करीब सालभर पहले की बात है। मकर संक्रांति के दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी पत्नी साधना सिंह राजधानी भोपाल के टी.टी. नगर स्टेडियम पहुंचते हैं। नवगठित आनंद विभाग के ‘आनंदम’ कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं। अपनी जरूरत से अतिरिक्त चीजें जैसे जैकेट, साड़ियां, कंबल, बर्तन, स्कूल बैग जरूरतमंदों के लिए दान करते हैं। पतंग उड़ाते हैं। जरूरत से अतिरिक्त चीजें जरूरतमंदों को दान करने के लिए इस तरह के कार्यक्रम की शुरुआत करने वाला मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है।
इस अनूठे कार्यक्रम का प्रदेश में एक साथ शुभारंभ करते हुए चौहान ने कहा था कि नागरिकों के जीवन में प्रसन्नता का हिस्सा बढ़ाने के लिए यह पहल की गई है। उन्होंने जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण लाने के मकसद से आनंद सभाओं के आयोजन और छात्रों को तनावमुक्त जीवन जीने की कला सिखाने की घोषणा की थी। पर प्रदेश की जमीनी हकीकत और आनंदम केंद्रों की हालत दूसरी ही तस्वीर पेश करती है।
प्रदेश की भाजपा सरकार के ‘विकास’ और ‘स्वर्णिम मध्य प्रदेश’ के दावे के विपरीत राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2015 में रोजाना औसतन चार किसान जान दे रहे थे। 2016 में यह संख्या 6 हो गई। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में दुष्कर्म की सबसे ज्यादा घटनाएं मध्य प्रदेश में हुईं। देश में 38 हजार 947 दुष्कर्म के मामले सामने आए, जिनमें से मप्र में 4,882 दर्ज किए गए। बच्चों के अपहरण, यौन शोषण, महिलाओं पर हमले और अपमानित करने के मामलों में भी प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। अनुसूचित जनजातियों पर अत्याचार के मामलों में देश में सबसे ऊपर है।
पिछले कुछ समय से राज्य में वरिष्ठ नागरिकों के साथ घटित होने वाले अपराध भी बढ़ गए हैं। 2016 में वरिष्ठ नागरिकों के साथ करीब 10 फीसदी अपराध बढ़े हैं। इस कारण वरिष्ठ नागरिकों के साथ घटित होने वाले अपराध की श्रेणी में मध्य प्रदेश का स्थान अब देश में दूसरा है। ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के एक रिसर्च से पता चलता है कि राज्य के एक तिहाई से अधिक (34 फीसदी) स्कूली बच्चे किसी न किसी तनाव से गुजर रहे हैं। मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. राघवेन्द्र ने इस रिसर्च के नतीजों का ब्योरा सरकार को भेजकर जरूरी उपाय करने का आग्रह किया है। ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के डॉ. पीयूष दत्त स्वामी और उनकी टीम ने इस स्थिति से उबरने के लिए ‘एडल्ट सेंट फ्रेंडली हेल्थ क्लीनिक’ बनाने का सुझाव दिया है।
आनंद संस्थान के मुख्य कार्यपालन अधिकारी मनोहर दुबे ने आउटलुक को बताया, “इस विभाग का गठन मध्य प्रदेश के पिछले दस सालों के उल्लेखनीय विकास को देख कर किया गया था। प्रदेश ने 2005-06 से 2013-14 के दौरान राज्य सकल घरेलू उत्पाद में प्रचलित दरों के आधार पर 16.09 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर प्राप्त की थी। यह विकास सूचकांक प्रदेश की भौतिक प्रगति इंगित करते हैं, परन्तु इससे नागरिकों की खुशहाली का स्तर पता नहीं चलता। संतुलित और खुशहाल जीवन-शैली के लिए लोगों को विधियां और उपकरण उपलब्ध कराने के मकसद से अगस्त 2016 में सरकार ने आनंद विभाग गठित करने का फैसला किया।”
इस कार्यक्रम के तहत आनंदक के तौर पर पंजीयन कराने के लिए मुख्यमंत्री ने खुद लोगों से अपील की थी। www.anandsansthanmp.in पर जाकर कोई भी पंजीयन करा सकता है। आनंद के प्रसार के लिए सरकार इन्हें प्रारंभिक प्रशिक्षण देती है। लेकिन, गुजरते वक्त के साथ योजना अपने उद्देश्यों में सफल होती नहीं दिख रही। पिछले 11 महीने में प्रदेश के 51 जिलों में नवगठित आनंद विभाग अभी 40 हजार वालंटियर्स ही बना पाया है। योजना के तहत सभी जिला मुख्यालयों में 172 केंद्रों की शुरुआत की गई। इन केंद्रों पर लोग जरूरतमंदों के लिए अतिरिक्त सामान रख सकें इसके लिए ‘नेकी की दीवार’ की शुरुआत की गई। शिवराज ने पंचायत स्तर तक इस योजना को ले जाने की बात कही थी।
मुख्यमंत्री ने महिलाओं से विशेषकर इस पहल को प्रोत्साहित करने की अपील की थी। लेकिन, टी.टी. नगर स्टेडियम में अपनी पत्नी के साथ उन्होंने जिस केंद्र की शुरुआत की थी आज वही धूल खा रहा है। इसके अलावा भोपाल में कॉन्सेप्ट स्कूल साउथ टी.टी. नगर, संजय तरण पुष्कर-कोहेफिजा,गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र और स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड में भी इस तरह के केंद्र की शुरुआत की गई थी। टी.टी. नगर स्टेडियम के केंद्र में अभिनव बिंद्रा शूटिंग सेंटर के पीछे चार ड्रम रखे हुए हैं, ताकि आमजन अतिरिक्त कपड़े, कंबल, चादर और अन्य सामग्री रख सकें। काॅन्सेप्ट स्कूल साउथ टी.टी. नगर का आनंदम केंद्र एक शेड के नीचे है और सामग्री रखने के लिए ड्रम रखे हुए हैं। गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित केंद्र में ताला जड़ा रहता है।
इन केंद्रों के खाते में कोई उपलब्धियां या कामयाबियां नहीं हैं। धीरे-धीरे वीरानी छा रही है। साल की शुरुआत में जोर-शोर से खुले ये केंद्र एक के बाद एक बंद होते जा रहे हैं। इस बीच, सरकारी धन से कर्मचारियों को आनंद शिविरों में भेजने का सिलसिला जारी है। कर्मचारियों को खुश रहने का तरीका सिखाने के लिए राज्य सरकार ने यह शुरुआत की है। कोयंबटूर, पंचगनी और बेंगलूरू में शुरू किए गए इन शिविरों में एक कर्मचारी को भेजने पर सरकार के 20 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। प्रति माह इस तरह के शिविरों में 100 कर्मचारियों को भेजने की योजना है। इस तरह प्रत्येक बैच पर 20 लाख का खर्च आता है। महत्वपूर्ण यह है कि कर्मचारियों और संघों के अधिकारी ऐसे शिविरों में जरूर भेजे जा रहे हैं। अब सरकार विभाग के पहले सालगिरह के मौके पर जश्न की तैयारी कर रही है। विभाग का कहना है कि उसने आनंद बरसाने की तैयारी कर ली है। इस बार मकर संक्रांति से अगले एक सप्ताह तक ‘आनंद उत्सव’ के तहत शहरी और ग्रामीण अंचलों में परंपरागत खेलकूद, संगीत आदि के आयोजन कराए जाएंगे।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री राजा पटेरिया आनंद विभाग को लूट खसोट का नया अड्डा मानते हैं। वे कहते हैं,‘‘प्रदेश में भाजपा के 14 साल के शासनकाल में सब कुछ लुट गया है। अब जब लूटने के लिए कुछ नहीं बचा है तो सरकार ने आनंद विभाग खोल दिया है। इस विभाग के जरिए सरकार उन परिवारों के पास क्यों नहीं जाती जिनके मुखिया या सदस्य उसकी बेरुखी के कारण आत्महत्या कर चुके हैं।”
कहते हैं, आनंद मन के अंदर बसा होता है। इसे पाया नहीं जा सकता। जिंदगी को भरपूर जीना चाहिए, इतनी समग्रता से जीना चाहिए कि फिर इसे पाने के लिए विवश नहीं होना पड़े। लेकिन, मध्य प्रदेश सरकार आनंद की तलाश की इस योजना के बहाने लोगों का रुख बदलना चाहती है। उसका मकसद है कि आर्थिक रूप से संपन्न नागरिक अपनी जरूरत से अतिरिक्त सामग्री जरूरतमंदों को देने के लिए सरकार का साथ देकर आनंद बटोरें और सरकार अपनी कमियों को इसके पीछे छिपा सके।