पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने का मिल रहा है। इन चुनावों में जहां नौ महीने पुरानी कांग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की पहली परीक्षा है, वहीं स्थानीय निकायों पर पहले से काबिज अकाली-भाजपा गठबंधन के लिए खिसकते जनाधर को बचाए रखने की चुनौती है। इधर, आम आदमी पार्टी स्थानीय निकाय चुनावों में पहली बार मैदान में है। 2014 में लोकसभा की चार सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटें जीतने वाली आप की नजरें स्थानीय निकायों से आगे 2019 के लोकसभा चुनावों पर हैं। सांसद धर्मवीर गांधी, पूर्व प्रदेश संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर और गुरप्रीत सिंह घुग्गी जैसे दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने के बावजूद तीन नगर निगमों, 32 नगर परिषदों व नगर पंचायतों के लिए उम्मीदवार मैदान में उतार आप ने परंपरागत दलों की चिंता बढ़ा दी है।
17 दिसंबर को स्थानीय निकाय चुनाव से एक दिन पहले 16 दिसंबर को नौ महीने पूरे करने वाली कैप्टन सरकार एक भी बड़ा चुनावी वादा पूरा नहीं कर पाई है। नोटिफिकेशन के बावजूद प्रदेश के 10.25 लाख छोटे किसानों (पांच एकड़ तक जमीन के मालिक) की 9,500 करोड़ रुपये की कर्ज माफी न होना कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। उद्योगों को पांच रुपये प्रति यूनिट बिजली का नोटिफिकेशन भी लागू नहीं हो पाया।
अमृतसर और जालंधर जैसे औद्योगिक शहरों के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को उद्योगपतियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। घर-घर रोजगार, बेरोजगार युवाओं को 2,500 रुपये महीना भत्ता, स्मार्ट फोन जैसे चुनावी वादे हवाई साबित हुए हैं। 17 लाख से अधिक एससी,बीसी व बीपीएल परिवारों को हर महीने 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा पूरा करने की बजाय उन चार लाख से अधिक परिवारों को अभी तक हर महीने मिल रहे फ्री 200 यूनिट की सुविधा भी बंद कर दी गई जिनकी पिछले साल खपत 3,000 यूनिट पार कर गई थी। खाली खजाने के चलते मुलाजिमों को समय पर तनख्वाह तक न दे पाने वाली कांग्रेस सरकार भले ही अक्टूबर में गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव जीत फूले नहीं समा रही है पर इसका नौ महीने का असली रिपोर्ट कार्ड स्थानीय निकाय चुनाव में सामने आएगा।
कांग्रेस को धोखेबाजों की सरकार करार देने वाले अकाली-भाजपा गठबंधन ने राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। उम्मीदवारों की सूची सबसे पहले जारी कर गठबंधन अपने-अपने पार्टी सिंबल पर मैदान में है। ग्रामीण इलाकों में मजबूत पैठ का फायदा उठाने के लिए अकाली दल ने नगर पंचायतों में अधिक उम्मीदवार उतारे हैं वहीं शहरों में भाजपा ने। अमृतसर नगर निगम के लिए अकाली दल ने 27 तो भाजपा ने 38 प्रत्याशी उतारे हैं। जालंधर में अकाली दल के 22 व भाजपा के 38 प्रत्याशी मैदान में हैं। मालवा में अकाली दल के मजबूत जनाधार को देखते हुए पटियाला नगर निगम के लिए अकाली दल के 35 तो भाजपा के सिर्फ 15 उम्मीदवारों पर सहमति बन पाई है। इस बीच, कई सीटों पर अकाली उम्मीदवारों के पर्चे रद्द होने के बाद पार्टी ने धरना दिया। अकाली दल के वरिष्ठ नेता सुखबीर सिंह बादल ने पर्चे साजिश के तहत रद्द होने का आरोप लगाया और इसे लोकतंत्र की हत्या कहा।
कांग्रेस की तर्ज पर आम आदमी पार्टी अपने दम पर सभी सीटों पर अकेले ताल ठोक रही है। कांग्रेस सरकार द्वारा वादे पूरे न करना विपक्षी दलों ने चुनावी हथियार बनाया है। अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा के मुताबिक स्थानीय निकाय चुनाव में अकाली-भाजपा गठजोड़ कांग्रेस सरकार की नाकामियों को जनता के बीच उजागर करेगा। वहीं आम आदमी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अमन अरोड़ा ने कहा कि दिल्ली में आप की सरकार के विकास कार्यों को लेकर पार्टी पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों में उतरी है। स्थानीय निकायों के लिए विजन डाक्यूमेंट जारी करने वाली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने सरकार के अगले चार साल में प्रदेश के तमाम शहरों में सौ फीसदी पीने का साफ पानी, सीवरेज, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और स्ट्रीट लाइट का वादा किया है। यही तमाम वादे नौ महीने पहले बनी कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनावों के दौरान घोषणापत्र में भी किए थे।