पटना के ज्ञान भवन में तीन दिसंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 10वीं और 12वीं के टॉपर को सम्मानित कर रहे थे। सम्मानित होने वालों में 12वीं (कला) की टॉपर नेहा कुमारी भी थी। नेहा की जगह पर गणेश कुमार सम्मानित हो रहा होता यदि मीडिया ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बीएसईबी) के कारनामे को उजागर नहीं किया होता। संगीत में 82.6 फीसदी अंक हासिल कर गणेश टॉपर बना था। उसे नेहा से छह नंबर ज्यादा मिले थे। इसमें संगीत की प्रैक्टिकल परीक्षा में 70 में से मिले 65 नंबर का महत्वपूर्ण योगदान था। मीडिया से जब गणेश का सामना हुआ तो पता चला कि उसे संगीत का बुनियादी ज्ञान भी नहीं है। शुरुआत में बोर्ड ने उसका बचाव किया। मामले के तूल पकड़ने पर उसकी गिरफ्तारी हुई। परीक्षा में बैठने के लिए उसने उम्र में भी फर्जीवाड़ा किया था। इसके बाद गणेश का रिजल्ट निलंबित कर बीएसईबी ने मधुबनी की नेहा कुमारी को टॉपर घोषित कर दिया। यह इकलौता मामला नहीं है जिसमें बिहार बोर्ड की कारस्तानी पकड़ी गई है।
पास को फेल, फेल को पास
सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के सिटानाबाद पंचायत के छोटे से गांव गंगा प्रसाद टोले की प्रियंका सिंह 10वीं परीक्षा में फेल कर दी गई। उसे हिंदी में 78, संस्कृत में 09, गणित में 93, सोशल साइंस में 90 और विज्ञान में 49 नंबर मिले थे। संस्कृत में फेल प्रियंका विज्ञान में मिले नंबर से भी संतुष्ट नहीं थी। उसने स्क्रूटनी के लिए आवेदन किया। बोर्ड का जवाब था ‘नो चेंज’। वह हाइकोर्ट पहुंची। बोर्ड ने उसके दावे को झुठलाने की कोशिश की। कोर्ट और बोर्ड का समय बर्बाद करने का आरोप लगाया। 40 हजार रुपये जमा करवाए। इसके बाद बोर्ड ने कोर्ट के सामने उत्तर पुस्तिका पेश की। प्रियंका ने पाया कि उसकी उत्तर पुस्तिका बदली हुई है। हैंडराइटिंग जांच से उसके दावे की पुष्टि होने के बाद उत्तर पुस्तिका की तलाश शुरू हुई। पाया गया कि प्रियंका की उत्तर पुस्तिका पर संतुष्टि कुमारी नाम की एक अन्य छात्रा को संस्कृत और साइंस में पास कर दिया गया, जबकि प्रियंका को फेल। कोर्ट के आदेश के बाद प्रियंका को संस्कृत में 93 और विज्ञान में सौ अंक मिले। अदालत ने बोर्ड पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। इस तरह प्रियंका न केवल पास हुई बल्कि टॉप टेन में भी जगह बनाने में कामयाब रही।
मिले थे 79, दिए 2 नंबर
रोहतास जिले के धनंजय कुमार ने भी इसी साल 10वीं बोर्ड की परीक्षा दी थी। जब 22 जून को रिजल्ट आया तो वह फेल था। उसे हिंदी में 02, संस्कृत में 79, गणित में 96, सोशल साइंस में 68 और विज्ञान में 99 नंबर मिले थे। स्क्रूटनी के लिए आवेदन किया तो जवाब मिला ‘नो चेंज’। इसके बाद उसने आरटीआइ के तहत अपनी उत्तर पुस्तिका की फोटो कॉपी मांगी। महीनों की दौड़भाग के बाद एक नवंबर को जब बोर्ड ने उत्तर पुस्तिका की फोटो कॉपी दी तो पता चला कि धनंजय को हिंदी में दो नहीं 79 नंबर मिले हैं।
प्रियंका और धनंजय का कीमती साल बोर्ड की लापरवाही की भेंट चढ़ चुका है। प्रियंका ने आउटलुक को बताया,"मुझे सफलता मिली, क्योंकि मैं लड़ी।" प्रियंका और धनंजय जैसे सैकड़ों और भी छात्र हैं जो दौड़-भाग से परेशान हो अब अगले साल परीक्षा देने की तैयारी कर रहे हैं। बताया जाता है कि बारकोडिंग की गलती के कारण करीब पांच हजार छात्रों की कॉपी मिसिंग है। दसवीं और बारहवीं के नौ सौ से अधिक छात्रों ने आरटीआइ के तहत उत्तर पुस्तिकाओं की कॉपी मांगी है। सूत्रों के अनुसार इनमें से केवल 41 छात्रों को ही बोर्ड ने अब तक कॉपी उपलब्ध कराई है।
निजी खुन्नस में गड़बड़ी
बोर्ड के सचिव अनूप कुमार सिन्हा ने आउटलुक को बताया कि प्रियंका और धनंजय की कॉपी के साथ जिला स्तर पर ‘निजी खुन्नस’ में गड़बड़ी की गई थी। मामला सामने आने के बाद दोषियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। हालांकि सिन्हा ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि स्क्रूटनी के लिए आवेदन मिलने के बावजूद रिजल्ट में सुधार क्यों नहीं किया गया। 10वीं बोर्ड की 1.42 लाख उत्तर पुस्तिका की स्क्रूटनी के लिए आवेदन दिए गए थे। इनमें से 95 फीसदी में बोर्ड का जवाब रहा ‘नो चेंज’।
दसवीं की करीब 25 सौ कॉपियां बारकोडिंग नहीं होने के कारण बिना जांच के बोर्ड के स्टोर रूम में पड़ी है। 2632 छात्रों का रिजल्ट पेंडिंग हैं। जानकारों का मानना है कि 2016 के टॉपर घोटाले के दाग को धोने की हड़बड़ी में बोर्ड जो ताबड़तोड़ फैसले ले रहा है उसने हजारों बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। 2017 में 10वीं बोर्ड की परीक्षा में करीब 17.23 लाख छात्र बैठे थे। इनमें से करीब आधे 8.63 लाख फेल हुए।
