बदलाव शाश्वत है। बॉलीवुड ने देर से सही मगर इसे स्वीकार कर लिया है। बीते दो-तीन वर्षों में कहानियों के चयन में जो परिवर्तन धीमे-धीमे दिख रहा था, वह अब तेज हो चुका है। 2017 में तय हो गया था कि कंटेंट ही हिंदी सिनेमा को बचाएगा। 2018 में यह बदलाव और स्पष्ट नजर आएगा।
साल 2017 ने बॉलीवुड को साफ संदेश दिया कि फिल्म में ‘कहानी ही संजीवनी’ है, वही उद्योग को जिंदा रखेगी। घिसे-पिटे रोमांस, सस्ती कॉमेडी और फिजूल एक्शन के दिन लद गए। दर्शक अब दिमाग घर पर रख कर फिल्म देखने नहीं आता। वह मनोरंजन चाहता है लेकिन खोखला नहीं। उसे संवेदनाएं चाहिए और असली जिंदगी की तस्वीर भी। यह नहीं तो फिर वह सचमुच ‘लार्जर दैन लाइफ’ सिनेमा चाहता है। कुछ ऐसा जिसकी सिर्फ कल्पना हो सके। भव्यता जो चौंका दे। दर्शक का रुख साफ है। सोचना निर्माता-निर्देशकों को है कि पब्लिक डिमांड को ध्यान में रखकर सफल हों या कूड़ेदान में डालने वाला सिनेमा बनाएं। निर्माता धन लगाता है और इस मामले में बहुत तेज होता है कि क्या चल रहा है। यही वजह है कि 2018 के सिनेमा की सूची देखें तो निर्माताओं के मिजाज बदले दिखते हैं। भले ही अब भी बहुतायत में पुराना अंदाज नजर आता है लेकिन बड़े सितारों से लेकर नए एक्टर-डायरेक्टर तक कुछ अलग, देसी और जमीन से जुड़ा हुआ कहना चाहते हैं। बदलते भारत में नया सिनेमा अपना योगदान देने को तैयार है।
लाए हैं संदेश
समाज में अगर पिछड़े विचारों पर प्रहार हो रहे हैं तो सिनेमा में भी यह हमले साफ हैं। बीते दो साल में वर्जनाओं को तोड़ने वाली कई फिल्में बनीं। अलीगढ़, पिंक, टॉयलेटः एक प्रेमकथा, लिपस्टिक अंडर माई बुर्का, शुभ मंगल सावधान से लेकर न्यूटन तक अलग-अलग विषयों पर ऐसी फिल्में आईं कि देखने के बाद दर्शक सोचने को मजबूर हुए। फिल्मों पर समाज में मनोरंजन से इतर बातें हुईं और सतह के नीचे हलचल महसूस की गई। 2018 में भी समाज से प्रेरित होने और संदेश देने वाली फिल्में आने को तैयार हैं।
पैडमैन, हिचकी, सुई धागा, यूनियन लीडर, बत्ती गुल मीटर चालू और लव सोनिया उन फिल्मों में शुमार हैं जो गंभीर विषयों पर बात करेंगी। हर मुद्दे पर लोग बहस को तैयार हैं। पिछली पांच फिल्मों में बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपये के ऊपर बनाने वाले अक्षय कुमार की पैडमैन, वर्जित विषय महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर पिछड़ी सोच पर सवाल उठाती है। पैडमैन तमिलनाडु के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अरुणाचलम मुरुगनाथन के जीवन को आधार बना कर लिखी गई। अरुणाचलम ने किफायती दाम में पैड बनाने की मशीन विकसित की थी। उन्हें सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। सुई धागा में वरुण धवन देश में हथकरघा के बहाने कुटीर उद्योगों के महत्व और इनसे जुड़े लोगों तथा परिवारों की मुश्किलों को सामने लाएंगे। चीन के बढ़ते बाजार के बीच स्वदेशी के इस्तेमाल का संदेश फिल्म में छुपा है। ‘मेड इन इंडिया’ इसका नारा है।
निर्देशक श्रीनारायण सिंह टॉयलेटः एक प्रेमकथा के बाद शाहिद कपूर के साथ बत्ती गुल मीटर चालू लेकर आ रहे हैं। देश के तमाम हिस्सों में बिजली को लेकर दोहरी समस्या है। पहली बिजली चोरी दूसरी बिजली प्रदान करने वाली कंपनियों की मनमानी। शाहिद फिल्म में उपभोक्ताओं का मुकदमा लड़ने वाले वकील बने हैं। श्रीनारायण गंभीर मुद्दे को पिछली फिल्म की तरह हंसी-मुस्कान के साथ आगे बढ़ाएंगे। शाहिद के साथ श्रद्धा कपूर आएंगी, जो सोशल वर्कर बनी हैं।
यूनियन लीडर और लव सोनिया के विषय गंभीर हैं और ट्रीटमेंट भी। तिलोत्तमा शोम-राहुल भट्ट स्टारर यूनियन लीडर केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले जय की कहानी है। फैक्ट्री में कर्मचारी क्रोमियम सलफेट के प्रभाव में आकर मौत के मुंह में जा रहे हैं। जय के पास विकल्प है कि वह जगह छोड़ कर जा सकता है लेकिन वह मजदूरों को संगठित करके कानूनी लड़ाई लड़ता है। श्रमिक आंदोलन अर्से से फिल्मी पर्दे से गायब हैं। लव सोनिया में मानव तस्करी के अंतरराष्ट्रीय जाल का पर्दाफाश किया गया है। निर्देशक तबरेज नूरानी की फिल्म में एक लड़की अपनी बहन को मानव तस्करों के जाल से छुड़ाने का संघर्ष कर रही है। फिल्म में फ्रीडा पिंटो और डैमी मूर जैसे अंतरराष्ट्रीय सितारों से लेकर देसी मनोज वाजपेयी, ऋचा चड्ढा और मृणाल ठक्कर भी हैं।
जी लो जिंदगी
बायोपिक बॉलीवुड का हिस्सा बन गई हैं। पर्दे और खेल के सितारों के बाद अब असल जीवन के सितारों पर भी फिल्म वालों की नजर है। यही कारण है कि शिक्षक और गणित के जीनियस पटना के आनंद कुमार की बायोपिक में ऋतिक रोशन दिखेंगे। निर्देशक विकास बहल की इस फिल्म का नाम सुपर 30 होगा। आनंद कुमार देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक आईआईटी के लिए हर साल 30 गरीब और अभावग्रस्त बच्चों को तैयार करते हैं। साहित्य के जीनियस सआदत हसन मंटो की बायोपिक भी 2018 में आएगी। नंदिता दास ने मंटो का निर्देशन किया है और नवाजुद्दीन सिद्दीकी इस विवादास्पद लेखक की भूमिका में हैं। सिनेमा के बड़े सितारे संजय दत्त की जिंदगी की कहानी का लोगों को इंतजार है क्योंकि इसे निर्देशक राजू हिरानी बना रहे हैं। उनका रिकॉर्ड जबर्दस्त है। संजू के रूप में पर्दे पर रणबीर कपूर दिखेंगे। सुनील दत्त और नरगिस के बेटे संजय की जिंदगी उतार-चढ़ाव भरी रही है। बहुत कुछ मीडिया में आया है मगर हिरानी की मानें तो अब भी काफी कुछ है जो पर्दे पर आएगा तो दर्शक दांतों तले अंगुली दबा लेंगे।
खेल के मैदान से भी असली कहानियां इस साल पर्दे पर आएंगी। भारतीय हॉकी में खतरनाक ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह की बायोपिक सूरमा की शूटिंग चल रही है। शाद अली निर्देशन कर रहे हैं और दिलजीत दोसांझ और तापसी पन्नू लीड भूमिकाओं में हैं। संदीप की कहानी बहादुरी और जज्बे की है। जर्मनी में 2006 के विश्व कप के लिए टीम में शामिल होने जा रहे संदीप को अचानक ट्रेन में कहीं से गोली आ लगी। दो साल चोट से जूझने के बाद उन्होंने मैदान में वापसी की और 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सूरमा सपनों और उम्मीदों की कहानी है।
