नरेंद्र मोदी सरकार की संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) मामले में जीत, अंतरराष्ट्रीय नौवहन संगठन (आइएमओ) और आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सशक्त समर्थन से मिले फायदे के कारण कूटनीति बड़ी सफलताओं में एक रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की जोड़ी ने भारत के वैश्विक प्रभाव को काफी तेजी से बढ़ाने में मदद की है। चीन और पाकिस्तान से कुछ निराशा भी हाथ लगी, लेकिन मजबूत वैश्विक संबंधों से मिले फायदे इन पर भारी पड़े। 2018 में पहले की अपेक्षा अधिक तीव्र प्रतिक्रिया और अधिक रचनात्मक विचारों और अपने कूटनीतिक प्रभावों को मजबूत करने के लिए एक और अधिक जोरदार प्रयासों की जरूरत होगी।
भारत-अमेरिका दोस्ती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच अच्छे तालमेल के कारण भारत-अमेरिकी संबंधों में प्रगाढ़ता आई है। इसी का नतीजा है कि अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया है। दोनों देशों के बीच सामरिक संबंध फल-फूल रहे हैं। ट्रंप का ‘अमेरिका पहले’ और मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में एक तरह की समानता है। दोनों देशों को 2018 में इस संबंध को डिलिवरी मोड में लाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी को डोनाल्ड ट्रंप को भारत की यात्रा पर बुलाना होगा और इससे भारत-अमेरिका संबंधों की नई मिसाल कायम होनी चाहिए। हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि भारत के खिलाफ आतंकवाद का इस्तेमाल अमेरिका सहित सभी मुल्कों के लिए कैंसर है, क्योंकि यह भारत और इस क्षेत्र में अमेरिकी आर्थिक हितों को प्रभावित भी करता है।
मानवीय कूटनीति का विस्तार
सोशल मीडिया और वैश्विक मुद्दों के प्रति अधिक जागरूकता के दौर में, भारत को यह तय करना चाहिए कि विदेशों में बसे भारतीय और भारत से जुड़े लोग, यात्री और वीजा मांगने वालों की अर्जियों पर मानवीय नजरिया अपनाया जाए। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बच्चों और आपदा में फंसे लोगों की मदद आगे बढ़कर करने के मामले में वैश्विक आइकन बन चुकी हैं। इससे भारत की अच्छी छवि बनी है। दूसरे देशों में भारतीय मिशन और विदेश कार्यालयों को इस छवि को और निखारना चाहिए। जब यात्री भारत में आते हैं तो उनके स्वागत की पहली जगह उन देशों में भारतीय दूतावास होने चाहिए। मानवीय नजरिए की कूटनीति का दूसरा पहलू जरूरतमंद देशों तक पहुंचना है। अभी हम अपने पड़ोसी देशों में यह कर चुके हैं, लेकिन हमें इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। हमें अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिए ऐसे देश के रूप में दिखना चाहिए, जो कमजोर दुनिया के साथ खड़ा होता हो।
चीन पर दुविधा
डोकलाम विवाद पर प्रस्ताव और सीमा समझौते पर विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत के बाद दोनों पक्ष अविश्वास की दीवार तोड़ चुके हैं। चीन के साथ तनातनी को कम करने को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। एक-दूसरे के साथ बेहतर संबंध में ही दोनों देशों का आर्थिक हित है।
दोनों के पास विभिन्न मंचों पर वैश्विक पर्यावरण और टिकाऊ विकास जैसे मुद्दों पर आपसी सहयोग का सामर्थ्य है। हालांकि, चीनी नेतृत्व को यह संदेश देने की आवश्यकता है कि अब उनका वास्ता 1962 की पराजय से आहत देश से नहीं, बल्कि ‘न्यू इंडिया’ से है। भारत को लगातार यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आतंकी मास्टरमाइंड के खिलाफ प्रतिबंध को रोकने की कोशिश की वह समीक्षा करे। चीन भारत में अपने व्यापक आर्थिक हितों को समझता है और आतंक एवं सीमा समझौते के प्रति चीन के रवैए को भारत में चीनी कंपनियों की आर्थिक पहुंच से जोड़ा जाना चाहिए।
पाकिस्तान को अलग-थलग करने में चूक
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से प्रभावी तरीके से नहीं निपटना हमारी एक चूक रही है। हालांकि, सर्जिकल स्ट्राइक सरकार का एक साहसिक कदम था, लेकिन उसके बाद प्रभावी कदम नहीं उठाए गए। पाकिस्तान को वैश्विक प्रतिबंध के दौर में धकेलने के लिए 2018 में एक सतत अभियान चलाने की आवश्यकता है। जब तक पाकिस्तान में सैन्य प्रतिष्ठान को चोट नहीं पहुंचेगी, वह आतंकवाद पर अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करेगा। बाद की सरकारों ने 26/11 हमले के पीड़ितों को निराश किया, जबकि 26/11 का मामला अभी तक अनसुलझा है। पाकिस्तान के साथ हर चीज का समाधान कूटनीतिक तरीकों से नहीं हो सकता, लेकिन उसके साथ सतत दबाव की नीति और सख्त कूटनीति की आवश्यकता है।
