प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में कर्ज से जुड़ी सब्सिडी की सुविधा (सीएलएसएस) एक अहम पहल है। इसका मकसद कमजोर आर्थिक वर्गों (ईडब्लूएस) और निम्न आय वर्गों (एलआइजी) को नए घर बनाने और खरीदने के लिए संस्थागत कर्ज के दायरे में इजाफा करना है। योजना के तहत तीन अन्य पहल झुग्गी-झोपड़ी पुनर्विकास, किफायती आवास के लिए साझेदारी और लाभार्थियों से जुड़े निर्माण/विस्तार के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं के उलट सीएलएसएस कर्ज देने वाली प्रमुख प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में कर्ज से जुड़ी सब्सिडी की सुविधा (सीएलएसएस) एक अहम पहल है। इसका मकसद कमजोर आर्थिक वर्गों (ईडब्लूएस) और निम्न आय वर्गों (एलआइजी) को नए घर बनाने और खरीदने के लिए संस्थागत कर्ज के दायरे में इजाफा करना है। योजना के तहत तीन अन्य पहल झुग्गी-झोपड़ी पुनर्विकास, किफायती आवास के लिए साझेदारी और लाभार्थियों से जुड़े निर्माण/विस्तार के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं के उलट सीएलएसएस कर्ज देने वाली प्रमुख संस्थाओं के जरिए लाभार्थियों को सीधे लाभ पहुंचाने के लिए प्रत्यक्ष केंद्रीय पहल है। इसमें शीर्ष स्तर पर राष्ट्रीय आवास बैंक और हुडको से कर्ज दिया जाता है। कमजोर आर्थिक तबकों के परिवारों (सालाना आय तीन लाख रुपये तक) और निम्न आय वर्ग के परिवारों (3-6 लाख रुपये सालाना आय) को बैंक और दूसरी वित्तीय संस्थाओं से 20 साल तक के लिए घर कर्ज के ब्याज दर पर 6.5 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी। इन्हीं आय वर्गों को तय राशि से अधिक घर कर्ज बिना सब्सिडी वाले ब्याज दर पर उपलब्ध होगा।
अहम यह भी है कि मध्यम आय वर्गों (एमआइजी) के लिए सीएलएसएस की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के बाद 31 दिसंबर 2016 को राष्ट्र के नाम संबोधन में की थी। बाद में इसे दो हिस्सों एमआइजी-1 और एमआइजी-2 में बांट दिया गया। सालाना 6-12 लाख रुपये आय वालों को एमआइजी-1 और 12-18 लाख रुपये वालों को एमआइजी-2 में रखा गया। एमआइजी-1 के तहत कर्ज की अधिकतम सीमा चार प्रतिशत ब्याज सब्सिडी पर 9 लाख रुपये और एमआइजी-2 के लिए तीन प्रतिशत ब्याज सब्सिडी पर 12 लाख रुपये तय की गई। इस तरह कर्ज सब्सिडी छह लाख रुपये (6.5 प्रतिशत ), नौ लाख रुपये (चार प्रतिशत ) और 12 लाख रुपये (तीन प्रतिशत) कर्ज पर 20 साल की अवधि के लिए क्रमशः 2.67 लाख रुपये, 2.35 लाख रुपये और 2.30 लाख रुपये बैठती है।
हाल में कैबिनेट ने एमआइजी-1 कैटेगरी के लिए कारपेट एरिया मौजूदा 90 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 120 वर्ग मीटर और एमआइजी-2 कैटेगरी के लिए 110 वर्ग मीटर से 150 वर्ग मीटर कर दिया। यह फैसला एक जनवरी 2017 से लागू है। कर्ज की पात्रता के लिए आय सीमा में इजाफा और कारपेट एरिया बढ़ाए जाने से एमआइजी तबके के लिए डेवलपर परियोजनाओं में अपनी पसंद का घर लेने का व्यापक विकल्प मिल जाएगा और बाजार में मंदी की वजह से खाली पड़े बने-बनाए फ्लैटों की बिक्री में तेजी आएगी।
