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मतलब की तलब से भरे व्यंग्य

विषय चयन और बयानिया दोनों में लिया गया है जहीन और महीन युक्तियों का सहारा
बातें बेमतलब

युवा व्यंग्यकार अनुज खरे का नया व्यंग्य संग्रह बातें बेमतलब सचमुच नए तरह का है। हिंदी व्यंग्य में विषय, भाषा और कहन का नयापन जोड़ते ये व्यंग्य पाठकों को मस्ती के नएपन का अनुभव कराते हैं। अनुज खरे जीवन के वैविध्य को और उसके अनोखेपन को पहचानते हैं। छोटी-छोटी चेष्टाओं, चुटकियों, चालाकियों को देखकर उनमें छिपे व्यंग्य का अनुसंधान करते हैं। ‘इशकवाला लव’, ‘ट्रकवाला टैलेंट’ में ट्रक के पीछे लिखे जुमलों से ठहाके उपजे हैं। एक जुमला, “गाड़ी के कार्बोरेटर तुझे हुआ क्या है, आखिर इस धकाधक धुएं की वजह क्या है।”

अनुज नतीजा निकालते हैं, “बोनट पर बैठकर यात्रा करते समय ड्राइवर की पीड़ा देखकर ट्रक-बसों की दुनिया की कालजयी लाइनें फूटी होंगी।”

पाठक इसकी भाषिक स्मार्टनेस देखकर चकित रह जाएंगे। विषय चयन और बयानिया दोनों में जहीन और महीन युक्तियों का सहारा लिया गया है। कोई माने या न माने सोच से लेकर शिल्प तक यह बदलाव अनुज जैसे तेज नजर दुरुस्त दिमाग लेखकों में दिख रहा है। ‘हे वत्स सिग्नल अजर है’ व्यंग्य में चुलबुलेपन का सकारात्मक रूप कौंधता है। आत्मा और मौत के दर्शन को अनुज समझाते हैं, “जिस प्रकार सेलफोन से उसकी सिमरूपी आत्मा एक मॉडल से दूसरे मॉडल में चली जाती है। ठीक उसी प्रकार हे, गांडीवधारी, सिग्नल अजर है, अमर है और एंथनी भी।”

इस संग्रह के व्यंग्य कहते हैं कि हमें आप पढ़िए। नहीं पढ़ेंगे तो पीछे रह जाएंगे। कई बार समय के साथ न चलिए तो घुटने जोड़-घटाना करने लगते हैं। ‘बुद्धि बम फेंकनेवाले आतंकी’, ‘बंदा अमेरिका के लिए ही बना है बंधु’, ‘मायके गई पत्नी को लिखा गया भैरंट लेटर’, ‘बादलों, पकौड़ा पिपासुओं पर तरस खाओ’, ‘मोबाईल की राह में शहीद हुए हैं उनकी जरा’, ‘वर्चुअल वर्ल्ड के बैरागी’, ‘विचारों की असेंबलिंग से रिसाइकिल बिन के रिश्ते’ आदि बहुतेरे व्यंग्य पाठकों को आनंद के चरम तक ले जाते हैं। इनमें वह सब कुछ है जिसकी मोटे तौर पर एक अच्छे व्यंग्यकार से अपेक्षा की जाती है। साथ ही मौलिकता और मस्ती का मलंग तालमेल भी है।

संग्रह की भूमिका भी एक मुकम्मल व्यंग्य है। लेखक कहता है, “मेरी रचनाओं के पात्रों के बीच संवाद इतने उच्चस्तरीय हैं कि माता-पिता बच्चों से इन रचनाओं को दूर ही रखने का प्रयास करते हैं। कई स्थानों पर तो पुलिस ट्रेनिंग के पाठ्यक्रमों में इनके लिए जाने की संस्तुति कई सब्जेक्ट एक्सपर्ट लगातार कर रहे हैं।”

आज का समय और परिवेश अनुज की व्यंग्य रचनाओं में जाहिर होता है। वे मीडिया से जुड़े हैं इसलिए लेटेस्ट जीवन शैलियों से आशना रहते हैं। राजनीति, साहित्य, अर्थशास्‍त्र, परिवार, मीडिया, बाजार, व्यवहार आदि पर उनके व्यंग्य अद्‍भुत हैं।

रचना में बहुत बार विषय उतना नया नहीं होता जितना अपनी भाषा और कहन से लेखक उसे बना देता है। उदाहरण के लिए, बुद्धिजीवी पर खूब लिखा गया मगर अनुज नई बातें निकाल लेते हैं, “आसपास के कई कस्बों के एकमात्र बुद्धिजीवी। ऑर्डर पर ज्ञान देने को तत्पर। तुरंत सप्लाई की विशेषता से युक्त। ज्ञान दान के लिए चौबीस घंटे उपलब्ध हैं। रात में उठा लो न नहीं करेंगे।” यह संग्रह बेहद दिलचस्प है। गजब की पठनीयता है। लेखक ने आंचलिक शब्दों का शानदार इस्तेमाल किया है। इंटरनेटी, फेसबुकिया और वाट्सैपानुकूल पीढ़ी की हरकतों पर अनुज खरे की पैनी नजर है। इन सबसे उपजी विसंगतियों और विडंबनाओं को वे चीन्ह लेते हैं। “इंटरनेट के सहारे गुजर रही है जिंदगी जैसे, इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं” शेर सुनाकर वह लिखते हैं, “फेसबुक न होती तो खुल्लम-खुल्ला किसी को भी लाइक करने जैसी सुविधा और संतुष्टि कहां मिलती।”

इसमें छोटी से छोटी सूचना में भी ठहाके हैं। पुस्तक के परिचय में है, “खुल्ला लिख डाला है कि ऊंट जब पहाड़ के नीचे आता है तब सेल्फी नहीं ले पाता।”

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