2018 के कैलेंडर को देखें तो भारत जनवरी-फरवरी में दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर जाकर कशमकश भरा क्रिकेट खेलने की तैयारी में है। दक्षिण अफ्रीका की टीम शक्तिशाली है। वहां गेंद पट्टियों में उछाल भी है। भारतीय विकेटों पर डॉन ब्रैडमैन की तरह नजर आने वाले भारतीय बल्लेबाजों की पहली परीक्षा नए साल में यही होगी। फिर अप्रैल से मई 2018 के बीच आइपीएल का रोमांच सामने आएगा, जिसमें दुनिया भर की प्रतिभाएं शिरकत करेंगी। आइपीएल ने भारतीय क्रिकेट का बड़ा हित किया है। जहां दुनिया भर के तेज गेंदबाजों को खेलने की हमें आदत पड़ गई है, वहीं पैसे के लालच में यहां के पाटा विकेटों पर खेल कर इन तेज गेंदबाजों की धार भोथरी हो गई है। आइपीएल ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के आर्थिक आधार को मजबूती दी है और उसे विश्व क्रिकेट का असली नेता बना दिया है।
जून से सितंबर 2018 के बीच भारत की सबसे रोमांचक यात्रा इंग्लैंड की रहेगी। वहां भारत पांच टेस्ट, पांच एकदिवसीय और एक टी-20 मैच खेलेगा। भारत में स्पिन लेते विकेटों पर बुरी तरह हार कर इंग्लैंड के खिलाड़ी बहुत ज्यादा बौखलाए हुए हैं। इंग्लैंड की ‘स्विंग’ और ‘सीम’ को मदद देने वाली परिस्थितियों में भारत से बदला लेने के लिए खार खाए बैठे हैं।
फिर अक्टूबर-नवंबर 2018 में वेस्टइंडीज भारत की यात्रा करेगा। पिटी-पिटाई वेस्टइंडीज को फिर से पीट देना भारत के लिए आसान होगा। पर नवंबर 2018 से जनवरी 2019 की ऑस्ट्रेलिया यात्रा भारत के लिए बहुत ही बड़ी चुनौती होगी। वहां के उछाल वाले विकेटों पर उनके तेज गेंदबाज स्टॉर्क, हैजलवुड तथा कमिंस भारत का इंतजार कर रहे हैं।
कुल मिलाकर 2018 तय करेगा कि हम घर में ही शेर हैं या बाहर जाकर भी दहाड़ सकते हैं।
बेशक, भारतीय क्रिकेट एक ऊंची उड़ान पर है। वेस्टइंडीज, जिंबाब्बे और श्रीलंका की कमजोर पड़ रही टीमों को बार-बार रौंद कर भारत ने जीत के सिलसिले को जारी रखा है। कभी वेस्टइंडीज टीम विश्व-विजयी होती थी। विवियन रिचर्ड्स, सर गैरी सोबर्स, क्लाइव लायड, एंडी रॉबर्ट्स, मैलकम मार्शल, माइकल होल्डिंग, जो गार्नर और लांस गिब्स जैसे खिलाड़ियों वाली टीम को कौन हरा सकता था। अब वेस्टइंडीज में क्रिकेट की लोकप्रियता कम हो गई है। वहां के युवा बास्केटबॉल में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। यही वजह है कि वेस्टइंडीज का क्रिकेट रसातल में चला गया और विश्व में आखिरी पायदानों पर है।
उधर, भारत में तो क्रिकेट में क्रांति आ गई है। कोई न कोई जादुई व्यक्तित्व आकर अपने करिश्मे से भारतीय क्रिकेट में नए प्राण फूंकता रहा है। पहले सुनील गावसकर और कपिल देव थे, जिन्हें भारतीय क्रिकेट का सूरज-चंद्रमा कहा जाता था। उनके संन्यास के बाद सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड़, वीरेंद्र सहवाग और अनिल कुंबले आए। इनके जादुई प्रदर्शन ने दुनिया में भारतीय क्रिकेट की प्रतिभा और ताकत का झंडा गाड़ दिया। सुनील गावसकर और कपिल देव के वक्त ही बिशन सिंह बेदी, चंद्रशेखर और एरापल्ली प्रसन्ना की जादुई स्पिन तिकड़ी ने दुनिया भर के बल्लेबाजों की नींद हराम कर दी थी। तब तेज गेंदबाजी भारत की समस्या बनी रही। हम तेज आक्रमण कर पाते थे न तेज आक्रमण झेल पाते थे। हमारा तेज आक्रमण औपचारिकता था।
