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पानी का गिरता स्तर और अंडरग्राउंड राजनीति

बोरवेल से पानी तो राजनीति से निकलता है कीचड़
आओ करें राजनीति पर चर्चा

देश में हर जगह जमीन में पानी का स्तर नीचे जा रहा है। जैसे-जैसे विकास होता है, पानी का स्तर नीचे और नीचे चला जाता है। विकास का स्तर जितना ऊपर पानी का स्तर उतना नीचे। लोग पानी के लिए इसी वजह से और ज्यादा गहराई तक खोदते जाते हैं। जब विकास चरम पर पहुंच जाएगा तब शायद बोरवेल धरती के आर-पार जाकर अमेरिका का पानी लाने लगेगा। पानी के स्तर का मुकाबला सिर्फ राजनीति कर रही है। अभी राजनीति का स्तर पानी के स्तर से भी काफी नीचे है। दोनों में एक ही फर्क है, बोरवेल से पानी निकलता है, राजनीति से कीचड़ निकलता है। जब चुनाव होते हैं तो नेता नीचे और नीचे जाना जारी रखते हैं। कभी सुना है कि देश में ऐसे नेता थे जो बड़ी गहराई में जाकर सोचते और बोलते थे। अब गहराई का मतलब बदल गया है। कई नेता हैं जो स्थायी रूप से निचले स्तर पर ही रहते हैं। इससे सुविधा यह होती है कि बार-बार सतह पर आने की मेहनत बचती है। वैसे भी हर चार-छह महीने में कहीं न कहीं चुनाव होते ही हैं, तो उसी स्तर पर रहने के अपने फायदे हैं। दूसरा फायदा यह है कि उनके समर्थक और कार्यकर्ता भी उसी स्तर पर रहते हैं सो उनसे संवाद बनाने में आसानी होती है । यहां तक कि विदेशों में भी कई नेता हैं जो उसी स्तर पर रहते हैं तो उसी स्तर पर उनसे भी संवाद स्थापित हो जाता है। इस तरह राजनीति का एक ‘अंडरग्राउंड’ तंत्र कायम हो गया है जो एक समानांतर सीवर सिस्टम की तरह काम करता है।

फर्क इतना है कि सीवर सिस्टम गंदगी को समाज से दूर बहा कर ले जाता है, यह सिस्टम अपनी गंदगी को समाज तक ले आता है। मुझे लगता है कि इस सिस्टम में नेता से उसके प्रशंसक ऐसी बात करते होंगे, ‘‘कमाल है भाईसाहब, आपने क्या भड़काऊ, बेतुका और बेबुनियाद बयान दिया है।’’ या वे शिकायत करते होंगे, ‘‘आपसे यह उम्मीद नहीं थी, आपका पिछला बयान तो काफी तर्क संगत और संतुलित था। हम तो यह उम्मीद करते हैं कि आपका हर बयान नए निचले स्तर को छुएगा।’’ अब मीडिया भी इस अंडरग्राउंड राजनैतिक तंत्र का हिस्सा बनता जा रहा है। जाहिर है लोकतंत्र का चौथा खंभा होने की वजह से उसकी भी जिम्मेदारी है। लेकिन अब वह सिर्फ खंभा नहीं है जिस पर लाउडस्पीकर टांग दिया जाए। वह खुद आवश्यकता के मुताबिक गंदगी पैदा कर लेता है। जहां नेता भूले-भटके चूक जाए वहां यह मुस्तैद मीडिया अपना कर्तव्य निभा लेता है। मुझे लगता है कि यह अंडरग्राउंड तंत्र हमारे समाज की जरूरत थी। हमारे समाज में सतह के नीचे इतनी गंदगी जमा थी कि उसका प्रतिनिधित्व ऐसा ही अंडरग्राउंड तंत्र कर सकता था। काफी वक्त तक शरमा-शरमी का पर्दा रहा। एक बार जब यह लिहाज का आवरण हट गया तो अंडरग्राउंड ही नया जमीनी सच बन गया। यह कोई नई ईजाद की वस्तु नहीं है। यह हमारा यथार्थ है जो सामने आ रहा है। पानी का और सभ्यता का स्तर हमारे समाज में गिर रहा है लेकिन पानी और सभ्यता के ऊंचे स्तर की जरूरत किसे है?

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