प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के लिए 2016-17 में कुल अनुमानित बजट आवंटन 5,075 करोड़ रुपये था, जो 2017-18 में बढ़ाकर 6,043 करोड़ रुपये कर दिया गया। बजट आवंटन में करीब 1,000 करोड़ रुपये की यह प्रस्तावित बढ़ोतरी लगभग पूरी तरह एमआइजी सीएलएसएस के लिए की गई। राष्ट्रीय आवास बोर्ड 2017-18 में 20,000 करोड़ रुपये का व्यक्तिगत घर कर्ज दोबारा मुहैया कराएगा। अक्टूबर 2017 की ताजा रिपोर्टों के मुताबिक राष्ट्रीय आवास बोर्ड सीएलएसएस के तहत अब तक 1,292 करोड़ रुपये जारी कर चुका है और हुडको 64,752 घर कर्ज के मामले निबटा चुका है। हालांकि यह सार्वजनिक नहीं किया गया है कि ईडब्लूएस, एलआइजी और एमआइजी कैटेगरी के लिए अलग-अलग कितनी राशि जारी की गई।
यह समझा जा सकता है कि सीएलएसएस में हाल के बदलाव और मध्यम आय वर्ग के लिए आवास मुहैया कराने के उपाय गरीब और एलआइजी तबकों की बेहद कम रुचि दिखाने और कर्ज के कम उठान की वजह से किए गए। सरकार ने अब आश्वस्त किया है कि कर्ज का उठान बढ़े। फिर, प्रति परिवार सब्सिडी वाले कर्ज की राशि में इजाफे और कारपेट एरिया तथा आय संबंधी सीमाओं और शर्तों में छूट देकर कर्ज वापसी की गारंटी भी दी गई है।
जाहिर है, नए उपायों से आवास निर्माण में निजी और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। लिहाजा, इसका जीडीपी और श्रम बाजार पर अच्छा असर पड़ेगा और रियल एस्टेट-बिल्डर लॉबी और मध्य वर्ग को लाभ मिलेगा। लेकिन गंभीर चिंता का मामला यह है कि इससे प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का गरीब हितैषी चरित्र ही खो जाएगा। यह गंभीर खतरा है कि कर्ज वापसी की क्षमता के अभाव और दस्तावेज तथा दूसरी औपचारिकताओं को पूरा न कर पाने के कारण गरीब किनारे रह जाएंगे और सीएलएसएस के तहत सब्सिडी का पूरा लाभ मध्य वर्ग उठा लेगा।
यह महज संयोग नहीं है कि ये घोषणाएं तब हुईं, जब विभिन्न शहरों में जमीन-जायदाद की कीमतों (सर्किल दरों समेत) में गिरावट के साथ घर कर्ज की ब्याज दर भी लुढ़कने लगी। गिरावट का यह रुझान नोटबंदी के बाद तेज हो गया। कई दूसरी पहल भी शुरू की गईं, जिनसे मध्य वर्ग को आवास हासिल करने में सहूलियत होगी। मसलन, 2016 का रियल एस्टेट (नियमन और विकास) कानून, रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट, 2016 का बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन कानून, घर कर्ज पर कर रियायतें, माल तथा सेवा कर (जीएसटी), जमीन संबंधी सुधार, स्टांप ड्यूटी तथा पंजीकरण शुल्क का नियमन, प्रक्रियाओं का सरलीकरण और डिजटलीकरण वगैरह। मंत्रालय निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए डेवलपर संगठनों, बैकों, आवास वित्त निगमों और दूसरे संबंधित संस्थाओं से संपर्क कर रहा है। असल में प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के पुराने स्वरूप के तहत निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी मामूली ही रही है।