महेंद्र सिंह धोनी के आने के बाद से भारतीय क्रिकेट में काफी बदलाव आया। रांची से आए धोनी ने क्रिकेट की कई परिभाषाएं बदल कर नई इबारत लिखी। ‘अनहोनी को होनी’ कर सकने की काबिलियत रखने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने ककड़ी की तरह ठंडी तासीर वाले कप्तान की तरह प्रसिद्धि पाई। वह न केवल विनम्र और चतुर कप्तान बने बल्कि बिरले विकेट कीपर, जुझारू बल्लेबाज की तरह उभर कर भारतीय क्रिकेट के आकाश पर चमके। उनकी जीवटता और कभी हार न मानने की प्रवृत्ति ने दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया। इसी समय तेज गेंदबाज के रूप में जहीर खान, भुवनेश्वर कुमार, आशीष नेहरा, उमेश यादव, मोहम्मद शमी और ईशांत शर्मा जैसे खिलाड़ी उभरे। भारतीय तेज आक्रमण अब पैना, धारदार और मारक माना जाने लगा।
भारतीय पाटा विकेटों पर कमजोर टीमों के सामने शानदार प्रदर्शन ने विश्व क्रिकेट में भारत को ऊंचा स्थान दिलाया है पर शक्तिशाली टीमों के खिलाफ कठिन परिस्थितियों में उनके घर जाकर जीत हासिल करना अभी बाकी है। अब बड़े सितारे के रूप में विराट कोहली दुनिया भर के कीर्तिमान तोड़ते जा रहे हैं। रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा, यजुवेंद्र चहल और कुलदीप यादव भी स्पिन के क्षेत्र में गजब सफलताएं प्राप्त कर रहे हैं। तेज और स्पिन के बढ़िया संतुलन के कारण भारतीय टीम इस काबिल हो गई है कि विदेशी धरती पर शक्तिशाली टीमों के खिलाफ एक मैच में 20 विकेट ले सके।
2018 भारतीय क्रिकेट के लिए नई चुनौतियां लेकर आया है। पहली चुनौती टेस्ट क्रिकेट के प्रति लोगों की दिलचस्पी बनाए रखने की है। 50-50 ओवर और टी-20 क्रिकेट की निरंतर बढ़ती लोकप्रियता ने टेस्ट क्रिकेट के सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। व्यस्त जमाने में पांच दिन के क्रिकेट को बेमानी मानने वाले अधिकांश युवा क्रिकेट के छोटे संस्करणों की वकालत करते पाए जाते हैं। फिर परिवर्तन करके आइसीसी ने कुछ प्रयोग किए। दिन-रात का टेस्ट मैच और गुलाबी गेंद का इस्तेमाल इनमें प्रमुख हैं। फिर भी स्टेडियम खाली रहने की शिकायतें लगातार मिल रही हैं। लोग इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया की एशेज सीरीज देखने तो आते हैं दूसरी छोटी टीमों के खिलाफ एकतरफा मुकाबले देखने नहीं आते। यहां तक कि क्रिकेट के प्रति दीवाने देश भारत में भी टेस्ट मैचों में दर्शकों का टोटा दिखने लगा है। फिर भी सभी बड़े खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट को ही असली क्रिकेट मानते हैं।
आज भी जब हम बड़े कीर्तिमानों की बात करते हैं तो टेस्ट क्रिकेट के कीर्तिमानों की ही चर्चा होती है। इसलिए डॉन ब्रैडमेन, गैरी सोबर्स, वििवयन रिचर्ड्स, डेनिस लिली, सुनील गावसकर, कपिल देव, महेंद्र सिंह धोनी, ब्रायन लारा, सचिन तेंडुलकर, वसीम अकरम, सर रिचर्ड हेडली, माइकल होल्डिंग, जिम लेकर, मुतैया मुरलीधरन, अनिल कुंबले और विराट कोहली जैसे कई नाम हम गर्व के साथ लेते हैं। लोग कहने लगे हैं कि टेस्ट क्रिकेट बचाने के लिए इसे चार दिन का कर देना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि यह दूरदर्शितापूर्ण निर्णय होगा।
तुलना करना मानवीय प्रवृत्ति है। इसी कारण लोग केवल संघर्षपूर्ण मुकाबले देखना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जगत में भारतीय क्रिकेट की ताकत विश्व विख्यात है। विश्व क्रिकेट में 70 प्रतिशत धन केवल भारत के कारण पैदा होता है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि भारत विश्व क्रिकेट को अपनी मर्जी से चलाना चाहता है। इसलिए भारत ने ‘बिग-4’ की योजना पेश की है। यानी ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और भारत को एक-दूसरे के खिलाफ ज्यादा खेलना चाहिए। बराबरी की ताकत वाली टीमें क्रिकेट को रोचक बनाने में सहायता देंगी। इससे भारत की आर्थिक ताकत बढ़ेगी। दुनिया दौलत के इर्द-गिर्द घूम रही है। भारत भी ऐसा करे तो क्या आश्चर्य?
(लेखक जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं)