Advertisement

साहित्य में युवा विस्फोट

हिंदी में कभी इतनी तादाद में युवा लेखक नहीं थे, अन्य भारतीय भाषाओं में भी शायद ही ऐसा हो, इस साल रचनाओं पर रहेगी नजर
रचनाकार टोलीः युवा लेखक अपनी रचनाधर्मिता की ऊर्जा के साथ साहित्य पटल पर पूरे जोशोखरोश के साथ उपस्थित हैं

पुराना साल युवा लेखकों की किताबों से सराबोर था। अब नए वर्ष 2018 में भी नई उम्मीदों के साथ युवा लेखक तैयार हैं। पुस्तक मेले में युवा लेखकों की नई किताबों की धूम रहेगी। युवा लेखकों के लिए प्रकाशन अब उतना संकटपूर्ण नहीं रहा क्योंकि सोशल मीडिया में सक्रिय लेखकों का एक पाठक वर्ग भी बना है।

स्वभाव से गंभीर और आलोचना में भी दिल्चस्पी रखने वाले शिरीष मौर्य का नया कविता संग्रह मुश्किल दिन की बात आधार प्रकाशन से छप रहा है, अंबर पांडेय का नया कविता संग्रह कोलाहल की कविताएं वाणी प्रकाशन से आ रहा है। अंबर के फेसबुक पर काफी प्रशंसक हैं। इसी तरह शायक आलोक भी काफी चर्चित हैं और वे बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपना नया संग्रह कवि था खुद ही प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। सोशल मीडिया पर सक्रिय एक और युवा कवि सुशोभित शक्तावत का संग्रह मलयगि‌रि का प्रेत भी वाणी से आ रहा है। वे काफी बहसतलब रचनाकार हैं और साहसी भी।

हाल के वर्षों में सुधांशु फिरदौस, महेश वर्मा और अनुज लुगुन ने विशेष पहचान बनाई है। इन तीनों का संग्रह अगले साल आ रहा है। साहित्य अकादेमी फिरदौस की किताब प्रकाशित कर रही है तो भारतीय ज्ञानपीठ अनुज की अघोषित उलगुलान छाप रहा है। निर्मला पुतुल के बाद अनुज ने हिंदी कविता में आदिवासी स्वर को प्रमुखता से जगह दी है। कई युवा कवयित्रियों के भी संग्रह नए वर्ष में आ रहे हैं। इनमें ज्योति चावला, अनुराधा सिंह, मोनिका कुमार प्रमुख हैं जिन्होंने अपनी कविताओं से ध्यान खींचा है। ज्योति कहानी और आलोचना में भी दखल रखती हैं। मां का जवान चेहरा के बाद जैसे कोई उदास लौट जाए दरवाजे से भी उनका दूसरा संग्रह आ रहा है। अनुराधा सिंह का पहला संग्रह ईश्वर नहीं नींद चाहिए नए वर्ष में आ रहा है। मोनिका कुमार के प्रथम काव्य संग्रह को प्रकाशित करने की घोषणा वाणी प्रकाशन ने की है। युवा कहानीकार श्वेता स्वाति का भी नया कविता संग्रह भारत पुस्तक भंडार मेले में ला रहा है। स्मिता वाजपेयी का संग्रह तुम भी तो पुरुष ही हो स्‍त्री पितृसत्ता पर सवाल खड़ा करती है।

कविता के अलावा कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना और यात्रा संस्मरण में भी युवा लेखकों की कई किताबें नए साल में पाठकों का ध्यान खींचेंगी। पाखी पत्रिका के संपादक प्रेम भारद्वाज, जो अपने शानदार संपादकीयों के लिए जाने जाते हैं, अपना दूसरा कहानी संग्रह लेकर आ रहे हैं। राजकमल प्रकाशन फोटो अंकल नाम से यह संग्रह छाप रहा है। राजकमल हिंदी के एक और बेबाक और साहसी कहानीकार शशिभूषण द्विवेदी का कहानी संग्रह कुछ और नहीं प्रकाशित कर रहा है। सत्यनारायण पटेल का नया कहानी संग्रह तीतर फांद आधार प्रकाशन छाप रहा है। सत्यनारायण पटेल ने अपनी शानदार कहानियों से पहचान बनाई है। वे पेशे से सब इंस्‍पेक्टर हैं लेकिन संवेदनशील हैं और न्याय के पक्ष में रहते हैं, अपनी कहानियों में भी।

