जिस दिन आपको लगने लगे कि आप सर्वगुणसंपन्न हो गए हैं, समझ लीजिए, वहीं से आप के गिरने की शुरुआत हो चुकी है। भारतीय बल्लेबाजी की गहराई की दुनिया भर में बड़ी बात हो रही है। विश्व क्रिकेट में लगातार गिर रही वेस्टइंडीज टीम को उसके घर में जाकर गिरा देने या बड़े खिलाड़ियों के अचानक संन्यास लेने से असहाय व पस्त श्रीलंका टीम को पराजित करने या स्पिन से भ्रमित व डरी हुई ऑस्ट्रेलियाई टीम को घर बुलाकर और डरा देने से आप विश्व क्रिकेट के सिरमौर नहीं बन जाते। असली चुनौती अभी बाकी है। आपकी बल्लेबाजी की गहराई की परीक्षा की घड़ी आ रही है। दक्षिण अफ्रीका में पहला कड़ा इम्तिहान होगा।
कमजोरों से मुकाबला करके जीतने से आत्मविश्वास का अतिरेक आप में समा जाता है। जिंबाब्वे, वेस्टइंडीज, श्रीलंका व ऑस्ट्रेलिया को हरा देने से जन्मे आत्मविश्वास ने इसी भावना को जन्म दिया है कि भारतीय टीम विश्व क्रिकेट में अजेय है पर ऐसी मान्यता को पहला झटका तो ताकतवर न्यूजीलैंड ने हमारे घर में आकर दिया। लगभग बराबरी के मुकाबले में भारत बमुश्किल न्यूजीलैंड में 50-50 ओवर व टी-20 शृंखला जीत पाया। दोनों ही प्रारूपों की शृंखला में भारत की पराजय भी हो सकती थी।
एक बात और उजागर हो गई। वह यह कि अगर विराट कोहली व रोहित शर्मा जल्दी आउट हो जाते हैं तो यह अत्यंत गहरी बल्लेबाजी वाली टीम संभल नहीं पाती है। भारत के पाटा विकेटों पर रनों की फसल काटने वाले कई भारतीय बल्लेबाजों में तकनीकी खामियां हैं। ये खामियां उछाल लेते विकेटों पर उभर सकती हैं। दक्षिण अफ्रीका में भले ही गेंद का मूवमेंट इतना नहीं हो, पर उछाल जरूर परेशानी का सबब बनता है। दक्षिण अफ्रीका में कैगिसो रबाडा व मोर्ने मोर्केल अपनी तेज रफ्तार व उछाल से भारतीय बल्लेबाजों को तंग कर सकते हैं।
आजकल क्रिकेट में प्रतिस्पर्धा बहुत कड़ी हो गई है। अगर आप में एक कमी है तो आप उसे छुपा नहीं सकते। टेलीविजन पर देखकर दुनिया उसे जान जाती है। उसी हिसाब से प्रतिद्वंद्वी तब आपके खिलाफ योजनाएं बनाते हैं। विराट कोहली व रोहित शर्मा को छोड़ कर कोई भी अन्य भारतीय बल्लेबाज तेज रफ्तार की शॉर्ट पिच बाउंसरों का प्रतिकार ठीक से नहीं कर सकता है। गेंद की रफ्तार अगर 125-135 किलोमीटर हुई, तब तक तो ठीक है। मगर जैसे ही बाउंसरों की गति 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर पहुंची, तो कोहली व रोहित को छोड़कर कोई अन्य बल्लेबाज हुक या पुल करने में विश्वसनीय नहीं लगता है। दक्षिण अफ्रीका में कैगिसो रबाडा और मोर्ने मोर्केल इसी रफ्तार की गेंदबाजी करेंगे और आपकी बल्लेबाजी की गहराई की कलई खोलने के लिए तत्पर होंगे।
दूसरी चिंता की बात है असहयोगी विकेटों पर भारतीय स्पिनरों का विकेट न ले पाना। अश्विन और रवींद्र जडेजा भारत में जब गेंदबाजी करते हैं, तो स्पिन लेते विकेटों पर अत्यंत जहरीले लगते हैं। इनकी गेंदों को खेलना बल्लेबाजों के लिए काफी मुश्किल होता है। उछाल वाले या बल्ले पर जल्दी आने वाले विकेटों पर ये मामूली बन कर रह जाते हैं। हां, तेज गेंदबाजी की कला में भारत ने जरूर प्रगति की है। भुवनेश्वर कुमार, उमेश यादव, मोहम्मद शमी और जसप्रीत बुमराह ने बहुत प्रभावित किया है। ये कामचलाऊ नहीं, शुरू से ही विकेट उखाड़ने वाले गेंदबाज हैं। पिछली कुछ ऐतिहासिक जीतों की तरफ ध्याद दें तो पाएंगे कि तेज गेंदबाजों ने शुरू में ही झटके देकर जीत की बुनियाद रखी थी।
स्पिनरों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत के लिए यजुवेंद्र चहल व कुलदीप यादव ने सफलता के नये दरवाजे खोले हैं। कुलदीप यादव बाएं हाथ के गेंदबाज हैं और चाइनामैन, गुगली व टॉपस्पिनर गेंद करने के लिए विख्यात हैं। उनकी गुगली पढ़ने में विदेशियों को बड़ी मुश्किल पड़ रही है। अतः विदेशों के बड़े बल्लेबाजों को चौंकाने में उनकी उपस्थिति बड़े काम आएगी। स्पिन गेंदबाजों के स्थान के लिए भारतीय टीम में स्पर्धा बहुत कड़ी हो गई है। आर.अश्विन, रवींद्र जडेजा, कुलदीप यादव व यजुवेंद्र चहल में से किसे स्थान मिलेगा, किसे नहीं यह तय नहीं है।
कहते हैं कि बल्लेबाज मैच बनाते हैं, जबकि गेंदबाज मैच जिताते हैं। भारतीय बल्लेबाजी में अजिंक्य रहाणे की वापसी अवश्य होनी चाहिए। विराट कोहली के बाद वही टीम में सबसे बेहतर तकनीक का प्रदर्शन करते हैं। उछाल वाली गेंदपट्टियों पर इस तकनीक की बड़ी जरूरत पड़ेगी। एक दिवसीय क्रिकेट व टी-20 क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी जरूर अपने विस्तृत तजुर्बे के बल पर बल्लेबाजी में स्थायित्व लाने की कोशिश करते हैं। अनुभव, ठोसपन व
विपरीत हालातों में बेहतर खेल पाने की काबिलियत उन्हें टीम का आवश्यक सदस्य बनाती है। कप्तानी में विराट कोहली के अति उत्साह को वह संतुलन देते रहते हैं। केदार जाधव जैसे कमतर खिलाड़ी अगर आज भारतीय टीम का हिस्सा हैं, तो आश्चर्य की बात है। फिटनेस के मामले में वह पैदल ही नजर आते हैं। शीर्ष स्तर की गेंदबाजी के आगे उनका व हार्दिक पांड्या का टिकना मुश्किल है। हार्दिक पांड्या की तेज शॉर्ट पिच गेंदों पर कमजोरी अब सभी को पता चल गई है। अतः कागज पर शक्तिशाली दिखने वाली भारतीय टीम की बल्लेबाजी गुणवत्ता वाले आक्रमण के सामने ढीली नजर आ सकती है। इसीलिए बल्लेबाजी की तकनीक की अनदेखी उचित नहीं होगी।
(लेखक जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं)