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संकट गहराने की ही आशंका

हड़बड़ी में उठाए गए नोटबंदी-जीएसटी जैसे कदम और बैंकों पर निगरानी में कमजोरी से उपजी निराशा
प्रतीकात्मक तस्वीर

पहले किए गए आर्थिक सुधारों और ढांचागत सुविधाओं के विकास के कारण सालाना सकल घरेलू उत्पाद की 7 से 8 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल करने की क्षमता हमारे देश में बन चुकी थी। लेकिन 2016 में नोटबंदी के कारण और 2017 में जीएसटी की सही व्यवस्था न कर पाने के कारण, यह प्रगति रुक गई है, और अब सकल घरेलू उत्पाद 7 प्रतिशत से नीचे पहुंच गया है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण आई अस्थिरता से आर्थिक विकास में जो रुकावट आई है, वह बैंकिंग सेक्टर में बढ़ते हुए एनपीए के कारण आर्थिक परिदृश्य को और निराशाजनक बना रही है। एक और संकट जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं वह निजी क्षेत्र में निवेश में शिथिलता है। कुल मिलाकर आर्थिक स्थिति उत्साहवर्धक नहीं है, और इसके मुख्य कारण सरकार द्वारा हड़बड़ी में लिए गए फैसले और बैंकिंग संस्थाओं पर निगरानी में कमजोरी है। यदि यही स्थिति कायम रही तो विकास की दर 2018 में भी वर्तमान 6.8 प्रतिशत के आसपास या उससे भी नीचे आ सकती है। लेकिन विकास में अवरोधक परिबलों पर काबू पा लिया गया तो भारत फिर से अपनी ‘स्वाभाविक’ 7 से 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त कर सकता है।

विकास में रुकावटों का प्रमुख सेक्टरों के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करना आवश्यक है। कृषि में मूल्यों की अस्थिरता के कारण निवेश के साथ-साथ उत्पादकों की आय पर विपरीत असर पड़ रहा है। उद्योग क्षेत्र में अभी भी ढांचागत सुविधाओं की कमी, हुनरमंद कामगारों के अभाव और बैंकिंग क्षेत्र की कमजोरी के कारण क्षेत्र की प्रगति निराशाजनक रही है। सर्विस क्षेत्र, विशेषकर आइटी क्षेत्र आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण हिस्सेदार रहा है। और इस क्षेत्र की सफलता मुख्यतः निर्यात पर निर्भर रही है। अब अन्य विकासशील देश जैसे फिलीपींस, मलेशिया, ताइवान वगैरह भी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत को अच्छी टक्कर दे रहे हैं। इस क्षेत्र को भी अब देश की अंदरूनी मांग पर अधिकाधिक निर्भर रहना होगा। मुख्यतः उद्योग क्षेत्र की मंद प्रगति का असर सर्विस क्षेत्र पर भी होगा। इन सब बातों पर ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि सकल घरेलू उत्पाद की गिरती हुई दर को संभालना मुश्किल रहेगा।

इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि विकास की गति सकल घरेलू आय से आंकी जाती है, लेकिन यह अपर्याप्त मापदंड है। असल में विकास से आमजन की खुशहाली जाहिर होनी चाहिए। आज की परिस्थिति में ऐसा नहीं हो रहा है। संगठित क्षेत्र में आवश्यकता के अनुरूप रोजगार के अवसर सृजित नहीं हो रहे हैं और असंगठित क्षेत्र, जिसमें कृषि भी शामिल है, अभी संकट की स्थिति से गुजर रहा है। शिशु मृत्यु दर, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा वगैरह सभी मानव विकास के सूचकांकों में हमारा देश विश्व के अंतिम छोर के कुछ एक देशों में आता है, जबकि आर्थिक विकास की दर में हम पहले, दूसरे अथवा तीसरे स्थान पर आते हैं। विचार यह करना है कि हम आगे के वर्ष में किस प्रकार का विकास करना चाहते हैं और किन नीतियों और कार्यक्रमों को तहरीज देना चाहते हैं। अभी जो विकास सकल उत्पाद में वृद्धि से नापा जाता है, उसे ‘बहुजन हिताय’ के मापदंड से नापना होगा। 

आर्थिक संकट से निपटने के लिए 2018 में और कठिनाइयां आएंगी, क्योंकि उससे अगले वर्ष 2019 में, लोकसभा और कई राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने जा रहे हैं। अब तक सरकारों का जो रुख रहा है उसे देखने से ‘लोक लुभावन’ वादों की भरमार हो सकती है। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए जरूरी कड़े कदमों को उठाने की सरकार की हिम्मत नहीं होगी।

यदि वर्तमान सरकारी नीतियां और कार्यक्रम यथावत रहे तो 2018 में सकल घरेलू आय में 6.5-6.8 से अधिक की वृद्धि करना मुश्किल होगा और जन-जन के सामने जीवन-यापन के लिए जो मुसीबतें आ रही हैं उनसे निजात पाना संभव नहीं होगा। यह और भी अधिक सोचनीय है क्योंकि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य धीरे-धीरे सुधर रहा है पर इसका हम लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों को स्थगन के दौर से थोड़े समय में ही निकाल लेना संभव है। कृषि में मौसम और बाजार के कारण जो अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है, उसे कृषि बीमा योजना की वर्तमान कमजेारियों को दूर कर और उसे और व्यापक बनाकर मौसम के कारण उत्पन्न अस्थिरता से काफी हद तक मुक्त किया जा सकता है। बाजार से उत्पन्न अस्थिरता को समर्थन मूल्य को सभी महत्वपूर्ण फसलों पर लागू कर और उससे क्रियान्वयन को सुनिश्चित कर कृषि विकास के लिए सही वातावरण बनाया जा सकता है। फल, सब्जी आदि के प्रसंस्करण और भंडारण की कारगर नीतियां उत्पादक के लिए लाभदायक बन सकती हैं। 

इसी प्रकार उद्योग नीति और कार्यक्रमों में त्वरित सुधार के अवसर बैंकिंग और नियामक नीतियों को उद्योगों के लिए आर्थिक दृष्टि से अनुकूल बनाए जा सकते हैं। ‘मेक इन इंडिया’ एक स्लोगन की जगह हकीकत में तब्दील किया जा सकता है। सर्विस क्षेत्र में, विशेषकर आइटी में कॉल सेंटर या निर्यात पर ही निर्भर रहने की जगह इस क्षेत्र में जो नए विकास हो रहे हैं यथा क्राउड कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वगैरह पर अधिक जोर दिया जा सकता है, जिनके लिए हमारे पास प्रारंभिक पृष्ठभूमि तैयार है, उन्हें अब बढ़ावा देने की आवश्यकता है। ये सभी कदम कम समय में उठाए जा सकते हैं और 2018 में सकल घरेलू उत्पाद की गिरती हुई दरों को वृद्धि के दौर में लाने का दमखम रखते हैं।

मगर महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या ऐसे कुछ कदम जो सही तौर पर ‘आर्थिक सुधार’ कहे जा सकते हैं, इस सरकार द्वारा उठाए जाएंगे। जिस तरह की नीतियां और कार्यक्रम वर्तमान में हैं, उन पर जोर दिया जाएगा और जो चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा तो 2018 में संकट और भी गहरा हो जाएगा।

(लेखक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रहे हैं।) 

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