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‘लद गए नक्सलियों की समानांतर सत्ता के दिन’

भारतीय जनता पार्टी में किसी राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लंबी पारी खेलने वाले नेता बन गए हैं डॉ. रमन सिंह। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 में चुनाव होने हैं। वे ‘मिशन 2018’ को गंभीरता से ले रहे हैं। मात्र 40 दिनों के अंतराल में सत्ता और संगठन के चिंतन, मंथन और केंद्र व राज्य के संगठन और सत्ता के साथ लगातार रायशुमारी यह बता रही है कि चौथी पारी के लिए भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। जाहिर है, चुनाव को अभी ढाई साल बाकी हैं और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी अभी से चुनाव मोड में दिख रही है। राज्य में विपक्ष की गतिविधियां और सरकार के कामकाज को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से बातचीत के प्रमुख अंश-
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह

 

राज्य में तीसरी पार्टी के उदय से भाजपा को कितना नफा या नुकसान हो रहा है?

तुरंत नफा-नुकसान का जायजा लेना जल्दबाजी होगी। छत्तीसगढ़ में ‘नेक टू नेक कान्टेस्ट’ का इतिहास रहा है। काफी कम वोटों के अंतर से हार-जीत हुआ करती है। फिर भी तीसरी पार्टी की निर्णायक भूमिका से इनकार नहीं कर सकते। पांच से आठ फीसद वोट में ही बड़ा खेल होता रहा है। वैसे पिछले तीन चुनावों की तरह इस बार भी फायदा भाजपा को ही होना है। हम चौथी बार सरकार बनाने जा रहे हैं। हमारा मुख्य मुकाबला कांग्रेस के साथ ही है।

ढाई साल बाद क्या आपको चौथी बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने का मौका मिलेगा? 

हम पिछले 12 साल से जनता के बीच काम कर रहे हैं। सकारात्मक राजनीति से बहुमत पा रहे हैं और सरकार चला रहे हैं। तभी तो हर बार राज्य की जनता भाजपा को चुन रही है। 12 वर्षीय विकास की लंबी गाथा है। इसलिए दावा कर रहे हैं कि हम चौथी बार सरकार बना रहे हैं।

आपकी विकास की इस लंबी गाथा में आदिवासी कहां खड़ा है? नक्सल मोर्चे पर आपकी सरकारी की सफलता का पैमाना क्या है?

बस्तर में विकास दिख रहा है। नक्सल प्रभावित बस्तर में सड़कों ने आकार लेना शुरू किया है। शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं आदिवासियों तक पहुंची हैं। अब आदिवासियों के बच्चे आईआईटी में सलेक्ट होने लगे हैं। बस्तर के लिए हमारा सूत्र वाक्य शांति के साथ विकास का था, है और रहेगा। बस्तर में नक्सलियों की समानांतर सत्ता के दिन अब लदने लगे हैं। बस्तर और सरगुजा विकास प्राधिकरण की मार्फत इन इलाकों में सरकार की मौजूदगी को क्या आप विकास नहीं मानते? नक्सल मोर्चे पर हमारी सफलता यही है कि कभी माओवाद की धारा में बहने वाला आदिवासी, समाज की मुख्यधारा को आत्मसात कर रहा है। वह अब बस्तर में सड़क, पानी, बिजली, मोबाइल टावर के साथ सुरक्षा मांग रहा है और सरकार यह सब दे रही है।

विकास की लंबी गाथा के बावजूद पिछले दो महीनों में ऐसा कौन सा संकट आ गया कि संगठन ने पहले चिंतन, फिर मंथन कर न केवल कार्यकर्ताओं को बल्कि सत्ता को भी संदेश दिया कि सुधर जाओ वरना...?

हर चुनाव नर्ई रणनीति के साथ लड़ा जाता है। 20-20 के मैच में आखिरी ओवर की आखिरी गेंद में कभी आखिरी बल्लेबाज छक्का मारकर मैच जीत जाता है। इसलिए फील्ड वर्कर को यह बताना जरूरी है कि चुनाव किसी क्रिकेट के मैदान से कम नहीं। इसमें बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग का संतुलन ही टीम को विजय दिलाता है। इन्ही विषयों पर चिंतन मंथन हुआ और आगे भी होगा। हम 12 साल के कामकाज का ब्यौरा लेकर जनता के बीच जाएंगे। भाजपा की यह कोशिश है कि टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया की मार्फत राज्य के वोटर भाजपा से जुड़ें। भाजपा में संगठन हमेशा सर्वोपरि रहा है और संगठन का मार्गदर्शन सत्ता को शिरोधार्य है।

विपक्षी कांग्रेस इस बार कुछ ज्यादा ही आक्रामक है। आप पर आरोप है कि आपके जोगी से अच्छे खासे संबंध हैं?

विपक्ष हर बार ही आक्रामक रहता है। लेकिन लोकतंत्र में जो जीतता है, वही सिकंदर कहलाता है। रहा प्रश्न जोगी से संबंध का, तो मेरे संबंध सभी से अच्छे हैं। आरोप लगाने वालों से भी अच्छे ही हैं। राजनीति में व्यक्तिगत संबंध रखना कोई अपराध नहीं।

आप कहते हैं कि कांग्रेस नॉन इश्यू को भी इश्यू बनाती है, किस इश्यू की बात कर रहे हैं?

पिछले एक साल से कांग्रेस आउटसोर्सिंग से शिक्षकों की भर्ती को लेकर हल्ला कर रही है। शिक्षकों की भर्ती के लिए 96 फीसद छत्तीसगढ़ के लोगों के आवेदन आए हैं। मात्र चार फीसद बच्चे बाहर के हैं। उसी तरह आठ साल बाद कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में अगस्ता हेलीकॉप्टर की खरीदी याद आई। वह भी तब जब राज्यसभा और लोकसभा में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व तीन हजार करोड़ के अगस्ता वेस्टलेंड की खरीदी को लेकर घिरने लगा। नॉन इश्यू को इश्यू बनाना, इश्यू को डायवर्ट कर जनता का ध्यान भटकाने से चुनाव नहीं जीते जाते। यह कांग्रेस को समझना चाहिए। 

केंद्र में 10 साल तक यूपीए की सरकार थी और अब एनडीए की है। क्या अंतर मानते हैं?

केंद्र की पिछली और मौजूदा सरकार के राज्यों के साथ संबंधों में बुनियादी अंतर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र और राज्यों की योजनाओं की मॉनिटरिंग खुद करते हैं। जबकि पिछली सरकार ने कभी राज्य सरकारों के साथ समन्वय बनाने की कोशिश नहीं की। मौजूदा सरकार हर तीन माह में राज्यों के साथ बैठक कर रही है। अभी राज्यों के संघीय ढांचे के साथ न्याय हो रहा है।

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