2011 की जनगणना के मुताबिक, 1.1 करोड़ घर खाली थे, जिनमें 2001 से 2011 के बीच 72 फीसदी की भारी दर से बढ़ोतरी हुई थी। हाल के दौर में खाली घरों में बढ़ोतरी बिल्डरों के अनाप-शनाप निवेश का नतीजा था, जिनमें ज्यादातर सरकारी सब्सिडी व्यवस्था के तहत पैसा लगा था। यह देख अचरज होता है कि क्यों सरकार सख्त कदमों तथा कराधान नियमों और 30 से 60 वर्ग मीटर के घरों के निर्माण को बढ़ावा देकर आवास बाजार में बेहिसाब ऊंची कीमतों को नीचे लाने की कोशिश के बदले सरकारी सब्सिडी के जरिए निजी बिल्डरों के खाली पड़े मकानों की बिक्री में मदद कर रही है? इस तरह इस आवास योजना से गरीब पूरी तरह गायब ही हो गया है। वह तो अधिकतम दो लाख रुपये के कर्ज की ईएमआइ अदा करने की कूव्वत रखता है, वह भी तब जब ब्याज पूरी तरह माफ हो।
ऐसी ही पुरानी योजना के बेहद खराब प्रदर्शन से यह अंदाजा मिलता है कि उसकी रूपरेखा में ही गंभीर समस्या थी। ईडब्लूएस और एलआइजी तबकों के लिए गैर-मुनासिब कीमतों, पेचीदा प्रक्रिया और दस्तावेजी अनिवार्यताओं की वजह से होने वाली परेशानियों को हल करने के बदले सरकार ने योजना के तहत कर्ज उठान बढ़ाने और खर्च के लक्ष्य को पूरा करने के खातिर एमआइजी तबकों के लिए दरवाजा खोल दिया।
शहरी आवास में कमी पर तकनीकी समूह का आकलन है कि शहरों में 1.88 करोड़ आवास की कुल अनुमानित कमी में ईडब्लूएस और एलआइजी तबकों के मामले में यह क्रमशः 56.18 फीसदी और 39.44 फीसदी है। महीने में 5,000 रुपये की आमदनी वाले परिवार ईडब्लूएस और 5,000 रुपये से 10,000 रुपये आमदनी वाले परिवारों को एलआइजी में रखा जाता है। यह बेहद स्वीकार्य प्रथा है कि लंबी अवधि करीब 15-20 साल के लिए घर कर्ज परिवार की सालाना आमदनी का चार गुना होना चाहिए। यह इस आधार पर तय किया जाता है कि ईएमआइ भुगतान सालाना आय का 25-30 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। ज्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र से कमाई करने वाले गरीब परिवार किसी भी सूरत में इससे अधिक खर्च बर्दाश्त नहीं कर सकते। 15 साल की अवधि के लिए सब्सिडी वाले ब्याज दर पर 3-6 लाख रुपये कर्ज की ईएमआइ भी 3,000-5,000 रुपये महीने बैठती है। गरीबों के लिए आमदनी का 50 फीसदी से अधिक ईएमआइ के रूप में चुकाना काफी संकट वाला मसला हो सकता है।
अगर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के खर्च के तौर-तरीके पर गौर करें तो करीब 15 सौ रुपये से अधिक का ईएमआइ गरीबों के लिए मुनासिब नहीं है। बेघरों, दैनिक मजदूरी करने वालों, प्रवासी मजदूरों और वंचित परिवारों के लिए ऐसे कर्ज का भुगतान बेहद मुश्किल होगा। इस तरह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवंटित रकम के खर्च से लक्षित जनसमूह को तो लाभ कतई नहीं होगा। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी एनएचबी रेसिडेक्स और तिमाही आवास मूल्य सूचकांक के मुताबिक पिछले दो साल को छोड़कर करीब डेढ़ दशक तक घर की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। रिजर्व बैंक और संबंधित मंत्रालय आवास को ईडब्लूएस और एलआइजी तबकों की हद में लाने के लिए कई मंचों पर चिंताएं जाहिर कर चुके हैं। कर्ज की रकम और ईएमआइ को कम करने के लिए आवास की डिजाइन, जमीन के इस्तेमाल, तकनीक, निर्माण संबंध्ाी सामान और दूसरे मसलों के साथ पर्यावरण संबंधी टिकाऊपन पर नए रिसर्च करके निर्माण की लागत घटाना ही एकमात्र उपाय है।
(अमिताभ कुंडू जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और अर्जुन कुमार स्वतंत्र शोधार्थी हैं)