पूर्वी एशिया के साथ सक्रिय भागीदारी
भारत एक शिखर सम्मेलन और गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर दस आसियान नेताओं की मेजबानी करने वाला है। आर्थिक और रणनीतिक नजरिए से पूर्वी एशिया के लिए एक सक्रिय नीति का होना काफी महत्वपूर्ण है। साथ ही, एशिया में क्षेत्रीय संतुलन के लिए भी यह अहम है, जहां भारत केंद्र बिंदु बन सकता है। भारत को जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों से सतत आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी पर ध्यान देना चाहिए। आर्थिक संबंध भारत और पूर्वी एशिया के बीच सहयोग स्थापित करेगा। पूर्वी एशिया के साथ भागीदारी का केंद्र बिंदु सुरक्षा और रक्षा सहयोग होना चाहिए, ताकि समुद्री डकैती पर अंकुश लगाने के लिए समुद्री क्षेत्रों के संचार को सुरक्षित किया जा सके। साथ ही, यह भागीदारी आतंकवाद से लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। पूर्वी एशिया के साथ भारत की सक्रिय भागीदारी से इस क्षेत्र में चीन के वर्चस्व पर भी नियंत्रण रहेगा। इसलिए यह जरूरी है कि हम पूर्वी एशियाई देशों में अपनी सक्रियता बढ़ाएं और उन्हें अपना मुरीद बनाएं।
पड़ोसियों के प्रति रुख
नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत को सांस्कृतिक समानता और सद्भावना पैदा कर एक लचीली भागीदारी की नीति पर काम करने की आवश्यकता है। चीन की तेजी से बढ़ती चेक बुक कूटनीति का, खासतौर पर श्रीलंका और नेपाल में जवाब देने की जरूरत है। जरूरी नहीं कि यह बुनियादी विकास के जरिए ही हो। इन देशों में सुदृढ़ आइटी इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित कर कौशल विकास में मदद के जरिए हो सकता है। फिर इसे भारतीय कंपनियों को संभालने के लिए दे दिया जाए। इसकी भी आवश्यकता है कि यह सुनिश्चित हो कि वादों को पूरा किया जाए और परियोजनाएं और प्रतिबद्धताएं ब्यूरोक्रेसी की लाल-फीताशाही में न फसें, बल्कि हमें रणनीतिक फायदों का लाभ उठाने के लिए पहले से सक्रिय होना होगा। इन देशों में भारत विरोधी दुष्प्रचार को खत्म करने और सद्भावना पैदा करने के लिए युवाओं को केंद्र में रखकर जन-कूटनीति की पहल करने की आवश्यकता है।
रूस और यूरोप से संबंध
रूस भारत का पुराना मित्र है और हमें पुराने मित्रों को नहीं भूलना चाहिए। यह अफगानिस्तान में भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह हमारा अहम ऊर्जा एवं सामरिक साझीदार है। हमें इसे गंवाना नहीं चाहिए और रूस के साथ प्रगाढ़ आर्थिक और सामरिक सहयोग पर काम करना चाहिए। जबकि यूरोपीय यूनियन (ईयू) और भारत के विचारों में भिन्नता होगी, फिर भी हमें साथ काम करना चाहिए। हमें यूरोप के अपने प्रमुख साझीदारों फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के साथ नवोन्मेष, कौशल विकास और अंतरिक्ष क्षेत्र में विस्तार से काम करना चाहिए। जब हम ब्रिटेन जैसे देशों के साथ व्यापक आर्थिक साझीदारी विकसित कर लेते हैं तो उन्हें सशक्त रूप से कहा जाना चाहिए कि अगर वे विजय माल्या जैसे भगोड़ों को आश्रय देना जारी रखते हैं तो इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ सकता है।
‘न्यू इंडिया’ के लिए कूटनीति
भारत का वैश्विक फलक बढ़ता है तो इसे अपनी कूटनीति के लिए आधुनिक शासनकला के तौर-तरीकों को अपनाना होगा। यह कूटनीतिक नोट्स और विदेशी दौरों की पुरातन तरीकों से नहीं होना चाहिए, बल्कि सोशल मीडिया और इंटरनेट युग से होना चाहिए। 2018 में भारतीय कूटनीति को और अधिक क्षेत्र विशेषज्ञों की आवश्यकता है। ताकि वे डिजिटल और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर युवाओं को भागीदार बनाकर रणनीति बना सकें, क्योंकि कूटनीति और विदेश नीति का मतलब लोगों के बीच कूटनीति संबंधी धारणाएं भी बनाना होता है। जबकि समझौता और पिछले दरवाजे से बातचीत आधुनिक कूटनीति की रीढ़ के तौर पर जारी रहेगी। भारत को जरूर एक अगुआ (लीडर) के तौर पर आचरण करने और सोचने की कला सीखने की जरूरत है।
(लेखक कूटनीतिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार और न्यूजमोबाइल डॉट इन के एडिटर इन चीफ हैं।