मारना है मैदान
व्यक्तिगत कहानियों के साथ खेल के मैदान में टीम वर्क भी देखने को मिलेगा। अक्षय कुमार लाएंगे, गोल्ड। यहां मैदान में हॉकी का खेल और देश प्रेम साथ होंगे। 1948 में देश ने आजादी के बाद पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल जीता था। फाइनल में भारत ने ब्रिटेन को 4-0 से हराया था। इसी ब्रिटेन का कुछ महीनों पहले तक भारत पर राज था। अक्षय फिल्म में टीम को प्रेरित करने वाले कोच की भूमिका में हैं। गोल्ड 15 अगस्त को रिलीज होगी। इससे पहले जनवरी में खेल के मैदान में होने वाली राजनीति भी दिखेगी जब अनुराग कश्यप की मुक्काबाज सिनेमाघरों में आएगी। यूपी का एक प्रतिभावान युवा बॉक्सर इसलिए राजनीति का शिकार होता है क्योंकि वह नीची जाति से है और उसे ऊंची जाति की लड़की से प्यार है। अनुराग फिल्म को पूरी तरह स्पोर्ट्स फिल्म बताते हुए कहते हैं, “हमने सिस्टम की सच्चाई दिखाई है कि क्यों हमारे यहां चैंपियन पैदा नहीं होते?” इस बीच साइना नेहवाल की बायोपिक की तैयारियां भी चल रही हैं। अमोल गुप्ते के निर्देशन में फिल्म इसी साल आएगी।
इतिहास बचेगा या रचेगा
2018 में भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि की तीन अहम फिल्में हैं, पद्मावती, मणिकर्णिका और ठग्स ऑफ हिंदुस्तान। पद्मावती को 2017 में रिलीज होना था परंतु विवाद से इंडस्ट्री सहमी है। सवाल है कि क्या फिल्मकारों को इतिहास में झांकने का जोखिम उठाना चाहिए? सेंसर सिर्फ बोर्ड नहीं रह गया है? गली-मोहल्लों तक में लोग कैंची लिए अपनी तरह से फिल्मों को कतरना चाहते हैं। पद्मावती बॉलीवुड में 200 करोड़ रुपये के बजट से बनी पहली फिल्म है। लेकिन उसका भविष्य अधर में है। कंगना रनौत 2017 में रंगून और सिमरन फ्लॉप होने के बाद 2018 में बहुत उम्मीदें लिए हुए हैं। वजह है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बायोपिक, मणिकर्णिका। भव्य बजट की इस फिल्म के निर्देशक कृष हैं। पद्मावती का विरोध देखते हुए इसके लेखक-निर्देशक की टीम इतिहास ढंग से खंगाल रही है। 1897 में तत्कालीन भारत-अफगान सीमा पर सरागढ़ी में हुई लड़ाई पर राजकुमार संतोषी रणदीप हुड्डा को लेकर फिल्म बना रहे हैं। यह दस हजार अफगानों के विरुद्ध 21 भारतीय जवानों के भीषण युद्ध की दास्तान है। आमिर खान और अमिताभ बच्चन नवंबर 2018 में ठग्स ऑफ हिंदुस्तान में नजर आएंगे। फिल्म 18वीं सदी के भारत में ठगों के कारनामे दिखाएगी। दंगल में उनकी बेटी बनी फातिमा सना शेख इस फिल्म में उनकी प्रेमिका बनेंगी। ऐतिहासिक कथानकों वाली इन फिल्मों से भारी भरकम कमाई की उम्मीद है। देखना होगा कि यह कैसा इतिहास रचेंगी?
