फ़ीरोज गांधी के अलावा शायद ही कोई दूसरा ऐसा व्यक्ति हो जिसके ससुर, पत्नी और पुत्र भारत जैसे विशाल देश के प्रधानमंत्री बने हों। लेकिन इसी के साथ यह भी सही है कि आज तक भारत सरकार उन पर एक डाक टिकट भी जारी नहीं कर सकी और अब उन्हें कोई याद नहीं करता। पुस्तक के लेखक 84 वर्षीय स्वीडिश पत्रकार बर्टिल फाल्क ने 1977 में पहली बार इंदिरा गांधी से भेंट की थी और तभी फ़ीरोज गांधी में उनकी दिलचस्पी जागृत हुई। अनेक वर्षों तक उनके बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारी एकत्रित करके बहुत परिश्रम के साथ उन्होंने यह पुस्तक लिखी है, लेकिन इसके बावजूद फ़ीरोज गांधी के बारे में अनेक बातें अनिर्णीत ही रह गई हैं।
आज फ़ीरोज गांधी की स्मृति का विशेष महत्व है क्योंकि उनका सबसे बड़ा योगदान प्रेस की आजादी के लिए विधेयक तैयार करके संसद में उसे पारित कराने का है। 1956 में इस विधेयक के पारित होने तक यह व्यवस्था थी कि यदि किसी सांसद ने संसद में बोलते हुए किसी पर कोई आरोप लगाया तो उसे अखबार में प्रकाशित नहीं किया जा सकता था। फ़ीरोज गांधी, जो खुद नेशनल हेराल्ड में काम कर चुके थे, इस व्यवस्था से असंतुष्ट थे। उन्होंने प्रेस की आजादी को विस्तार देने और उसे कानूनी संरक्षण देने के लिए लोकसभा में निजी विधेयक पेश किया और उसे पारित कराया। इस कारण उन्हें ‘प्रेस का लाडला’ कहा जाने लगा।
केरल में जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी ने 1959 में आंदोलन चलवा कर मुख्यमंत्री ई. एम. एस. नंबूदिरीपाद की सरकार को बर्खास्त कराया, तब फ़ीरोज गांधी ने अपनी पत्नी की आलोचना की। हालांकि तब तक फ़ीरोज इंदिरा से अलग रहने लगे थे, लेकिन सुबह का नाश्ता वे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ तीन मूर्ति भवन में ही करते थे। यदि इस पुस्तक के लेखक की मानें तो नाश्ते की मेज पर फ़ीरोज ने अपनी पत्नी के इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें ‘फासिस्ट’ तक कह डाला जिसे सुनकर गुस्से में इंदिरा गांधी उठ कर कमरे से बाहर चली गईं। फ़ीरोज गांधी इलाहाबाद के एक पारसी परिवार के थे और अपनी मां रत्तीमाई गांधी की अविवाहित बहन शीरीन कमिसारीयत के पास रहते थे जो एक मशहूर डॉक्टर थीं। लेकिन यह अफवाह भी थी कि मौसी ही हकीकत में मां हैं और प्रमुख स्थानीय वकील राज बहादुर कमला प्रसाद कक्कड़ उनके पिता हैं। बर्टिल फाल्क ने बहुत छानबीन करके दस्तावेजी सुबूतों के आधार पर दर्शाया है कि यह एक निराधार अफवाह ही थी लेकिन फिर भी वह इसे निर्णायक ढंग से कहने से बचे भी हैं। फ़ीरोज गांधी जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू के भी बहुत नजदीक थे और यह निकटता एक साथ राजनीतिक काम करने के दौरान विकसित हुई थी। प्रत्यक्षदर्शियों को उद्धृत करते हुए लेखक ने बताया है कि कमला नेहरू तपेदिक से गंभीर रूप से पीड़ित थीं और उस समय जब आनंद भवन के नौकर-चाकर ही नहीं बल्कि नेहरू परिवार के लोग भी उनके पास जाने और उनकी देखभाल करने से बचते थे, तब फ़ीरोज गांधी ने किस तरह पूरे समर्पण के साथ उनकी सेवा की थी और उनका पीकदान तक साफ किया था। इसलिए जब 1930 के दशक में इलाहाबाद में कमला और फ़ीरोज के बीच संबंधों पर उंगली उठाते हुए एक भद्दा पोस्टर लगाया गया, तो नैनी जेल में बंद जवाहरलाल नेहरू ने इसकी जांच का काम रफी अहमद किदवई को सौंपा। किदवई ने जांच की तो पता लगा कि पोस्टर के पीछे जिन लोगों का हाथ था उनमें जवाहरलाल के चचेरे भाई शामलाल नेहरू की पत्नी उमा नेहरू और स्थानीय कांग्रेस नेता बिशंभर नाथ पांडे और मंगला प्रसाद भी शामिल थे। जाहिर है कि आरोप नितांत निराधार था।
फ़ीरोज और इंदिरा के संबंधों में तनाव बढ़ा जिसका एक कारण पति का अपने ससुर और देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संसद के अंदर और बाहर विरोध करना भी था। मूंधड़ा कांड में भ्रष्टाचार का फ़ीरोज ने पर्दाफाश किया जिसके कारण नेहरू के विश्वासपात्र और इस कांड में निर्दोष वित्तमंत्री टी. टी. कृष्णमाचारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया। फ़ीरोज के रंगीले स्वभाव के बारे में अनेक अफवाहें होते हुए भी इंदिरा के साथ उनका स्नेह-सूत्र पूरी तरह नहीं टूटा। डॉम मोरेस ने जब इंदिरा गांधी से पूछा कि किसकी मृत्यु से उन्हें सबसे अधिक आघात लगा तो उन्होंने जवाब दिया कि अपने पति की मृत्यु से। फ़ीरोज गांधी में दिलचस्पी रखने वाले पाठकों को इस अत्यंत पठनीय पुस्तक से अनेक नई जानकारियां मिलेंगी।