कवियों के बारे में कहा जाता है कि वे भविष्यद्रष्टा होते हैं। मशहूर शायर साहिर लुधियानवी का एक शेर इसी सिलसिले में याद आ रहा है। साहिर ने लिखा था, ‘बरबादियों का शोक मनाना फिजूल था, बरबादियों का जश्न मनाता चला गया।’ ऐसा लगता है कि लगभग पचपन साल पहले साहिर ने जब यह शेर लिखा होगा तो वे आज के भारत का वर्णन कर रहे थे। वैसे भी हम लोग उत्सवप्रिय लोग हैं। शादी का जश्न हम जिस तरह मना सकते हैं वैसे कोई नहीं मना सकता। यह कह सकते हैं कि शादी का जश्न ‘बरबादियों का जश्न’ मनाना ही है, जिस पर ताउम्र कुंआरे साहिर तंज कस रहे थे। यह अलग मुद्दा है लेकिन यह भी सच है कि हम लोग दरअसल बारात, नागिन डांस, मलाई कोफ्ता, डीजे, अंधेरे में कार की डिक्की खोल कर चुपके-चुपके शराब पीना, मौसाजी का रूठना, बुआ का विलाप वगैरह शादी के जश्न के लिए करते हैं। दूल्हा-दुल्हन तो निमित्त मात्र होते हैं, अगर उनके बिना भी शादी हो जाने का कोई विधान होता तो हम वह भी कर लेते। बाकी शादी में साथ में लड़की के बाप की बरबादी का एक एडिशनल बेनेफिट तो होता ही है, आजकल नशे में हवाई फायर करके एकाध की जान लेने का प्रचलन भी लोकप्रिय है।
जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हुए हैं, तब से राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसा जश्न मनाना चल पड़ा है। भारत के भावी प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी कह भी चुके हैं कि मोदी बहुत अच्छे इवेंट मैनेजर हैं, सो इस बात को साबित करने के लिए मोदी इवेंट पर इवेंट कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे यह देश एक विशाल बैंक्वेट हॉल है जिसमें रोज कोई विराट शादी हो रही है। जैसे मोदी ने आधी रात को संसद का अधिवेशन करके जीएसटी लागू कर दिया। जश्न का भव्य आयोजन करने की व्यस्तता में सरकार यह देखना भूल गई कि जो जीएसटी वह लागू कर रही है उसके कलपुर्जे दुरुस्त हैं कि नहीं।
हालत यह है कि जीएसटी से दुर्घटनाओं का सिलसिला चला जा रहा है और उनका जश्न मनाना भी लगातार साथ-साथ चल रहा है। नोटबंदी की सालगिरह पर जश्न मनाना तो ‘बरबादियों का जश्न’ मनाने का आदर्श उदाहरण है। जिस बात ने देश की अर्थव्यवस्था को पैदल कर दिया, लाखों को बेरोजगार कर दिया उसका जश्न मनाने के लिए उच्च स्तर की प्रतिभा चाहिए। जश्न मनाने से फायदा यह होता है कि दुर्घटना में घायल लोगों का इलाज करने की जिल्लत से बचा जा सकता है। लोग इलाज की उम्मीद करें उसके पहले ही जश्न की मिठाई उनके मुंह में ठूंस देनी चाहिए। भारतीय यूं भी उत्सवप्रिय हैं, अगर आम भारतीय को किसी बारात में ‘आज मेरे यार की शादी है’ की धुन पर नाचने का मौका मिल जाए तो वह बड़ा से बड़ा दुख भूल जाए। देश में अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी है, हलवाइयों की नहीं। इसलिए भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का इलाज करने के बजाय उसे मिठाई खिलाना समझदारी है, भारत में आज यही हो रहा है। पद्मावती प्रकरण लेटेस्ट उदाहरण है जहां सारा देश अपनी बुद्धि के खोने पर सिर पीटने के बजाय खुशियां मना रहा है।