आगे-पीछे हमारी सरकार
यूं तो फिल्मों पर समाज और तत्कालीन राजनीति का प्रभाव हमेशा दिखता है लेकिन मोदी राज में इसकी छाप कुछ अधिक दिख रही है। मोदी सरकार की नीतियों ने भी फिल्मों में जगह पाई है और 2017 में आई टॉयलेटः एक प्रेमकथा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। स्वच्छ भारत अभियान संदेश का यह फिल्म जबर्दस्त प्रचार करती है। 2018 में निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर आएगी। इसमें मुंबई की झुग्गियों में रहने वाला बच्चा सिंगल मदर के लिए टॉयलेट बनवाने की कोशिश में प्रधानमंत्री से मदद मांगता है।
बीते तीन-चार वर्षों में आतंकियों और पाकिस्तान के विरुद्ध गुस्सा, महिला सशक्तिकरण, भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध मुहिम फिल्मों में साफ दिखी हैं। नोटबंदी भी पर्दे पर कहानियों में आई। अक्षय कुमार युवाओं के लिए नए देशप्रेमी रोल मॉडल के रूप में उभरे। हॉलीडे, बेबी के बाद उनकी एयरलिफ्ट और रुस्तम में देश प्रेम उभरा। वह सामाजिक संदेश भी दे रहे हैं। टॉयलेटः एक प्रेमकथा के बाद पैडमैन के साथ तैयार हैं। अपनी नई राष्ट्रीय-सामाजिक सरोकार वाली छवि से उन्होंने खान तिकड़ी (आमिर-सलमान-शाहरुख) के साम्राज्य को अकेले चुनौती दी है। मोदी राज में फिल्मों ने आतंक और पाकिस्तान को जमकर फटकार लगाई है। कश्मीर मुद्दे को लेकर भी फिल्में बनीं या बन रही हैं। बीते तीन साल में हॉलीडे, हैदर, बेबी, फैंटम, वजीर, सरबजीत, कॉफी विद डी, हिंद का नापाक को जवाबः एमएसजी लॉयनहार्ट 2, द गाजी अटैक और नाम शबाना जैसी फिल्मों में पाकिस्तान को आईना दिखाया गया। यह अलग बात है कि इसी दौरान सलमान खान 2015 में बजरंगी भाईजान बन कर पाकिस्तान गए। मानवीय संदेश दिया। उनकी टाइगर जिंदा है में कैटरीना ऐसी पाकिस्तानी एजेंट बनीं, जो आतंक के खिलाफ लड़ने में सलमान की मदद करती हैं।
इस बीच 2016 में रणदीप हुड्डा स्टारर सरबजीत में पाकिस्तान की क्रूरता भी सबने देखी। इधर, महिला सशक्तिकरण की पर्दे पर धूम है। मर्दानी और मैरी कॉम की सफलता से शुरू हुई गिनती पीकू, एनएच10, एंग्री इंडियन गॉडेसेस, निल बटे सन्नाटा, पिंक और सुल्तान से लेकर आमिर खान की दंगल तक दिखीं। प्रधानमंत्री युवाओं के लिए नए रोल मॉडल ढूंढ़ने पर जोर देते देखे गए हैं। इसलिए फिल्मों में सच्ची प्रेरक कहानियां जगह बना रही हैं। 2018 की फिल्मों में यह देखने को मिलेगा।
बनते रहेंगे सीक्वल
2017 में दो सौ करोड़ बनाने वाली पहली फिल्म दीवाली पर आई गोलमाल अगेन रही। जॉली एलएलबी-2, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, बाहुबली-2, फुकरे रिटर्न्स, टाइगर जिंदा है ने टिकट खिड़की को ऑक्सीजन दी। 2018 में भी सीक्वल फिल्मों की लंबी कतार है। रजनीकांत की रोबोट का सीक्वल 2.0 देश की सबसे महंगी फिल्म है। निर्देशक शंकर की यह फिल्म अप्रैल में आएगी। माना जा रहा है कि 450 करोड़ की यह फिल्म बाहुबली का रिकॉर्ड तोड़ेगी। इस साल टाइगर श्रॉफ की बागी-2, सलमान खान की रेस-3, दबंग-3, साहब बीवी और गैंगस्टर-3 अजय देवगन स्टारर टोटल धमाल के साथ देओल पिता-पुत्रों की तिकड़ी वाली यमला पगला दीवाना फिर से रिलीज होने को तैयार हैं।
2018 निश्चित रूप से ऐसा साल है जहां बदले सिनेमा की तस्वीर और साफ नजर आएगी। फिल्म प्रेमी सरोकारों के साथ स्वस्थ मनोरंजन की उम्मीद रख सकते हैं।