एक और नई कहानीकार विजयश्री तनवीर का पहला कहानी संग्रह अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार हिंद युग्म प्रकाशित कर रहा है। तनवीर की कहानियों की भाषा में एक अंतरंग आकर्षण है और प्रेम की उत्कट कामना भी। युवा लेखिका अंशु प्रधान की कहानियों की किताब बोधि प्रकाशन ला रहा है। कहानीकार और रंग समीक्षक प्रज्ञा का उपन्यास गूदड़ बस्ती भी साहित्य भंडार प्रकाशित कर रहा है। उनकी नाटकों पर भी दो और किताबें आ रही हैं। नाटक लेखन में भी युवा लेखिकाएं सामने आ रही हैं। कहानीकार-उपन्यासकार इंदिरा दांगी अपना दूसरा नाटक रानी कमलापति लेकर आ रही हैं। इसे राष्ट्रीय पुस्तक न्यास प्रकाशित कर रहा है। यह नाटक भोपाल की आदिवासी रानी पर आधारित है जो अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है और इसी सुंदरता की वजह से उसकी जान भी चली जाती है। नेशनल बुक ट्रस्ट युवा कवयित्री यशस्विनी पांडेय का यात्रा संस्मरण य से यशस्विनी छाप रहा है और उसे पुस्तक मेले में रिलीज कर रहा है। हिंदी के युवा आलोचक और पक्षधर पत्रिका के संपादक विनोद तिवारी का यात्रा संस्मरण नाजिम हिकमत के देश में आधार प्रकाशन छाप रहा है जो काफी दिलचस्प है। हिंदी में राहुल संकृत्यायन, रामवृक्ष बेनीपुरी, निर्मल वर्मा, अजीत कुमार आदि ने भी सुंदर संस्मरण लिखे हैं। देखना यह है विनोद

तिवारी की यह पुस्तक संस्मरण विधा को कितना समृद्ध करेगी।

आलोचना में नैया मोरवाल की पुस्तक हिंदी नवजागरण और स्‍त्री साहित्य आ रही है जिससे स्‍त्री विमर्श पर नया प्रकाश पड़ेगा। प्रसिद्ध युवा अध्‍येता गरिमा श्रीवास्तव के संपादन में छह पुस्तकें स्‍त्री विमर्श पर आ रही हैं। इनमें स्‍त्री दर्पण, स्‍त्री समस्या, स्‍त्री कविता संग्रह, हिंदी की महिला साहित्यकार, हिंदी काव्य की कलामयी तारिकाएं, महिला मृदुवाणी शामिल हैं। इन किताबों से स्‍त्री विमर्श समृद्ध होगा और शोध की आधारभूमि बनेगी। रमाशंकर कुशवाहा भी आत्मकथा और स्‍त्री नामक पुस्तक ला रहे हैं। युवा कवि अच्युतानंद मिश्र की बाजार के अरण्य में और चर्चित कहानीकार प्रत्यक्षा की तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है किताब भी आधार प्रकाशित कर रहा है।

इनके अलावा बड़े लेखकों की भी कई किताबें इस साल आ रही हैं जिन पर नजर रहेगी। इनमें समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा की रचनावली भूमंडलीकरण और वैकल्पिक विचार के लिहाज से अहम है। प्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी की किताब भी ध्यान खींच सकती है।

गौरतलब है कि अशोक वाजपेयी के प्रथम कविता संग्रह का शीर्षक है शहर अब भी संभावना है। उनका यह संग्रह उनके युवा काल में ही आया था। आज भी वह इस संग्रह से जाने जाते हैं। इस तरह की संभावना की बात क्या हिंदी के युवा लेखकों पर लागू होती है? यह बात हिंदी के अधिकतर लेखकों के साथ सच है कि अपना श्रेष्ठ लेखन उन्होंने युवा काल में किया। हिंदी में 40 वर्ष तक के लेखकों को युवा माना जाता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो अज्ञेय की शेखर एक जीवनी, जैनेंद्र का त्यागपत्र, भगवती चरण वर्मा की चित्रलेखा, यशपाल का दादा कामरेड, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ का मैला आंचल, धर्मवीर भारती का गुनाहों का देवता, राजेंद्र यादव का सारा आकाश जैसी अनेक चर्चित कृतियां युवा काल में ही लिखी गईं।

