी) ने पाक में ऑप्ट‌िकल फाइबर नेटवर्क के काम में तेजी के लिए समझौता किया। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने कथित तौर पर खुलासा किया है कि इस साल जुलाई और अगस्त तक दूरसंचार क्षेत्र में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करीब 9.25 करोड़ डॉलर हो चुका है। इसका मकसद 3जी और 4जी को बढ़ावा देना है। तो, क्या चीन अब वही कर रहा है, जो दो दशक पहले अमेरिका भारत के लिए कर रहा था, जब वाइ2के (यानी वर्ष 2000 घटनाक्रम) से भारतीय आइटी क्षेत्र दुनिया के मंच पर पहुंच गया था? इसका श्रेय अनेक अमेरिकी कंपनियों को जाता है जिन्होंने अपने मेहनत-मजूरी के काम को भारतीयों को आउटसोर्स कर दिया था।

अब आइए जोन्स प्रकरण पर गौर करें। सूत्रों का मानना है कि कंपनी अमेरिका की दूसरी आइटी फर्म पीसीएम के नक्शेकदम पर चल रही है, जिसने अपना काम पाकिस्तान में ओवेक्स टेक्नोलॉजीज को आउटसोर्स कर दिया है। कराची में 10 पर्ल्स कंपनी 2015 से अमेरिकी अपभोक्ताओं को सेवा प्रदान कर रही है। तो, पाकिस्तान आइटी की गाड़ी की सवारी किस सीमा तक कर पाया है? उसके आइटी एक्सपर्ट किस पैमाने पर भारत से नौकरियां छीन सकते हैं और यह खतरा कितना बड़ा है? भारत के नैसकॉम जैसा उद्योग-व्यापार संगठन पाकिस्तान सॉफ्टवेयर हाउसेस एसोसिएशन (पाशा) के सेक्रेटरी जनरल शहरयार हैदरी ने आउटलुक को बताया कि हर साल करीब 10,000 आइटी ग्रेजुएट पाकिस्तान में नौकरी के लिए तैयार हो रहे हैं। वहां यह उद्योग अभी करीब 3 अरब डॉलर का है, जो भारत के मुकाबले ज्यादा बड़ा नहीं है। लेकिन जो आगे होने वाला है, वह आइटी क्षेत्र के लिए जरूर चिंता का विषय है। हैदरी कहते हैं, ‘‘हमारे यहां करीब डेढ़ लाख मुख्यधारा के आइटी एक्सपर्ट हैं। डेढ़-दो लाख के करीब फ्रीलांसर हैं। गैर-टेक फ्रीलांसरों को जोड़ लें तो यह संख्या दोगुने से ज्यादा हो जाने की उम्मीद है। भारत में हर साल 3-4 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट तैयार हो जाते हैं। इस लिहाज से पाकिस्तान की संख्या मामूली लगती है लेकिन हकीकत यह भी है कि पाक में बड़े उत्साह के साथ यह संख्या तेजी से बढ़ रही है जबकि भारत में घट रही है और हताशा घर कर रही है।

पाकिस्तान की दूसरी ताकत खासकर अमेरिकी आइटी कंपनियों के लिए अंग्रेजी है। पाकिस्तान में उच्च शिक्षा आयोग के कार्यकारी निदेशक अरशद अली का मानना है कि पाकिस्तान में सभी ग्रेजुएट अंग्रेजी में माहिर हैं और पिछले दस साल में टेक्नीकल शिक्षा के संस्थानों की संख्या दोगुनी हो गई है। अली कहते हैं, ‘‘अब आइटी पाठ्यक्रम मुहैया कराने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या 188 हो गई है।’’ भाषा संबंधी डाटाबेस इथनोलॉग का दावा है कि 17 करोड़ पाकिस्तानी अंग्रेजी बोल सकते हैं। ज्यादातर भले व्याकरण का ज्ञान न रखते हों मगर निचले स्तर के आइटी कार्यों या डाटा दर्ज करने में तो माहिर हैं। भारत की तरह ही पाकिस्तान के पास भी युवा आबादी का भंडार है। संयुक्त राष्‍ट्र जनसंख्या फंड के मुताबिक पाकिस्तान की कुल 20 करोड़ की आबादी में 20 से 24 वर्ष के युवाओं की तादाद 5.85 करोड़ है और 15 साल से कम युवाओं की संख्या 6.9 करोड़ है। युवाओं की इस आबादी का ज्यादातर आइटी उद्योग में जाने को इच्छुक है।

