वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) समय की जरूरत है। आज सत्ता या विपक्ष कोई भी दल यह कहे कि इसे लागू कराने का श्रेय उसे है तो इसकी भी सराहना की जानी चाहिए। वैसे इस पर आम राय पहले ही बन जानी चाहिए थी। जीएसटी को लेकर इस समय जो माहौल बना है उससे उम्मीद है कि यह जल्द ही लागू हो जाएगा। जीएसटी की आखिर क्यों जरूरत है हमें इस पर विचार करना होगा। आज पूरे देश में अलग-अलग कर दरें हैं। टैक्स को लेकर जो दुविधा बनी हुई है जीएसटी से वह दूर हो जाएगी। समूचे देश की कर प्रणाली में एकरूपता आ जाएगी। आज जो भारत का आर्थिक परिदृश्य है उसमें एक कर प्रणाली की बेहद जरूरत है। जब देश एक है तो एक ही देश में अलग-अलग टैक्स क्यों? इस सवाल पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जीएसटी लागू होने से देश में भ्रष्टाचार कम हो जाएगा, टैक्स चोरी कम होगी, इंस्पेक्टर राज खत्म होगा और उपभोक्ताओं को फायदा होगा। आज राज्यों में वैट इंस्पेक्टर बनने के लिए होड़ लगी रहती है क्योंकि इसमें कमाई बहुत है। जब जीएसटी लागू हो जाएगा तो इस तरह की कोई होड़ नहीं होगी। दिल्ली से कोलकाता या किसी भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले सामान को एक ही जगह पर टैक्स देना होगा। सारी प्रक्रिया ऑनलाइन होने से पारदर्शिता भी बढ़ेगी। जहां तक राज्यों के घाटे का सवाल है तो इससे कोई घाटा होने वाला नहीं है। क्योंकि इसके लिए जो परिषद बनेगी उसमें राज्य अपनी समस्याएं उठा सकते हैं। परिषद में केंद्र और राज्य दोनों का प्रतिनिधित्व रहेगा। कुछ उत्पादों में राज्य अपनी सुविधा के अनुसार टैक्स की छूट ले सकते हैं। इसीलिए जीएसटी के लिए परिषद बनाई गई है। जीएसटी समय-समय पर समीक्षा करेगी कि राज्य को क्या नफा-नुकसान हो रहा है। जीएसटी के लागू होने से जिन राज्यों की आर्थिक स्थिति ठीक है उसका लाभ उन राज्यों को भी मिलेगा जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यह जरूर है कि इसके लागू होने से कुछ उत्पादों के दाम घट सकते हैं तो कुछ के बढ़ सकते हैं। जनता को सस्ती दर पर क्या सामान उपलब्ध कराना है यह सरकार के हाथ में होगा। यूरोप और अन्य विकसित देशों में करों की समान दरों के कारण उसका फायदा लोगों को मिल रहा है। वहां सस्ती दर पर अनाज, दवाइयां मिल जाती हैं लेकिन और उत्पाद महंगे हैं। कारण साफ है कि सरकार की प्राथमिकता है कि जो जरूरत की चीजें हैं उनको सस्ते में उपलब्ध कराया जाए और जिसकी जरूरत कम हो उसको महंगा किया जाए।
भारत बड़ा देश है इसलिए यहां जीएसटी की राह में मुश्किलें भी हैं, क्योंकि कई उत्पादों के जरिये राज्य बेहतर कमाई कर रहे हैं। जो उत्पादक राज्य है उनको घाटा होगा लेकिन करों की अलग-अलग दरों की वजह से जो राज्य उत्पादन में पीछे हैं, वहां जीएसटी के बाद उत्पादन वृद्धि की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। दीर्घावधि में उन राज्यों को जीएसटी से फायदा होगा। जो जनसंख्या वाला राज्य है उसको भी इससे फायदा होगा। लेकिन तमिलनाडु जैसे राज्य को घाटा होगा क्योंकि वहां प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है। ऐसे में उन राज्यों का विरोध करना स्वाभाविक हो सकता है। लेकिन जीएसटी में राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई का प्रावधान भी किया गया है।
कोई भी कानून तभी बनेगा जब राज्य सहमत हो। आजादी के बाद से देश में कई बार संविधान में संशोधन हुआ कानून बना तो यह राज्यों की ही सहमति से संभव हो पाया। आज जीएसटी कानून बनेगा तो इसमें भी राज्यों की ही सहमति होगी। अभी जो विरोध का कारण दिखाई पड़ रहा है वह यही कि कई सारी चीजें तय नहीं हैं। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि जो परिषद बनेगी उसी में चीजें तय होंगी। अगर हम पहले से तय कर दें तो विरोध होना शुरू हो जाएगा। समस्याएं यूरोप और अन्य देशों में भी कम नहीं हैं लेकिन आज उनकी उत्पादन क्षमता इसलिए बढ़ी है कि जीएसटी का पालन सही तरीके से हो रहा है। कुछ मध्य एशिया के देश हैं जहां जीएसटी है लेकिन सरकार पहले से ही सब्सिडी दे रही है इसलिए वे देश इसका फायदा नहीं उठा पा रहे हैं, उनकी उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ रही है। आज अगर हमें उत्पादन क्षमता बढ़ानी है तो जीएसटी के सभी पहलुओं को समझना होगा। राज्यों को भी किसी प्रकार के राजनीतिक भेदभाव के बिना इसका समर्थन करना चाहिए।
(लेखक विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक और पूर्व राज्यपाल रहे हैं)
जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद भारत में कारोबार करना आसान होगा। कारोबारी समुदाय तथा नागरिकों को भी मदद मिलेगी।
अरुण जेटली
केंद्रीय वित्त मंत्री