इसी तरह करीब 12.40 लाख बच्चों ने 12वीं बोर्ड की परीक्षा दी। इनमें से करीब 64 फीसदी साढ़े सात लाख से ज्यादा बच्चे फेल हो गए। 12वीं का इससे खराब रिजल्ट 1997 में आया था, जब कोर्ट की निगरानी में परीक्षा होने के कारण केवल 14 फीसदी बच्चे ही पास हो पाए थे। सरकार और बीएसईबी का दावा है कि कदाचार मुक्त परीक्षा के कारण इस बार ऐसा रिजल्ट आया है। लेकिन, स्क्रूटनी के लिए आवेदनों की भरमार और अंक पत्र में सुधार के लिए बोर्ड के काउंटरों पर अब तक लगी छात्रों की कतार कुछ और ही कहानी कहती है।
पटना विश्वविद्यालय में भौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शंकर कुमार मिश्रा ने बताया कि इस साल जो गड़बड़ियां हुईं उसके लिए मुख्य रूप से उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की प्रणाली जिम्मेदार है। शिक्षकों के हड़ताल के कारण उत्तर पुस्तिकाओं की जांच नियमों की अनदेखी कर करवाई गई। बोर्ड का ध्यान केवल प्रमाण-पत्र बांटने पर है। शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं है। प्रो. मिश्रा नीतीश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सिमुलतला आवासीय विद्यालय के संस्थापक प्राचार्य रह चुके हैं। अगले साल छह फरवरी से 12वीं की और 21 फरवरी से 10वीं की लिखित परीक्षा होनी है। इसके लिए पिछले महीने बोर्ड ने मॉडल प्रश्नपत्र अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया था। इसमें गलतियों की भरमार थी। जब मामला सामने आया तो फॉन्ट मिसिंग का बहाना बनाकर इसे वेबसाइट से हटा लिया गया। रजिस्ट्रेशन का काम निजी एजेंसी को दिया गया है और इसमें भी कई स्तर पर गड़बड़ी सामने आई है। 12वीं के करीब 50 छात्रों के रजिस्ट्रेशन में गड़बड़ी है। तस्वीर से लेकर हस्ताक्षर तक गलत पाए गए हैं। बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर ने बताया कि इस बार पहले डमी एडमिट कार्ड जारी करने का फैसला किया है। इसमें परीक्षार्थी के ब्योरे में गड़बड़ी की शिकायत मिलने के बाद उसे दूर किया जाएगा और परीक्षा से पहले ऑरिजनल एडमिट कार्ड जारी किया जाएगा।
चौपट शिक्षा-व्यवस्था
गणेश के मामले को देखते हुए बोर्ड ने अगले साल से प्रायोगिक परीक्षाएं होम सेंटर पर नहीं कराने का फैसला किया है। बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता अभिषेक कुमार इसे अदूरदर्शी फैसला मानते हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के ज्यादातर स्कूलों में प्रयोगशालाएं नहीं हैं। ऐसे में छात्र दूसरे सेंटरों पर जाकर क्या करेंगे। उन्होंने बताया कि पटना जिले में प्लस टू हाई स्कूलों में भौतिकी के केवल सात शिक्षक हैं। विज्ञान और गणित के शिक्षकों की कमी राज्य के तकरीबन हर स्कूलों में है। इन विषयों के लिए सरकार को शिक्षक भी नहीं मिल रहे। राज्य में महज दो दर्जन ही ऐसे स्कूल हैं जहां सभी विषयों के शिक्षक हैं।
प्रो. मिश्रा और कुमार जिस समस्या की बात कर रहे हैं वह ज्यादा गंभीर है। असल में बिहार में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में क्वालिटी पर सरकार का फोकस ही नहीं है। बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद ने आउटलुक को बताया कि स्कूलों में संसाधन और शिक्षकों का घोर अभाव है। जो शिक्षक हैं उन्हें भी वर्दी, साइकिल बांटने जैसे करीब तीन दर्जन गैर शिक्षण कार्यों में सरकार समय-समय पर लगाती रहती है। हाल ही में शिक्षा विभाग ने दो जिलों में शिक्षकों को सुबह-सुबह खुले में शौच करने से लोगों को रोकने के काम पर लगाने का आदेश जारी किया था। हालांकि विरोध के बाद सरकार ने यह आदेश वापस ले लिया।
इसी साल अप्रैल में तत्कालीन शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि पांचवीं के बच्चे तीसरी कक्षा के सवालों का भी जवाब देने लायक नहीं हैं। शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने बताया कि जहां कमी है उसे दूर किया जा रहा है। अब परीक्षा में नकल करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। शिक्षकों की बहाली भी सरकार करने जा रही है।
‘अग्रतः सकलं शास्त्रं पृष्ठतः सशरं धनुः’ अर्थात आगे सारे शास्त्र और पीछे शस्त्र हैं। शस्त्र (हथियार) की बजाय शास्त्र (शिक्षा) पर जोर देने वाले इस वाक्य को बिहार बोर्ड ने अपना ध्येय बना रखा है। पर लगता नहीं कि वह इस सूत्र वाक्य को जमीन पर उतारने के लिए संजीदा है।