तो, क्या भारत को कंधा उचकाकर यह देखना चाहिए कि कहीं रावलप‌िंडी एक्सप्रेस उसे आइटी दौड़ में पछाड़ने तो नहीं जा रही है? एक्सपर्ट तो कहते हैं कि यह दूर की कौड़ी है। आंकड़े अब भी भारत के पक्ष में हैं और शायद कुछ समय बाद पाकिस्तान हमारी नौकरियों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। एक्जीक्यूटिव सर्च फर्म हेड हंटर्स इंडिया के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिश लक्ष्मीकांत कहते हैं, ‘‘भारत में नौकरियां ऑटोमेशन (स्वचालित मशीनों) के कारण जा रही हैं। यह लागत घटाने और ऑटोमेशन बढ़ने की मांग की वजह से हो रहा है, न कि पाकिस्तान की ओर नौकरियों के चले जाने से।’’ लक्ष्मीकांत एचसीएल की मदुरै और कोयंबत्तूर की इकाइयों का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं, ‘‘नौकरियां महानगरों से कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों की ओर जा रही हैं।’’ उनके मुताबिक, भारत के बाहर की कंपनियां अपनी इकाइयां कम किराए वाले परिसरों, सस्ती जमीन और सस्ते कामगारों की तलाश में महानगरों से दूर जा रही हैं। बेंगलूरू में भर्ती करने वाली परामर्श फर्म शिरास एचआर की वरिष्‍ठ एचआर अधिकारी अंबिका एस. की राय भी यही है। उनका कहना है कि भारतीय बीपीओ उद्योग को चिंता की जरूरत नहीं है क्योंकि निचले स्तर की नौकरियां अब भी यहां उपलब्ध हैं। वे कहती हैं, ‘‘समस्या पांच से दस साल कार्य अनुभव वाले बीच की मैनेजर स्तर की नौकरियों को लेकर है।’’

अमेरिका स्थित कंसलटेंट देबोज्योति दास का कहना है कि पाकिस्तान की ‘राजनीतिक अस्थिरता’ की वजह से विदेशी कंपनियां वहां निवेश से घबराती हैं। दास यह भी कहते हैं कि अमेरिका में बड़े पैमाने पर इन-सोर्सिंग भी होने लगी है, खासकर जब ग्राहकों को लगता है कि वे सात समुंदर पार भारत और पाकिस्तान के लोगों से बात कर रहे हैं। हैदरी कहते हैं, ‘‘हमारे बीच जैसा नफरत का रिश्ता है, उसमें यह स्वाभाविक है कि 125 नौकरियों का भी भारत से पाकिस्तान चला जाना खतरा माना जा रहा है।’’ वे यह भी कहते हैं कि ‘‘एक मायने में यह आपके उद्योग के लिए सराहना की बात है। आपके लोग बीपीओ आउटसोर्सिंग से आगे बढ़ गए हैं। आइटी के मामले में हम भारत से पांच से दस साल पीछे हैं।’’ लेकिन यही पाकिस्तान के लिए बढ़त हो सकती है, जैसा कि भारत के लिए दो दशक पहले हुआ था। यह सही है कि भारत में ‘कीमतें’ बढ़ी हैं और बीपीओ की नौकरियां पहले ही फिलीपींस, बांग्लादेश और मलेशिया की ओर जा चुकी हैं। अब पाकिस्तान भी उसमें हिस्सा बांटने की पूरी कोशिश कर रहा है।

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