हिंदी में पिछले तीन दशकों में बड़ी तादाद में युवा लेखक सामने आए। इनमें से कई तो 1992 में शुरू हुई आर्थिक नीति के बाद पले-बढ़े और उनकी पहचान इक्कीसवीं सदी में बनी। इस पीढ़ी ने आपातकाल नहीं देखा न जेपी आंदोलन का अनुभव उनके पास है। ये लोग सूचना-प्रौद्योगिकी और बाजार के युग में पैदा हुए हैं। इस पीढ़ी के लिए सोशल मीडिया तथा ब्लॉग मंच बना है। वाम और प्रगतिशील ताकतों के पराभव और सांप्रदायिक ताकतों के उभार के बीच इन लोगों ने अपनी कलम को पकड़ा है। ये 25 से 40 वर्ष के हैं। इनका लेखक अब साहित्य के उत्सवों में रेखांकित किया जा रहा है। बड़ी बात है कि इनमें महिलाएं अधिक हैं। दलित और आदिवासी स्वर भी सामने आए हैं।

हिंदी में राजेंद्र यादव ने जो स्‍त्री विमर्श अपनी पत्रिका हंस में शुरू किया था क्या यह उसका नतीजा है या दलित और पिछड़े वर्ग की राजनीति के उभार के कारण यह संभव हुआ। या समाज में इन वर्गों पर जो दमन तेज हुआ, उनके अधिकार छीने जा रहे उसके प्रतिवाद में यह उनकी मुखर अभिव्यक्ति है जो युवा स्वरों में दिखाई दे रही है? साहित्य की दुनिया में युवा लेखन केवल उम्र से जुड़ा होने मात्र का प्रसंग नहीं है।

इस समय भारत में युवा शक्ति की बहुत बात की जा रही है। कहा जा रहा है कि भारत में आज जितनी युवा शक्ति है उतनी दुनिया के किसी देश में नहीं। भारतीय युवा वर्ग के कौशल विकास और उद्यमशीलता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है लेकिन इस युवा वर्ग की रचनाशीलता पर चर्चा कम है। उनके साहित्य सृजन पर हिंदी के लेखक संगठनों में भी विशेष दिलचस्पी नहीं है। युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने वाले राजेंद्र यादव, रवींद्र कालिया और प्रभाकर श्रोत्रिय के निधन के बाद युवा लेखकों को मंच देने वाला कोई रहनुमा नहीं है। अशोक वाजपेयी इस शून्य को भरने के लिए रज़ा फाउंडेशन की ओर से पिछले साल से 'युवा' नामक एक कार्यक्रम जरूर कर रहे हैं। इस वर्ष नवंबर में भी उन्होंने एक बड़ा आयोजन किया जिसमें करीब 55-60 लेखक आए। पिछले साल भी कमोबेश इतने ही युवा लेखक आए थे। इस तरह देखा जाए तो सौ से अधिक लेखक सक्रिय हैं। इनमें कुछ कच्चे-अधपके भी हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये लेखक केवल दिल्ली, मुंबई या बेंगलूरू जैसे शहरों से नहीं बल्कि भोपाल, जबलपुर, हाजीपुर, वाराणसी, चंडीगढ़, नासिक, शांति निकेतन से भी थे। इसका अर्थ यह हुआ कि युवा रचनाशीलता कस्बों और राज्यों की राजधानियों में पुष्पित-पल्लवित हो रही है लेकिन क्या उन्हें और उनके कार्य को स्थानीय स्तर पर रेखांकित किया जा रहा है? या उनकी प्रतिभा को केवल दिल्ली में ही स्वीकृति मिल रही है?

जाहिर है, यह साहित्य अकादेमी और राज्यों की अकादेमियों का भी उत्तरदायित्व बनता था। रस्मी तौर पर इन संस्थाओं ने कुछ किया भी लेकिन उनकी लगातार घटती विश्वसनीयता से युवा लेखक भी कम आकर्षित होते हैं। यूं तो, अकादेमी ने युवा साहित्य अकादेमी पुरस्कार और प्रथम कृति प्रकाशन योजना भी शुरू की है। इस संदर्भ में भारतीय ज्ञानपीठ ने नव लेखन पुरस्कार और युवा लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित कर नई प्रतिभाओं को जरूर रेखांकित किया है। बाबुषा कोहली, अरुणाभ सौरभ, सुजाता, रश्मि, योगिता यादव जैसे युवा लेखकों की पहचान बनी है। पर इससे कहीं अधिक सोशल मीडिया विशेषकर फेसबुक ने उन्हें अधिक पहचान दिलाई है। अविनाश मिश्र, शायक आलोक, सुधांशु फिरदौस, अंबर पांडेय, लवली गोस्वामी, अनुराधा सिंह, मोनिका कुमार, संध्या निवेदिता, यशस्विनी पांडेय, रजनी अनुरागी जैसे अनेक युवा लेखकों को यहीं से पहचान मिली है। इनसे पहले के शिरीष मौर्य, गीत चतुर्वेदी, अशोक पांडेय, मनीषा कुलश्रेष्ठ, जयश्री राय, वंदना राग, प्रियदर्शन, प्रत्यक्षा, अल्पना मिश्र, हरे प्रकाश उपाध्याय, उमाशंकर चौधरी जैसे रचनाकार अब धीरे-धीरे युवा वर्ग की श्रेणी से निकल रहे हैं और उनके दो-तीन संग्रह आ चुके हैं।

इतनी तादाद में युवा लेखक हिंदी में कभी नहीं थे। अन्य भारतीय भाषाओं में शायद ही किसी भाषा में इतनी संख्या में युवा लेखक सक्रिय हैं। इस दृष्टि से हिंदी में युवा रचनाशीलता का विस्फोट हुआ है। क्या आने वाले समय में ये युवा लेखक भविष्य के बड़े लेखक साबित होंगे जैसा हिंदी में कभी बड़े लेखकों ने अपने युवा काल में श्रेष्ठ और उत्कृष्ट साहित्य की रचना की थी। हिंदी आलोचकों का यह काम है कि वह इन युवा प्रतिभाओं की रचनाओं की प्रवृत्तियों की शिनाख्त करें और पाठकों को बताएं कि अमुक रचना ने भूमंडलीकरण और बाजार तथा अधिनायकवादी ताकतों के उभार से समाज में उत्पन्न संकटों का कितना चित्रण किया और उनकी रचनाएं उदयप्रकाश, असगर वजाहत, पंकज बिष्ट, अखिलेश के बाद नया क्या जोड़ती हैं? क्या ये रचनाएं 'न्यू इंडिया' के झूठ और फासीवादी खतरों को पहचानती हैं?

अनुज लुगुन की बाघ और सगुना मुंडा की बेटी, अरुणाभ की आद्य नायिका, सुधांशु फिरदौस की सूखते तालाब की मुर्गाबियां और अदनान कफील दरवेश की बाबरी मस्जिद विध्वंस पर लिखी कविताएं इस समय के गहरे संकट को व्यापक फलक पर रखती हैं। इन युवा लेखकों के सामने कई तरह के प्रलोभन भी हैं और एक वैचारिक धुंध का भी उन्हें सामना करना पड़ रहा है। उन्हें तमस, झूठा सच, संसद से सड़क तक, राग दरबारी, आखिरी कलाम, सूखा बरगद की जगह युवा कार्यक्रम के जरिए अंतिम अरण्य, असाध्य वीणा, उसका बचपन के प्रश्नों में समेटा जा रहा है। बाजार उन्हें बेस्ट सेलर की बहस में उलझा रहा है और मीडिया समूह फेस्टिवल्स की चकाचौंध में खींच रहे हैं। लेकिन साहित्य की दौड़ लंबी होती है। इसलिए उसमें संभावना बनी रहती है और उसका मूल्यांकन भी पाठक करते हैं। आने वाले वर्षों में ये लेखक कितने पाठक बना पाते हैं, देखना बाकी है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement