नाज खान
वो करे बात तो हर लफ्ज से खुश्बू आए,
ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए।
उर्दू की मिठास से सराबोर ये पंक्तियां यूं ही नहीं कही गईं। बात दो अलग संस्कृतियों की हो या दिलों की, उर्दू जबान अपने वजूद की शुरुआत से ही इन्हें जोड़ने का काम करती रही है। हालांकि गंगा-जमुनी तहजीब की अलमबरदार रही उर्दू, सियासत का शिकार भी कम नहीं हुई। यहां तक कि साजिशन इसे किसी एक खास तबके से जोड़कर अलग-थलग करने की कोशिश की जाती रही। इसके बावजूद इस जबान की खासियत है कि इसने दिलों में जगह बनाई। ‘जश्ने-रेख्ता’ संस्कृतियों के मिलन और खुशबू से सराबोर उस झोंके का नाम है जो दिलों को करीब ला रहा है। इसके बहाने तहजीब संजोने का काम कर रहे हैं संजीव सराफ। उन्होंने ‘रेख्ता’ के जरिए लोगों को उर्दू के करीब आने का मंच दिया। उनके प्रयास ने इस मिथक को भी तोड़ा कि उर्दू खास तबके तक सीमित है।
‘रेख्ता’ की शुरुआत की कहानी दिलचस्प है। ‘रेख्ता’ के संस्थापक संजीव सराफ कहते हैं, उन्हें उर्दू शायरी से बेइंतहा लगाव रहा है। इसके लिए उन्होंने जब इंटरनेट पर शायरों का कलाम ढूंढ़ा तो उन्हें ऐसी साइट नहीं मिली जिसमें उर्दू शायरों के मुकम्मल कलाम हों। तब उन्हें एक वेबसाइट बनाने का विचार आया। उर्दू साहित्य तक लोगों की पहुंच आसान बनाने के तहत छोटे पैमाने पर ‘रेख्ता’ वेबसाइट जनवरी 2013 में शुरू की गई। उनका कहना है, ‘‘अभी तक खासकर दिल्ली में रेख्ता के आयोजन होते रहे हैं, मगर उर्दू की इस मुहिम को उन शहरों तक भी पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है जहां खासकर उर्दू जबान को पसंद करने वाले लोग ज्यादा हैं। यही वजह है कि चंडीगढ़ में ‘रंगे-रेख्ता’ के नाम से एक कार्यक्रम किया जा चुका है और इसे आगे भी लखनऊ, भोपाल, पटना, पुणे जैसे शहरों में करने की योजना है।’’
‘रेख्ता’ उर्दू जबान के चाहने वालों के लिए ऐसा जरिया है, जहां उर्दू शायरों, अदीबों की किताबों का जखीरा है। उर्दू के लिए यह अपनी तरह का अलग और अनोखा प्रयास है। ‘रेख्ता’ की वेबसाइट पर इस बात का भी ख्याल रखा गया है कि सभी सहूलियत के मुताबिक इस पर सर्च कर सकें। यहां उर्दू के साथ हिंदी और रोमन में भी सर्च सुविधा है। वेबसाइट पर 3001 शायरों की 30083 गजल, 5126 नज्में, करीब 23670 अशआर, 4645 ऑडियो, 4900 वीडियो और 34447 ई-किताबें हैं।
ऑडियो और वीडियो से किसी भी शायर के कलाम को गायकों या खुद शायरों की आवाज में सुना या देखा जा सकता है। इसके लिए सामग्री देश की बड़ी लाइब्रेरियों से ली जाती है। इसके अलावा जो लोग उर्दू की दुर्लभ किताबों को ‘रेख्ता’ पर साझा करना चाहते हैं उनसे किताबें लेकर स्कैन करके ‘रेख्ता’ की लाइब्रेरी में इजाफा किया जाता है। इस साइट पर कोई भी ऑनलाइन उर्दू सीख सकता है। संजीव कहते हैं, ‘‘इस साइट की मदद से अगर कोई चाहे तो महज दो महीने में उर्दू जबान सीख सकता है।’’ इस तरह ‘रेख्ता’ उर्दू की उपयोगी सामग्री सहेजने और उर्दू चाहने वालों तक पहुंचाने का काम कर रही है। अनुमान के मुताबिक दुनिया के करीब 160 देशों तक ‘रेख्ता’ की पहुंच है। वहीं इसके प्रचार-प्रसार के लिए हर साल जश्ने-रेख्ता के तौर पर उर्दू जबान का एक उत्सव मनाया जाता है। इसकी खासियत है कि इसमें न सिर्फ देश के अलग-अलग हिस्सों से उर्दू को चाहने, जानने वाले फनकार, कलमकार आदि आते हैं, बल्कि इसमें दास्तानगोई, नाटक, कव्वाली, गजल, फिल्म स्क्रीनिंग, साहित्यिक चर्चाएं, मुशायरा, उर्दू कविता प्रतियोगिता, कैलिग्राफी, वर्कशाॅप, वाद-विवाद प्रतियोगिता, प्रदर्शनी, उर्दू बाजार, उर्दू गद्य और काव्य पाठ आदि कार्यक्रम के जरिए उर्दू जबान की खूबसूरती को करीब से देखने और समझे का मौका मिलता है।
कई बार जश्ने-रेख्ता का हिस्सा बन चुके अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर वसीम बरेलवी कहते हैं, ‘‘मैं रेख्ता को उर्दू का फायदा मानूंगा। हालांकि यह अलग बात है, यह उर्दू उन लोगों में पहुंचाई जा रही है जो उर्दू लिपि से नावाकिफ हैं। इसमें उर्दू जानने वाले लोग नहीं हैं मगर इसका हिस्सा बन रहे ज्यादातर उर्दू तहजीब के लोग हैं। इसका फायदा यह हो रहा है कि उर्दू तहजीब, उर्दू शायरी, उर्दू अफसाना, ड्रामा, नॉवेल की जो अजीम रवायत है, लोगों का उसकी तरफ रुझान हो रहा है। इसके जश्न में इतनी बड़ी तादाद में लोग सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं आते, बल्कि उनको जहनी सुकून भी मिलता है। मेरी नजर में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो रेख्ता के जश्न में जाने भर से उर्दू सीखने के ख्वाहिशमंद हो रहे हैं। उर्दू शायरों, लेखकों और इसे पसंद करने वालों से लेकर दूर-दूर तक उर्दू पहुंचाना एक बड़ा काम है और इसकी सबको कद्र करनी चाहिए। यह उर्दू का फायदा है कि इतना बड़ा जखीरा, सरमाया लोगों को घर बैठे पढ़ने को मिल रहा है।’’
वहीं इस जश्न का हिस्सा बनते रहे प्रसिद्ध लेखक व नाटककार असगर वजाहत कहते हैं, ‘‘उर्दू की तरफ लोगों की दिलचस्पी बहुत बढ़ रही है और रेख्ता की वेबसाइट से लोगों को बेहद फायदा पहुंच रहा है। मेरे ख्याल से यह बहुत ही काबिले-तारीफ काम है कि रेख्ता के जरिए नई पीढ़ी को उर्दू की तरफ आकर्षित करने का काम किया जा रहा है। कदीम शायरों, लेखकों को जानने के मौके के साथ ही आज के शायरों, उर्दू से जुड़े लोगों को भी रेख्ता के बहाने एक मंच मिल रहा है।’’
जनवरी, 2013 में ‘रेख्ता’ की स्थापना हुई। तब से ही उर्दू की तहजीब से लोगों को जोड़े रखने के इस सिलसिले को ‘जश्ने-रेख्ता’ का नाम दिया गया। ‘रेख्ता’ के मंच पर लेखक, शायरों, कलाकारों को अपनी बात रखने का मौका मिलता रहा है। इस जश्न को अगर उर्दू की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और उसे बढ़ावा देने का आंदोलन कहें तो गलत नहीं होगा। इस जश्न में सिर्फ भारत के कलाकार और उर्दू प्रेमी ही शामिल नहीं होते, बल्कि देश-विदेश की कई नामी हस्तियां ‘जश्ने-रेख्ता’ का हिस्सा बनती रही हैं। दुनिया के हर कोने से शायर, लेखक और फनकार इसमें शामिल होते रहे हैं। इस बार भी मेजर ध्यानचंद स्टेडियम, दिल्ली में ‘जश्ने-रेख्ता’ का आयोजन (8-10 दिसंबर) किया गया। शुरुआत प्रसिद्ध गजल गायक उस्ताद राशिद खां की गायकी से हुई, वहीं सूफियाना कलाम और ‘मुस्लिम सामाजिक फिल्मों में उर्दू संस्कृति का चित्रण’ पर मुजफ्फर अली, वहीदा रहमान और शबाना आजमी जैसी शख्सियतों ने अनुभव साझा किए थे।
यादों को सहेजते लोग
- किसी भी देश की समृद्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराने में संग्रहालयों की अहम भूमिका रही है। हाल में कोलकाता स्थित भारतीय संग्रहालय के 200 वर्ष पूरे हुए हैं। ऐसे में देश की महान साहित्य, कला से जुड़ी विभूतियों की यादों को सहेज कर रखने के क्रम में जहां संग्रहालय एक अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं। इस ओर लोगों ने कुछ अलग प्रयास भी किए हैं।
-हाल में प्रसिद्ध साहित्यकार प्रभाकर माचवे की जन्मशती के अवसर पर उनकी पुत्री चेतना कोहली ने अपने पिता की साहित्यिक विरासत को एक ऑनलाइन संग्रहालय का रूप दिया है। ‘प्रभाकर माचवे डॉट कॉम’ वेबसाइट के जरिए उनसे जुड़ा साहित्य और उनकी यादों को सहेजने का यह कार्य निजी तौर पर किया गया है।
-मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय’ है जिसकी स्थापना 1990 में एक निजी मकान में की गई थी। आज इसमें दुष्यंत कुमार से जुड़ी महत्वपूर्ण सामग्री, उनका साहित्य और उनके दुर्लभ पत्र आदि उपलब्ध हैं।
-प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी के लिए कोई संग्रहालय तो नहीं बना है, लेकिन गोरखपुर में उनके गांव बनवारपार में उनका पुश्तैनी मकान है। इसी मकान को गांव के एक डॉक्टर छोटेलाल यादव ने ‘फिराक साहब सेवा संस्थान’ नाम दिया है। इसमें फिराक गोरखपुरी की प्रतिमा लगी है और उनके नाम पर एक पुस्तकालय, स्कूल भी संचालित किया जा रहा है।